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ग्रह, यन्त्र एवं प्रभाव

वेद विज्ञान
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महत्व पूर्ण सूचनाइस लेख को अंत तक अवश्य पढ़ें. फिर इसकी तार्किकता एवं विश्वसनीयता को परखें.
२- साधारण जनता को तो यन्त्र मंत्र पर विश्वास है, किन्तु आज के आधुनिक विज्ञान पर आश्रित तथा कथित विकसित बुद्धि वाले लोग इन सब पर विश्वास नहीं करते. उनके लिए उन्हें उनकी ही भाषा में इसका प्रमाण दे दिया गया है. इसी लिए इस लेख में गणित का गुना भाग ज्यादा हो गया है.
अपने विदेश प्रवास के दौरान कुछ एक महानुभाओं द्वारा हिन्दू धर्मं ग्रंथों में वर्णित विविध चमत्कारिक यंत्रों के बारे में विविध प्रश्न एवं शंकाएं प्रस्तुत की गयी. मुझे उनका विश्लेषण प्रस्तुत करना पडा. उसका विवरण मैं संक्षेप में यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ.
यन्त्र किसी विशेष समय में विशेष स्थल पर विशेष वास्तु से विशेष आकार प्रकार से निर्मित वह वैज्ञानिक उपकरण (Astro-scientific Mechanism) है जो आकार में छोटा होते हुए भी बहुत ही दुर्लभ एवं अचूक प्रभाव देता है उदाहरण के लिए हम कुम्भ यन्त्र को लेते है. जिस व्यक्ति को यह यन्त्र चाहिए उसके लिए आवश्यक है क़ि उसके दाहिने हाथ की जिस ऊंगली में चक्र बना हो उससे पहले वाली ऊंगली अर्थात यदि तर्जनी में चक्र हो तो तर्जनी एवं मध्यमा ऊंगलियो के सबसे ऊपर गाँठ वाली रेखा की चौडाई माप लेवे. अर्थात दोनों ऊंगलियो को सटावे. तथा फिर दोनों ऊंगलियों के सामूहिक गाँठ की चौडाई माप लेवे. उतनी ही चौडाई एवं लम्बाई का साफ़ पतला चमकदार ताम्बे का पत्र लेवे. उस व्यक्ति की कुंडली में केंद्र के राशियों की संख्या जोड़ लेवे. तथा उसको बारह से भाग देकर जो पूर्णांक बचे उसे एक जगह लिख लेवे. उसके बाद जिस नक्षत्र में जन्म हो उस नक्षत्र में सत्ताईस जोड़ लेवे. इस योग में जो राशि का पूर्णांक बचा है उससे भाग देकर जो पूर्ण संख्या प्राप्त हो उसके पीछे की सारी संख्याओं को क्रम से तीन आड़ी पडी रेखाओं से बने ताम्बे के पत्र पर चतुर्भुज में लिखे. जो खाना खाली बचे उसमें शून्य लिखे. उसके अगल बगल कुम्भ अर्थात घड़े का चित्र बनावे. तथा उसके नीचे उस राशि का मंत्र लिख देवे. कुम्भ राशि का मंत्र निम्न प्रकार है.

ॐ अगस्त्योद्भिद रिक्तं भूत्वा भानुजें सह पूर्णमस्तु.
य फिर इस साधारण मंत्र को ही लिख देवे. “ॐ कुम्भाय नमः.” इसके बाद अंत में उस ताम्र पत्र को गोरोचन, अष्टगंध, केशर, चन्दन एवं हल्दी के घोल में दाल देवे. क्षण भर बाद उसे बाहर निकाल कर साफ़ पानी से धोकर अपनी श्रद्धा के अनुसार उसे धुप अगरबत्ती दिखाकर रख लेवे. कुम्भ यन्त्र तैयार हो गया.
इसका विकिरण लगभग पांच हाथ अर्थात आठ फुट होता है. अर्थात इतनी दूरी में स्थित हर एक चीज को यह अपने प्रभाव में लेता है.
इसके प्रभावी होने का कारण जो बहुत ही दुर्गम एवं कठिन सूत्र एवं सूक्त में “काकतीय रहस्यम” में लिखा है, तथा जिसका आयुर्वेदीय विश्लेषण जो प्राप्त होता है. वह निम्न प्रकार है.

