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चमड़े की नाक या स्टील की?

वेद विज्ञान
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आज पितृपक्ष के इस शुचिता पूर्ण क्रिया करने के लिए प्रशस्त काल में मेरे कुंद फौजी दिमाग के ऊबड़ खाबड़ रास्ते में अनायास ही एक चितकबरे लकड़ बग्घे के रूप में एक विचार जबरदस्ती लुढ़कते हुए आ खडा हुआ है. पता नहीं मेरे लडके मेरे मरने के बाद मुझे पिंड दान करेगे या नहीं. इस बात को मै बहुत सोचता रहा. बहुत ही गंभीर सवाल था. इसे बड़े स्तर के सामाजिक लोग गवेष नात्मक शैली में विचारते है. मंत्री एवं प्रथम श्रेणी के उच्च स्तर के विचारवान लोग इस निष्कर्ष पर पहुंचे है कि क्यों न जीते जी ही अपना श्राद्ध एवं क्रिया कर्म कर लिया जाय. इस श्रेणी में मै अपने सूबे के मुख्य मंत्री माननीया मायावती जी को बहुत ही विद्वान् एवं दूरादर्शिनी मानता हूँ. उन्होंने जगह जगह पर अपनी मूर्ती स्थापित करवा कर उस पर माला फूल चढ़वा कर अपनी मरनोपरांत की भी अंतिम इच्छा पूरी कर ली है. अनेक तालाब, नगर एवं जिले का नाम करण भी अपने नाम पर करवा लिया है. अब मै तो किसी सूबे का मुख्य मंत्री नहीं हूँ. अपनी ताक़त तो उतनी है नहीं. तो मैंने भी एक विचार बनाया है. मेरे फौजी प्रांगन में एक शौचालय का निर्माण होने जा रहा है. उसके नीव का पत्थर तो मैंने पूजा पाठ कर के डलवा दिया है. तथा भगवान से प्रार्थना किया हूँ कि मेरे फौज का शौचादि क्रिया निर्बाध गति से चलता रहे. अब उसके उदघाटन के लिए मैंने अपने एक अधिकारी से संपर्क किया तो वह मेरे ऊपर बिगड़ कर खडा हो गया. बहुत ही भला बुरा कहा, बोला कि मै लैट्रिन एवं बाथरूम का उदघाटन करूंगा? मुझे बहुत ही खुशी हुई. मैंने अपने अधिकारी से प्रार्थना किया कि मै इसका उदघाटन तो कर सकता हूँ. किन्तु एक शर्त है. इस शौचालय का नाम करण मेरे नाम पर होगा. किन्तु अंत में मुझे निराशा ही हाथ लगी. अधिकारी ने बताया कि फौज में किसी जीवित व्यक्ति के नाम पर कोई स्मारक नहीं बनाया जा सकता. खैर अभी भी मेरी कोशिश जारी है. मैंने सोच लिया है कि पैसे का प्रबंध कर के अपने घर एक नया शौचालय बनवा कर उसका नाम करण अपने नाम पर करूंगा.
माता दुर्गा ने तो शेर की सवारी की थी. यह वाहन अब पुराना हो गया है. इसी लिए माननीया मुख्य मंत्री सुश्री मायावती जी ने सीधे हाथी की सवारी का प्रबंध कर लिया है. शेर तो बहुत ही छोटा जानवर है. असल में दुर्गा जी तो किसी सूबे की मुख्य मंत्री थी नहीं. इसीलिए उन्होंने सवारी के लिए इतना छोटा जानवर चुना. लेकिन अब किसी सूबे का मुख्यमंत्री इतने छोटे जानवर पर कैसे चढ़ेगा. बेइज्ज़ती हो जायेगी. लोग कहेगे कि इतने छोटे जानवर पर तो मुख्यमंत्री न रहते हुए दुर्गा ही चढ़ती थी. फिर मुख्य मंत्री भी अगर इसी जानवर पर सवारी करती है तो क्या रह जाएगा? बस तो हाथी ठीक है. जी हां, आप माने या न माने, अब उनको हाथी पर सवार कर के प्रस्तुत करने का फरमान बहुत शीघ्र ही जारी होने वाला है.
लेकिन बात फिर वही रह गयी. आखीर मै किस सवारी का प्रबंध करू? शेर और हाथी तो फंस गए. लेकिन कोई बात नहीं. श्रीमान गर्दभराज मजे हुए पुराने वाहन है. भोले भाले, सीधे सादे समस्त छल कपट से दूर सिर नवा कर आज्ञा का पालन करने वाले चिंतातुर अति गंभीर तर्कशील एवं दूरदर्शी प्राणी है. एक गदहे के ऊपर अगर दो गदहे का भी बोझ लाद दें बेचारे कुछ नहीं बोलने वाले. वैसे तो एक गदहा रोज़ ही कई गदहो के पुराने कपडे का बोझ धोबी घाट तक पहुंचाता है. एक बात ज़रूर है कि इनके भोजन की भी व्यवस्था मुझे खुद ही करनी पड़ेगी. शेर तो एक ही दहाड़ में पता नहीं कितने नीरीह एवं असहाय एवं अशक्त जानवरो का शिकार कर लेगा. हाथी महोदय भी अपने लम्बे सूंड से दूर से ही अपना भोजन झपट लेगे. छोटे मोटे जानवर पास तक नहीं फटकेगे. इसीलिए तो बहुत सोच समझ कर सुश्री मायावती जी ने हाथी को अपनी सवारी बनाने का फैसला लिया है. आराम से एक जगह खडा होकर अपने भोजन को खीच लेता है.
