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होनहार बिरवान के होत चीकने पात – रोहिणी नक्षत्र का फल

वेद विज्ञान
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वियोगी होगा पहला कवी ह्रदय से निकली होगी आह.

जी हाँ, कुछ ऐसा ही हुआ जब मैंने समाचार पत्र में यह पढ़ा कि न्याय पालिका ने यह व्यवस्था दी है क़ि धर्म परिवर्तन करके एक बहन अपने भाई से विवाह कर सकती है. और मुझे लिखना था रोहिणी नक्षत्र के विषय में लिख दिया कुछ और.
निकले थे हरि भजन को ओटन लगे कपास.
इसके पहले का लेख मैंने इसी भावना के वशी भूत होकर लिखा. अब हम रोहिणी नक्षत्र के बारे में लिखते है.
श्रीमद्भागवत, विष्णु, शिव एवं देवी पुराण के अनुसार रोहिणी दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं. जिसे उन्होनें चन्द्रमा के साथ व्याह दिया था. लेकिन प्रश्न यह उठाता है कि क्या दक्ष के पहले किसी का जन्म रोहिणी नक्षत्र में नहीं हुआ? जी हाँ हुआ था. विविध गृह नक्षत्रों के आधार पर ही सबका नामकरण होता था. वास्तव में जब भगवान ब्रह्मा मानस संतान उत्पत्ति से सृष्टि विस्तार नहीं कर सके. तब उन्होंने मैथुनी सृष्टि का सहारा लिया. अश्विनीकुमार, मरीचि, कश्यप आदि सब मानस पुत्र थे. पार ब्रह्म परमेश्वर ने तब संकेत दिया कि जब तक अपने तेज एवं तपोबल में ह्रास नहीं करोगे. संसार का विस्तार नहीं हो सकता.
इस सम्बन्ध मैं एक अंतर्कथा या क्षेपक का उद्धरण देना चाहूंगा. संस्कृत की गद्य विधा के उदभट्ट विद्वान बाणभट्ट ने रचना प्रारम्भ किया तो उनकी रचना इतनी क्लिष्ट, दुरूह, गूढ़ एवं गंभीर हो गयी कि पाठक उनकी रचनाओं से कतराने लगे. बाण भट्ट को बहुत ठेस लगी. उन्होंने माता सरस्वती की अराधाना की. देवी ने बताया कि रात को मट्ठा एवं बासी भात खाना प्रारभ करो. इससे तुम्हारी बौद्धिक क्षमता में कमी होगी. तुम्हारी रचना सरल हो जायेगी. जो भी व्यक्ति बाण भट्ट का कथासरित्सागर या कादम्बरी पढ़ा होगा. उसे इसकी गुरुता मालूम होगी. हजारों शब्दों से भरे वाक्य के लिए कही पूर्ण विराम ही नज़र नहीं आता. लेकिन बाद में धेरे धीरे शुद्ध व्याकरण के प्रतिबाधित क्लिष्ट किन्तु अव्यावहारिक शर्तों को उपेक्षित करने से रचना थोड़ी बोध गम्य हुई. इसी प्रकार जब ब्रह्मा जी ने भी अपनी सात्विक तपो शक्ति में कमी करना शुरू किया तो सबसे पहले उनकी सात्विक आभा आदिशक्ति में तिरोहित हुई. तामसिक आभा शिव में अंतर्भूत हुई. किन्यु राजसिक आभा को नितांत एकाकी अपने पास रखना ब्रह्मा जी को रास नहीं आया. कारण यह कि परम सतोगुणी सरस्वती उनके सान्निध्य में थीं. तो पारलौकिक शक्ति पुंज होने के कारण वह आरोही अवस्था को प्राप्त हुई. अपने आरोही गुण के कारण वह रोहिणी नाम से विख्यात हो नक्षत्र मंडल में स्थापित हुई. इस नक्षत्र की इसी विशेषता के कारण योगिराज भगवान कृष्ण को इस नक्षत्र में ही अवतार लेना पडा.
रोहिणी नक्षत्र का शकट वेध परम उग्र एवं पाप ग्रह शनि भी नहीं करता. कारण यह है क़ि एक बार महाराजा दसरथ के राज्य में भीषण अकाल पडा. और लगातार कई वर्षों तक यही स्थिति रह गयी. अन्न के अभाव में लोग मरने लगे. राज कोष में इतना भी धन नहीं रह गया की राजा किसी अतिथि या ऋषि मुनि के आने पर उनका पाँव किसी बर्तन में पखार सके. तब उन्होनें राज ज्योतिषियों से इसका कारण पूछा. उन्होंने बताया की शनि की साढ़े साती चल रही है. बस राजा दसरथ ने अपनी सेना को तैयार होने का आदेश दिया तथा शनि को मार गिराने के लिए वह सेना के साथ चढ़ दौड़े. शनि भयभीत होकर भगवान सूर्य की शरण में गया. शनि भी सूर्य का पुत्र था. तथा राजा दसरथ भी सूर्यवंशी थे. सूर्य देव ने अपने कुल के घात से राजा दसरथ को रोकना चाहा. किन्तु राजा दसरथ बोले क़ि यह कुल कलंकी है. इसे मार देने में ही कुल खानदान की भलाई है. बहुत समझाने पर सूर्य देव ने दसरथ को यह कह कर शांत किया क़ि आज से शनि प्रत्येक ग्रह यहाँ तक क़ि मेरे खुद के शकट (गाडी) को छिन्न भिन्न कर देगा. किन्तु रोहिणी का शकट वेध नहीं करेगा. “कूर्म प्रकरण” में अयोध्या को रोहिणी नक्षत्र का क्षेत्र बताया गया है. श्रीमद्भागवत एवं ब्रीहत्संहिता में इसका उल्लेख किया गया है.
