Menu
blogid : 6000 postid : 172

महाशक्तिशाली पारद शिवलिंग

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments

प्रिय पाठक समुदाय
यद्यपि मै सत्ताईसो नक्षत्र का ज्योतिषीय जन्म फल लिखने का सिलसिला प्रारम्भ किया था. किन्तु अनेक श्रद्धालुओ के ऐसे सवाल आ जाते है कि उनका ही उत्तर देना आवश्यक हो जाता है. प्रत्येक व्यक्ति का अलग अलग उत्तर देना कठिन है. इस लिए मै अपने इस लेख से उन सबको इकट्ठा ही उत्तर दे रहा हूँ. यदि ईश्वर की दया रही तो मै शेष नक्षत्रो का जन्म फल लेकर अति शीघ्र आपके सम्मुख उपस्थित होउंगा. कुछ लोगो को पारद शिवलिंग के बारे में जानकारी चाहिए थी वह मै दे रहा हूँ.
शिव पुराण एवं शिव संहिता के अलावा अथर्ववेद एवं लिंग पुराण में पारद शिवलिंग का जो विवेचन दिया गया है वह संपूर्ण प्राणी जगत के लिए पार ब्रह्म परमेश्वर द्वारा प्रदत्त एक अनमोल वरदान है. इसमें कोई संदेह नहीं कि इसकी विधिवत पूजा एवं उपासना से दैहिक, दैविक एवं भौतिक तीनो कष्टो से मुक्ति प्राप्त की जा सकती है. शिव लिंगो के जो भेद बताये गए है उन सबमें उत्तम एवं प्रशस्त पारद शिवलिंग ही है. इस शिव लिंग की कही भी रख कर पूजा की जा सकती है. प्रायः ऐसा देखा जाता है कि अन्य शिवलिंगों की स्थापना करने के बाद ही पूजा का फल बताया गया है. इसके अलावा एक ही स्थान पर कई शिवलिंगो की पूजा भी प्रतिबंधित की गयी है. यद्यपि कई ऐसे प्रसिद्ध पुराने मंदिर है जहा अनेक शिवलिंग है. जैसे वाराणसी का काशीविश्वनाथ मंदिर. यहाँ पता नहीं कितने शिवलिंग एक ही में सटे हुए है. या आज कल एक प्रचलन चला हुआ है अनेक शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा करने का. पता नहीं यह परम्परा कहा से कब चल पडी. इसके बारे में मै कोई टिप्पड़ी नहीं करना चाहता. किन्तु विविध ग्रंथो एवं जनश्रुतियों के अध्ययन से जो बात सामने आई है वह यही है कि एक ही स्थान पर कई शिवलिंग स्थापित नहीं करने चाहिए. अथर्ववेद के रस रसायन प्रवर्तन के अनुसार भी कई शिवलिंगों का विकिरण घातक होता है. यदि संभव हो सका तो मै उन सारे प्रसिद्ध पुराने मंदिरो की दुर्दशा के बारे में बताउंगा जहा पर एक ही स्थान पर अनेक शिवलिंग की स्थापना हुई है.
अस्तु जो भी हो हम यहाँ पारद शिवलिंग की चर्चा करेगें. पारद शिवलिंग की पूजा के लिए यह आवश्यक नहीं है कि उसकी स्थापना कर के ही पूजा की जाय. या ऐसा आवश्यक नहीं है कि इसे घर के अन्दर रख कर पूजा न की जाय. अन्य शिवलिंग के साथ यह प्रतिबन्ध है कि उन पर हमेशा पानी टपकता रहना चाहिए. या उस शिव लिंग की नियमित पूजा होती रहनी चाहिए. पारद शिवलिंग के साथ ऐसा कोई प्रतिबन्ध नहीं है. इसे आप अपने घर में किसी साफ़ सुथरे स्थान पर मात्र रखे भी हुए है तो इसका अच्छा फल मिलता रहेगा. केवल कुछ एक सावधानिया रखनी ज़रूरी है.
