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होनहार बीरवान के होत चीकने पात:- अश्विनी – नक्षत्र फल

वेद विज्ञान
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पूर्व के अपने लेखों में मैंने कहा था की मैं क्रमशः प्रत्येक नक्षत्र का फल बताऊंगा .वह विस्तृत विवरण के साथ निम्न प्रकार है.
नक्षत्र मंडल में समस्त नक्षत्रो की संख्या 28 है. किन्तु अभिजित नक्षत्र का मान केवल कुछ ही मुहूर्त का होता है. तथा यह दिन दिन में ही समाप्त हो जाता है. अतः इसकी गणना भविष्य कथन या कुंडली निर्माण में नहीं की जाती. यह मात्र ज्योतिषीय गणना के लिए ही प्रयुक्त होती है. इसके पीछे पौराणिक मान्यता यह है कि मकर एवं कुम्भ दोनों राशिया शनि देव की है. तथा यह अभिजित नक्षत्र इन दोनों राशियों के बीच में आता है. न तो इसके आगे प्रकाश पड़ता है. न तो इसके पीछे ही प्रकाश पड़ता है. आगे पीछे दोनों शनि की ही राशिया होने के कारण तथा इनका रूप रंग एवं आकार प्रकार काला अन्धकार मय होने के कारण यह दिखाई नहीं देता है. इसीलिए फल कथन के लिए यह अस्तित्व विहीन होता है. जैसा कि मैंने अपने पूर्व के लेखों में इसका विवरण दिया है कि शनि ग्रह का पृष्ठ भाग काला है. ज़रा पृथ्वी का मान चित्र देखें, ये दोनों रेखाएं – एक हिंद महासागर, प्रशांत महासागर, उत्तरी ध्रुव महासागर तथा दूसरी पृथ्वी के झुके हुए भाग पर दक्षिणी ध्रुव पर आधारित है. प्रत्यक्षतः भी ये दोनों रेखाएं अन्धकार में विलीन रहती है. मात्र बर्फ के चमकीले सतह के कारण इस पर प्रकाश मिलता रहता है. जो आंख, मस्तिष्क एवं रीढ़ रज्जू तीनो के लिए हानिकर है. इसी लिए कहा गया है कि शनि की दृष्टि कुंडली में जिस भाव या ग्रह पर पड़ती है उसका सत्यानाश हो जाता है. उसी प्रकार शनि की दोनों राशियों मकर एवं कुम्भ दोनों का पृष्ठ सतह काला है. किन्तु अग्रिम भाग बर्फ के कारण बिलकुल चमकीला है. इनकी संख्या 27 ही क्यों? इसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है. हमारे ग्रह मंडल में ग्रहों की संख्या 9 है. चूंकि प्रत्येक ग्रह का प्रकाश दूसरे ग्रहों पर पड़ता रहता है. इस प्रकार सब ग्रहों में प्रत्येक गुण विराज मान रहते है. केवल अपनी भौतिक एवं रासायनिक संरचना के कारण ये ग्रह प्राथमिक रूप से अपना स्वाभाविक गुण, लक्षण या प्रभाव प्रकट करते है. किन्तु ग्रह युति, बलाबल, भाव स्थिति एवं दृष्टि, वक्री तथा मार्गी आदि गति के अनुसार विविध फल देते है. इन नवो ग्रह में से सूर्य, बुध एवं गुरु सतोगुणी, चन्द्र, मंगल एवं शुक्र रजोगुणी तथा शनि, राहू एवं केतु तमोगुणी ग्रह है. चूंकि प्रत्येक ग्रह पर आगे, पीछे या अगल बगल से हर एक ग्रह का प्रकाश या दृष्टि पड़ती है. अतः प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रत्येक ग्रह के तीन गुण या दूसरे शब्दों में तीन नक्षत्र हुए. अतः एक ग्रह के तीन गुण तो नव ग्रहों के कितने? अर्थात 27 नक्षत्र. इस प्रकार पूरे नक्षत्र २७ तथा प्रत्येक गर्ग के हिस्से में तीन नक्षत्र पड़े, आगे, पीछे एवं कोण के हिसाब से ये नक्षत्र लगातार नहीं पड़ते. बल्कि हर नवां नक्षत्र उसी ग्रह का पड़ता है. जैसे कृतिका सूर्य का नक्षत्र है. तो फिर नवां अर्थात पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र सूर्य का होगा. तथा उसके बाद नवां पूर्वाषाढा नक्षत्र सूर्य का होगा. यह नहीं की लगातार तीन नक्षत्र एक ही ग्रह के होंगें.
