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भगवान, भविष्यफल और आप

वेद विज्ञान
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भगवान, भविष्यफल और आप
एक बार एक व्यक्ति बड़े ही मनोयोग एवं विश्वास पूर्ण तल्लीनता के साथ एक पीपल के पेड़ के नीचे भगवान की तपस्या कर रहा था. एक दिन महर्षि नारद उधर से गुजरे. वह तपस्वी आदर के साथ नारद जी की पूजा अर्चना की. कुछ देर बाद जब नारद जी चलने को हुए. तब उस व्यक्ति ने पूछा क़ि हे ऋषिवर आप अब कहा जायेगें? नारद जी बोले क़ि मै विष्णु लोक जाउंगा. वहा सत्संगति एवं धर्म चर्चा में भाग लूंगा. सब देवी देवता वहा इकट्ठा होगें. उस व्यक्ति ने बड़े ही दीन भाव में पूछा क़ि हे दयालु ऋषिवर क्या आप मेरी एक छोटी सी विनती स्वीकार करेंगें? नारद जी बोले क़ि बताओ. उसने कहा क़ि भगवान से आप यह पूछिएगा क़ि वह मुझे दर्शन कब देगें? नारद जी बोले क़ि बस इतनी ही बात है? ठीक है मै पूछ लूंगा. नारद जी वहा से विदा होकर बैकुंठ लोक पहुंचे. जब सत्संगति समाप्त हो गयी. सब देवी देवता लोग चले गए तब भगवान ने नारद जी से पूछा ” क्या बात है नारद? क्यों रुके हो? कोई समस्या है क्या?” नारद जी ने निवेदन किया क़ि हे प्रभु! मै उस व्यक्ति के बारे में पूछना चाहता हों जो आप की तपस्या एवं पूजा बहुत ही श्रद्धा, विश्वास एवं तल्लीनता से बहुत दिनों से कर रहा है. मै मात्र यह पूछना चाहता हूँ क़ि आप का दर्शन उसे कब तक मिलेगा.? भगवान थोड़ी देर तक चुप रहे. कुछ देर आँखें बंद किये रहे. फिर थोड़ी देर बाद आँखें खोल कर बोले क़ि हे नारद! इस तपस्या के प्रभाव से मै उसे उस पीपल के पेड़ में जितने पत्ते है उतने हजार साल बाद दर्शन अवश्य दूंगा. नारद जी अवाक रह गए. उनकी बुद्धी चकरा गयी. वह सोचने लगे क़ि उस व्यक्ति की उम्र तो बहुत ही कम है. वह तो उतने दिनों तक जावित ही नहीं बचेगा. फिर वह दर्शन क्या खाक पायेगा? मन मार कर नारद जी वापस लौट पड़े. एक बार तो नारद जी ने सोचा क़ि वह रास्ता ही बदल दें. उधर जाए ही नहीं. नहीं तो वह व्यक्ति पूछेगा. फिर मै किस मुंह से उसको क्या जवाब दूंगा. कैसे कहूंगा क़ि तुम्हारे कई जन्म लेने के बाद भी पता नहीं कब भगवान दर्शन देगें. फिर भी यह सोच कर क़ि वह आदमी मेरा इंतज़ार करता रह जाएगा. चलो सच्चाई बता देते है. और उससे कह देगें क़ि हे भाई! अब तुम यह तपस्या छोडू. इससे कोई लाभ नहीं मिलाने वाला है. नारद जी को देख कर वह व्यक्ति श्रद्धा एवं प्रेम से विह्वल हो कर नारद जी की भली भाँती पूजा अर्चना किया. और अंत में बड़ी उत्कंठा से अपना सवाल पूछा. नारद जी बोले क़ि हे तपस्वी! बहुत ही कड़वी सच्चाई बताने जा रहा हूँ, संभवतः तुम्हें बहुत ही तीव्र आघात पहुंचेगा. आदमी बोला क़ि क्या भगवान ने दर्शन देने से इनकार कर दिया? नारद जी बोले क़ि मै क्या बताऊँ? उन्होंने कहा है क़ि पीपल के पेड़ में जितने पत्ते है उतने हज़ार साल बाद दर्शन दूंगा. इतना सुनते ही क़ि “भगवान दर्शन अवश्य