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लिखो! निकम्मे लेखक. परिवार के बोझ——!

वेद विज्ञान
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सोचिये और लिखिए
समाज, परिवार, देश, मानवता, संसार, ज्ञान, वैराग्य —– खूब सोचिये. रात दिन माथा पच्ची कीजिये. सोच सोच कर उसे कागज़ पर उकेरिये. विविध लेखन मंच पर उसे प्रकाशित कीजिये. विविध भाषाओं का प्रयोग कीजिये. विविध अलंकृत लेखन शैली का आश्रय लीजिये. समस्त अलंकार, समास, छंद एवं संधि विच्छेद का भरपूर प्रयोग कीजिये. लेखन विधा के लिए अनुशंसित समस्त पर्याय एवं सर्गोपसर्ग से अपनी लेखनी को समृद्ध कर अपनी भावना एवं वेदना को वाक्य वद्ध कर पाठक वृन्द के सम्मुख प्रस्तुत कर दीजिये. क्योकि न तो आप के पास दूसरा कोई काम है और न ही आप दूसरा कुछ कर सकते है. केवल कागज काला पीला करेगे. वह भी सार्थक नहीं. घर वाले भी प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से कोसेगें.
जी हाँ. लेखक क्या करता है? कागज ही काला पीला करता है. लिख कर क्या करता है? बहुत हुआ तो कुछ दिन जनता कुछ शोर मचाएगी. धीरे धीरे सब भूल जायेगें. सब कुछ पुनः पहले की तरह सामान्य हो जाएगा. क्या लिखते है? हर्षद मेहता ने शेयर घोटाला किया. हो हल्ला हुआ. खूब समाचार पत्रों में बढ़ चढ़ कर प्रकाशित हुआ. आखिर क्या हुआ? बोफोर्स तोप घोटाला हुआ. समाचार पत्र की सुर्ख़ियों में बहुत दिन तक यह समाचार छाया रहा. अंत में क्या हुआ? तेलगी स्टाम्प घोटाला हुआ. टी वी एवं अखबार वालो ने खूब मिर्च मसाला लगा कर छापा. हश्र क्या हुआ? लालू का चारा घोटाला, मंत्री कल्प नाथ राय का चीनी घोटाला, सुरेश कलमानी का खेल घोटाला, ए राजा का दूर संचार घोटाला, तेल घोटाला, रेल घोटाला क्या क्या घोटाला. क्या हुआ? आगे क्या होगा.? लिखिए. और जोर शोर से लिखिए.
अरे महानुभाव कुछ नहीं होगा. यह लिखने का व्यर्थ धंधा छोडिये. कोई सार्थक धंधा कीजिये. जैसा कि आज कल बड़े बड़े आदमी कर रहे है. ह्त्या कीजिये. घोटाला कीजिये. कुछ नहीं होता है. यदि ह्त्या के जुर्म में आप जेल भी चले गए तो पहले तो फांसी होगी नहीं. उस पर यदि जेलर से सांठ गाँठ कर लेगें तो जेल में भी सारी सुविधायें आप को मिलती रहेगी. देखिये अतीक अहमद, अफ़ज़ल अंसारी, अफ़ज़ल गुरु, कनिमोरी, ए राजा, प्रदीप मिश्र, ये सब तो बाहर से ज्यादा सुखी जेल में है. टी वी, टेलीफोन, नौकर, शराब, गद्दे, तोशक, गाडी सब कुछ तो मिला ही है. जिससे जब चाहे मिल लो. तबियत खराब होने का बहाना कर के थोड़ा बाहर का भी सैर कर लो. लिखो. कितना लिखोगे?
कुछ सार्थक धंधा कीजिये. परिवार भी सुखी रहेगा. समाज में इज्ज़त भी रहेगी.
लेकिन एक बात ज़रूर ध्यान में रखियेगा, घोटाला करना हो तो करोडो अरबो में कीजिएगा. चोरो गिरह कट्टो की तरह चोरी मत कीजिएगा. नहीं तो जो आप चोरी करेगें वह सब तो थाने में मुंशी जी ही ले लेगें. फिर आप को क्या मिलेगा. यह ठीक है कि ले दे कर मुंशी जी आप को छोड़ देगें और आप फिर वही काम करने लगेगें. लेकिन उससे फ़ायदा क्या होगा.? घोटाला बड़ा कीजिये. क्या होगा? कुछ नहीं होने वाला है. पहले आप को लोवर कोर्ट में ले जाया जाएगा. चार पांच साल वहा मुक़द्दमा चलेगा. फिर वहा से कोई कमिटी गठित होगी. चार पांच साल में कमेटी अपना रिपोर्ट देगी. उसके बाद हाई कोर्ट में मुक़द्दमा चलेगा. वहा भी दस साल से कम नहीं लगना है. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट में मुक़द्दमा चलेगा. दस साल से कम वहा भी नहीं लगने वाला है. फांसी होने वाली नहीं है. इस प्रकार लोवर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लगभग तीस साल हो गए. आजीवन कारावास चौदह पंद्रह साल का होता है. और अंत में आप की आजीवन कारावास की सजा पहले ही पूरी हो चुकी है बल्कि उससे ज्यादा ही आप सजा काट चुके है. और न्यायालय के आदेश से आप तत्काल बरी हो जायेगे. लिख कर के आप क्या पायेगे? इतना पैसा आप कमा पायेगे? क्या हुआ? नौकरी कर के पैसा कमाया या घोटाला कर के. आखीर चौदह पंद्रह साल की नौकरी (भले ही जेल में रहा हो) के बाद अरबो रुपया घर में तो आ गया. लिखो. देखें क्या और कितना लिखते हो. अरे भाई! इज्ज़त की चाहे कितनी भी बड़ी गठरी बाँध कर और यदि पैसा नहीं है तो कही भी घूम आओ, कोई चाय की दुकान वाला चाय के लिए भी नहीं पूछेगा. और यदि पाकिट में पैसा है तो चाहे भले ही इज्ज़त न हो ह़र दुकान दार आप को इज्ज़त से बुला कर बिठाएगा.
अब लिखते रहो. घर का भी आटा गीला करते रहो. कुछ नहीं होता है. सूर दास की काली कमली चढ़े न दूजो रंग”
लेकिन क्या किया जाय? आप तो आदत से मज़बूर है. आप लिखेगे ही. क्योकि आप भोजन करते है जीवित रहने के लिए. पेट भरने के लिए नहीं. इसी लिए आप संतुलित एवं सीमित भोजन की ही आवश्यकता महसूस करते है. पेट तो चमड़े की थैली है. खूब ठूसिये. यह तो रोज ही फैलता चला जाएगा. बात भी सही है. पेट तो सूअर भी अपना रोज ही भर लेती है. लेकिन उसके पेट भरने एवं आप के पेट भरने में बहुत ही अंतर है. पैसा तो एक शरीर का व्यापार करने वाली वैश्या भी खूब कमा लेती है. किन्तु उसके पैसा कमाने में और आप के पैसा कमाने में बहुत अंतर है. बिल्कुल सही है.
इसी में एक बात ध्यान में आ गयी. एक साधू जी महाराज नदी में स्नान कर रहे थे. उन्हें एक बिच्छू पानी की धारा में बहता हुआ दिखाई दिया. वह बार बार डूबता एवं ऊपर आता था. साधुजी महाराज ने उस बिच्छू को अपने हाथ पर उठा लिया. बिच्छू ने बड़े जोर से डंक मारा. भयंकर पीड़ा से साधुजी तड़प उठे. हाथ हिल गया. बिच्छू फिर पानी में गिर गया. फिर साधू ने उस बिच्छू को हथेली पर उठा लिया. फिर उस बिच्छू ने डंक मारा. हाथ हिला. बिच्छू फिर पानी में गिर गया. फिर साधू ने उस बिच्छू को हाथ में उठा लिया. एक आदमी साधू की इस हरक़त को बड़े ही गौर से देख रहा था, उससे नहीं रहा गया तो उसने साधू से कहा कि अरे मूरख साधू, क्यों उस बिच्छू को बचा रहे हो. वह बार बार डंक मार रहा है. और तुम उसे फिर उठा ले रहे हो. छोड़ दो उसे, बह जाने दो. साधू ने कहा कि यह इतना छोटा प्राणी अपने डंक मारने की आदत नहीं छोड़ता है तो मै इतना बड़ा प्राणी उसमें भी साधू मैं अपना परोपकार की आदत कैसे छोड़ दू? इतना छोटा जीव अपनी आदत नहीं छोड़ रहा है तो मै अपनी आदत क्यों छोडू.
यदि चोर, ठग, अत्याचारी, हत्यारा एवं विधर्मी अपनी आदत नहीं छोड़ रहा है. तो मै लेखक अपनी लिखने की आदत क्यों छोडू? वे सब अपना काम कर रहे है. मै अपना काम कर रहा हूँ.
“तुम्हें गैरो से कब फुरसत हम अपने गम से कब खाली.
चलो अब हो चुका मिलना न हम खाली न तुम खाली.

कारण यह है कि-
“आशियाना बनाना मेरा काम है कोई बिज़ली गिराए तो मै क्या करू?”
क्या करू? मुझे भी कोई काम धंधा नहीं है. बस लिखने बैठ जाता हूँ. तथा आप भी पढ़ने बैठ जाते है. चलिए हम दोनों ही एक ही थैली के चट्टे बट्टे है.
पंडित आर. के राय
प्रयाग

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