अब हम बात करते है पहली नक्षत्र अश्विनी की. अश्विनी नक्षत्र दोनों प्राचीन शल्य चिकित्सकों (Surgeons)- अश्विनी कुमार के नाम पर रखा गया. ये रोगों का निदान एवं चिकित्सा चीर फाड़ कर किया करते थे. चीर फाड़ कर शरीर के अन्दर की गन्दगी एवं अनावश्यक मॉल पदार्थ बाहर निकाल कर शरीर को साफ़ रखने इस प्रकार अशुद्ध काम करने या आया अर्थात दाई का काम करने के कारण इन्हें देवताओं में स्थान नहीं मिला. हय ग्रीवावातार में जब भगवान विष्णु की गर्दन उन्हीं के धनुष की प्रत्यंचा से कट गयी. तो तीनो लोको में हाहाकार मच गया. किसी को कोई उपाय नहीं सूझ पड़ता था. इधर देवताओं के अग्रगण्य भगवान श्रीहरी के न रहने से दानवों ने देवताओं से स्वर्ग छीन लिया. अंत में सब देवता मिलकर सूर्य देव के नेतृत्व में अश्विनी कुमारों के यहाँ पहुंचे. उन देवताओं ने उनसे भगवान की गर्दन जोड़ने को कहा. अश्विनी कुमारों ने कहा की हम देवताओं की श्रेणी में नहीं आते. हम आप की कोई सहायाता नहीं कर सकते. अंत में जब भगवान सूर्य ने कहा की तुमको हवन पूजन तथा यज्ञादि में देवताओं के बराबर हिस्सा मिलेगा. तो अश्विनी कुमारों ने एक हय अर्थात घोड़े की गर्दन भगवान विष्णु के धड से जोड़ दिया. भगवान का वही अवतार हयग्रीवावातार कहलाया. (देखें श्रीमद्भागवत पुराण दशम स्कंध) जब बारहों महीने का प्रथम चक्र चैत्र से शुरू होता है तो उसमें सबसे पहले भगवान सूर्य अश्विनी नक्षत्र में ही प्रवेश करते है. इस प्रकार भगवान सूर्य प्रारम्भ के पंद्रह दिन अश्विनी नक्षत्र में ही रहते है. आकश मंडल में सूक्ष्म दर्शी की सहायता से यह देखा जा सकता है कि १६ मार्च से ३१ मार्च तक पूर्व दिशा में क्षितिज पर दो बहुत ही प्रकाशमान तेज रोशनी वाले दो तारे भोर में दिखाई देगें. कारण यह कि ये जुड़वां है. चूंकि ये अश्विनी कुमार शुरू शुरू में स्वर्ग से निष्कासित हो चुके थे. इन्हें तिरस्कृत किया जा चुका था. अतः अश्विनी नक्षत्र में जन्म प्राप्त बच्चों को सतईसा या मूल की पूजा कराकर शुद्ध किया जाता है. पाश्चात्य देशों के लिए उनकी मान्यताओं के अनुसार इन पूरे पंद्रह दिनों (आधा मार्च से 31मार्च के बीच में) में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति अशिविनी नक्षत्र की राशि (मेष) में आता है. किन्तु आर्यावर्त अर्थात भारत, लंका, पाकिस्तान, खाड़ी देश, चीन एवं श्याम, brhamaa आदि देश चन्द्र राशि के अनुसार चलते है. आज भी मुस्लिम समुदाय चन्द्रमा के आधार पर ही अपने त्योहारों का निर्णय करता है. हमारे पौराणिक ज्योतिषीय ग्रंथों के अनुसार जब चन्द्रमा अश्विनी नक्षत्र में प्रवेश करता है तब हम उसे अश्विनी नक्षत्र में जन्म लिया मानते है. सूर्य एक दिन में 60 कला अर्थात एक अंश चलता है. जबकि चन्द्रमा की औसत गति 800 कला या 13 अंश 20 कला प्रति दिन है. अश्विनी नक्षत्र नक्षत्र मंडल की पहली नक्षत्र है. अश्विनी एवं भरनी नक्षत्र दोनों का सामूहिक स्वरुप जो आकाश में दिखाई देता है वह मेढा या बकरे के समान होता है. इसीलिए इस राशि चक्र की पहली राशि का नाम मेष है. जिसमें अश्विनी नक्षत्र पड़ती है.
