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कोई बिज़ली गिराए तो मैं क्या करूँ?

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
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हिंदी में प्रकाशित मेरे कतिपय लेखों से कुछ एक सज्जनों को बहुत ही आघात लगा है. जिसका आभास टेलीफोन पर उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों से मुझे हो गया. ये महानुभाव ज्योतिष या पुराण या वेद को विज्ञान से जोड़ना पौराणिक ग्रंथों का अपमान समझते है. इनकी समझ से पौराणिक ग्रंथो का स्तर विज्ञान से ऊपर है. अब विद्या की देवी सरस्वती के उग्र कोपदंड से निर्दयता पूर्वक प्रताड़ना प्राप्त जर्जर, दीन हीन मानसिक विकृति से समृद्ध तथा सर्वथा दया के पात्र ऐसे कुपात्र विभूति स्वरुप मनुष्य की संज्ञा एवं ज्योतिषाचार्य की समादृत उपाधि से विभूषित सज्जनों को इस प्राथमिक सोपान का भी ज्ञान नहीं है कि ज्योतिष स्वयं एक विज्ञान है. इन्हें मै यह बता देना चाहूंगा की आधुनिक विविध अभियांत्रिकीय विधा (Engineering Technology) परम पावन अथर्व वेद एवं अनद्यतन चिकित्सा तकनीकी (Medical Technology) प्रातः स्मरणीय आयुर्वेद से ही अस्तित्व में आयी हैं.
और हम आधुनिक विज्ञान के आभारी है कि यह प्रत्येक पौराणिक एवं वैदिक कथानकों को संदेह की दृष्टि से देखते हुए कि कही यह झूठा या ठगी तो नहीं है इसकी सच्चाई जानने के लिए नित नए वैज्ञानिक उपकरणों से इसका परीक्षण करते है. तथा उसकी सच्चाई को और अधिक मज़बूती प्रदान करते है.
इस सन्दर्भ में मै एक कड़वी सच्चाई आप को बताना चाहूंगा कि कौरवों के पिता धृतराष्ट्र जन्मांध थे. महाभारत के युद्ध के समय उन्होंने भगवान कृष्ण से प्रार्थाना किया कि वह इस युद्ध को देखना चाहते है. भगवान ने उन्हें एक दूर दृष्टि प्रदान कर दिया. तथा संजय को बिठा दिया कि वह उस दूर दृष्टि से देख कर धृष्टराष्ट्र को महाभारत के युद्ध का नवीनतम हाल बताते रहेगें. ज़रा श्रीमद्भागवत गीता के सबसे पहले श्लोक को ही देखते है.
धृष्टराष्ट्र उवाच-
“धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः. मामकाः पांडवाश्चैव किम अकुर्वत संजय!.”
अर्थात धृतराष्ट्र पूछते है कि हे संजय! कुरु क्षेत्र के धर्म युद्ध के लिए एकत्रित मेरे एवं पांडू पुत्रो के बीच क्या हो रहा है?
दूसरा श्लोक.-
संजय उवाच-
दृष्ट्वा तू पांडवानीकं व्यूढं दुर्योधनस्तदा.—————“

