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भौमवती अमावश्या- एक अनहोनी की सूचना

वेद विज्ञान
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भौमवती अमावश्या- एक अनहोनी की सूचना
आश्विने भौमावास्याम जायते खलु पार्वती. विविध विपदाम धनक्षयं पापाचारम वर्धते.
आश्विन के महीने में यदि अमावस्या मंगल वार के दिन पड़े तो रोग, धन नाश एवं पाप पूर्ण आचरण की वृद्धि होती है. मंगल को भूमिपुत्र कहा गया है. वास्तव में मंगल ग्रह की बनावट एवं वहां का पर्यावरण तथा जलवायु बहुत ज्यादा धरती से मिलती है. इसका अनुमोदन आज का खगोल विज्ञानं भी अपने विविध उपग्रहों के खोज द्वारा सिद्ध कर चुका है. अभी एक बात यहाँ बता देना ज़रूरी है कि जिस दिन जिस ग्रह की चौघडिया सूर्योदय के समय होती है. उस दिन को उस ग्रह के नाम से जाना जाता है. मंगलवार के दिन सूर्योदय के समय मंगल ग्रह की चौघडिया होती है. हमारे सौरमंडल में मात्र सात ही ग्रह है. ये सात ग्रह सात महाद्वीपों के अधिपति है. अर्थात प्रत्येक ग्रह किसी न किसी महाद्वीप के बहुत ही करीब है. प्रत्येक ग्रह से एक विशेष तरह की रोशनी का विकिरण नियमित रूप से होता रहता है. इन्ही सातो किरणों को अंग्रेजी में VIBGYOR या हिंदी में बैनीआहपनाला कहा गया है.
V – अर्थात VIOLET या बैगनी
I – अर्थात INDIGO या आसमानी
B – अर्थात- BLUE या नीला
G – अर्थात GREEN या हरा
Y – अर्थात YELLOW या पीला
O – अर्थात Orange या नारंगी
R – अर्थात- RED या लाल
इन्ही सात किरणों को निरंतर शोधित करने के लिए विधाता ने सात ऋषियों को इन सात महाद्वीपों में नियुक्त किया. ताकि अपने हवन, पूजन, विविध अनुष्ठान एवं यज्ञ से इन किरणों को इनकी मूल अवस्था में बनाए रखें. जिन्हें हम सप्तर्षि के नाम से जानते है. बरसात होने पर जब पानी की बूंदें उन्ही किरणों से टकराकर परावर्तित होती है तो सतरंगी इन्द्रधनुष (Rain Bow) आकाश में दिखाई पड़ता है. पुराणों में जो चौदह भुवन बताये गए है उनमें सात धरती के ऊपर तथा सात धरती के नीचे है. धरती के ऊपर वाले है- भू, भुवः, स्वः, तप, मह, जन, एवं सत्य. एवं धरती के नीचे वाले है – अतल, वितल, सुतल तलातल, महातल, रसातल एवं पाताल. ये सातो किरणें जब परस्पर मिल जाती है तो ये श्वेत रंग की दिखाई देने लगती है. इन सातो किरणों में अपनी अलग अलग विशेषताएं होती है, प्रत्येक ग्रह से निकलने वाली किरण अपनी चुम्बकत्व शक्ति के सहारे एक दूसरे को उनकी निर्दिष्ट कक्ष्या (Orbit) में दृढ़ता पूर्वक बाँध कर रखती है. इसीलिए प्रत्येक ग्रह एक दूसरे से निश्चित दूरी पर नियमित रूप से गति करता है. जब कभी किसी ग्रह पर इन किरणों में से कोई एक किरण बिल्कुल नहीं पड़ती है तो उस ग्रह पर जिस पर किरण नहीं पड़ रही है वहां पर उस किरण से होने वाला लाभ या प्रभाव नहीं मिल पाता है. चन्द्रमा धरती के बिल्कुल पास का ग्रह है. इसके पीछे एक पौराणिक कहावत यह आती है कि चन्द्रमा को भगवान शिव के सर पर स्थान मिला है. भगवान शिव का निवास स्थान कैलाश पर्वत है. कैलाश पर्वत धरती पर है. इसलिए चन्द्रमा भी धरती के सटे हुए रहता है. चन्द्रमा को भगवान के सर पर स्थान क्यों मिला? इसके पीछे भी एक पौराणिक कहावत है कि जब समुद्र मंथन हुआ तो उसमें से चौदह रत्न निकले थे-
“श्री मणि रम्भा वारुणी अमिय शंख गजराज.
कल्प वृक्ष धनु धेनु शशि धनवंतरी विष वाजी.