  1. ताम्बा विद्युत् एवं ऊष्मा का सुचालक (Good Conductor) होता है.
  2. ऊंगली जिसमें चक्र बना होगा उसमें “वितिकता रस” जिसे आज के रसायन विज्ञान में  अनुमान के आधार पर डिक्लोसैट्रीलीन के प्रकार का द्रव पदार्थ बताया गया है, प्रवाहित होता है. इसे कोई भी प्रत्यक्षतः परीक्षण कर सकता है. जिस ऊंगली में चक्र होगा उसमें वितिकता रस, जिसमें शंख होगा उसमें आदम्य रस, जिसमें शंकु बना होगा उसमें विनायक रस, जिसमें पुष्पित चक्र होगा उसमें त्रिकांतुक रस, जिसमें अर्धचाप होगा उसमें क्रौंच्य रस, जिसमें त्रिपुंड्र का निशान होगा उसमें विभेद रस, जिसमें गदा का आकार होगा उसमें विकल्प रस एवं जिसमें रेखाएं विकृत या कटी फटी होगी उसमें विद्रधि रस का प्रवाह होता है.  इन रसो को आधुनिक चिकित्सा या रसायन विज्ञान में अनुमान के आधार पर निम्न नामो से जाना गया है.
  3. वितिकता रस- डिक्लोसट्रीलीन , अदम्य रस- फेनाफ्थालिन क्लोराईड, विनायक रस- डाईक्लोरो बार्बिटोना, त्रिकान्तुक ऱस- मैगनिसियमट्राईसल्फोमेंट्रानायिड, क्रौंच्य ऱस- प्रोटोसाइट्रस अमोनो डिक्लोरेट, विभेद ऱस- कार्बोहेट्राफेनोक्सिलिनक्लोरोडाईन विकल्प ऱस- पोटैसियमथायोरिकाप्लिन विद्रधि ऱस- न्युक्लियोसोडियमडायनायिड.
  4. ये रासायनिक यौगिक (Chemical Compounds) तंतुओ एवं मांस पेशियों (Tentacles & muscles) को अपनी कठोरता एवं कोमलता के अनुसार चमड़े को सिकोड़ कर या फैला कर उस पर निशान पैदा कर देते है. या फिर उसे मोटा या पतला कर देते है. उस निशान या आकार को उनकी आकृति के अनुसार उनका नाम रख दिया गया है. जैसे गोल आकार हुआ तो चक्र, गोलार्ध हुआ तो अर्ध चाप आदि .
  5. इन विविध रासायनिक यौगिको के प्रभाव को चिकित्सा विज्ञान में विविध रोग या विकास का लक्षण बताया गया है. जैसे रिक्केट्स, युट्रीकेरिया आदि.  ज्योतिष या आयुर्वेद में इन्हें विविध योगो का नाम दिया गया है जैसे शकट, अपघात, कंटक, व्याघात, विष कम्भ आदि,
  6. उसकी मोटाई या आकार से ज्योतिष विज्ञान में उस ऊंगली के अन्दर के प्रवाह को जान लिया जाता है. उस प्रवाह की तीक्ष नाता या आवृत्ति कितनी है, उसी माप का धातु लिया जाता है. उस धातु के ऊर्जा विनिमय (Energy Exchange) को लकीरों या अक्षरों के द्वारा उद्वेलित (Irritated) या अवरोधित (Restricted) किया जाता है.
  7. विविध जटिल यौगिक रसायनों जैसे अष्ट गंध, केशर, हल्दी के ऱस द्वारा उस ताम्रपत्र के परमाणविक नाभिक (Atomic Nucleus) के विकिरण क्षमता (Radiating Power) एवं वेधन क्षमता को सूक्ष्म (Minute), तीक्ष्ण (Sharp) एवं निर्दिष्ट प्रहारक (Hitting to the particular point) बनाता है. जैसा  क़ि हमको पता है क़ि इमली में टार्टारिक एसिड एवं हल्दी में टरमेरिक एसिड पाया जाता है. यहाँ यह जानना आवश्यक है क़ि एक एलोपैथिक टेबलेट में समाहित तत्वों से इसकी प्रभावी तीब्रता बहुत कम, धीरे एवं बहु आयामी होती है. किन्तु इसका समय विस्तार 2700 गुना होता है. अर्थात एक एलोपैथिक टिकिया यदि 5 मिनट में प्रभाव देती है तो यह यन्त्र 7 दिनों में अपना प्रभाव दिखाता है. तथा यदि एक एलोपैथिक टिकिया का प्रभाव 5 दिन तक रहता है तो इस यन्त्र का प्रभाव 2700 दिन तक रहता है. कारण यह है की एलोपैथिक विधान में तत्वों का परिशोधन कर अन्य तत्वों का बहिष्कार कर दिया जाता है. जब क़ि ज्योतिषीय यन्त्र में किसी भी तत्त्व को बहिष्कृत नहीं किया जाता है. जैसे एलोपैथ में लहसुन में से गंधक (Sulfur) को निकाल कर शेष तत्वों को छाँट दिया जाता है. किन्तु ज्योतिष में समूचे लहसुन को ही ग्रहण किया जाता है.
  8. ऊपर वर्णित कुम्भ यन्त्र (Aquatint Mechanism) उदाहरण के रूप में प्रस्तुत है. जिसका विधिवत रासायनिक किन्तु सदिश परीक्षण किया जा सकता है.
  9. यह  कुम्भ यन्त्र अलग अलग व्यक्तियों के लिए अलग अलग होता है. किन्तु आज कल बाज़ार में एक Standard कुम्भ यन्त्र बना बनाया बेचा जा रहा है. जो नितांत ही गलत, अशुद्ध एवं घातक है. क्योंकि हर आदमी के अंगुलियों की रेखा एवं रक्त प्रवाह एक सामान कदापि नहीं हो सकता है.
  10. <!–ओल
    द्वारा-
    पंडित आर. के. राय
    प्रयाग
    सहायक ग्रन्थ– भावार्थ रत्नाकर. शारंगधर संहिता, काकतीय रहस्यम, ज्वाला रसायनम, कपाल कुमकुम, रहस्य तांडवम, पाराशर संहिता, वज्र तंत्रम एवं संहिता आभरणं.

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