देगें भले ही कितने भी जन्म बाद दें” वह व्यक्ति और ज्यादा भाव विह्वल होकर झूम झूम कर नाचने एवं भगवान की प्रार्थना में तल्लीन हो गया. खुशी में नाचते हुए वह कहने लगा क़ि चलो कभी तो भगवान ने दर्शन देने की बात स्वीकार कर ली. इस जन्म में न सही किसी और ही जन्म में सही. तब तक नारद जी देखते है क़ि गरुड़ पर सवार भगवान विष्णु वहा पधार गए. नारद जी भौंचक्का होकर भगवान से बोले क़ि हे भगवान आप ने तो बोला था क़ि आप हज़ारो साल बाद दर्शन देगें. और आप मेरे पीछे पीछे ही पहुँच गए. क्या आप की ज़बान का कोई भरोसा नहीं है? भगवान बोले क़ि हे नारद जिस प्रकार यह भक्त पहले तपस्या और अनुष्ठान कर रहा था. वह एकांगी एवं नीरस था. अभी वह प्रेम में विह्वल एवं भाव विभोर होकर मेरी तपस्या में लग गया है. इसकी पूजा एवं तपस्या का भाव् एवं रूप बदल गया. इसलिए मुझे उसकी तपस्या की उच्चता के कारण बहुत मज़बूर होकर यहाँ आना पड़ गया. नारद जी लम्बी श्वांस लेकर बोले “भगवान भगत के वश में.”
लेकिन इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं क़ि जिस तरह ऊपर तपस्वी ने अपनी तपस्या एवं पूजा पाठ के व्यंजन में नाच गाने एवं भजन कीर्तन का अतिरिक्त तड़का लगा कर अपनी भक्ति का स्वरुप बड़ा कर लिया उसी तरह आज के भक्त लोग अब प्रचलित लड्डू के आकार को हजार गुना बढ़ाकर भगवान का भोग लगाते है ताकि भगवान हजार गुना जल्दी प्रसन्न हो जाएँ.
तीन गुणों (सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण) से युक्त भगवान की अराधना से तीनो ताप या कष्ट (दैहिक, दैविक एवं भौतिक) को दूर करने के लिए हमें भी तीनो (मनसा, वाचा एवं कर्मणा) तरह से प्रस्तुत करना चाहिए. जैसे मनसा अर्थात भक्ति, श्रद्धा, विश्वास, प्रेम एवं तल्लीनता, वाचा अर्थात शुद्ध मंत्रो एवं प्रार्थना का उच्चारण तथा कर्मणा अर्थात आसन, प्राणायाम एवं व्यायाम. केवल दो कुंतल का लड्डू चढाने से पूजा संपन्न नहीं हो जाती. जब तक उपर्युक्त तीनो तत्वों का समन्वित संतुलन नहीं होगा, पूजा, अर्चना या जप तप अनुष्ठान आदि पूरा नहीं हो सकता. क्योकि यदि भारी भरकम लड्डू चढाने से भगवान प्रसन होने को होते तो दुनिया में भगवान केवल धनिकों के ही होकर रह जाते. यदि केवल मंत्र जाप से सारी शक्ति मिलने को होती तो C. D. एवं Cassette तथा ध्वनि प्रसारण यन्त्र (Loud Speaker) आदि कभी नहीं टूटते, खराब होते या उनका नाश होता. क्योकि ये सब रात दिन मंत्र एवं प्रार्थना बजाते रहते है. तथा यदि केवल आसन, प्राणायाम या व्यायाम से भगवान वश में होने को होते तो सर्कस एवं मदारी में काम करने वाले नट जो अपने शरीर को विविध आकार प्रकार में मोड़ तोड़ कर पेश करते है अपने वश में कर लेते. इसलिए जितना आवश्यक पूजा के लिए शुद्ध सामग्री प्रस्तुत करना है. उतना ही आवश्यक वाणी (मंत्र एवं प्रार्थना) की शुद्धता है. तथा उतना ही आवश्यक मन, चित्त, बुद्धि एवं विचार तथा विवेक को केन्द्रित, सुदृढ़ एवं समर्पित बनाना है.