अस्तु हम अब रोहिणी का फल कहेगें. यदि हम विश्व के मान चित्र को देखें तो पता चलेगा क़ि वृषभ राशि (Tauras line) का शुरुआती भाग (रोहिणी नक्षत्र) का तीन चौथाई हिस्सा औरों की तुलना ज्यादा समुद्र से होकर गुजरता है. इसलिए इसकी किरणें “रितुधान्वी” के नाम से वैदिक ऋचाओं में जानी जाती हैं, विज्ञान इसे (Blended Tide) कहता है. दोनों का अर्थ एक ही होता है. आकाश में इसे सदा ही चन्द्रमा के आस पास ही देखा जा सकता है. कहते है क़ि जिसकी मृत्यु 6 माह के अन्दर होने वाली होती है उसे रोहिणी नंगी आँखों से दिखाई देना बंद कर देती है. जो भी हो, संपूर्ण रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाले का रूप, रंग, स्वभाव, व्यवसाय, चर्या, व्यवहार, आचरण तथा भविष्य एक सामान ही होता है, जैसा क़ि विविध शास्त्रों में बताया गया है . वृहत्पाराशाराहोराशास्त्र के 81वें अध्याय के श्लोक संख्या 4 को देखें-
“सुतधनपशुमान विद्वान दाताधीरो अल्पवाक स्थिर मतिश्च. वृषभ गति तेजस्वी प्राजापत्ये नरो जातः.”
अर्थात रोहिणी (प्रजापति की पुत्री) नक्षत्र में जन्म प्राप्त व्यक्ति पुत्र, धन, पशु, संपत्ति से युक्त विद्वान, दानी, धैर्यशाली, कम बोलनेवाला, स्थिर बुद्धि, वृषभ की तरह दबंग चलने वाला तेजस्वी होता है.
अब ज़रा वृद्ध यवन जातकम के अध्याय 58 के नक्षत्रफलाध्याय के श्लोक संख्या 4 को देखते है.
“धर्मप्रधानोनिपुणः सुशीलः प्रियंवदः शास्त्ररतः सुखाढयः स्याद्रोहिणीषु प्रवारह कुलस्य पुमान विवेकी रतलालशश्च.”
अर्थात जिसका जन्म रोहिणी नक्षत्र में हो वह मनुष्य धार्मिक स्वभाव वाला, कार्यों में निपुण, सुशीलता से युक्त, प्रियभाषी, शास्त्रों में परिश्रम करने वाला, सुखों से युक्त, अपने कुल में श्रेष्ठ, विवेक बुद्धि से युक्त व रतिक्रिया की लालसा से युक्त होता है.
यहाँ हम देखते है क़ि दोनों ही शास्त्रों का फल सामान ही है. किन्तु एक बात ध्यान देने योग्य है क़ि महर्षि पाराशर ने रोहिणी शब्द की जगह प्राजापत्ये शब्द का प्रयोग किया है. प्रजापति पुत्री रोहिणी प्राचीन रोहिणी की परवर्ती है. अतः इस संकेत को हमें समझना चाहिए क़ि रोहिणी का पूर्वार्ध इसके परार्ध से पृथक फल देगा. पूर्वार्ध में जन्म लेने वाले क्षय रोगी होते है. किन्तु परार्ध वालों के साथ यह नहीं है. इसके पीछे वैज्ञानिक तर्क भी है. 15 जून से 14 अगस्त तक सूर्योदय के बाद तथा दो पहर के पहले रोहिणी नक्षत्र के प्रथम दो चरणों में जन्म लेने वालों में यूसोनोफीलिया का अनुपात ज्यादा होता है. इसके विपरीत अंतिम दो चरणों में जन्म लेने वालो में हेक्साक्लेवीटोन एवं पायारिथिन हाईड्रोक्लोराईड की मात्रा ज्यादा होती है.
चरण क्रम के अनुसार इसका फल निम्न प्रकार है.
यदि रोहिणी नक्षत्र के प्रथम चरण में जन्म हो तथा चन्द्रमा से-
सूर्य मंगल सातवें हो तो पति या पत्नी बहुत ही कड़े स्वभाव की दबंग, सुन्दर, हृष्ट, पुष्ट, पढी लिखी एवं मान मर्यादा के प्रति जागरूक होती है. सातवें मंगल होने के बावजूद भी यह कुंडली मांगली क नहीं होती.
