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चमत्कारी सिद्ध दुर्गा यन्त्र निर्माण विधि

वेद विज्ञान
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नवरात्री एवं यन्त्र पूजा
दुर्गा पूजा यद्यपि एक विशुद्ध सात्विक साधना है. किन्तु यदि इसे वैष्णवी के रूप में पूजा जाय तभी. अन्यथा यह एक शाक्त पूजा है. इसके विषय में एक पौराणिक कथा आयी हुई है. सेतु बाँध के समय भगवान राम प्रत्येक उपाय करके थक गए. यहाँ तक क़ि उन्होंने समुद्र की भी प्रार्थना की. समुद्र को उन्होंने आपने कुल गुरु होने की भी दुहाई दी. लेकिन सफल नहीं हुए. तब उनके कुल देवता सूर्य ने अपने पुत्र सुग्रीव के माध्यम से यह सन्देश भेजा क़ि समुद्र तो तैयार है. किन्तु वह कह रहा है की तीनो लोको के स्वामी का भार सह सकने में वह असमर्थ है. तब भगवान राम ने अपने परम प्रिय सेवक हनुमान जी को यह आदेश दिया क़ि वह विभवारण्य (वर्त्तमान में विजयनगर या विजयवाड़ा) जाकर आदर एवं सम्मान के साथ महर्षि कात्यायन को लिवा लायें. हनुमान जी ने जाकर महर्षि कात्यायन को भगवान राम के निवेदन को निवेदित किया,. महर्षि रामेश्वरम (प्राचीन नाम यामकोट) पहुंचे. भगवान राम से उन्होंने यह बताया क़ि हे राम! माता जानकी अभी लंका में है. देवी शक्ती स्वयं उन्ही के पास है. भगवान राम बोले क़ि माता कात्यायनी तो आप की आराध्या है. आप ने कृत्या यन्त्र से पूजा करके यह आशीर्वाद प्राप्त कर रखा है क़ि आप जब भी उनका आवाहन करेगें वह अवश्य ही पधारेगी. इसी लिए उन्होंने अपना नाम भी कात्यायनी रख लिया है. महर्षि ने हल्की मुस्कान के साथ बड़े ही आदर पूर्वक तत्काल यन्त्र का निर्माण किया. तथा भगवान राम से उसकी पूजा करने को कहा. भगवान राम ने इधर उस यन्त्र की पूजा प्रारम्भ की. उधर महाशक्ति माता जानकी से मुस्करा कर बोली क़ि हे जानकी मुझे थोड़ी देर के लिए तुमसे दूर होना पडेगा. जगज्जननी जानकी जी बड़े ही रहस्यमयी मुद्रा में मुस्करा कर बोली क़ि हे देवी! मारीच वध के समय भी तुम मुझे छोड़ कर गयी तो परिणाम आप को ज्ञात है ही. आज भी आप छोड़ कर जा रही है. मेरी आराधना में कोई कमी है क्या? माता जी बोली क़ि हे जानकी! मंत्र, यन्त्र एवं तंत्र तीन (सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण) से ही (मेरे) शरीर का निर्माण होता है.इसे आप मुझसे ज्यादा अच्छी तरह से जानती है. अभी मंत्र (राम), यन्त्र (महर्षि) एवं तंत्र (लक्षमण) तीनो एकत्र हो गए है. अब आप जो कहें. और इस प्रकार महाशक्ति माता जानकी से विदा लेकर तत्काल सागर तट पर पहुँच गयी. उनके वहा से हटते ही रावण अशोक वाटिका में सीता माता को धमकाने पहुँच गया. अस्तु उसके बाद इधर ज्यो ही भगवान राम ने करतारी यन्त्र की पूजा समाप्त की , माता कात्यायनी वहा पहुँच गयी और उसके बाद, तीन तरह से शक्ति विभाजित हो गयी. प्रथम सागर में ताकि वह त्रिलोकीनाथ के द्वारा पुल पर आरूढ़ होने पर उनका भार सहन कर सके, दूसरा पत्थरो में ताकि सब एक दूसरे को परस्पर शक्ति पूर्वक चिपकाए रहे तथा तीसरा रहस्यमयी शक्तियों से परिपूर्ण वे सारे राक्षस जो रावण के द्वारा प्रहरी के तौर पर सागर में अदृश्य रूप से नियुक्त थे उनके द्वारा पहुंचाए जाने वाले बाधा से वानर सेना लड़ सके.
कारगिल युद्ध के उपरांत जब मै कशमीर घाटी से वापस आ रहा था तो हमें जहाज ने जम्मू में ही छोड़ दिया. वहा जम्मू विश्व विद्यालय के प्राच्य विद्या संस्थान के विभागाध्यक्ष मेरे बहुत ही प्रिय व्यक्ति थे. उनके साथ मुझे जम्मू विश्व विद्यालय के पुस्तकालय को देखने का मौक़ा मिला. मैंने वहा पर एक मुसलमान लेखक जिसका नाम उस पुस्तक पर मुश्ताक उल नजीर लिखा था उनके द्वारा लिखित एक बहुत ही जर्जर एवं जीर्ण शीर्ण अवस्था में पुस्तक देखा जिसका नाम “तिलस्माती दुर्गा” उर्दू में लिखा था. मुझे बहुत ही अचरज हुआ. यह देख कर क़ि दुर्गा हरूफ तो हिंदी का है. और किताब उर्दू में है. मै उत्सुकता पूर्वक उस किताब को सरसरी निगाह से देखना शुरू किया. खैर उसमें जो दुर्गा यन्त्र का तिलस्म या रहस्य मुझे देखने को मिला उससे मुझे यह विश्वास हो गया क़ि दुर्गा का यन्त्र बहुत ही चमत्कारिक एवं शक्तिशाली होने के कारण संभवतः मुसलमान लोगो में भी बहुत ही लोक प्रिय एवं आदरणीय था. उस पुस्तक की लगभग संपूर्ण विषय वस्तु दक्षिण भारतीय ग्रन्थ “चंडिका वैराट्यम” , आयुर्वेद के ऱस रसायन एवं मार्कनडेय पुराण के देवी रहस्य वर्णन से मिलती है.
किन्तु इसे बनाने का प्रकार थोड़ा मंहगा है. महँगा मै अपनी आर्थिक स्थिति को देखते हुए कह रहा हूँ. बहुत ही आर्थिक रूप से संपन्न लोग है जिनके लिए यह यन्त्र बनवाना बहुत आसान है. तो ऐसे लोग कृपया मेरे इस कथन को अन्यथा न लें. थोड़ा जटिल भी है. जैसे जिस व्यक्ति को इस यन्त्र की आवश्यकता हो वह अपने दोनों हाथो के अंगूठे को छोड़ कर शेष आठो अंगुलियों की लम्बाई जोड़ ले. उसमें सोलह से भाग दे कर एक स्थान पर नोट कर ले. फिर आठ से भाग देकर उसे भी नोट कर ले. ध्यान रहे क़ि भजनफल पूर्णांक में होना चाहिए. अर्थात यदि भजनफल 4 .6 हो तो वह 5 होगा. या 4 .2 होगा तब भी 5 ही होगा. किन्तु यदि 3 .9 होगा तो चार ही होगा. अब दोनों भजनफलो को जोड़ कर आधा कर ले. जो लम्बाई हो उतने ही आकार का आयताकार शुद्ध ताम्बे का प्लेट ले लेवे. फिर उसे फिटकरी, नमक एवं नौसादर प्रत्येक आधे तोले के वजन में लेकर किसी ताम्बे के ही बर्तन में घोल बनाकर उसमें उसे डाल देवे. 28 बार माता का नवार्णव् मंत्र पढ़े. उसके बाद उस प्लेट को बाहर निकाल ले. उसे सूखे नीम के पत्ते से रगड़ रगड़ कर पोंछ दे. ध्यान रहे किसी भी हालत में आप उसे अर्थात उस प्लेट को नंगे हाथ से न स्पर्श न करें. उसके बाद उसे सफ़ेद साफ़ सूती कपडे से पोंछ डालें. नए कपडे से न पोंछे. कारण यह है क़ि नए कपडे को चमक एवं मुलायम दार बनाने के लिए कार्बोसेटाडाक्सीन का प्रयोग होता है. तथा नमक या सोडियम क्लोराइड का सोडियम एवं क्लोरिन उसके साथ रासायनिक क्रिया कर के डेक्लोमेथासेनाईड बनाता है जो ताम्बे के प्लेट को क्युप्रिकफेनाक्सीन ट्राईहाईड्राईड या क्युप्रोजिलेट बना देता है. इसीलिए आयुर्वेद (भाव विलास प्रकरण) में भी कहा गया है क़ि
“शुचितो शितासितेनोपवीक्ष्यो नवनीतोपवर्जितो वा.
