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होनहार वीरवान के होत चीकने पात : भरणी नक्षत्र फल

वेद विज्ञान
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पिछले लेख में मैंने अश्विनी नक्षत्र में जन्म लिए व्यक्ति का स्थूल कुंडली फल बताया था. जो मात्र व्यवसाय से ही सम्बंधित था.
यहाँ पर मैं आधुनिक विज्ञान को एक चौकाने वाली बात बता रहा हूँ कि जो व्यक्ति अक्टोबर, नवम्बर, दिसंबर एवं जनवरी के महीने में रविवार या मंगलवार को दिन के दोपहर से लेकर रात के बारह बजे तक के बीच में अश्विनी नक्षत्र में जन्म लिया होगा. उसका रक्त समूह (Blood Group) A+ होगा. चाहे तो इसकी परिक्षा कर लें. ऐसा व्यक्ति जिसकी कुंडली में पिछले लेख की शर्तें बतायी गयी है, कभी भी गरीब हो ही नहीं सकता. और न ही अविवाहित रह सकता है. एक बात अवश्य है कि यदि शुक्र-मंगल कुंडली में चन्द्रमा से दूसरे घर में तथा सूर्य-शनि सातवें भाव में हो तो संतान नहीं होगी.
अब हम भरनी नक्षत्र में जन्म प्राप्त व्यक्ति के बारे में बताते है. पृथ्वी पर शून्य अंश अक्षांश एवं शून्य अंश देशांतर के स्पर्श विन्दु से 5 अंश पूर्वोत्तर (North East) भरनी रेखा सिद्ध होती है. चन्द्र किरणों के पात विन्दु से प्रतिघातित परावर्तित किरणें ऐसे स्थल से “कृतिकेतु” तरल लेकर चलती है. यह कृतिकेतु तरल पुराणों में हविगर्भ के नाम से जाना जाता है. सामान्य तौर पर अश्विनी एवं भरणी दोनों ही नक्षत्रों से अग्नि जिह्वा किरण ही निकलती है. विज्ञान इन किरणों को Cruise Inflamed कहता है. बात दोनों एक ही है. दोनों ही तरह से ये किरणें ज्वलन शील होती है. अंतर यह होता है कि ये किरणें मूल होती है, परावर्तित नहीं. इसके विपरीत रेवती, हस्त, आर्द्रा, पुष्य एवं पूर्वाषाढा नक्षत्रों की किरणें परावर्तित होती है. मूल नहीं. इसके इसी स्वभाव एवं गुण के कारण सूर्य को इस राशि (मेष) में उच्च का कहा गया है. यह इसकी ज्वलनशीलता का ही प्रभाव है.
जैसा कि सर्व विदित है कि किरणें 7 ही होती है. जिन्हें हिंदी में संक्षिप्त रूप में बैनीआहपनाला एवं अंग्रेज़ी में VIBGYOR कहते है. ये सात किरणें सातो ग्रहों से उत्सर्जित होने वाली मूल किरणें हैं. जो परस्पर आदान प्रदान से घुल मिल जाने के कारण एक ही रंग सफ़ेद दिखाई देती है. सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र एवं शनि ये ही सात ग्रह हैं. राहू एवं केतु छाया है. जो कभी सूर्य का प्रकाश किसी ग्रह पर पड़ने एवं कभी चन्द्रमा की किरण किसी ग्रह पर पड़ने से उस ग्रह के पीछे उत्पन्न हो जाती है. चूंकि छाया किसी वस्तु की ठीक उसके पीछे ही पड़ती है. यही कारण है कि राहू एवं केतु परस्पर सदा एक सीध में अर्थात 180 अंश पर रहते है.
संसार में सुख या दुःख चार ही होते है. (क)- अर्थ अर्थात धन संपदा (ख)- धर्म अर्थात यश, कीर्ति या मान मर्यादा (ग)- काम अर्थात परिवार, बाल बच्चे, सगे संबंधी या कुटुंब. तथा चौथा (घ)- मोक्ष अर्थात स्थायीत्व. यदि धन संपदा पर्याप्त मात्रा में है तो सुख और नहीं तो दुःख. इस प्रकार प्रत्येक ग्रह इन्ही चार से सम्बंधित सुख या दुःख देता है. तो यदि एक ग्रह चार सुख या दुःख देता है. तो सात ग्रह कितने? अर्थात सात गुने चार बराबर 28. ये ही 28 नक्षत्र होती है. इन अट्ठाईस नक्षत्रों से अट्ठाईस तरह की किरणें निकलती है. जो शरीर के प्रत्येक अवयव पर जन्म के समय ही प्रभाव ड़ाल कर उस व्यक्ति के अन्तः एवं बाह्य स्थल को अपने अनुरूप बना लेती है. इन्ही किरणों के प्रभाव से जो अन्तः या बाह्य स्थल अल्पविकसित या अविकसित होता है उसे पूजा या जंत्र मंत्र से सुधारते या पूरा करते है. किन्तु ध्यान रहे, इन्ही पूजा में प्रयुक्त होने वाली सामग्री या विविध रासायनिक पदार्थ त्रुटिपूर्ण या अपूर्ण या अशुद्ध हुए तो सुधार के बदले और ज्यादा नुकसान हो जाता है. उदाहरण के लिए हवन में प्रयुक्त होने वाला गूगल वास्तव में Di-ethyl phosphamazine hydrate होता है. जो घी में पाये जाने वाले gleoxine के रासायनिक संयोग से पैरा फिनियम अक्जीलेट (उद्वीक्ष्य वायु) उत्सर्जित करता है. जो पूजा के अन्य सुगन्धित पदार्थ से निकलने वाले नाइट्रोजन पराक्साइड से किसी भी तरह अधिक नहीं होना चाहिए. इसीलिए हवन पूजा के सामानों की मात्रा आनुपातिक तौर पर प्रतिबंधित एवं पूर्व निर्धारित है. in पूजन की वस्तुओं से मिलने वाले लाभ के बारे में यजुर्वेद में स्पष्ट एवं पूर्ण विवरण दिया गया है. जिसके विभिन्न संस्कृत शब्दों को आज का विज्ञानं विविध अंग्रेजी के शब्दों में कहता है.
