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रहि गा मनका मन ही मन सूबों.

वेद विज्ञान
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यद्यपि मैं अपने व्यक्तिगत जीवन के बारे में किसी को बताकर उपहास का पात्र एवं हीन भावना का शिकार नहीं बनाना चाहता था. लेकिन मेरे कुछ एक विद्वान शुभ चिंतको ने ऐसी दिल को चोट पहुंचाने वाली बातें पूछ डाली की न चाहते हुए भी मैं यह प्रमादी प्रलाप आप के द्वारा कूड़े के ढेर में डालने के लिए लिख दिया.
कुछ एक लोगो के प्रश्न आये है कि मै हिन्दू हूँ अथवा गैर हिन्दू? कुछ ने प्रश्न किया कि मैं वास्तव में एक फौजी हूँ या केवल वर्दी में फोटो खीच वाया हूँ? कुछ ने पूछा है कि मै ज्योतिषी हूँ या किसी विज्ञान प्रयोग शाला में काम करता हूँ?
इन सारे प्रश्नों का उत्तर प्रथम तो मै संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास के निम्न शब्दों में देना चाहूंगा.
“कवि विवेक नहीं एकहू मोरे . सत्य कहहु लिखि कागज़ कोरे.
मै रमेश कुमार राय जैव रसायन (Biochemistry) में स्नातकोत्तर (M.Sc.) की शिक्षा काशी हिन्दू विश्व विद्यालय (B.H.U.) से पूरी करने के बाद अभी आगे भी पढ़ना चाहता था. किन्तु अपनी दयनीय आर्थिक स्थिति के कारण आगे की पढाई पूरी नहीं कर सका. मुझे नित नयी चीजो के अनुसंधान एवं रहस्यमयी गुत्थियों को सुलझाने का बहुत शौक था. किन्तु अपनी गरीबी से लाचार था. तभी मेरा ध्यान कुछ बड़े लोगो के हाथ में पहनी अंगूठी एवं उसमे जड़े नगो एवं पत्थरो की तरफ आकर्षित हुआ. ये नग, रत्न एवं पत्थर क्या है जो लोगो की भाग्य बदल देते है? मैं एक नग मूंगा (Coral) लेकर उसका रासायनिक परीक्षण किया. मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि 18 घनत्व वाला यह नग कोशिका (Human Cell) के ऊर्जा प्रणाली (Mitochondria) को इतना ज्यादा द्रुतगामी (Speedy) बना देता है कि व्यक्ति का श्वसन तंत्र (Respiratory System) एवं दृष्टि तंत्र (Optical System) अपेक्षा से ज्यादा सक्रिय हो जाता है. तब मैंने विविध रत्नों का परिक्षण किया. वास्तविकता का पता चलता गया. मै उत्साहित होकर सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से ट्यूसन के सहारे पूर्व मध्यमा, उत्तर मध्यमा एवं शास्त्री की परीक्षाएं उत्तीर्ण की. साथ में कर्म काण्ड एवं पूजा विधान भी पढ़ता गया. मैं एक खोजी एवं वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि वाला महत्वाकांक्षी छात्र था. अतः ह़र बात पर उसकी सत्यता के पीछे के कारण के बारे में गुरु जी से प्रश्न पूछ देता था. अतः मुझे नास्तिक एवं अयोग्य करार देकर प्राच्य विद्या संकाय (Faculty of Oriental Learning) से निकाल दिया गया. सोचा था कुछ और एवं हुआ कुछ और.
“होगा प्रभात उगेंगे दिवाकर लै मकरंद चलें घर खूबो.
नलिनी गजराज चबाई लियो रहि गा मन का मन ही मन सूबों.”

अभी मेरा काम ट्यूसन करना एवं बचपन में ही शादी हो जाने के कारण बीबी का भी देखभाल करना रह गया. इसी बीच मुझे कई बार पूजा पाठ एवं कुंडली के सिलसिले में सार्सिदीया, मोंट्रियाल, वाशिंगटन DC, न्यूयार्क, सिडनी, वेलिंग्टन एवं जर्मनी, दोहा, ओमान, चीली, एवं जकार्ता आदि विदेशों में भी जाने का अवसर मिला. क्योंकि आजीविका चलाने के लिए मैं अंतर्राष्ट्रीय ज्योतिष अनुसन्धान शाला में दिहाड़ी पर काम करते हुए पंचांग के गणित वाले हिस्से को लिखता था. किन्तु दक्षिणा सीधे संगठन को मिलती थी. मुझे कुछ नहीं मिलता था. इस लिए मैंने वहां काम करना छोड़ दिया. इसी बीच भारतीय सेना में धर्म गुरुओं की भर्ती निकली. मैं आवेदन किया. मेरा चुनाव हो गया. तथा छोटी ही सही किन्तु एक स्थायी नौकरी मिल गयी. जिससे मैं अपने बाल बच्चों का पालन पोषण कर रहा हूँ. मैं आज भारतीय सेना में एक सशस्त्र सैनिक के रूप में धर्म गुरु के पद पर काम कर रहा हूँ. किन्तु मेरा लिखने का काम विविध पत्र पत्रिकाओं में आज भी चलता है. हिंदी, उर्दू एवं अंग्रेजी में मेरे ज्योतिषीय लेख बराबर प्रकाशित होते रहते है. तथा यह मेरा सौभाग्य है कि मेरे यजमान हिन्दू एवं ईसाई तो ज्यादा है ही. किन्तु मुसलमान भी है. किन्तु थोड़े ही हैं. मेरा यह सतत प्रयत्न है कि कुंडली एवं ज्योतिष के बारे में जन समुदाय में जो भ्रम या संदेह भर गया है उसे निकाल कर उसकी सच्चाई से उन्हें अवगत करा दूं. तथा ठगने वाले पाखंडी एवं धूर्त तथा कथित ज्योतिषियों से जो आज कुकुरमुत्तो की तरह गली गली में फ़ैल कर उदर भरण पोषण के लिए ज्योतिष के अवैध व्यापार की काला बाजारी कर रहे है, उनसे जनता को बचा सकूं.
ज्योतिष की वैदिक अवधारणा का अनद्यतन वैज्ञानिक आधार क्या है जब इसे मैं किसी भी वर्ग या सम्प्रदाय को भली भाँती समझा देता हूँ तो वह बिना मेरे कहे वेद एवं वैदिक मंत्रो का अनुसरण एवं अनुपालन करने लगता है. यंत्र, मन्त्र एवं तंत्र की ठोस वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि को तार्किक रूप से सप्रमाण यदि किसी को बताया जाय तो कौन है जो इसे नहीं मानेगा. किन्तु यदि इस महान विधा को किसी जाती, वर्ग अथवा सम्प्रदाय की बपौती संपत्ति मान कर भ्रम एवं जाल फैलाया जाएगा तो उसी की जाती एवं परिवार के लोग नहीं मानेगें. और तो और उसके स्वयं के बेटा, बेटी एवं बीबी नहीं मानेगें. औरो की क्या कहना?
और सारे प्रश्नों के उत्तर का समापन करते हुए पुनः गोस्वामी तुलसी दास के शब्दों का ही शरण अंत में लेता हूँ.
“एही पर जे नर करिहहि शंका. ते नर मो ते अति जड़ रंका.”

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (Biochemistry)

M.A. (Vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A Home Ministry Enterprises)

Tele- 0532-2500272, Mobile- 9889649352

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