गुणोषधीम क्षयं यातो खलु ताम्रस्य तिक्त संयुगा.

अर्थात ताम्बे का गुण एवं रूप विषाक्त हो जाता है. इस प्रकार शोधित इस ताम्र पत्र को माजू फल एक, एक पके केले का छिलका, घिसा हुआ सफ़ेद चन्दन एक चम्मच एवं केशर एक चम्मच सब पीस कूट कर पराश्रुत जल (Distilled Water) में घोल बना ले. उस घोल में इस प्लेट को डाल देवे. तथा फिर एक बार 28 नवार्णव् मंत्र का जाप करे. जाप पूरा होने पर उस प्लेट को बाहर निकाल ले. उसे धुप में सुखाये. जब अच्छी तरह से सूख जाय तो उस पर कात्यायनी यन्त्र को किसी सुनार के यहाँ से खुदवा ले. घर लाकर उसे साफ़ पानी में गोरोचन, केशर, नवरत्न कल्पामृत ऱस, अश्व गंध युक्त गाय का घी एवं वसंत कुसुमाकर घोल कर डाल दे. और 54 बार वही मन्त्र पढ़े. पढ़ने के बाद उस प्लेट को निकाले. उसे साफ़ एवं सफ़ेद कपडे से पोंछ कर वही मंत्र पढ़ते हुए 21 बार उसके चारो तरफ धुप एवं दीप दिखाए. फूल माला चढ़ा कर माता जी की आरती पढ़ते हुए कम से कम सवा किलो सूखे फल का भोग लगा कर उसे गैर ब्राह्मणों को बाँट दे. और उसके बाद उस प्लेट को सर से लगाकर अपने पास रख ले.
यह यन्त्र अति विकट प्रभाव दिखाने वाला, कठिन कार्य को पूरा करने वाला, समस्त विघ्न बाधाओं का नाश करने वाला एवं दुर्धर्ष रोग का समूल नाश करने वाला है.
इसमें एक ही बात का ध्यान रखना है. जिसके दाहिने हाथ की हथेली के निचले हिस्से पर एक पंक्ति में पांच से ज्यादा रेखाएं हो वह कात्यायनी यन्त्र न धारण करे. जिसके दाहिने हाथ की अंगुलियों में से तीन में शंख का निशान हो वह इसे न धारण करे. जिसका जन्म अश्लेशा, मघा, ज्येष्ठा, मूल, रेवती एवं अश्विनी नक्षत्रो में हुआ हो वह इसे न धारण करे. जिसके 25 से कम या 32 से ज्यादा दांत हो वह न धारण करे. हानि तो नहीं होगी. किन्तु किसी लाभ की कोई विशेष संभावना नहीं होती है.झूठे लाभ की आशा में धन एवं समय का अपव्यय न करें.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग
9889649352

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