प्रसंग विचलन के लिए खेद है. इस प्रकार भरणी नक्षत्र से “हवि गर्भ” नामक अदृश्य प्रकाश पुंज निःसृजित होता है. तथा इस नक्षत्र में जन्म प्राप्त व्यक्ति से विविध कोणों पर स्थित विविध ग्रहों से टकराकर परावर्तित होने के बाद उस व्यक्ति को विविध फल देता है. यदि भरणी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म प्राप्त व्यक्ति की कुंडली में
चन्द्रमा से चौथे घर में गुरु एवं दशवें घर में मंगल हो तो इन दोनों घरों में दोनों ही ग्रहों के उच्च होने के बावजूद भी व्यक्ति भिखारी का जीवन बिताने पर मज़बूर होगा. किन्तु ज्योतिष ग्रन्थ के इस वक्तव्य को भिखारी को याचक भिखमंगा के रूप में नहीं लेना चाहिए. बल्कि ऐसा व्यक्ति उच्च कोटि का तपस्वी होता है. आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसा व्यक्ति उच्च कोटि का विचारक होता है.
चन्द्रमा से सातवें घर में शनि के होने के बावजूद भी व्यक्ति उच्च कोटि का सुखी जीवन यापन करता है यदि शुक्र चन्द्रमा के आगे या पीछे किसी एक घर में हो.
चन्द्रमा से पांचवें यदि सूर्य मंगल हों तो दोनों ही अशुभ ग्रहों के संतान भाव में होने के बावजूद भी वह व्यक्ति बहुत अच्छा संतान सुख प्राप्त करता है.
चन्द्रमा से आठवें मंगल होने के बावजूद भी व्यक्ति को मांगलिक दोष नहीं लगता बल्कि इसके विपरीत यदि सूर्य लग्न में हो तो कुंडली के करोडो पापों का संहार क्षण भर में हो जाता है.
चन्द्रमा से दशवें शनि के होने के बावजूद भी इसका पिता एवं स्वयं जातक दोनों ही उच्च प्रतिष्ठा प्राप्त एवं शासकीय सम्मान से युक्त अगाध धनी होते है.
चन्द्रमा से दूसरे स्थान में शुक्र एवं बारहवें स्थान में गुरु होने के बावजूद भी व्यक्ति घर परिवार से दूर जीवन बिताने को मज़बूर होता है.
चन्द्रमा से बारहवें गुरु शनि या चन्द्रमा से दशवें मंगल शनि हो तो व्यक्ति विदेश वासी होता है यदि चन्द्रमा की युति राहू से हो रही है.
चन्द्रमा के साथ यदि शुक्र हो तथा चन्द्रमा से सातवें मंगल बुध हो तो वह व्यक्ति किन्नर या नपुंसक होता है.
यदि भरणी के दूसरे चरण में जन्म हुआ है तो ऊपर के वर्णित फलो में निम्न परिवर्तन होता है-
प्रथम के फल में व्यक्ति भिखारी नहीं बल्कि मूर्ख, अनपढ़ जैसा व्यवहार करने वाला होता है.
दूसरे फल में पत्नी उद्दंड एवं व्यक्ति दब्बू किस्म का होता है.
तीसरे फल में संतान सुख अवश्य ही प्राप्त होता है. किन्तु पहले जन्म लेने वाली कुछ संतानें जीवित नहीं रहती.
चौथे फल में व्यक्ति सर दर्द से बहुत पीड़ा पाने वाला उग्र स्वभाव का होता है.
पांचवें फल में बाप बेटे अगाध धनी अवश्य होते है. किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा नहीं होती. बल्कि इनकी गिनती असामाजिक तत्त्व के रूप में होती है. कारावास की भी सज़ा हो सकती है.
छठे फल में व्यक्ति बदनाम एवं घर परिवार से बेईज्ज़त कर भगाए जाने वाला आदमी होता है.
सातवें फल में व्यक्ति बहुरूपिया एवं पा खंडी होकर दूसरों को ठगने वाला होता है.
आठवें फल में व्यक्ति विपरीत योनी के प्रति उदासीन होता है. एकाकी जीवन बिताना उसको ज्यादा पसंद होता है.
स्रोतयजुर्वेद, ब्रह्मावैवर्त पुराण, ग्रह मीमांसा, ग्रह लाघव, ब्रिहत्संहिता एवं सूर्य सिद्धांत.

By-

Pundit R. K. Rai

M.Sc. (biochemistry)

M.A. (Vedic Astrology)

Former Interviewer- NCAER (A Home Ministry Enterprises)

Tele- 0532-2500272, Mobilie- 9889649352

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