गुरु एवं शुक्र सातवें हो तो जीवन साथी सुशील, शांत, मधुर भाषी, तेजस्वी एवं प्रतिष्ठित होता है.
शुक्र शनि सातवें हो तो जीवन साथी उन्नति शील, बहुत धनी, चतुर, सफल, भाग्यशाली एवं यशस्वी होगा.
यदि चन्द्र शुक्र लग्न में तथा सूर्य बुध दूसरे भाव में हो तो व्यक्ति राजसी ठाट बाट वाला, उच्चाधिकारी, गंभीर वाणी बोलने वाला, सदाचारी होता है.
शनि मंगल सातवें हो तो जीवन साथी अभागा, दुष्ट प्रकृति, असामाजिक एवं कुल घाटी होता है.
यदि शनि मंगल दशवें या ग्यारहवें हो तो उच्च प्रशासनिक नौकरी वाला, तेज बुद्धि, शीघ्र उन्नति करने वाला, किसी संस्था का प्रधान, मंत्री अथवा अध्यक्ष होता है.
यदि रोहिणी नक्षत्र के दूसरे चरण में जन्म हो तथा चन्द्रमा से ग्रहों की स्थिति ऊपर बताये अनुसार हो तो –
पति पत्नी में झगड़ा न होने के बावजूद भी दोनों एक साथ नहीं रह पाते. तथा दोनों में एक दूसरे के प्रति सदा संदेह बना रहता है.
संतान नहीं होती या होकर मर जाती है. तथा बहुत उम्र बीत जाने पर बहुत पूजा पाठ के बाद एक संतान जीवित बचाती है.
आयु कम होती है. सदा संघर्ष करते रहना पड़ता है. मानसिक तनाव से सदा शिरोरोग बना रहता है. प्रायः ऐसे व्यक्ति पालित होते है.
व्यक्ति झूठा, चोर, तस्कर, असामाजिक वस्तुओं का व्यापार करने वाला राज द्रोही होता है.
विदेशों में बसने वाला, गूढ़ विद्याओं में विद्वान एवं गणित तथा खगोल शास्त्र का ज्ञाता होता है.
बहुत ही प्रतापी, विजेता, धनी, सदाचारी, दूर दृष्टि वाला, बहुत पत्नियों वाला, बार बार अपना आवास बदलने वाला एवं अन्य दैवी शक्तियों से भरपूर होता है.
यदि रोहिणी नक्षत्र के तीसरे चरण में जन्म हो तथा ग्रहों की स्थिति ऊपर चन्द्रमा से बयाए स्थान पर हो तो-
पति पत्नी दोनों ही सदा संतान दुःख से पीड़ित रहते है. या फिर किसी ग्रंथि रोग का शिकार होते है.
कई बार अनावश्यक धोखा या दुर्घटना का शिकार होना पड़ता है.
सामाजिक स्थिति उच्च एवं व्यवसाय बहुत ही उच्च स्तर का होता है.
अनायास ही बिना परिश्रम के नियमित धनागम का स्रोत बन जाता है.
आजीविका के लिए जन्म स्थल से बहुत ही दूर जाना पड़ता है. या जन्म स्थल से दूर अपनी पसंद का घर बनवा कर रहता है.
ठगी विद्या में पारंगत होता है. बड़ी आसानी से लोगो को अपने प्रभाव में ले लेता है.
यदि रोहिणी के चतुर्थ चरण में जन्म हुआ हो, तथा ग्रहों की स्थिति चन्द्रमा से ऊपर बतायी स्थितियों में हो तो –
पति पत्नी में सम्बन्ध बहुत ही मधुर होता है किन्तु दोनों ही किसी अनिष्ट की आशंका से सदा भयभीत रहते है.
व्यक्ति बहुत ही धनाढय होता है. किन्तु किसी को अनुमान नहीं हो पाता क़ि यह व्यक्ति इतना धनी होगा .
दूरदृष्टि इसके पास बहुत ही सशक्त होती है. परिणाम यह होता है क़ि इसकी कोई योजना असफल नहीं होती.
प्रबल इच्छा शक्ति इसके पास होती होती है. परिश्रम से नहीं घबराता. शरीर बलशाली एवं निरोग होता है.
ग्राम प्रधान, सांसद, विधायक, मंत्री या प्रशासन में किसी सम्मान जनक पद पर आसीन होता है. इसके साथ एक विडम्बना यह अवश्य होती है क़ि इसकी आयु औसत से बहुत कम होती है.
वैवाहिक जीवन नहीं प्राप्त होता. या इसकी कई शादियाँ होती है. किन्तु किसी भी पत्नी/पति का सुख प्राप्त नहीं हो पाता.
पाठक वृन्द से निवेदन संभवतः मै यह ब्लॉग अब और नहीं लिख पाउँगा. कारण यह है क़ि मैं एक नौकरी पैसा सैनिक हूँ. तथा अब समय निकाल पाना मेरे लिए मुश्किल हो जाएगा. इस लिए मै आप लोगो से क्षमा चाहूंगा. आप लोगो के प्यार, स्नेह और सम्मान के लिए बहुत धन्यवाद

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