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नारी- अबला या सबला

वेद विज्ञान
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आज की तेज रफ़्तार से भाग रही दुनिया को उसके रोग को दूर करने के लिए आयुर्वेद की औषधि नहीं चाहिए जो देर में प्रभाव देती है. बल्कि उन्हें एलोपैथ की वह दवा चाहिए जो लेते ही Acetic Salisillic Acid अर्थात डिस्प्रिन की टिकिया की तरह तत्काल दर्द से राहत दे. भले ही उसकी एसिडिटी बाद में गुर्दे को क्षति ग्रस्त कर दे. आज की दुनिया का नारा है कि भविष्य में भले ही लंबा एवं स्थायी सुख मिले किन्तु उसके लिए वर्त्तमान के क्षणिक सुख ही सही उस को दाव पर नहीं लगा सकते. ऐसी स्थिति में किस सुखद भविष्य की कल्पना की जा सकती है?
रोग का निदान क्यों किया जाता है? इसलिए ताकि रोग के वास्तविक कारण का पता लगाया जा सके. एवं उसके अनुसार उसकी चिकित्सा की जा सके. लेकिन यदि रोग के कारण को जान कर भी उसकी दवा न की जाय तो इससे बड़ा दुर्बुद्धि का उदाहरण और भला क्या हो सकता है? आप खुद ही देखिये. आज औरत को सबल बनाने की मुहीम छेड़ी जा रही है. भले ही यह एक सियासी हथकंडा हो. किन्तु यह एक मुद्दा बन तो गया है. आखीर क्यों? वैदिक काल की दुर्गा, सरस्वती, लोपामुद्रा, तथा मध्य काल की झांसी की रानी, रजिया सुलतान तथा वर्त्तमान काल की इंदिरा गाँधी, पंडित किरण वेदी, प्रतिभा पाटिल तो पुरुषो से भी बहुत आगे सशक्त है. फिर यह नारी सशक्ति करण कैसा?
सबसे बड़ी बात तो यह है कि कोई भी व्यक्ति जब किसी विशेष अधिकार को प्राप्त करता है तो वह उसी समय से निर्बल होने लगता है जब उसे उसके दुरुपयोग की तरफ उन्मुख होना पड़ता है. नारी कभी अबला नहीं है. वह चाहे तो किसी पुरुष को जन्म ही न लेने दे. वह उसे गर्भ में ही नष्ट कर सकती है. चाहे पुत्र कितना भी दुष्ट और पापाचारी क्यों न हो, मा को गाली भी देने के पहले उसे मा के संबोधन से ही संबोधित करेगा. किन्तु इसके लिए नारी को अपने उस विशेषाधिकार को सुरक्षित, समन्वित, संतुलित एवं मर्यादित रखना पडेगा जिसे उसने प्रकृति, समाज एवं जन्म से पाया है. ज़रा संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास के कथन को देखें-
“अबला कच भूषन भूरि क्षुधा”
राम चरित मानस के उत्तर काण्ड में कलियुग वर्णन में स्पष्ट बताया गया है कि कलियुग में औरतो का सबसे बड़ा सुन्दर आभूषण क्या होगा? यह ऊपर की पंक्ति में देखें- “शरीर पर जितना कम से कम वस्त्र रहे – अबला कच भूषन” क्या आज इसे आप प्रत्यक्ष नहीं देख रहे है? सौन्दर्य, लज्जा, दया, सहन शक्ति एवं वात्सल्य ये सब ऐसी संपत्तिया है जो केवल औरतो को ही प्राप्त है किसी पुरुष को नहीं. ये संपत्तिया धन, संतान, मान मर्यादा, शिक्षा एवं परिवार की सदस्यता जो पुरुष एवं औरत दोनों को प्राप्त है उसके अलावा है. अब इस संपदा को कोई अनावश्यक रूप से अनर्गल कार्य में या निन्दित कार्य में खर्च करे तो क्या परिणाम मिल सकता है? चाहे कोई कितना भी समृद्ध क्यों न हो यदि उसकी सारी संपदा खर्च हो जाय वह भी निन्दित एवं अनावश्यक स्थान पर तो उसे तो भीखमंगा होना ही पडेगा. यदि कोई बादशाह निरंकुश होकर अपनी ताक़त का गलत इस्तेमाल करना शुरू कर दे तो जनता उसे मार डालती है. अब आज अगर नारी अपनी शक्ति या अनमोल धरोहर को दुर्भावना से प्रेरित होकर या मज़बूरी का आड़ देकर उसे बिखेरती चले तो कब तक उसे कृत्रिम शक्ति देकर ताक़त वर बनाए रखा जा सकता है? कालगर्ल के व्यवसाय में किस चीज की विक्री होती है? कौन नहीं जानता है कि होटल, दुकान, आफिस एवं वायुयान में एयरहोस्टस की नौकरी में केवल सुन्दर एवं आकर्षक नयन नक्स वाली लड़कियों को क्यों रखा जाता है. क्यों नहीं कुरूप, काली, छोटी एवं अंग्रेजी न जानने वाली लड़कियों को ऐसी नौकरिया दी जाती है? इस हकीकत को सब जानते है. ऐसी जगहों पर अपनी शक्ति को बिखेर कर नारी तो अशक्त एवं अबला होगी ही.
