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गोमेद पितृ एवं कुल दोष नाशक रत्न है.

वेद विज्ञान
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महाराजा गाधि के पुत्र विश्वरथ जो बाद में विश्वामित्र के नाम से जाने गए, एक बार शिकार के लिए जंगल में गए. वहा से नजदीक ही ब्रह्मर्षि वशिष्ठ का आश्रम था. राजपुत्र विश्वरथ अपने साम्राज्य में जंगल में तपस्वी वशिष्ठ का हाल चाल जानने आश्रम पहुंचे. उनके साथ में उनके अनुचर और सेना थी. महर्षि वशिष्ठ ने राजपुत्र क़ी खूब आवभगत क़ी. फिर समाचार पूछा. उसके बाद पूछा कि राजपुत्र क्या खाना पसंद करेगें. राजा ने बताया कि उनके साथ उनकी सेना भी है. वे अकेले कैसे खाना खा सकते है. महर्षि वशिष्ठ ने कहा कि सब व्यवस्था हो जायेगी. राजपुत्र ने महर्षि क़ी तापोशक्ति क़ी परीक्षा लेने हेतु कहा कि हम राज परिवार से सम्बंधित है. हम तो छप्पन प्रकार के भोग खाते है. क्या यहाँ वह सब उपलब्ध हो सकता है? महर्षि ने कहा कि हे राजपुत्र! महाराजा गाधि के साम्राज्य में उनकी धर्मनिष्ठा के कारण तपस्वियों के पास इतनी शक्ति है कि वह राज परिवार के लिए कुछ भी उपलब्ध करा सकते है. आप लोग आचमन करें एवं आसन पर बैठें. विश्वामित्र ने कहा कि हे तपस्वी एक बार सोच लो. यदि छप्पन प्रकार के भोग नहीं मिले तो अवमानना के फलस्वरूप आप क़ी गर्दन तक काटी जा सकती है. वशिष्ठ जी ने मंद मुस्कान के साथ कहा कि राज परिवार के लिए गर्दन कटाना बहुत छोटी बात है. आप निश्चिन्त होकर आसन ग्रहण करें. समस्त अनुचरो एवं सेना के साथ राजा भोजन करने के लिए बैठ गए. वशिष्ठ जी ने अपनी दैवी शक्ति संपन्न कामधेनु क़ी पुत्री नंदिनी गाय क़ी तरफ संकेत किया. और सोने क़ी थाल में दैवी स्वाद एवं सुगंध से संपन्न छप्पन प्रकार के व्यंजन सबके सम्मुख उपस्थित हो गया. उस मधुर भोजन से समस्त सेना तृप्त हो गयी. विश्वामित्र आश्चर्य चकित हो कुछ देर तक मौन रहे. उसके बाद भोजन से निवृत्त होने के बाद वशिष्ठ जी से कहा कि हे तपोनिधान! यह धेनु अद्वितीय शक्ति संपन्न एक विलक्षण गाय है. इसे राजा के पास होना चाहिए. इसकी आप को आवश्यकता नहीं है. इस गाय को हम ले जा रहे है. वशिष्ठ जी के लाख समझाने पर भी विश्वामित्र नहीं माने. और जोर जबरदस्ती उस गाय को हाँक कर ले चले. गाय भी रम्भा रही थी, वह जा नहीं रही थी. राजा के सैनिक उसे घसीटने लगे. जिससे गाय के खुर का कुछ हिस्सा टूट गया तथा उसकी नाक से खून बहने लगा. खून क़ी कुछ बूंदें उस खुर के टूटे हिस्से पर भी गिर पडा. इधर महर्षि वशिष्ठ लम्बी गर्म श्वास लेते हुए मूर्छित होकर गिर पड़े. वह उस टूटे खुर एवं उस पर गिरे रक्त क़ी बूंदों को देख कर बिलखते रहे. इधर विश्वामित्र ज्यो ही गाय को लेकर अपने राज्य में प्रवेश किये, सहश्रार्जुन ने युद्ध में महाराजा गाधि को हराकर एवं उनके समूचे परिवार को बंदी बनाकर घसीटते हुए अपने राज्य को चल दिया. उसने गाय को भी घसीट कर ले जाने का आदेश दे दिया. इधर जब मैत्रावरुण को इस बात का पता चला वह शीघ्रता पूर्वक सहश्रार्जुन के पास पहुंचे. मैत्रावरुण तपोनिष्ठ ऊर्ध्वरेता देवर्षि थे. उसे देख कर सहश्रार्जुन डर गया. मैत्रावरुण ने उसे आदेश दिया कि तुमने गाधि को बंदी बना लिया. कोई बात नहीं. उनका सारा धन, सम्पत्ती एवं साम्राज्य अधिकृत कर लिया. कोई बात नहीं. किन्तु तूने नंदिनी को घसीटा यह सबसे बड़ा पाप तुम से हो गया है. अभी भी यदि तुम अपनी भलाई चाहते हो तो अविलम्ब नंदिनी को मुक्त करो. तथा सादर इसे ऋषि वशिष्ठ के पास पहुँचाओ. सहश्रार्जुन वशिष्ठ के पास नहीं जा सकता था. कारण यह था कि महाराजा गाधि क़ी दूसरी पत्नी सरस्वती के पुत्र यमदग्नि थे. जिनके पुत्र परशुराम जी थे. सरस्वती एवं अरुंधती दोनों ही सगी बहने थी. तथा अरुंधती का विवाह वशिष्ठ से हुआ था. यही कारण था कि सहश्रार्जुन वशिष्ठ के पास नहीं जा सकता था. मैत्रावरुण