एक बार अक़बर बादशाह ने किसी गरीब पर खुश होकर उसे अपना शाही हाथी इनाम में दे दिया. अब वह गरीब बेचारा बहुत ही परेशान हुआ. उसे तो अपने भोजन के लाले पड़े थे. उस भारी भरकम काया वाले हाथी का पेट वह कैसे भरता? वह बीरबल से मिला. बीरबल ने उसे राय दिया कि उस हाथी के गले में एक पट्टी लिख कर बाँध दो कि मेरे पेट भरने के लिए भोजन दो. मै शाही हाथी हूँ. तथा उसके पीठ पर एक नगाड़ा बाँध दो ताकि लोगो की नज़र सहज ही उस पर पड़ सके. उसने वैसा ही किया. तथा हाथी को भीड़ भाड़ वाले बाज़ार में छोड़ दिया. हाथी को देख कर लोग भागने लगे. डर के मारे उस हाथी पर कोई डंडा भी नहीं उठा सकता था. क्यों कि वह शाही हाथी था. तब एक दरबारी ने जा कर बादशाह से शिकायत की कि हे जहापनाह! शाही हाथी की बहुत ही बेइज्ज़ती हो रही है. वह भीख मांग रहा है. बादशाह को अपनी भूल का अहसास हुआ. उसने तुरंत उस गरीब को बुलाकर हाथी के बदले में बहुत सारा धन दे दिया. देखा आप ने हाथी का कमाल! किसी को मारा नहीं. किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया. बदले में भारी भरकम दौलत सहज ही दे गया. वास्तव में मेरे सूबे की मुख्य मंत्री सुश्री मायावती बहुत ही नेक, इमानदार, सूझ बूझ वाली एवं दूर गामी परिणाम के प्रति सचेत है.
चलिए मेरे लिए परम पूज्य, प्रातः समर ने, स्वनाम धन्य सर्वश्री विशाखदत्त ही वरेण्य है. क्योंकि यदि वह मुझे नहीं ढोयेगे तो कम से कम मुझ जैसे गदहो के पुराने कपडे तो ढो कर धोबी घाट तक पहुचायेगे.
लेकिन बहुत बड़ी विडम्बना है. गरीब, निस्सहाय एवं अशक्त लोगो को किसी तरह नहीं चलने दिया जाएगा. एक बार भगवान भोले नाथ जगत जननी माता पार्वती के साथ अपने वृषभ राज नंदी जी को लेकर दुनिया के भ्रमण पर निकले. आगे आगे भगवान शिव, बीच में माता पार्वती तथा पीछे नंदी. जब वे लोग एक गाव में घुसे तो लोगो ने धिक्कारना शुरू कर दिया. कहने लगे कि यह बुड्ढा बहुत ही ढीठ है. इतनी नाज़ुक औरत को तपती धुप में पैदल घसीट रहा है. बैल खाली चल रहा है. यह नहीं करता कि उस को बैल पर चढ़ा दे. गाव से बाहर निकल कर भगवान शिव ने पार्वती को नंदी पर बिठा दिया. अगले गाव में प्रवेश किये. लोगो ने देखा. लोग कहने लगे कि देखो यह कितना औरत वसी है. सुन्दर औरत के वस् में हो कर खुद पैदल चल रहा है. तथा उसे बैल पर चढ़ा रखा है. गाव से बाहर निकल कर भगवान शिव ने पार्वती को बैल से उतार दिया. तथा खुद ही बैल पर चढ़ गए. अगले गाव में प्रवेश करते ही लोग फिर ताना मारना शुरू कर दिये, यह बुड्ढा इतनी सुन्दर औरत को मार डालना चाहता है. आगे भगवान शिव ने पार्वती को भी अपने साथ बैल पर बिठा लिया. आगे चलने पर फिर लोगो ने कहना शुरू किया कि यह बुड्ढा बैल की जान मारने पर तुला है. दोनों ही इस बेचारे नीरीह बैल के पीठ पर राक्षस की तरह चढ़ बैठे है. आगे जाकर भगवान शिव ने कहा कि हे पार्वती अब क्या किया जाय?
मै भी यही सोच कर परेशान हूँ. सुश्री मायावती जी तो मुख्य मंत्री है. वह जीते जी अपना अंतिम संस्कार कर रही है. अपना श्राद्ध करवा रही है. अपना पिंड दान करवा रही है. अपनी मूर्तियाँ बनवा रही है. उस पर अपने भक्तो से फूल माला चढ़वा रही है. करोडो रुपये के हार उनके गले की शोभा बढ़ा रहे है.
सही बात है. बड़े लोग यदि किसी गंदे नाले की सफाई करते है तो उनकी वाह वाही होती है. किन्तु यदि एक सफाई वाला नाले की सफाई करता है तो हम उससे अपनी नाक दबा कर चलते है.
ऐसा क्यों न हो? बड़े लोगो की नाक स्टील की होती है. उसको काटने के लिए जितना ही रगडोगे उसमें उतनी ही चमक आयेगी. छोटे लोगो की नाक चमड़े की होती है. ज्यो ही रगडोगे वह कट जायेगी.
मुझे भी अब डर लगने लगा है मै भी अब नहीं रगडूगा. नहीं तो एक तो मै फौजी. दूसरे नकटा. और ज्यादा भद पिट जायेगी. मेरा श्राद्ध यदि मेरी संतान नहीं करती है तो कम से कम ब्राह्मनो के ऊपर बेकार ढेर सारा अनाज एवं पैसा तो बेकार में दान दक्षिणा में खर्च नहीं होगा. आधुनिक जमाने की इस चटक दार दुनिया के किसी और नेक काम में खर्च होगा.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग

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