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पौराणिक शिवलिंग आधुनिक विज्ञान के लिए चमत्कार है .

वेद विज्ञान
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वेद न तो कोई जादू का पिटारा है. और न ही कोई रहस्य. इसकी प्रत्येक ऋचाएं पूर्ण, ठोस एवं सार्थक सिद्धांत पर आधारित है. हम इसे शिव सूक्त की मात्र एक ऋचा की सर्वथा अचंभित कर देने वाली वैज्ञानिक अवधारणा को देखते है.
“ॐ अग्नी मीडे पुरोहितस्य देवं ऋत्विजं होतारं रत्न धातमम”
अग्नि का अर्थ होता है तेज, ऊर्जा या ऊष्मा. पुरो अर्थात आगे. मीडे का अर्थ प्रार्थना. शेष शब्दों का अर्थ स्पष्ट है. अर्थात सम्मुख पूजा की तेज, ऊर्जा या अग्नि भाष्मीभूत करने की क्षमता रखती है. अब हम इसे वर्तमान विज्ञान के परिप्रेक्ष्य में देखते है. शिवलिंग जो पत्थर के तुकडे से बना होता है उसका रासायनिक नाम प्रायः Calcium Carbonate के रूप में जाना जाता है. इस कैल्शियम कार्बोनेट पर जब कोई Acid डाला जाता है तो कार्बन डाई आक्साइड गैस निकलती है. इसे आज का आधुनिक विज्ञान भी मान चुका है. इस प्रकार यदि किसी पत्थर के टुकडे पर Hydrochloric Acid, Nitric Acid, Citric Acid, Tartaric Acid, Acitic Salysilic Acid, Sulfuric Acid आदि दूध, दही, घी, शहद, चन्दन आदि लगातार वर्षो तक डालते रहते है तो उससे क्या निकलेगा? आधुनिक विज्ञान ने जब बहुत हाथ पाँव मारा, बहुत खोज बीन किया तो अनिश्चित तौर पर इतना ही कर टाल गए की हाइद्रोज़ेन (Hydrojan) या हीलियम (Helium) के समस्थानिक (Isotopes) जैसी कोई अदृष्य किन्तु अति ज्वलनशील गैस निकलती है. किन्तु निश्चित तौर पर कुछ भी नहीं कहा. चलिए इतना तो माना की कुछ ज्वलनशील पदार्थ निकलता है. इसी को पौराणिक ग्रंथों में कहा गया है की भगवान शिव के तीसरे नेत्र से भयंकर ज्वाला निकलती है जो सारे ब्रह्माण्ड को जला कर ख़ाक कर सकती है. अब इसको चाहे हीलियम कहें या हाईद्रोज़न. आधुनिक विज्ञान ने भी यह तो सिद्ध कर ही दिया है की शिवलिंग (पत्थर के टुकडे से) कोई बहुत ही भयंकर ज्वाला निकलती है. इसी लिए भगवान शिव के सिर पर गंगा की कल्पना की गयी है. शिवलिंग के ऊपर भी पानी से भरे घड़े को रखा जाता है ताकि उस शिवलिंग (पत्थर के टुकडे) से होने वाले विकिरण अर्थात निकलने वाली ज्वाला को तनु (Dilute) कर दे. इस पत्थर (शिवलिंग) से निकलने वाला पानी इधर उधर न बिखरे इसी लिए इस पत्थर (शिवलिंग) को एक निश्चित आकार (Shape & Size) दे दिया जाता है. ताकि पूजा का पानी एक तरफ एक निश्चित दिशा में ही बह कर जाय. इसी आकार को शिवलिंग कहा जाता है. यही कारण है की शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है. नहीं तो जो पानी शिवलिंग से निकलता है उसे लांघना पडेगा. और उस शिवलिंग से बहने वाले पानी को लांघने से उस पानी की रेडिओ धर्मिता (Radio Activity) के कारण उसको लांघने से हमारे खून के श्वेत रक्त कनिका (WBC) को नुकसान (Damage) पहुंचेगा. और आदमी कुष्ठ रोग का मरीज हो जाएगा. इसी लिए शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं की जाती है. जहां पानी बहता है. उसे लांघे बगैर ही वापस लौट आते है. तथा अर्द्ध परिक्रमा ही करते है. यही कारण है की वे शिवलिंग जो बहुत ही पुराने है. तथा जिन के ऊपर वर्षों से विविध पदार्थ चढ़ाए जा रहे है. उन से विकिरण और भी ज्यादा मात्रा में होता है. तथा उनकी महत्ता और ज्यादा बढ़ जाती है. यही कारण है की ज्योतिर्लिंगों की बहुत ही ज्यादा महत्ता होती है.
यह ऋग्वेद के अग्नि सूक्त (शिवसूक्त) के एक श्लोक के ऊपर की गयी वैज्ञानिक खोज का परिणाम प्राप्त हुआ है. और इस प्रकार आधुनिक वैज्ञानिक कसौटी के ऊपर इस श्लोक के अर्थ की सत्यता प्रमाणित होती है. की (इस शिवलिंग) की पूजा से सामने निकलने वाली अग्नि की प्रार्थना से बचाव के उपरांत पूजा करने वाला रत्न, धन, सुख एवं उन्नति प्राप्त करता है.

पारद शिवलिंग, ज्योतिष एवं आयुर्वेद से सम्बंधित अन्य विशेष जानकारी के लिये आप मेरे सम्बंधित अन्य लेख Face Book पर भी देख सकते है. Link निम्न प्रकार है-
facebook.com/vedvigyaan

द्वारा-

Pundit R. K. Rai

Mob- 9086107111, 9889649352

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