ने कहा कि हे सहश्रार्जुन! तुम्हारा कोई दोष नहीं है. तुम्हारी जन्म नक्षत्र से ठीक पहले नक्षत्र में वक्री राहु आ गया है. अब तुम्हारी बुद्धि यदि मारी गयी है तो यह स्वाभाविक ही है. तुम्हारे सर्वनाश को कोई नहीं रोक सकता है. यही कारण है कि तुम तपोनिष्ठ वशिष्ठ के पास जाने से मना कर रहे हो. सहश्रार्जुन ने नंदिनी को लाकर गाधि के राज महल के पास छोड़ दिया. लेकिन विश्वामित्र तथा उसके पिता गाधि को कारागार में ही रखा. मैत्रावरुण लौट आये. इधर जब कैलाश से वापस आने पर परशुराम ने अपने पिता एवं भाई के बंदी होने का समाचार पाया तो वह आग बबूला हो गए. वह महल वापस न आकर सीधे मद्र देश पर चढ़ाई कर दिये. वहा उन्होंने अति क्रोध कर के सहश्रार्जुन का शीश काट लिया तथा सबको मुक्त कराया. किन्तु जब उनको पता चला कि नंदिनी के अपहरण जैसा घोर पाप हो चुका है. तो वह नंदिनी क़ी बहुत भांति से पूजा कर के तथा पुरा राज परिवार निराहार रह कर शीश नवाए नंदिनी को आगे कर के महर्षि वशिष्ठ के आश्रम पहुंचे. तथा बहुभांति पूजा प्रार्थना कर के ऋषिवर को मनाया. वशिष्ठ जी ने कहा कि हे परशुराम! तुम मनुष्य नहीं हो. तुम्हारे आचरण मानवी नहीं है. तुम देव हो. हमने विश्वामित्र को तुम्हारे कहने से क्षमा कर दिया. किन्तु उस देवधेनु नंदिनी के अपमान एवं कष्ट का क्या होगा? परशुराम के साथ समूचे राजपरिवार ने भूमि पर लोट लोट कर, बहुभांति पूजा प्रार्थना कर नंदिनी को प्रसन्न एवं संतुष्ट किया. ब्रह्मर्षि वशिष्ठ ने कहा कि हे परशुराम! मै भविष्य के गर्भ में देख रहा हूँ. यद्यपि तुम्हे सब कुछ ज्ञात है. फिर भी मै यह बताना चाहूंगा कि यदि यह राजपरिवार नंदिनी के टूटे रक्तरंजित खुर को सिर से लगा कर उसे अपने पास रखें तो बहुत ही अनहोनी उग्र दुर्घटनाओ से बचा जा सकता है. उसके बाद उस खुर के टुकडे को नंदिनी से अनुमोदित करा कर महर्षि वशिष्ठ ने उसे महाराजा गाधि को दे दिया. वही खुर आगे चलाकर “गोमेद” या Ziricon रत्न के नाम से जाना गया.
गोमेद वास्तव में डिक्लोफेनाफ्थेलिन कार्बाईड होता है. इसमें कार्बन एवं क्लोरिन क़ी मात्रा बहुत ज्यादा होती है. यह किरणों को परावर्तित नहीं करता है. बल्कि अवशोषित कर लेता है. राहु ग्रह के कर्कटपुच्छ या बेट्राथियान किरणों को पुंजीभूत कर उसे अवशोषित कर लेता है. किरणों के ज्यादा उग्र होने पर यह टूटकर बिखर जाता है. यह राहू ग्रह के दोष, केमद्रुम नामक अशुभ योग एवं करतारी दोष के अलावा कुंडली के आठवें एवं बारहवें भाव के दुर्योग को नष्ट करता है. इससे बनने वाली औषधि डेराक्विनाल पागलपन एवं मष्तिष्क रक्तश्राव या ब्रेन हैमरेज क़ी प्रसिद्ध औषधि है. इसके आयतन एवं वजन में १:५ का अनुपात होता है. इसकी उत्पत्ति यांगटीसीक्यांग नदी जो आज चीन देश में है, क़ी उत्तर-पूर्व क़ी तलहटी मानी जाती है. यह जादू, टोना एवं भूत प्रेत से सम्बंधित कार्य करने के लिए चीनी लोग प्रयुक्त करते है. नील-रक्त रंग का गोमेद उत्तम होता है. पूर्वाषाढ़ा, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वभाद्रपद तथा धनिष्ठा नक्षत्र में जिनका जन्म हुआ है वे व्यक्ति गोमेद न धारण करें बल्कि इसके स्थान पर पर्णकीर नामक नग धारण करें. इसे कभी भी सात रत्ती से कम के वजन में धारण न करें. जो व्यक्ति युसोनोफिलिया, ब्रान्कायीतिस अथवा अश्थामा का मरीज़ हो वह गोमेद न धारण करे. गोमेद सदा दाहिने हाथ क़ी अनामिका अंगुली में ही धारण करें. यदि लाकेट बनवाना हो तो गोमेद अट्ठारह रत्ती से कम का नहीं होना चाहिए. रविवार या मंगलवार को न धारण करें. जिसे मानसिक आघात, मिर्गी, भय, मूर्छा या अंदरूनी व्याधि हो वह इसे अवश्य ही धारण करे. वर्तुलाकार रुद्राक्ष के साथ वामावर्ती क्रम में धारण करने से गोमेद क़ी शक्ति सौ गुना बढ़ जाती है.
पंडित आर. के. राय
प्रयाग
9889649352

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