ऊपर की समस्त प्रक्रिया को कर्म कहते है. जैसा क़ि मै अपने पूर्व के लेखो में यह स्पष्ट कर चुका हूँ क़ि विधि का विधान मिटता नहीं है. किन्तु हम अपने आप को उस दुर्भाग्य से बचा सकते है. या अपनी अच्छी भाग्य को खराब कर सकते है. (देखें मेरा लेख “कर्म बड़ा या भाग्य”). इसी को ध्यान में रखते हुए संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ने राम चरित मानस में लिखा है क़ि-‘कर्म प्रधान विश्व करि राखा. जो जस करिय सो तस फल चाखा.” अर्थात कर्म कीजिये और अपने भाग्य (सौभाग्य या दुर्भाग्य?) के भोगोपभोग की प्रकृति को बदल डालिए.
परिक्षा कक्ष से बाहर आने पर परिक्षार्थियो के तीन रूप दिखाई देते है. एक तो वे जो बिलकुल आश्वस्त होते है क़ि उन्हें शत प्रतिशत सफलता प्राप्त होगी. दूसरे वे होते है जो दुविधा में होते है क़ि पता नहीं परिणाम क्या होगा? तीसरे वे होते है जो आश्वस्त होते है क़ि उन्हें किसी भी मूल्य पर सफल नहीं होना है. ठीक उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति अपने किये कर्मो के परिणाम के प्रति आश्वस्त होता है. इसी प्रसंग के सन्दर्भ में योगिराज भगवान श्री कृष्ण ने वृहत्त्रयी “श्रीमद्भागावत गीता में कहा है क़ि “कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” कारण यह है क़ि यदि आप ने कर्म (सत्कर्म या दुष्कर्म?) किया है तो आप को उसके विषय के बारे में क्या सोचना? अब आगे के कर्त्तव्य के बारे में विचार करो. कुछ गलत किये हो तो उसके परिमार्जन के बारे में सोचो. उस बीते हुए के बारे में मत सोचो. क्योकि आप ने अपने कर्मो के द्वारा तो अपना भविष्यफल निर्धारित ही कर दिया है. अब उस फल को देखने से क्या लाभ? हां, यदि उससे भविष्य के लिए कुछ सीख लेनी है तो अपने भविष्य फल को देखने के लिए वेद-नेत्र (ज्योतिष) का आश्रय लें. जो प्रकृति, जीव एवं विकार के नैसर्गिक रूप से पूर्व निर्धारित आनुपातिक संयोग एवं वियोग की समग्र गणना को सुरक्षित रखने के कारण समृद्ध है. चर्म-चक्षु से संकलित दृष्यमूलक विवरण भावी कर्म की रूप रेखा को भौतिकतावादी आवरण से संवृत्त एवं संक्रमित कर देते है. क्योकि एक स्वयं व्याधि ग्रस्त चिकित्सक एक व्याधि को निर्मूल करने के साथ ही शरीर में एक दूसरे व्याधि का बीजारोपण कर देता है. चर्म चक्षु की परिधि से परे सार्वभौम सत्ता के अधिपति की चतुर्दिक सुरक्षित अभिरक्षा में प्रश्रय प्राप्त हमारे कर्मो का फल जीव सत्ता के दर्पण में प्रतिबिम्बित होते ही हमें अपनी स्थिति एवं अस्तित्व का प्रगल्भ ज्ञान प्रदान कर देता है. यदि उसे देखने का साहस जुटा सकते हो तो देखें. भगवान, भविष्यफल एवं आप तीनो की स्थिति पूर्णतः स्पष्ट हो जायेगी.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग

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