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पृथ्वी की भौगोलिक दशा के अनुसार इसका विविध भू भाग विविध ग्रहों के निकट एवं दूर पड़ता है. धरती का जो भाग जिस ग्रह के निकट पड़ता है. वह भाग उस ग्रह की किरणों के प्रभाव में ज्यादा पड़ता है. जैसे विषुवत रेखीय देश या भूखंड अपनी उठी हुई या उत्तल स्थिति के कारण सूर्य के निकट वर्ती होते है. अफ्रिका महाद्वीप का उत्तरी हिस्सा तथा यूरोप एवं सोवियत संघ का मध्यवर्ती तथा उत्तरी एवं दक्षिणी अमेरिका के बीच का भूभाग सूर्य ग्रह के निकट पड़ते है. इस लिए इन पर सूर्य ग्रह का प्रभाव ज्यादा होता है. जिस ग्रह का प्रभाव जिस देश, राज्य या भूभाग पर ज्यादा होता है. वहां वही राशि अपना राशिफल देती है.
पश्चिम के देशो में सूर्य राशि ही ज्यादा प्रचलित है. यूनान एवं मिश्र आदि देशो में शुक्र राशि से राशिफल देखा जाता है. चीन जापान आदि देशो में मंगल राशि प्रचलित है. इसी प्रकार एशिया महाद्वीप में चन्द्र राशि प्रभावी होती है. आस्ट्रेलिया महाद्वीप में राशिफल वृहस्पति से देखा जाता है. किन्तु न्यूजीलैंड के हिस्से में बुध राशिफल प्रचलित है.
अब बात भारत की आती है. सम्पूर्ण भारत उपमहाद्वीप चन्द्रमा का निकटवर्ती है. इसलिए यहाँ पर चन्द्र राशि ही प्रभावी एवं सत्य फल देने वाली होगी. किन्तु बहुत ही अफ़सोस की बात है कि हम पाश्चात्य सभ्यता एवं संस्कृति के अनुकरण में अपनी समृद्ध वैदिक संपदा को तिरस्कृत एवं विस्मृत करते जा रहे है. तथा उसके ठोस, पूर्ण, तार्किक एवं सर्वथा वैज्ञानिक लाभ से वंचित होते जा रहे है.
गागर में सागर भरने वाले महान ज्योतिषाचार्य वराह मिहिर ने अपनी कृति वृहत्संहिता के “कूर्म प्रकरण” नामक चौदहवें अध्याय के श्लोक संख्या 5, 6 एवं 7 में इसका बिल्कुल स्पष्ट वर्णन किया है. उदाहरण के लिए देखते है-
“अथ पूर्वस्यामंजनवृषभध्वजपद्ममाल्यवदगिरयः. व्याघ्रमुखसुह्मकर्वटचान्द्रपुराः शूर्प कर्णाश्च.
ख्रसमगधशिबिरगिरीमिथिलसमतटोंड्राश्ववदनदंतुरकः. प्रागज्योतिषलौहित्यक्षीरोद समुद्र पुरुषादाः. उदयगिरिभद्रगौडक पौन्ड्रोत्कलकाशिमेकलाम्बाष्ठाः. एक पद ताम्र लिपटक कोशलका वर्धमानश्च.
अर्थात अन्जन्गिरी, वृषभाध्वज गिरि, पद्मगिरि, माल्यवान पर्वत, व्याघ्रमुख, सुह्म, कर्कट, चन्द्रपुर, शूर्पकर्ण देश, खास, मगध, शिविरपर्वत, मिथिला, समतट, उड्र, अश्ववदन, दंतुरक, प्रागज्योतिष, लोहित्य, पुरुषाद प्रदेश, उदयगिरि, भद्र, गौड़देश, पौन्द्र, उत्कल, काशी, मेकल, अम्बष्ठ, एकपद, ताम्रलिप्तक, कोशल एवं वर्धमान प्रदेश आर्द्रा, पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्र के वर्गों में पड़ते है.
फिर जब ज्योतिष के मूल भूत सिद्धांत ही इस बात को दृढ़ता पूर्वक बताते है. तो हम क्यों किसी जगह का राशिफल किसी और राशि के तहत देखते या करते है? ऊपर के श्लोक से यह स्पष्ट है कि जो देश या स्थान ऊपर के श्लोक में बताये गए है उन्हें मिथुन राशि (आर्द्रा, पुनर्वसु एवं पुष्य) के तहत ही फलादेश करना चाहिए.
वर्त मान समय में जन्म के माह एवं तारीख से राशिफल देखने की परम्परा चल पडी है. जैसे 25 मई से २६ जून के बीच जन्म लेने वाले मिथुन राशि के तहत राशिफल देखते है. कारण यह कि इन दिनों में सूर्य मिथुन राशि पर रहता है. लेकिन यहाँ यह बताना आवश्यक है कि यह राशिफल विषुवत रेखीय प्रान्तों के लिए ही मान्य है. एशिया महाद्वीप के देशो के लिए नहीं.
स्थान परिवर्तन से ग्रहों के परिणाम में बदलाव आता है. आदमी जिस जगह रहता है. वह वही के ग्रह अथवा राशि के प्रभाव में रहता है. यही कारण है कि प्राचीन काल में जब कोई भी व्यक्ति किसी ग्रह पीड़ा से पीड़ित होता था. तो वह किसी विद्वान् पंडित, ऋषि या ज्योतिषी के पास जाता था. तो वह विद्वान् पुरुष उस पीड़ित व्यक्ति को किसी तीर्थ स्थान में भेज देता था. या फिर उसे 27 नदियों का जल एवं 27 जगह की मिट्टी लाने को कहता था. उन दिनों लोग पैदल ही चला करते थे. वह व्यक्ति सामान लाने के लिए अपना निवास स्थान छोड़ कर दूर दराज के देशो से विविध नदियों का जल एवं मिट्टी लाने में महीनो लगा देता था. इस प्रकार वह अपने निवास स्थान से बहुत दिनों तक दूर रहता था. जगह छोड़ देने से वह अपने कष्ट कारी ग्रह के प्रभाव से बहुत दिनों तक दूर रहता था. तथा उसका कष्ट दूर हो जाता था.
इन सारे उदाहरण तथा विविध ग्रंथो के उद्धरण से यह स्पष्ट है कि ह़र एक राशिफल ह़र जगह के लिए वैध या लागू नहीं है.
द्वारा-
Pandit R . K . Rai
9086107111, 9889649352
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