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आख़िरी लेख
अगर वैरी हवा के झोंके जबरदस्ती उड़ाकर दूर न ले जायं तो पेड़ से पत्ते पुराने जर्जर होने के बावजूद भी टूटने पर पेड़ के पाँव में ही मानो यह कहते हुए दम तोड़ते है कि
“हम छोड़ चले है महफ़िल को गर याद आये तो मत रोना.
जीवन के सफ़र में तन्हाई ज़िंदा नहि हमको छोड़ेगी
गर याद मेरी सपना बन के तडफाये कभी तो मत रोना.
शायद यह मेरा अंतिम लेख होगा. जैसा कि आप लोगो ने देखा होगा मैंने किसी की भी क्रिया प्रतिक्रया का कोई उत्तर नहीं दिया. मुझे यह भी नहीं मालूम कितने लोग मेरे लेख को पढ़े या न पढ़े. कुछ एक महानुभाव मुझे टेलीफोन पर अपने उदगार प्रशंशा भरे शब्दों में दिये. चलिए जिन लोगो ने मेरी वाह वाही नहीं की उनके बदले में मैं अपने आप अपनी पीठ थप थपा लेता हूँ.
जैसा कि आप को यह ज्ञात होगा, मैं भारतीय सेना का सक्रिय सेवारत कर्म चारी हूँ. और आपको फौज की परिभाषा भी संभवतः भली भांति विदित होगी. यदि नहीं ज्ञात है तो मै बता देता हूँ.
“देश के कोने कोने से चुन कर आये हुए मूर्खो का वह समूह जो आबादी से दूर और बर्बादी के करीब रहता है फौज कहलाता है.”
बस आंधी की तरह आया और तूफ़ान की तरह गया. खैर,
“तुम मुझे चाहो बुला सकते हो किसी वक़्त
मै वो गया वक़्त नहीं जो फिर कभी आ न सकूं.”
इसी के साथ
पंडित आर. के. राय
प्रयाग
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