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पाखण्ड आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का एवं बदनामी ज्योतिष की

वेद विज्ञान
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आज की तेज गति से दौड़ती हुई आधुनिक विज्ञान के सहारे जीवन बिताने वाली दुनिया के पास इतना समय कहा है कि विवाह के लिए वेद, पुराण या प्राचीन ग्रंथो में वर्णित शर्तो के औचित्य पर ध्यान दें. तथा उसकी आवश्यकता को समझें. यदि कोई डाक्टर कोई टिकिया या कैप्सूल या इंजेक्सन देता है तो कोई नहीं पूछता है कि इसमें कौन सा सामान या पदार्थ मिला है जो फ़ायदा करेगा? वह जो भी देगा वह हम आँख बन्द करके श्रद्धा एवं विश्वास से बड़े आराम से खा जाते है. लेकिन यदि कोई पंडित, ज्योतिषी या वैदिक विद्वान आदमी कोई पूजा या हवन या यंत्र मन्त्र करने को कहता है तो उसे पाखंडी, आडम्बरी एवं धोखे बाज़ के नाम से कह कर उसका मज़ाक उड़ाया जाता है. यदि किसी सरकारी या गैर सरकारी चिकित्सालय में दो चार मरीज डाक्टर या दवा की गड़बड़ी से मर जाते है तो उस डाक्टर अथवा अस्पताल को बन्द नहीं किया जाता. किन्तु यदि किसी ज्योतिषी अथवा पंडित के यंत्र मन्त्र के बाद भी कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसे भारतीय दंड संहिता की विविध धाराओं के तहत सख्त से सख्त सजा का प्रावधान मुक़र्रर कर दिया जाता है. आखीर ऐसा पागलपन या गुंडागर्दी या हैवानियत क्यों?
जब कोई औरत गर्भ धारण करती है तो उसके पेट में बच्चे की रक्षा एवं किसी अनहोनी व्याधि या कमी को दूर करने के लिए डाक्टर आयरन (Iron) की गोली देते है. इसका केमिकल कोम्पोजीसन फेरस सल्फेट (FeSO4) होता है. गंधक अयस्क (Sulfar Hetraaoxide ) के साथ लौह अयस्क (Iron) का रासायनिक क्रिया (Chemical Composition) के द्वारा तैयार यह यौगिक (Chemical Compound) आहार नाल (Elementary Canal ) के द्वारा आसानी से खाया जा सकता है. तथा रोगी को उससे लाभ मिलता है. लेकिन जब वही लौह अयस्क (Iron) किसी पंडित अथवा ज्योतिषी के द्वारा घोड़े की नाल (Horse metal Shoe ) अथवा नाव (boat) की कील (Nail) की अंगूठी बनवा कर पहनने को दी जाती है जो फेरस सल्फेट (FeSO4) के बजाय फेरस आक्साइड (FeO4) है, तो वह पाखण्ड या ढंड कवंडल है.
ध्यान रहे, डाक्टर के द्वारा दिया गया ऊपर का आयरन का योग गंधक (Sulfer) से मिल कर बनता है. जो मरीज को तत्काल तो राहत तो पहुंचाता है. किन्तु इसका दूर गामी परिणाम जहरीला होता है. कारण यह है कि आयरन का तो आवश्यकता के अनुसार शोषण आँतों द्वारा जैसे न तैसे कर लिया जाता है. किन्तु उसमें मिले गंधक का पाचन (Digestion) नहीं हो पाता है. तथा आँत एवं गुर्दे पर पचाने का दबाव (Pressure) पड़ने से निकट भविष्य में जठर अर्बुद (Gastric Ulcer) या गुर्दा शिथिल्य (Kidney Failure) की प्रबल संभावना हो जाती है. किन्तु पंडित की दी हुई अंगूठी से लोहे (Iron) का अवशोषण (Consumption) बाह्य रूप से चमड़ी (Epidermic System) के द्वारा होता है. इस लिए इससे किसी अन्य रोग (Side Effect) की कोई संभावना नहीं होती है.