पुरुष कभी नारी नहीं हो सकता. नारी का विलोम या उलटा क्या होता है? “अनारी” . अनारी का मतलब क्या होता है? “मूरख”. तो नारी मूरख नहीं बल्कि विद्वान एवं दूरगामी परिणाम का सहज ही आंकलन करने में समर्थ प्राणी है. यदि यह अपनी वास्तविक शक्ति को संभाल कर रखे. तो कोई भी इसे छूने का साहस नहीं कर सकता.
और सच्चाई यह भी है कि ” सिखाई बुद्धि ढाई घड़ी ही रहती है”. जब तक नारी अपने खुद के बल पर स्वाभाविक रूप से शक्ति संपन्न नहीं होगी. अपनी शक्ति को विकेन्द्रित होने से नहीं बचायेगी. तथा अपनी उस शक्ति का प्रयोग ह़र तरह से सोच विचार कर भले बुरे का विश्लेषण कर नहीं करेगी. तो जबरदस्ती दी गयी शक्ति क्षण भर में ही हवा हो जायेगी.
यह कहा किसी को अधिकार दिया गया है कि जब कोई चाहे किसी को सशक्त बना दे या किसी को सबल या दुर्बल बना दे? और यदि ऐसा अधिकार संसार में किसी के पास है तो वह तो जब चाहे किसी को मन मर्जी के मुताबिक सबल या निर्बल बना दे. यह एक गलत धारणा है. धन संपत्ति कोई छीन सकता है. लेकिन साहस, बुद्धि, विद्या, संवेदना, विचार, भाव एवं शक्ति जो स्वाभाविक रूप से प्राप्त हुई है उसे कोई नहीं छीन सकता या चुरा सकता है. आज प्रधान मंत्री की कुर्सी पांच साल बाद छीनी जा सकती है. किन्तु अब्दुल कलाम की अद्भुत योग्यता जो उन्हें अपने बल पर प्राप्त हुई है उसे कोई कभी नहीं छीन सकता है.
पुरुष चाहे कितना भी सबल क्यों न हो वह एक दिन के लिए भी गर्भ धारण नहीं कर सकता है. और अधिक क्या कहा जाय? नारी के सशक्ति करण की मुहीम उसे निर्बल एवं पराधीन बनाने का एक षडयंत्र ही मात्र है. और कुछ नहीं. नारी को खुद ही आगे आकर उसे कहना चाहिए कि ऐ निर्बल कापुरुष तुम एक नपुंसक एवं दृढ आत्म बल से हीन मुझे क्या सशक्त बनाओगे? दृढ़ता पूर्वक नारी को आगे आकर हुंकार भर कर कहना चाहिए –
“अगस्त्य ऋषि के पेशाब से निकलने के कारण महान विस्तार वाला समुद्र भी खारा ही होता है. उसका पानी कभी कोई नहीं पीता. ऐ पुरुष तुम भी मेरे पेशाब ही हो तथा मैंने तुम्हे अपने पेशाब के ही रास्ते से पैदा किया है. तुम मुझे क्या सबल बनाओगे?”
किन्तु इसके लिए नारी को अपनी शक्ति एवं मान मर्यादा को तथा प्रकृति प्रदत्त अपनी विशेषता को संभाल कर, संजोकर, शुचिता पूर्वक प्रयोग करना होगा. वरना ध्यान रहे चोर के पाँव नहीं होते. कमजोर लाठी से दुश्मन नहीं मारा जा सकता तथा टूटी ढाल से रक्षा नहीं हो सकती.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग

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