इसे सोने के पात्र से स्पर्श न होने दें.
इसके नेती की लम्बाई सदा लिंग से छोटी ही होनी चाहिए.
यह ऐसे स्थान पर रखा होना चाहिए जिस पर आते, जाते, उठते, बैठते, खाते पीते नज़र पड़ती रहे. अर्थात इसका दर्शन ज्यादा से ज्यादा होता रहे.
इस शिव लिंग में पारा, कार्बन एवं मेगनीसियम का अनुपात निश्चित रूप से 70:10:20 का होना चाहिए. अन्यथा इस शिवलिंग के बुरे फल भी मिलते है.
इसके विकिरण का व्यास (Radiating Dias) सोलह फूट अर्थात बारह हाथ होता है. कारण यह है कि इसमें का कार्बोमैग्नीफायिड मरकरी बहुत ही उग्र Radio ACtive होता है.
घर में यदि इस शिवलिंग की नियमित पूजा करनी है तो इसे सदा नेती तक पानी में डूबा रहना चाहिए. यदि केवल इसे रखे रहना है तो इसे शीशे के मर्तबान में जिसके आर पार ह़र चीज साफ़ साफ़ नज़र आती हो उसमें रखना चाहिए. ऐसे इसे नंगा कही भी न रखे.
यदि इसकी नियमित पूजा करने की इच्छा हो किन्तु पानी चढाने में कोई असमंजस हो तो यह और भी बहुत अच्छा होगा यदि इस शिवलिंग पर मात्र दो एक तुलसी के पत्ते चढ़ाए जाएँ. बाकी किसी भी चीज को चढाने की ज़रुरत नहीं है.
यह देखने में आया है कि लोग तुलसी के पत्ती के साथ उसकी मंजरी भी तोड़ कर शिवलिंग पर चढ़ा देते है. यह गलत है. मंजरी या तुलसी के फूल एवं बीज के साथ पत्ते सिर्फ दक्षिणा मूर्ती गणेश भगवान पर ही चढाने का अधिकार है. शेष किसी देवी या देवता पर नहीं. अतः पारद शिवलिंग पर तुलसी चढाते समय यह ध्यान में रखना चाहिए कि मंजरी या फूल लगा तुलसी का पत्ता न चढ़ाया जाय. शास्त्रों में इसे निषिद्ध किया गया है.
घर में रखे पारद शिवलिंग पर दूध, दही, घी, शहद, हल्दी, सिन्दूर, चन्दन आदि चढ़ाना मना है. इसका ध्यान रखें.
पारद शिवलिंग पर चढ़ाए गए पानी को यदि बदलना हो तो कभी भी पीपल , बरगद अथवा तुलसी के पौधे में न डालें किसी और झाड में डालें.
पारद शिवलिंग का किया गया अभिषेक निश्चित एवं सर्वोत्तम फल देने वाला होता है. यदि इसे शास्त्रोक्त विधि से बनवा कर इसकी उपासना की जाय तो भयंकर बाधा एवं कष्ट तत्काल दूर होते है. यह एक परीक्षित अनुभव है. शास्त्रों में तो इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है. यहाँ तक कि विदेशो में गैर हिदू धर्मावलम्बी श्रद्धालु भी इस शिवलिंग को अपने घरो में रखते है. यदि घर में इस शिवलिंग के साथ दक्षिणावर्ती शंख भी रखा जाय तो इसका परिणाम सौगुना ज्यादा प्राप्त होता है. लिंग पारिजातम, शिवपुराण, अथर्ववेद, दीर्घजीव्यम, साकेतशिवम् तथा विदेशी साहित्य किमियोजेप्तिष्ठ, मार्कोसिंथिया, ट्रेवेल टू डिसएन्थ्रालमेंट आदि ग्रंथो में इसके महत्व की विशद चर्चा की गयी है.
द्वारा-
पंडित आर. के. राय
प्रयाग
9889649352

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply