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कर्म एवं भाग्य
एक महानुभाव ने मुझसे यह प्रश्न किया कि भाग्य पहले बना या कर्म? मैंने बताया कि भाग्य कर्म का फल है. जो प्राणी जैसा कर्म करता है उसे उसका फल मिलता है. वही फल भाग्य है. फिर उसने पूछा कि जब भाग्य में लिखा ही नहीं होगा तो प्राणी कैसे कर्म और क्या कर्म करेगा? कहा जाता है कि बिना ईश्वर की इच्छा के एक पत्ता भी नहीं हिलता है. तो बिना ईश्वर की आज्ञा के किसी को सुख या दुःख कैसे मिलेगा/ और यदि दुःख या सुख सब भगवान की इच्छा पर ही निर्भर है तो भाग्य में लिखा होकर ही क्या करेगा? भाग्य में सुख लिखा है और यदि भगवान नहीं चाहेगा तो भाग्य में लिखा होकर ही सुख नहीं मिल पायेगा. मैंने बताया कि जब कोई ग्राहक दुकान से सामान खरीदने जाता है तो वह सामान का भाव पूछता है. न कि बेचने वाले का. तथा वह ग्राहक सामान खरीदता है न कि दुकानदार को खरीदता है. किन्तु फिर भी सामान दुकानदार को ही देना पड़ता है. और हम पैसा भी दुकानदार को ही देते है. न कि सामान को. हम उस सामान का भाव भी उस दुकानदार से ही पूछते है न कि उस सामान से. हमारे पैसे के मुताबिक दुकानदार सामान का वजन निर्धारित करता है. उसकी गुणवता निर्धारित करता है. फिर वह सामान देता है. या हम सामान पसंद करते है. फिर दुकानदार से उसकी कीमत पूछते है. और फिर उस सामान के गुण एवं मात्रा के अनुसार कीमत अदा कर के सामान घर ले आते है. ठीक उसी प्रकार भगवान हमारे कर्मो की मात्रा एवं गुणवत्ता परखता है. फिर उसके मुताबिक उसका फल देता है. हम चाहे लाख कोशिस करें फल हमारे कर्मो का ही मिलेगा.
फिर उसने पूछा कि जब सब कुछ वही होगा जो भाग्य में लिखा है तो फिर कर्म क्यों करना? जो लिखा होगा वह होगा. मैंने बताया कि भाग्य में जो लिखा है या दूसरे शब्दों में जो विधाता ने जो लिख दिया है वह होकर ही रहेगा. चाहे कोई कुछ भी करे वह टल नहीं सकता. तो फिर उसने पूछा कि तो फिर कोई कोशिस क्यों करना? चुप चाप निठल्ला बन कर बैठे रहना ही अच्छा है. क्यों कोशिश करना? अखीर जब जो लिखा है वही होगा तो फिर क्यों कोई कर्म करना? मैंने बताया कि जो लिखा है वह होकर ही रहता है. भाग्य या दुर्भाग्य अपना प्रभाव बिल्कुल समय पर पूरी मात्रा में देते है. किन्तु हम उस भाग्य या दुर्भाग्य से अपने आप को बचा सकते है. जैसे ठीक दो पहर में भगवान सूर्य चिल चिलाती हुई गर्मी फैलाते है. भयंकर गर्मी से प्राणी त्राहि त्राहि करने लगता है. और फिर उस गर्मी से बचने के लिए या तो किसी पेड़ की छाया में जाता है. या अपनी सामर्थ्य के अनुसार वातानुकूलित घर में शरण लेता है. किन्तु उसके ऐसा करने से भगवान सूर्य की न तो गर्मी कम होती है या न तो भगवान सूर्य अस्त होते है. वह अपना काम पूरी तरह करते है. हम अपने प्रयत्न से उस गर्मी से छाया में या एयर कंडीसन में जा कर राहत पाते है. ठीक इसी प्रकार भाग्य या दुर्भाग्य अपना प्रभाव सही समय पर भर पूर देता है. किन्तु हम पूजा, पाठ, यज्ञ, यंत्र, मन्त्र तथा तंत्र अनुष्ठान दान आदि की छाया या एयर कंडीशन में उससे अपने आप को बचा लेते है. तथा जो प्रयत्न नहीं करता या छाया में नहीं जाता वह गर्मी से झुलस जाता है.
मै नाम नहीं प्रकट करना चाहता. उस व्यक्ति की भारत में विशेष प्रतिष्ठा है. तथा एक पढ़े लिखे संभ्रांत परिवार कुल से सम्बंधित है. किन्तु ईश्वर की दया से वह सज्जन बहुत ही प्रसन हुए. कारण यह था कि उनके एक संबंधी अपनी कुंडली दिखाने आये थे. मैंने कहा कि कुंडली अशुद्ध है. तो उन्होंने कहा कि इसका मतलब है आप भी दूसरी कुंडली बनाना चाहते है. ताकि आप भी इसकी कुछ दक्षिणा पा सकें? कितना दक्षिणा लेते है? क्रोध तो मुझे बहुत आया. एक फ़ौजी की खोपड़ी वैसे ही टेढ़ी होती है. किन्तु उनके सामाजिक स्तर एवं अपनी नौकरी को ध्यान में रखते हुए कहा कि आप चाहे लाख ही करोड़पती क्यों न हो एक ब्रह्मण की दक्षिणा देने की सामर्थ्य आप में नहीं है. जब सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र अपना राज पाट, बेटा, पत्नी एवं घर परिवार बेच कर भी ब्राह्मण विश्वामित्र की दक्षिणा नहीं दे पाये तो आप भला क्या देगें? मैंने कहा कि आप पूछना क्या चाहते है? तो उन्होंने कहा कि मै कुछ नहीं पूछना चाहता. यह मेरे भाई साहब है. यही आप की प्रसिद्धी से प्रभावित होकर अपना भविष्य जानने आये है. मै तो सीधा जानता हूँ कि जो भाग्य में लिखा है वह टल नहीं सकता. तथा दुर्भाग्य से नहीं बचा जा सकता.
किन्तु जब मैंने इसका विश्लेषण उन्हें बताया तो वह बहुत ही प्रभावित हुए.
अस्तु मैं यहाँ यह कहना चाहता हूँ कि आदमी को पहले यह जानना चाहिए कि उसे कष्ट क्या है. कुंडली की बारहों भावो का सम्यक अध्ययन कर के कष्ट का प्रकार पहले जानना चाहिए. तथा फिर उसके निराकरण का सम्यक उपाय करना चाहिए. भाग्य या दुर्भाग्य को बदला नहीं जा सकत किन्तु उसके अच्छे या बुरे प्रभाव से बचा जा सकता है. इसी लिए कहा गया है कि-
“ललाट पट्टे लिखिता विधात्रा षष्ठी दिने या अक्षर मालिका च. ताम जन्म पत्री प्रकटीम विधत्ते दीपो यथा वस्तु घनान्धकारे.”
अर्थात जन्म के छठे दिन विधाता ने ललाट में जो अक्षर लिख दिया उसे जन्म पत्री ठीक वैसे ही प्रकट कर देती है जैसे घने अन्धकार में पडी वस्तु को कोई दीपक प्रकट कर देता है.
पंडित आर. के राय
प्रयाग
+919889649352
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