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रुद्राभिषेक एक दुर्लभ विधान

वेद विज्ञान
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अनेक श्रद्धालु जन की उत्सुकता को देखते हुए रुद्राभिषेक का विवेचन प्रस्तुत कर रहा हूँ.

अपने अंतिम पार्थिव अवतार “घुश्मेश्वर” जो महाराष्ट्र में औरंगाबाद के पास एलोरा गुफा के पास है, के बाद भगवान शिव ने यह स्पष्ट कर दिया था कि –

“निसर्गोद्भूतो लिंगम पारदम वा विशेषतः. पुष्यार्के सविधानेन समंत्रेणाभिशिन्चितम.

भवसूक्तेन कृतमभिषेकम सर्वारिष्टं विनाशयति. न दारिद्र्यदुखमवशेषम किन्चिद्देवी विराजती”

अर्थात मेरे स्वयंभू लिंग स्वरुप या दूसरे शब्दों में द्वादश ज्योतिर्लिंग में से किसी एक का या विशेष रूप से पारद शिवलिंग का पुष्यार्क औषधियो से मंत्रो के साथ जो अभिषेक करता है. विशेष रूप से भाव सूक्त या शिव सूक्त से किया गया अभिषेक सब दुःख, विघ्ना, बाधा, कष्ट, अरिष्ट आदि का नाश करता है. किसी तरह का दुःख दारिद्र्य शेष नहीं रह जाता. इसमें कोई संदेह नहीं कि किसी भी पुराने नियमित रूप से पूजे जाने वाले शिवलिंग का अभिषेक बहुत ही उत्तम फल देता है. किन्तु यदि पारद (Mercury) के शिव लिंग का अभिषेक किया जाय तो बहुत ही शीघ्र चमत्कारिक शुभ परिणाम मिलता है.

ध्यान रहे यह भारत भूमि का अहोभाग्य है कि उसे उत्कृष्ट एवं अतिविशाल हिमालय के रूप में एक विशाल काय शिवलिंग प्राप्त है जिसका नैसर्गिक अभिषेक सतत होता रहता है तथा उससे बह कर आने वाला जल विविध नदियों के माध्यम से हमें प्राप्त होता है जिसमें अनेकानेक औषधिया तथा पराभौतिक शक्ति स्वरुप विद्युत् हमें प्राप्त होती है. यह तो प्रत्यक्ष है जिसे हम सब अपनी नंगी आँखों से नित्य प्रति हज़ारो लाखो वर्षो से देखते चले आ रहे है. यही कारण है कि आज भारत में कम बल्कि विदेशो में विशेषतः दक्षिणी अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया के पूर्वी प्रान्तों में शिवलिंग अभिषेक का बहुत प्रचलन है. तथा यह अभिषेक हिन्दुओ से ज्यादा ईसाई लोग ज्यादा कराते है. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि कावा (बगदाद) में हज करने के बाद हाजी लोग जो विशालकाय लिंग के आकार के काले पत्थर की प्रदक्षिणा करके उससे निकल कर बहने वाले जल को चमड़े की थैली में भर कर लाते है तथा अपने घरो में छिड़कते है तथा उसे आब-ए-ज़मज़म कहते है वह स्वाभाविक रूप से उस लिंग के आकार के पत्थर के होने वाले अभिषेक का जल ही है.

प्रायः शिवलिंग पत्थरो के ही पाये जाते है. विविध पत्थरो के शिवलिंग के पूजन का विधान विविध रूप में बताया गया है. जैसे मिट्टी एवं हिमलिंग का अभिषेक नहीं करना चाहिए. प्रत्यक्षतः संभव भी नहीं है. कारण यह है कि बर्फ एवं मिट्टी का बना शिवलिंग अभिषेक करते ही गल कर नष्ट हो जाएगा. सोने एवं चांदी के बने शिवलिंग पर दही नहीं चढ़ाना चाहिए. कारण यह है कि इससे डाई अमोनियम क्लोरो फास्फेट नामक हानि कारक गैस निकलती है. जैसा कि कहा है-

“मृत्तिका भूतो वा लिंगम हिम खंडं प्रति भूयताम. नाभिषेको कान्चंरूपम रजत नवनीतम खलु .”

सफ़ेद पत्थर के शिवलिंग पर सिन्दूर, स्फटिक के शिवलिंग पर घी, काले पत्थर अर्थात ग्रेनाईट के शिवलिंग पर हल्दी नहीं चढ़ाना चाहिए. अष्ट धातु के शिव लिंग पर रक्त नहीं चढ़ाना चाहिए.

