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जो ना समझे वो अनारी है

वेद विज्ञान
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कराल कलिकाल के कठोर कुठाराघात से कृश मनोकाय मानव की स्थिति आज उस मछली की भाँती हो गयी है जो काई, सैवाल, गन्दगी एवं जहरीले तत्वों से बहरे मैले पानी में रह कर तो खुश रहेगी किन्तु सर्व सुविधा संपन्न वातानुकूलित संग मरमरी कक्ष में उसका दम घुट जाएगा. मुझे एक घटना याद आती है. एक बार एक स्थान पर विद्वान् पंडित जी श्रद्धालुओं को रामचरितमानस का पाठ करते हुए उसका माहात्म्य समझा रहे थे, एक व्यक्ति जो जन्म से ही एक आँख का काना था उसकी बीबी ने उसे ताना मारते हुए कहा कि पिछले जन्म में तो तुमने पता नहीं कौन सा पाप एवं दुष्कर्म किये कि भगवान ने तुम्हारी एक आँख ही छीन ली. अभी इस जन्म में तो कुछ पुण्य का काम करो. ताकि तुम्हारा अगला जन्म सुधर जाय. उसने पूछा कि क्या करूँ?बीबी ने बताया कि पास के गाँव में एक बहुत ही विद्वान् पंडित जी श्री रामचरितमानस की पवित्र कथा कह रहे है. लोग सुनने जा रहे है. जाकर उसे सुनो. वह काना व्यक्ति कथा सुनने चल पडा. पंडित जी कथा कहते कहते बालकाण्ड में कुछ आगे तक कह चुके थे. जब यह पहुंचा तो उस समय रामायण की कथा सुनने का फल बताया जा रहा था. इस प्रकार-
“राम कथा सुनई नहीं काना. श्रवण रंध्र अहि भवन समाना.”
अर्थात राम की कथा जिस व्यक्ति ने कान से नहीं सुनी. उसके कान का छेद सांप के बिल के समान व्यर्थ है. किन्तु उस व्यक्ति को यह मालूम पडा कि राम की कथा काना को नहीं सुनना चाहिए. अन्यथा उसके कान का छेद सांप का बिल बन जाता है. तथा उसमें सांप रहने लगते है. वह भाग कर घर पहुंचा. तथा अपनी बीबी से बताया. उसकी बीबी ने उसे समझाते हुए बताया कि पंडित जी ने काना को नहीं बल्कि कान को कहा. बहुत समझा बुझाकर फिर उसे दुबारा कथा सुनने के लिए भेजा. वह फिर कथा सुनने पहुंचा. लेकिन तब तक कथा आगे सुन्दर कांड में पहुँच चुकी थी. भगवान राम बाली को समझाते हुए कह रहे है कि अरे मूर्ख! अभिमानी! तुमने नारी अर्थात सुग्रीव जैसे अपने भाई के बीबी का सिखाव, शिक्षा अर्थात, कहने पर कान नहीं दिया. ध्यान नहीं दिया. तथा उसका हरण कर लिया. चौपाई इस प्रकार है-
“अहो! मूढ़ अतिशय अभिमाना. नारी सिखाव न किन्हेसी काना.
किन्तु उस व्यक्ति को लगा कि पंडित जी कह रहे है कि अरे मूर्ख, अभिमानी काना! तुम फिर नारी की बात कान से सुन कर आ गए? वह घर गया तथा अपनी बीबी से बताया कि अब मैं कथा सुनने कदापि नहीं जाउंगा. पंडित जी ने अल्टीमेटम दे दिया है. कि फिर नारी के कहने पर यहाँ चला आया. और उसकी बीबी माथा पीट कर रह गयी.
इसके पीछे कारण क्या है? कारण यह है कि हम यथार्थ को जानने के लिए साधना, साधक एवं साध्य के आगे पीछे कि स्थिति का अवलोकन एवं अध्ययन नहीं करना चाहते. लोग तेजी से एक दूसरे को पछाड़ कर आगे बढ़ने के चक्कर में छोटा रास्ता (Short Cut)अख्तियार करना ज्यादा पसंद करते है. वह रास्ता चाहे कितना ही दुर्गम, अवैध, प्रतिबंधित एवं अनजान क्यों न हो. परिणाम क्या होता है? या तो स्वयं नष्ट हो जाता है. या असफल हो जाता है.
यही स्थिति मंत्रो एवं उनकी शक्ति से सम्बंधित है. हमें यह नहीं मालूम कि किसी अक्षर का उच्चारण कैसे किया जाता है. फिर हम अति गूढ़ वर्ण गुम्फित दुरूह शब्द जाल वाले मन्त्रों का उच्चारण भला कैसे कर सकते है? इसके लिए सबसे पहले यह जानना आवश्यक है कि किस अक्षर को कैसे बोला जाय?
जैसे “अकुह विसर्जनीयानाम कंठः” अर्थात अ, कवर्ग ( क,ख, ग, घ) तथा ह का उच्चारण कंठ से किया जाता है. “इचु यशानाम तालुह” अर्थात इ, चवर्ग (च, छ, ज, झ) एवं य एवं श का उच्चारण तालू से किया जाता है. “ ल्रितु लसानाम दान्तः” अर्थात तवर्ग (त, थ, द, ध), स एवं ल का उच्चारण दांतों से किया जाता है. “ऊपू पध्मानीयानाम ओष्ठः” अर्थात ऊ एवं पवर्ग (प, फ, ब, भ) का उच्चारण ओठों से किया जाता है.
अब आप स्वयं देख सकते है कि आप साधारण मन्त्र “ॐ नमः शिवाय” में श एवं य का उच्चारण कंठ से करते है या फिर दांतों से. मंत्र परम शक्ति शाली है. उनका प्रभाव भी अक्षुण शक्ति से भरपूर है. भला जिसका नाम रघुनाथ है. उसे रागु नाद कहेगें तो वह आप की तरफ क्यों देखेगा. खूब सुन्दर मन भावन संगीत हो लेकिन उसमें शब्द एवं वाक्य वही रहने दें. केवल ताल, लय एवं छंद सामंजस्य बिगाड़ दी. फिर वही मधुर संगीत भद्दा एवं उबाऊ हो जाएगा.
बिना आगे पीछे भली भाँती देखे सोचे समझे कोई निर्णय न लें. अन्यथा या तो ऊपर दिये गए उदाहरण के काना की हालत होगी या फिर “अश्वत्थामा मरो नरो वा कुंजरो” को न समझ पाने के कारण द्रोणाचार्य को अपनी जीवन लीला समाप्त करनी पडी.

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (Biochemistry)

M.A. (Vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A home Ministry Enterprises)

Tele- 0532-2500272. Mobile- 9889649352

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