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उलटि पलटि कपि लंका जारी

वेद विज्ञान
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अंजना नंदन हनुमान ने रावण की लंका को जला दिया. जला देना तो समझ में आता है. किन्तु ज़रा इस चौपाई को ध्यान से देखें –
“उलटि पलटि कपि लंका जारी. कूदि परा पुनि सिन्धु मझारी.”
कपि ने लंका को उलट पुलट कर जला दिया. फिर समुद्र में कूद पडा. यद्यपि कुछ लोग तर्क कहें या कुतर्क कहें कहते है कि कपि ने स्वयं को उलाट पलाट कर कूद कूद कर लंका को जलाया. स्वयं को उलाट पलाट कर वाली बात कुछ जमती नहीं. किन्तु लंका को उलट पलट कर क्यों जलाया, इसके पीछे एक ज्योतिषीय कारण था. जब रावण ने सब देवी देवताओं को तथा लोकपाल एवं दिक्पाल को जीत लिया तो उसके गुरु ने गणित करके बताया कि हे रावण जब तुम्हारी राशि पर शनि की साढ़े साती प्रारम्भ होगी तो तुम्हारा सर्व नाश हो जाएगा. रावण ने शनि को पकड़ कर उसे बंदी बना लिया. तथा उसकी नज़र लंका पर न पड़ने पाये, उसे पकड़ कर नींव में दबा कर उस पर दीवाल खडी करवा दी.
शंकर सुवन हनुमान जब शिक्षा दीक्षा के योग्य हुए तब उन्हें भगवान सूर्य के पास पढ़ने के लिए भेजा गया. भगवान सूर्य देव ने कहा कि हे हनुमान! मैं दिन भर अबाध गति से भागता रहता हूँ. क्या तुम मेरी तरह गति से दौड़ते हुए प्रतिदिन पढ़ लोगे? हनुमान जी ने बताया कि वह पढेगे तो उन्ही से पढेगे चाहे कितना भी तेज रोज़ क्यों न दौड़ना पड़े. भगवान सूर्य ने प्रसन होकर बड़े मनोयोग से हनुमान को सारी अस्त्र, शस्त्र एवं शास्त्रों की शिक्षा प्रदान किये. अंत में हनुमान जी ने गुरु दक्षिणा माँगने को कहा. तो भगवान सूर्य ने कहा कि समय आने पर वह मांग लेगें.
भगवान सूर्य की दूसरी पत्नी से शनि देव का जन्म हुआ था. शनि देव को रावण ने लंका में जमीन में दबवा दिया था. जब हनुमान जी लंका की तरफ माता सीता की खोज करने जा रहे थे. तब भगवान सूर्य ने हनुमान जी से अपनी दक्षिणा माँगी कि उसके पुत्र शनि का रावण के चंगुल से उद्धार कर दो. बस, हनुमान जी को मौक़ा हाथ लगा और उन्होंने लंका को पलट दिया और शनि देव तुरंत भाग कर रावण की राशि पर विराज मान हो गए. रावण की प्रचंड साढ़े साती शुरू हो गयी. तथा मध्य साढ़े साती में उसका सर्वनास हो गया.
साढ़े साती वास्तव में होता क्या है? जब पृथ्वी के किसी रेखा (राशि) पर भवृत्त अर्थात आकाश गोल में भी उसके समकक्ष रेखा या राशि पर चलते हुए शनि देव पहुंचाते है तो उस रेखा या राशि की साढ़े साती शुरू हो जाता है. साढ़े साती एक साथ तीन तीन राशियों की चलाती है. अर्थात जिस राशि पर शनि रहता है उसकी तो साढ़े साती होती ही है, उसके आगे वाली एक राशि तथा उसके पीछे वाली एक राशि सब मिलाकर तीन राशियाँ एक साथ साढ़े साती के प्रभाव में होती है. यदि शनि चाहे किसी भी राशि में आकाश में है तो धरती पर उस समूची राशि के लिए सामूहिक रूप से साढ़े साती होती है. जिस राशि अथवा रेखा पर उसकी दृष्टि या किरण पड़ती होगी. अर्थात उस समूचे भू भाग के लिए संकट होता है. जैसे भूकंप, भूस्खलन, चक्रवात, बाढ़, अग्निकांड, जनसंहार आदि. किन्तु धरती के जिस भूखंड के जिस अंश, कला या विकला पर शनि की दृष्टि पड़ रही है. तथा आकाश में भी उसी अंश, कला या विकला पर शनि देव है. तो जिस व्यक्ति का जन्म उस अंश, कला या विकला पर हुआ है उसके