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प्रत्येक पदार्थ की संरचना विविध तत्वों के रासायनिक संयोग से होती है. विविध रत्न भी इसी प्रकार से विविध तत्वों के रासायनिक संयोग से बने है. इन में कुछ एक उग्र किरणों से युक्त विकिरण (Radioactive) गुण वाले होते है. जैसे हीरा, नीलम, पुखराज आदि. कुछ आवेश (Charge) रहित (Neutral) होते है. जैसे मोती, लाजावर्त, वर्तिका आदि. कुछ कम आवेश वाले होते है जैसे मूंगा, माणिक आदि. प्राकृतिक ताप एवं दाब (Normal Temperature & Pressure) पर स्वतः निर्मित रत्न बहुत प्रभावशाली एवं ग्रह दोष निवारक होते है. कारण यह है कि ग्रहों से भी विविध किरणों का उत्सर्जन होता रहता है. जैसे शुक्र ग्रह वाकतीय (Derozen) किरण उत्सर्जित करता है. इसके लिए हीरा जो अपने प्राकृतिक मूल रूप में रहने पर अदावीर्य (Gentonin) किरण उत्सर्जित करता है. यह अदावीर्य शुक्र ग्रह के वाकतीय किरण को अवशोषित कर लेता है. किन्तु यह सूर्य से निकलने वाली परावैगनी (Ultraviolet) किरण के लिए निष्प्रभावी है. इस लिए ध्यान रहे कि यदि सूर्य एवं शुक्र दोनों ग्रह साथ रहे तो कभी भी हीरा नहीं पहनना चाहिए. कारण यह है. कि हीरे का अदावीर्य परा वैगनी किरण को और भी ज्यादा उग्र एवं विषाक्त बना देता है.
एक बात यहाँ ध्यान देने की है कि यह सारा प्रभाव तभी होगा जब रत्न अपने मूल रूप में हो. अन्यथा जो रत्न तराश दिया (Cultured) जाता है उसका मौलिक रूप नष्ट हो जाता है. क्योंकि तराशने के बाद उस नग या रत्न अपने मौलिक प्रकाश परावर्तन की क्षमता खो देता है. तथा उसके बाद उस पर पड़ने वाली ग्रहों की किरणों का परावर्तन (Reflection) नहीं हो पाता है. और यदि होता भी है तो वह किसी और ही दिशा में हो जाता है. ऐसी अवस्था में वह रत्न लाभ पहुचाने के बदले में हानि पहुचाना शुरू कर देता है.
उदाहरण के लिए हीरा (Diamond) डाई मेथिलकार्बामाजायिन ट्राई हाईड्रेट होता है. यह शुक्र ग्रह से होने वाले दुष्प्रभाव को रोकता है. कारण यह है कि शुक्र की वाकतीय किरण (Derozen Rays) हीरे की मेथिल कार्बन के द्वारा रिबोफ्लेक्सिविन में बदल दिया जाता है. और इसे धारण करने वाला व्यक्ति कुंडली में वर्णित शुक्र ग्रह के सारे दुष्प्रभावो से मुक्त होकर सुखी हो जाता है. किन्तु सूर्य की परा वैगनी किरण हीरे की मेथिल कार्बन को पैरा कार्बाईड में बदल देती है. यह पैरा कार्बाईड एक बहुत ही भयानक जहर है. इस लिए जिस किसी व्यक्ति को हीरा पहनना हो वह पहले निश्चित कर ले कि वह शुक्र के साथ कही सूर्य से भी तो प्रभावित तो नहीं है.
आज कल जौहरियों एवं सुनारों के यहाँ प्रायः तराशे हुए रत्न ही मिलते है. इनका कोई रासायनिक प्रभाव नहीं होता है. ये केवल सुन्दरता बढाने एवं सामाजिक प्रतिष्ठा दर्शाने के ही काम आ सकते है. क्यों कि तराश देने के बाद इनकी प्रकाश परावर्तन की शक्ति समाप्त हो जाती है. इनका न तो किसी ग्रह से कोई संपर्क रह पाता है. और न ही इनका मौलिक रासायनिक प्रभाव ही रह पाता है. उलटे यदि तरासते समय कही इनका कोई कोर (Angle) ज्यादा उत्तल या अवतल (Convex or concave) है तो शरीर का रिबोफ्लेविन नामक विटामिन सूख जाता है. तथा इसकी गुरुता (Gravity) के अनुपात में उतने समय बाद या उतने वर्षो बाद व्यक्ति मधुमेह का मरीज हो जाता है.
इसके साथ एक बात और भी है कि जिस प्रकार दो व्यक्तियों का रक्त समूह एक होने के बावजूद भी एक व्यक्ति दूसरे को तब तक खून नहीं दे सकता जब तक Cross Matching न हो जाय. ठीक उसी प्रकार एक व्यक्ति को हीरा या नीलम या कोई और नग पहनना आवश्यक होने के बावजूद भी तब तक नहीं पहन सकता जब तक यह प्रमाणित न हो जाय कि उसे वह नग Suit कर रहा है या नहीं. जैसे यदि व्यक्ति को पुखराज पहनना जरूरी है तो सबसे पहले उसे बिना नंगे हाथ से स्पर्श किये किसी कागज़ के सहारे किसी धातु या स्टील के गिलास में पानी में डालना चाहिए. तो उस समय उस गिलास के पानी का रंग नहीं बदलना चाहिए. किन्तु यदि हथेली पर उस पुखराज को रख कर तथा मुट्ठी में दस पंद्रह सेकेण्ड बंद करने के बाद उसी पानी में डालने पर उस पानी का रंग लाल हो जाना चाहिए. तभी यह साबित हो पायेगा कि वह पुखराज वह व्यक्ति पहन सकेगा. और तभी वह पुखराज उस व्यक्ति को लाभ देगा कारण यह है कि पुखराज पहनने वाले व्यक्ति को रेडिकल नामक तत्त्व की आवश्यकता होती है. तथा यह रेडिकल पानी को लाल कर देता है.
इस प्रकार सौंदर्य निखारने के लिए पहने जाने वाले रत्नों को धारण करने से पहले इन सारी बातो का ध्यान रखना आवश्यक है.
Pundit R. K. Rai
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