एक नक्षत्र 13 अंश 20 कला का होता है. इस प्रकार इसका एक चरण 3 अंश 20 कला का होगा. इस प्रकार चन्द्रमा 1 मिनट 48 सेकेण्ड में 1 कला चलता है. कारण यह है कि जैसा कि ऊपर बताया गया है कि चन्द्रमा एक दिन या 24 घंटे या 1440 मिनट या 86400 सेकेण्ड में 800 कला चलता है. तो एक कला 1 मिनट 48 सेकेण्ड में ही चलेगा. अब हम अश्विनी नक्षत्र के प्रत्येक चरण का फल कहते है.
यदि जन्म पहले चरण में हुआ है. तथा
कुंडली में मंगल मकर राशि में है साथ में अश्विनी में ही सूर्य है तो व्यक्ति बहुत बड़ा प्रशासनिक अधिकारी होगा.
यदि शनि चन्द्रमा से सातवें है तथा मंगल आठवें है. तो व्यक्ति अभियंता (Engineer) होगा.
यदि मंगल एवं शुक्र कही भी साथ में बैठे है तो व्यक्ति अधिवक्ता (Lawyer) होगा.
यदि मंगल एवं शनि बारहवें बैठे है तो व्यक्ति तस्कर या लूटेरा होगा.
यदि शुक्र एवं बुध चन्द्रमा के साथ हो तो व्यक्ति ज्योतिषी या गणितज्ञ होगा.
यदि दूसरे चरण में जन्म हुआ है तो
ऊपर के प्रथम फल में प्रशासनिक अधिकारी की जगह रक्षा अधिकारी (मिलिटरी ऑफिसर) , दूसरे फल में अभियंता की जगह लूटेरा, तीसरे फल में अधि वक्ता की जगह चिकित्सक (डॉक्टर), चौथे फल में लूटेरा की जगह होटल या किसी कंपनी का मालिक तथा पांचवें फल में ज्योतिषी या गणितज्ञ की जगह लेखक, प्रकाशक या शिक्षक होगा.
यदि तीसरे चरण में जन्म हुआ है तो
ऊपर के प्रथम फल में प्रशासनिक अधिकारी की जगह किसी संस्था या संगठन का मुखिया, दूसरे में अभियंता की जगह ठेकेदार या दुकानदार, तीसरे में अधिवक्ता या वकील की जगह विधायक या सांसद, चौथे में लूटेरा की जगह यातायात या परिवहन विभाग का बहुत बड़ा अधिकारी या बहुत सी गाड़ियों का स्वामी होगा. पांचवें में ज्योतिषी या गणितज्ञ की जगह चिकित्सक (डॉक्टर) होगा.
यदि चौथे चरण में जन्म होने पर-
ऊपर के प्रथम फल में प्रशासनिक अधिकारी की जगह न्यायाधीश या दंडाधिकारी, दूसरे में बहुत बड़ा व्यापारी, तीसरे में विदेशवासी, चौथे में अभियंता (इंजिनियर) पांचवें में बहुत बड़ा ज़मीदार या बहुत बड़े भूखंड का स्वामी होगा.
“ललाट पट्टे लिखिता विधात्रा षष्ठी दिने या अक्षर मालिका च.
ताम जन्म पत्री प्रकटीम विधत्ते दीपो यथा वास्तु घनान्धकारे.

अर्थात जन्मके छठे दिन विधाता ने ललाट पर जो अक्षर लिख दिए है जन्म पत्री उसको वैसे ही प्रकट कर देती है जैसे कोई दीपक घनान्धकार में भी रखी वस्तु को भी प्रकट कर देता है.
अगले लेख में अगली नक्षत्र भरनी का फल बताया जाएगा.
स्रोतनारद संहिता, वृहत्संहिता, वृद्ध यवनजातकम, सारावली एवं पाराशरहोराशास्त्रम.

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (Biochemistry)

M.A. (Vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A Home Ministry Enterprises)

Tele- 0532-2500272, Mobile- 9889649352

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