इतना होने के बावजूद भी दोषी डाक्टर या दवा या चिकित्सालय को कोई भी पाखंडी, धोखेबाज़, मानव द्रोही अथवा असंवैधानिक नहीं कहता. किन्तु एक पंडित अथवा ज्योतिषी को झटके से कोई भी दोषी करार दे देता है. तथा उसमें अपनी बडाई भी समझता है. पश्चिमी सभ्यता के वासना भरे आचार विचार एवं व्यवहार की इन्द्रिया जनित तड़क भड़क वाले उस तात्कालिक सुख जिससे आज भारतीय भी अपनी बेटी, बहन या मौसी चाची से शारीरिक सम्बन्ध बनाने से नहीं झिझकता है, को आत्मसात करने का लालायित अपनी महान एवं अति समृद्ध परम्परा से विमुख होता हुआ, तथा कथित उच्चता के झूठे आवरण से लिपटे हुए दोहरे मुखौटे वाला भारतीय भी सस्ती लोक प्रियता के लोभ में वेद, ज्योतिष एवं कर्म काण्ड को ठुकराता चला जा रहा है.
क्या आप को मालूम है कि शनि कृत पीड़ा से निवारण के लिए या अन्य विविध रोगों से रक्षा के लिए रुद्राक्ष की माला पहनी जाती है. इससे शरीर पर किसी भी बाहरी रोग के संक्रमण से सुरक्षा प्राप्त होती है. कारण यह है कि इसमें डाईमैथिल फास्फामाजायीन ट्राईहाईड्रेट पाया जाता है. जो सघन संक्रमण रक्षक एवं सुषुम्ना (Spinal Chord) परिपोषक होता है. तंत्रिका तंत्र (central Nerves System) के धूसर द्रव्य (Grey Matter) को छान्नित (Filtered) कर उसे शुद्ध करता है. यही कारण है कि भगवान शिव सदा इसे अपने गले में धारण किये रहते थे, या आज भी साधू संत इसे अपने गले में लटकाए रहते है. इसी रुद्राक्ष के कैप्स्यूल बनाकर प्रासिद्ध “Dey’s” लेबोरेटरी एवं साराभाई केमिकल्स के द्वारा “रोड्रिक्स” नाम से बाज़ार में सबसे ऊंचे दामो में बेच रहे है. जो उच्च रक्त चाप (High Blood Pressure) एवं अनियमित हृदय (Cordial Disorder) गति को नियमित करने के लिए दिया जाता है.
अस्तु, इसमें किसी का दोष नहीं है. बल्कि इस कराल कलिकाल के कठोर कुठारा घात से कुचले मनो मष्तिस्क वाले हम अपने लाभ, उत्थान एवं वास्तविक सुख से जान बूझ कर वंचित होते चले जा रहे है तो इसमें अपने एवं अपने प्रारब्ध का ही दोष कहा जा सकता है.
गाँव में एक वनस्पति पायी जाती है जिसे सर्पगंधा, अश्वगंधा, गधपूर्णा या भेंगराई कहा जाता है. इसी से आयुर्वेद में महाभृंग राज तेल बनाया गया है. इसमें Pyridoxine Hydro chloride पाया जाता है. यह एक शान्ति कारक (Tranquiliser) औषधीय तरल है.Sarpentina, Soridon, एवं अन्य दर्द निवारक प्रासिद्ध औषधियां इस सर्पगंधा के नाम पर ही बनी है. यहाँ तक कि बेहोश करने के लिए Pyraldihyde का injection भी डाक्टर लोग जो देते है वह भी इसी सर्पगंधा से निकलता है.
किन्तु यदि कोई पंडित सर्प दोष, व्याघात दोष अथवा पित्री दोष या ऐसा ही कुंडली में कोई केतु-शनि युति से उत्पन्न अशुभ योग से पीड़ित व्यक्ति को इस भृंग राज से बने यन्त्र को गले में बाँधने को देता है तो उसे पाखंडी या ठग का नाम दिया जाता है.
यह बात बिल्कुल सत्य है कि यदि सस्ती लोक प्रियता प्राप्त करनी है तो किसी सबसे प्रासिद्ध व्यक्ति, संत, ऋषि, संस्थान अथवा धर्म के प्रति अपशब्द एवं गाली का प्रयोग करें नाम सुर्ख़ियों में आ जाएगा. तथा रात रात भर में पूरी दुनिया जान जायेगी. ठीक उसी तरह किसी संत, महात्मा, ज्योतिष या पंडित को बुरा भला कह दी. रातो रात आप प्रसिद्द्फ्ह हो जायेइगें.
(अगले लेख में इसी के आधार पर विवाह के लिए गणना क्यों जरूरी है बताउंगा.)

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (Biochemistry)

M.A. (Vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A Home Ministry Enterprises)

Tele- 0532-2500272, Mobile- 9889649352

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