लिए साढ़े साती का प्रभाव होता है. साढ़े साती का अर्थ होता है साढ़े सात साल या दूसरे शब्दों में 2700 दिन. एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते है. एक नक्षत्र में चार चरण होते है. अर्थात एक राशि में 9 चरण हुए. तो तीन राशियों में 27 चरण हुए. इस प्रकार यदि 27 चरणों में 2700 दिन तो एक चरण में कितने दिन? अर्थात 100 दिन. कहने का तात्पर्य यह कि साढ़े साती का प्रभाव किसी व्यक्ति या भूखंड के लिए 100 दिन ही होता है. यह गणित से स्पष्ट है. इसी 100 दिन में जो बिगड़ना या बनना होता है वह होता है.
साढ़े साती सदा खराब ही नहीं होती. यदि जन्म कुंडली में शनि पञ्चमहापुरुष योग बना रहा हो, लग्नेश एवं द्वितीयेश होकर दशम भाव में बैठा हो, राहू, केतु, सूर्य या मंगल से युक्त न होकर उच्च राशि तुला में किसी कोण में बैठा हो तो उसके लिए साढ़े साती समस्त उन्नति, यश एवं लाभ देने वाली हो जाती है. फिर भी साढ़े साती तो साढ़े साती ही है. कुछ तो झटका देती ही है.
राम एवं रावण दोनों की राशि एक ही थी. दोनों का नाम र से शुरू होता था. दोनों पर साढ़े साती का प्रभाव साथ ही शुरू हुआ. श्री राम के वन गमन के साथ ही राम की तो साढ़े साती शुरू हो ही गयी. उनकी पत्नी का अपहरण, पिता की पुत्र शोक में कुढ़ते हुए मृत्यु, भाई लक्ष्मण को शक्ति वाण का आघात, आदि सब शोक एवं दुःख प्रारम्भ हो गए. इसके साथ ही रावण की भी साढ़े साती शुरू हो गयी. जानकी के स्वयंबर में पहली हार, बहन शूर्पनखा की नाशिका छेदन, खर, दूषण, त्रिशिरा तथा ताडुका आदि राक्षस राक्षशियों का संहार और अंत में सारे वंश का उत्खनन हो गया.
सूर्य पुत्र होने के कारण शनि देव में सत एवं तम दोनों गुणों का सम्मिलित प्रभाव है. अर्थात शुभ फल कारी भी है. तथा अशुभ फल भी देते है. वैज्ञानिक मान्यताओं के अनुसार शनि का पृष्ठ भाग बहुत ही चमकीला है. तथा आगे वाला भाग बिल्कुल काला पत्थर जैसा है. पृष्ठ भाग बर्फ का ही बना हुआ है. इससे वह हिस्सा सफ़ेद चमकीला दिखाई देता है. इसीलिए जो भाग शनि के पीछे पड़ता है वह दमकता है. तथा जो भाग आगे पड़ता है वह अन्धकारमय हो जाता है. दिसंबर एवं जनवरी के महीने में सूर्य जब शनि की राशि मकर एवं कुम्भ में या दूसरे शब्दों में जब मकर (Capricorn Arch) एवं कुम्भ रेखा (Aquarius Arch) पर जाने वाला होता है तब तक तो पृथ्वी पर ज्यादा समय तक रोशनी पड़ती है. यानी जब तक पृष्ठ भाग की तरफ रहता है. तब तक चमकता रहता है. किन्तु ज्यो ही इन राशियों पर सामने आता है धरती पर रोशनी की मात्रा कम हो जाती है.
इसीलिए ज्योतिषीय ग्रंथो में कहा गया है कि शनि जब तक सामने या सर पर रहता है तब तक विविध क्लेश एवं हानि देता है. किन्तु ज्योही आगे बढ़ जाता है. वह आदमी को मालामाल बना देता है. कारण यह है कि शनि तीसरे एवं ग्यारहवें भाव में कुंडली में बहुत ही सशक्त प्रभाव वाला अति लाभकारी ग्रह माना गया है.
स्रोत- श्रीरामचरितमानस, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, सूर्य पुराण,पाराशर संहिता एवं वृहत्संहिता.

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (Biochemistry)

M.A. (Vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A Home Ministry Enterprises)

Tele- 0523-2500272, Mobile- 9889649352

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