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मंत्र ढकोसला है या सच्चाई?

वेद विज्ञान
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स्वर एवं व्यंजन “अ, आ, इ” से क्ष, त्र, ज्ञा तक सब मिलाकर 48 है. इन अड़तालीस अक्षरों में से ही एक को इधर एवं दूसरे को उधर करके हम शब्दों की रचना करते है. इन्ही शब्दों से वाक्य बनते है. और ये ही वाक्य पुराण, इतिहास, वेद, उपनिषद् आदि ग्रंथो की रचना करते है. इन्ही अड़तालीस अक्षरों से कितने हज़ार लाख ग्रंथो की रचना हो गयी है. इन्ही अड़तालीस अक्षरों से इधर उधर करके गालियाँ बनती है. इन्ही अड़तालीस अक्षरों से इधर उधर करके आशीर्वाद भी बनता है. एक ही अक्षर “म” मूर्ख शब्द में आता है. तथा यही “म” महान भी बनाता है. एक ही अक्षर “द’ देवता शब्द में प्रयुक्त होता है. तथा यही “द” दानव शब्द में भी प्रयुक्त होता है. इन्ही अड़तालीस अक्षरों में से चुन कर हम किसी के लिए प्रेम भरी वाणी बना लेते है. तथा इन्ही अड़तालीस अक्षरों में से चुन कर किसी के लिए गाली बना लेते है. इन्ही अक्षरों में से चुन कर जब किसी को संबोधित करते है तो हम प्रेम, स्नेह, करुना, दया, ममता, आत्मीयता एवं घनिष्ठता के पात्र बन जाते है. तथा उसे वश में कर लेते है. तथा इन्ही अक्षरों में से चुन कर हम ऐसा शब्द बना लेते है कि किसी से सदा सदा के लिए वैर बन जाता है. यही मंत्र है जो हम विशेष शब्दों को एक विशेष क्रम में पिरो कर बनाते है तथा अपने एवं दूसरो के लिए इस्तेमाल करते है. और जिस को जैसा चाहे बना लेते है. आप स्वयं सोचिये- अक्षर अड़तालीस एवं इनको सजाने के बाद बनने वाली रचनाओं की संख्या अपरम्पार. जिन को पढ़ कर तथा सुन कर उसकी व्याख्या कर के एवं भजन बनाकर एवं गा गा कर असीम सुख शान्ति प्राप्त करते है. दूसरे शब्दों में समस्त साहित्य, पुराण, वेद एवं ज्ञान का सूक्ष्म रूप ही अक्षर है.
क्या आपने कभी विविध मंत्रो के बीज शब्दों पर ध्यान दिया है? “ॐ ह्रीं, क्लीं भ्रां, भ्रीं” आदि. ये बीज मन्त्र अपने आप में विराट पुराण एवं साहित्य का ज्ञान भरे है. आप खुद ही सोचिये. जब आप पंडित बोलेगें तो आप की तरफ पंडित जी ही देखेंगें. मौलवी साहब नहीं. दूसरी चीज यह कि आपके पंडित शब्द के उच्चारण करते ही उस व्यक्ति का स्वभाव, व्यवसाय, गुण आदि सब प्रकट हो जाते है कि यह पूजा पाठ कराने वाला, शाकाहारी, मुहूर्त तिथी एवं योग आदि देखने वाला व्यक्ति है. अर्थात एक ही शब्द “पंडित” में उस व्यक्ति का स्वभाव, व्यवसाय, पारिवारिक पृष्ठ भूमि, शिक्षा, गुण, आदि सब का वर्णन भरा पडा है. बताइये एक मंत्र (शब्द) “पंडित” का उच्चारण करते ही सारे लोगो में से सिर्फ पंडित जी ही आप की तरफ मुड कर देखे बाकी कोई नहीं. तथा मात्र एक शब्द से ही इतनी सारी बातो की रूप रेखा सामने आ गयी. देखा आपने मंत्र की शक्ति? इस प्रकार “ज्ञान राशि का संचित कोष ही साहित्य है.”
मंत्र का विश्लेषण हम निम्न प्रकार देखते है. ऊपर वर्णित अड़तालीस अक्षरों को दो भागो में बांटा गया है. मात्रिक एवं अर्ध मात्रिक. जितने स्वर (Vowel) है उन्हें मात्रिक कहते है. तथा जितने व्यंजन (Consonent) है उन्हें अर्ध मात्रिक कहते है. अर्ध मात्रिक का तात्पर्य यह होता है कि इन्हें बिना स्वर की सहायता के नहीं बोला जा सकता. जैसे “क” बोलते ही उसमें अपने आप “अ” का उच्चारण हो जाता है. अर्थात व्यंजन का अपने आप में कोई स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होता है. केवल स्वर ही पूर्ण है. तथा उनका अपना स्वतंत्र अस्तित्व है. स्वरों में भी केवल अ, इ और उ ही शुद्ध स्वर है. कारण यह है कि अ तथा अ मिल कर आ बनाते है. इसी प्रकार अ तथा उ मिल कर ओ बनाते है. आदि का स्वर अ तथा अंत का स्वर उ मिलाकर ओ बन जाता है. बीच में इ छिप जाता है जिसे लोप होना कहा जाता है जिस तरह से अंग्रेजी के शब्द “Knowledge” को हिंदी में नालेज पढ़ते है. क्नालेज नहीं. “k” छिप जाता है.
अक्षरों का उच्चारण दो तरह से होता है कुछ को मुंह से बोलते है. तथा शेष को नाक से बोलते है. हिंदी वर्ण माला में नाक से बोला जाने वाला अंतिम अक्षर “म” है. ऊपर मुंह से बोला जाने वाला स्वर जो आदि का अ एवं अंत का उ मिल कर ओ बना है, उसमें यह नाक से बोला जाने वाला अंतिम अक्षर म लगा देने से महा मन्त्र “ॐ” (ओ म) सिद्ध हो जाता है. कारण यह है कि जैसा कि हम ऊपर देख चुके है कि शुद्ध अक्षरों में आदि का अक्षर अ एवं नाक से बोले जाने वाला अंतिम अक्षर म सब छिपे है. अर्थात पूरा ज्ञान, साहित्य, वेद, पुराण एवं उपनिषद् इसमें भरा पडा है. इसी लिए इसे महामंत्र की संज्ञा दी गयी है.
अर्थात मन्त्र कोई ढकोसला नहीं अपितु वर्णों के सुव्यवस्थित, सदिश, सार्थक एवं निहित उद्देश्य के साथ साथ अति सूक्ष्म रूप को मंत्र कहते है. ऊपर के वर्णन से यह स्वतः सिद्ध है.

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (Biochemistry)

M.A. (Vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A Home Ministry Enterprises)

Tele- 0532-2500272, Mobile- 9889649352

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