अर्थात संजय बोले-
देखकर (दृष्ट्वा) संजय ने दुर्योधन एवं पांडवों की व्यूढ रचना धृतराष्ट्र को बतानी शुरू की.
अब अगर भगवान ने धृतराष्ट्र को दिव्य या दूर दृष्टि दे ही दी थी. तो धृत राष्ट्र को स्वयं ही युद्ध देख लेना चाहिए था. संजय को Running Commentary करने की क्या जरूरत थी? वास्तव में परम वैज्ञानिक योगिराज भगवान श्री कृष्ण ने एक दूर दर्शन (Television) धृष्टराष्ट्र को दे दिया था. केमरा कुरुक्षेत्र में लगा हुआ था. Live telecast हो रहा था. संजय उसे देख रहे थे. तथा उसका विवरण धृतराष्ट्र को बताते चले जा रहे थे. आप स्वयं देख सकते है कि आज के Television का आविष्कार वर्षों पहले द्वापर युग में ही हो चुका था.
मुझे पता है कि इस वैज्ञानिक एवं तथ्य गत सत्य को लिखने के बाद कुछ और लोगो के अति विषाक्त शब्द वाणों का प्रहार सहना पडेगा. क्यों कि वेद व्यास तो रहे नहीं. किन्तु मै अब वेद व्यास को क्या कहूं? जो उन्होनें सच्चाई लिख दी. मेरा काम सच्चाई को आप के सम्मुख रख देना है. कोई इसे ज़हरीला बनाए तो क्या करूं?
“आशियाना बनाना मेरा काम है कोई बिजली गिराए तो मै क्या करूं?”
वेद की प्रत्येक ऋचा ठोस, सुव्यवस्थित, सुसज्जित, प्रमाणिक एवं समन्वित सच्चे सिद्धांत पर आधारित है. यद्यपि अत्यंत दुर्गम किन्तु सघन एवं श्रम साध्य उद्यत तथा उद्धत उदात्त बौद्धिक लाघव द्वारा बहुत सुगम एवं सच्ची शांति प्रदान करने वाली है.
आज का विज्ञान भूकंप या तूफ़ान गुजर जाने के बाद उसकी तीव्रता को रेक्टर स्केल पर नापता है. तूफ़ान गुजरने के बाद उसकी तीव्रता नापने का क्या तुक? उसके पहले नापने से तो जान माल को हानि से बचाया जा सकता है. इसके विपरीत हमारा वेद नेत्र के नाम से प्रसिद्द ज्योतिष विज्ञान महीनो वर्षो पहले ही इन सब का विवरण प्रस्तुत कर देता है. मै एक उजड्ड दिमाग का ऊबड़ खाबड़ फ़ौजी बहुत अल्प अध्ययन के बावजूद भी वर्षों बाद लगाने वाले सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण का विवरण सेकेण्ड के साठवें हिस्से तक सटीक बता सकता हूँ. वह भी वैदिक गणित के आधार पर. (विविध संस्करणों में प्रकाशित वेब दुनिया में मेरे ज्योतिषीय लेख देखें) जब कि आज के वैज्ञानिक केवल इसी को जानने के लिए करोड़ों रूपये खर्च करके दूरदर्शी, सूक्ष्म दर्शी, टेलिस्कोप, माइक्रोस्कोप, बाइस्कोप, तेइस्कोप, चौबीसकोप आदि पता नहीं कितने कोप बना डालते है.
बेतार के तार (Wireless) का आविष्कार त्रेता युग में ही हो चुका था. राजा शिलानिधि की कन्या के स्वयंबर के समय नारद जी को उनके कुरूप होने की सूचना भगवान शिव के गणों द्वारा थोड़ी दूरी पर छिप कर बार बार वाकी टाकी द्वारा ही दी जा रही थी. देखें श्री रामचरितमानस के बालकाण्ड का नारद मोह.
इसी प्रकार ज्योतिष अपने आप में एक संपूर्ण विज्ञान है. कुंडली में पांचवें षष्ठेश एवं छठे लग्नेश तथा लग्न में वक्री (Retro gated) पापी ग्रह के होने पर उग्र बीमारी का शिकार होना ही पडेगा. दशम भाव में लग्नेश उच्चस्थ होकर यदि बलवान लग्नेश से युति बनाए तो प्रशासन एवं समाज में शीर्ष पद प्राप्त होगा ही.
चूंकि यह लेख मात्र एक लेख है. इस छोटे से लेख में लाखो वर्षो में विविध प्राचीन ऋषि महर्षियों द्वारा संग्रहीत एवं अनुभूत ज्योतिष का वर्णन भला हो सकता है?
“क्व ज्योतिष प्रभवोविद्या क्व चाल्पविषयामतिः.
तितिर्दुष्तरम मोहादुडुपेंनष्मी सागरं.”

अर्थात कहाँ ज्योतिष जैसी महान विद्या और कहाँ विषय वासना से भरी मेरी तुक्ष बुद्धि? मोह माया एवं अपनी शठता के कारण अपनी बुद्धी की टूटी छोटी नौका लेकर इस ज्योतिष के दुस्तर महासागर को पार करने का असफल प्रयत्न करना चाहता हूँ.
यदि संभव हो सका तो अगले लेख में कुंडली के कुछ एक तथ्यों की वैज्ञानिक पृष्ठ भूमि प्रस्तुत करूंगा.

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (biochemistry)

M.A. (vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A Home Ministry Enterprise)

Tele- 0532-2500272, Mobile- 9889649352

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