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पारद शिवलिंग एवं कुष्ठ रोग निवारण

वेद विज्ञान
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पारद शिवलिंग एवं कुष्ठ रोग निवारण
आप को शायद बात अच्छी तरह ज्ञात होगा क़ि यदि कोई पारे का एक कण भी निगल जाय तो वह तत्काल एक मिनट से भी कम समय में मल के रास्ते पेट से बाहर हो जाता है. पेट के अन्दर की कोई भी ग्रंथि उसे क्षण मात्र भी रोक नहीं पाती. आयुर्वेद में तीव्र विरेचक (Acute Laxative) के रूप में पारद योग का प्रयोग किया जाता है. किन्तु यदि अन्य विभिन्न अपथ्य खनिज पदार्थो के प्रयोग एवं उनके आहार नाल (Elementary Canal) में पाचन क्रिया (Digesting Multiplication) के उपरांत अवशोषण से शेष बचे पारे का गुर्दे से छन्नीकरण (Filter) नहीं होता है तो व्यक्ति कुष्ठ (Leprosy) रोग का मरीज़ हो जाता है. यह अनद्यतन चिकित्सा विज्ञान का प्रमाणित खोज है.
किन्तु ध्यान रहे पारा उग्र विषघ्न (Antibiotic) भी होता है. शरीर के अन्दर मौजूद अनेक घातक विषाणुओ को नष्ट भी करता है.
यदि कोई व्यक्ति किसी भी तरह के कुष्ठ रोग – गलित कुष्ठ, सफ़ेद कुष्ठ, वादी कुष्ठ, ग्रंथि कुष्ठ, उकवत, अपरस, एक्जीमा, संक्रामक खुजली, भगंदर तथा जीर्ण व्रण (Ulcer) या अर्बुद (Cancer) rog से पीड़ित हो तो उसे पारद शिवलिंग की उपासना अवश्य ही करनी चाहिए. इसके लिए वैदिक ग्रंथो में भष्माभिषेक एवं पञ्चघृताभिषेक का विधान किया गया है. भष्म अभिषेक का तात्पर्य राख से है. आज भी उज्जैन के महाकालेश्वर में महाकाल भगवान शिव का अभिषेक चिता की राख से ही होता है. ज़रा देखें-
“चिताभष्मा लेपो गरल मशनम दिक्पट धरो जटाधारी कंठे भुजगापति हारी पशुपतिः. कपाली भूतेशो भजति जगदीशैक पदवीम . भवानी त्वत्पानिग्रहण परिपाटी फलमिदम.”
आज के परिप्रेक्ष्य में चिता के भष्म का कोई औचित्य नहीं रह जाता है. कारण यह है क़ि आज कल शव का अग्निदाह कर्मकाण्ड के विधान से पूरा नहीं किया जा रहा है. इसलिए भष्म अभिषेक के लिए स्वतः ही भष्म निर्माण कर लेना चाहिए. इसके लिए लाल चन्दन, सफ़ेद चन्दन, चीड के लकड़ी का टुकड़ा, करायल, गूगल, लोबान, नारियल, काला तिल, भोजपत्र की छाल, हल्दी एवं घी यह सब बराबर वजन में लेकर एक जगह मिला लें. इस मिश्रण का जो वजन होवे उस वजन का दश गुना वजन नवग्रह की लकड़ी लेवे. नवग्रह की लकड़ी आसानी से बाज़ार में मिल जाती है. यदि न मिल पाए तो आम, पीपल, पलाश, उदुम्बर (गूलर), कुश, डूब (दुर्वा) खैर एवं शमी की लकड़ी बराबर वजन में एकत्र कर लेवे. तथा उसमें कपूर की मदद से आग लगा लेवे. जब आग पूरी तरह प्रज्ज्वलित हो जाय तो धीरे धीरे उसमे बनाया गया हवन का मिश्रण इस प्रकार डाले क़ि वह पूरा हवन सामग्री अच्छी तरह से जल जाय. फिर उसे अपने आप ठंडा होने देवे. प्रातः काल में पारद शिव लिंग को उस भष्म से खूब अच्छी तरह से रगड़ कर साफ़ कर ले. उसके बाद पारद शिवलिंग को साफ़ पानी से धोकर यथा स्थान विराज मान कर दे. फिर उस शिवलिंग को धुप, दीप एवं अगरबत्ती से पूजा कर के भगवान शिव की आरती कर ले. यही भगवान शिव का भष्माभिषेक है. जो व्यक्ति कुष्ठ रोग से पीड़ित हो वह शिवलिंग को रगड़ने के बाद गिरे हुए भष्म को समस्त संक्रमित जगहों पर आराम से पोत देवे.
इसमें कोई संदेह नहीं क़ि एक सौ आठवें दिन कुष्ठ रोग समूल नष्ट हो जाएगा. एक बात ध्यान रखें क़ि इस पूरी अवधि में रोगी व्यक्ति नियम संयम का पालन करते हुए, गरिष्ठ भोजन से परहेज करते हुए शुद्ध शाकाहारी आहार ही ग्रहण करे.
पञ्चघृताभिषेक में शिवलिंग पर भष्म पोतने के पहले पञ्चघृत अर्थात गाय का दूध, दही, घी, शहद एवं गंगा जल से शिवलिंग का अभिषेक अर्थात स्नान करा लेवे तब उपरोक्त विधि से भष्माभिषेक करे. यह पौराणिक वर्णन में तो मिलता ही है. चरक एवं शारंग धर संहिता में भी इसका विषद वर्णन प्राप्त होता है. आधुनिक चिकित्सा विज्ञान भी ऐसे भष्म को तीव्र विषघ्न मानता है.
यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में पांचवां एवं दशवाँ घर दोष युक्त हो तो उसे भी यह प्रयोग अवश्य करना चाहिए.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग
+919889649352
शुद्ध पारद शिवलिंग समस्त पाप हर लेता है.

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