अर्थात श्री या लक्ष्मी, मणि या कौस्तुभमणि, रम्भा (कुछ लोग इसे इन्द्रलोक की परी कहते है तथा कुछ लोग इसे केला कहते है) वारुणी या मदिरा, अमिय या अमृत, शंख या पञ्चजन्य शंख, गजराज या ऐरावत, कल्पवृक्ष, धनु अर्थात धनुष, धेनु या कामधेनु शशि या चन्द्रमा, धनवंतरी, विष या ज़हर तथा वाजी या घोड़ा. इसमें जो ज़हर निकला उसकी भीषण ज्वाला से समूचा ब्रह्माण्ड जलने लगा. सब ने मिलकर भगवान शिव से प्रार्थना किया तो उन्होंने उस ज़हर को शंख में ड़ाल कर उसे पी लिया. लेकिन उसकी भीषण ज्वाला से वह भी तिलमिला गए. इसलिए भगवान शिव ने उसे अपने कंठ से नीचे नहीं जाने दिया. इससे उनका कंठ जल कर नीला पड़ गया और उनका नाम नीलकंठ पड़ गया. तब उस भीषण ज्वाला से राहत पाने के लिए सब देवताओं ने चन्द्रमा की शीतलता एवं उसके औषधीय गुणों को ध्यान में रखते हुए उनके सर पर तिरछा अर्थात गर्दन एवं सिर के बीचो बीच स्थापित कर दिया.
इस प्रकार चन्द्रमा धरती से बिल्कुल नज़दीक का ग्रह है. मंगल ग्रह के बारे में यह सर्व विदित है कि यह एक उग्र ग्रह है. इस ग्रह की उग्रता एवं भीषणता एवं ज्वलनशीलता को शांत करने के लिए चन्द्रमा की औषधीय शीतल किरणें अति आवश्यक होती है. और जब यही किरणें धरती पर नहीं पड़ती है तो विनाश कारी स्थिति उत्पन्न हो जाती है. यह परिणाम केवल मंगलवार को पड़ने वाली अमावस्या को ही नहीं बल्कि शनिवासरी अमावस्या को भी होता है. शेष दिन जैसे शुक्र, वृहस्पति, बुध आदि शीतल एवं शांत ग्रह है, रविवार को पड़ने वाली अमावस्या से अग्नि भय होता है. शनिवार को पड़ने वाली अमावस्या से अज्ञात रोग एवं ह्त्या अपहरण आदि की घटनाएं जन्म लेती है. मंगल वार को पड़ने वाली अमावस्या से भयंकर मार काट, जन हानि, भूकंप, बाढ़ विभीषिका एवं अग्नि तांडव होता है. क्योकि शनिवार, मंगलवार एवं रविवार आदि को जिस दिन भी अमावस्या पड़ेगी उस दिन चन्द्रमा कि किरण तो धरती पर तो पड़ने से रही. इसीलिए उस दिन जिस ग्रह का दिन होता है उसका पूरा पूरा प्रभाव धरती पर पड़ता है. इसीलिए शुभ दिनों में पड़ने वाली अमावस्या का फल बहुत ही उत्तम बताया गया है. उसमें भी सोमवती अर्थात सोमवार या चन्द्रमा के दिन पड़ने वाली अमावस्या का फल सबसे उत्तम बताया गया है. सोमवती अमावस होने पर अच्छी वर्षा होती है तथा बाढ़ आदि का भय नहीं होता है.
इस बार कि अमावस्या बड़ी विचित्र है. एक तो मंगल वासरी अमावस, दूसरे उस दिन चित्रा नक्षत्र अर्थात कन्या राशि तथा तीसरे उसी राशि पर शनि. यह एक बहुत ही भयावह स्थिति है.
अस्तु, धरती के विविध भूभागो पर तो जो प्रभाव पडेगा वह पडेगा ही. जिन व्यक्तियों का जन्म हस्त नक्षत्र के अंतिम दो चरणों एवं चित्रा नक्षत्र के प्रथम दो चरणों में हुआ है उनके लिए यह भौम वासरी अमावस बहुत ही भारी पड़ेगी.
कृपया शिवपूजन, रुद्राभिषेक, यामपूजा एवं सूर्याभिधान आदि के द्वारा सुरक्षित हो जाएँ तो अच्छा रहेगा.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग

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