अभिषेक के लिए जिस शिवलिंग को चुना गया है उसके लिए विहित एवं निर्दिष्ट पदार्थो से ही अभिषेक करना चाहिए. लेकिन देखने में आया है कि लोग लकीर के फकीर बने रह कर कही जो एक चीज़ देख लिए उसे ही सब जगह लागू मान लेते है. मै बिना नाम लिए यह बताना चाहूंगा कि अभी मात्र एक डेढ़ महीना पहले भारत सरकार के मंत्रिमंडल के वरिष्ठ मंत्री मुझसे रुद्राभिषेक के लिए संपर्क किये. मैंने उन्हें अभिषेक की औषधिया लिखवाई. लेकिन मैंने उसमें सुगंध, अष्टगंध एवं घी नहीं लिखा था. उन्होंने हंस कर कहा कि पंडित जी अभी आप को रुद्राभिषेक का पूरा ज्ञान नहीं है. आप सिर्फ ज्योतिष के अच्छे पंडित है. मैंने हामी भर दी. कारण यह था कि वह एक प्रतिष्ठा लब्ध उच्च स्तरीय व्यक्ति थे. उनकी बात को गलत कैसे कहू? तथा इतने बड़े आदमी से वाद विवाद करने से उनकी नाराज़गी ही मिलेगी. लेकिन इतना मैंने ज़रूर कह दिया कि आप का समय कुछ विपरीत प्रारम्भ हो गया है. दश जुलाई को उन्हें जेल हो गया. बेचारे तिहाड़ जेल में है.

शास्त्रों में जो बात लिखी गयी है उसे ध्यान पूर्वक एवं पूरा पूरा पढ़ना चाहिए. उसके बाद सोच विचार कर उसका पालन करना चाहिए. आधे अधूरे नहीं पढ़ने चाहिए. नहीं तो जिस तरह द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर की पूरी बात नहीं सुनी तथा केवल सुना कि “अश्वत्थामा मरो” और आगे की बात “नरो वा कुंजरो” नहीं सुने तथा इसीलिए शोक में उनके प्राण निकल गए. वही स्थिति हमारे साथ भी हो सकती है.

चाहे कुछ भी हो, रुद्राभिषेक का फल बहुत ही शीघ्र प्राप्त होता है. इसकी भूरि भूरि प्रशंसा की गयी है. पुराणों में तो इससे सम्बंधित अनेक कथाओं का विवरण प्राप्त होता है. यहाँ तक कि रावण ने अपने दशो सर काट कर उस रक्त से शिवलिंग का अभिषेक किया तथा सिरों को हवन की आग में झोंक दिया. तो वह त्रिलोक जयी हो गया. भष्मासुर ने शिव लिंग का अभिषेक अपनी आँखों के आंसुओ से किया तो वह भी भगवान के वरदान का पात्र बन गया. यह तो पौराणिक बातें हुई. वर्त मान में इससे लाभान्वित होने वाले लोगो की एक लम्बी फेहरिस्त है. इसको आज का चिकित्सा विज्ञान भी प्रामाणिक मानता है.

रुद्राष्टाध्यायी के वैदिक मंत्रो से इसके अभिषेक की परम्परा है. किन्तु ऐसा कोई प्रति बंध नहीं है. रावण कृत तांडव स्तोत्र से भी अभिषेक किया जा सकता है. केवल पुरुष सूक्त से भी अभिषेक हो सकता है. किसी भी मंत्र से अभिषेक किया जा सकता है. शास्त्रों में इसकी भरपूर स्वंत्रता दी गयी है. केवल अभिषेक सामग्री पर ध्यान देना आवश्यक होता है. जो विविध अभिषेक से सम्बंधित पुस्तकों में वर्णित रहती है.

वर्त्तमान समय में जब अंध विश्वास, ढोंग एवं पाखण्ड चरम सीमा पर है, अभिषेक एक ऐसा साधन है जिसे बहुत ही साधारण तरीके से पूरा किया जा सकता है. ध्यान यही रखना है कि सामग्री उचित हो. उचित सामग्री का होना जरूरी है. उचित सामग्री में से कोई सामग्री कम है तो कोई बात नहीं. किन्तु अनुचित सामग्री नहीं होनी चाहिए.

पंडित आर. के. राय

प्रयाग

9889649352

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