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औरत- विष रस भरा कनक घट जैसे

वेद विज्ञान
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आप ने पुरुषो द्वारा औरतो पर ज़ुल्म ढाने की कहानी तो खूब पढी होगी. और “बेचारी”, दुखियारी”, असहाय” आदि पता नहीं कितने शब्द उसके लिए कहे होगे. लेकिन उस पुरुष के बारे में आप का क्या ख़याल है जो पत्नी के नारकीय त्रास से प्रपीडित होने के बावजूद भी न तो किसी से कह सकता है और न ही रो सकता है. यद्यपि मै इस विषय पर कुछ लिखना नहीं चाहता था. किन्तु कुछ कारणों से सारे प्रतिबंधनात्मक विचारों को दरकिनार करते हुए फालतू समय को कुछ लिखने में ही लगाना उचित समझा. कुछ दिन पहले क़ी बात है. मै अपने मुम्बई प्रवास पर था. हार्बर लाईन पर एक लोकल रेलवे का स्टेशन है जिसका नाम गोवंडी है. प्लेट फ़ार्म के परली तरफ झोपड़ पट्टी है. अपने काम से मुझे गोवंडी में ही पांच दिन रुकना पडा था. रोज गोवंडी से ही ट्रेन पकड़ना एवं चरनी रोड जाना पड़ता था. मै लोकल ट्रेन के एक डिब्बे में जल्दी घुसा. ट्रेन तुरंत छूट चली. लोकल ट्रेन यहाँ मात्र पांच सेकेण्ड ही रुकती है. या यूं कहिये कि नहीं रुकती है. सिर्फ चाल धीमी हो जाती है. मै डिब्बे में एक खाली सीट देख कर बैठ गया. मेरे पास में ही एक आदमी और बैठा था. उसके पास वाली खिड़की से कुछ दूध के डिब्बे हुक से लटक रहे थे. असल में वह एक दुधियारा था जिसका पता मुझे बाद में चला. मध्यम कद काठी का सुन्दर शरीर किन्तु आँखें बिल्कुल सपाट, निर्विकार एवं महत्तम शून्य को बिना किसी भेद विभेद के धैर्य पूर्वक घूरती हुई ना काह़ू से दोस्ती ना काह़ू से वैर वाली भावना से पूर्ण थी. मैंने पूछा कि भाई साहब आप को कहा जाना है? उसने बताया थाने जाना है. मै थोड़ा झिझका फिर पूछा कि क्या हो गया? उसने बताया कि कुछ नहीं. फिर मैंने पूछा कि फिर थाने क्यों जा रहे है? वह बोला कि मै रोज ही जाता हूँ. मै पूछा “क्या आप थाने में नौकरी करते है?’ वह बोला ” मै दूध बेचता हूँ”. मै पूछा “क्या वही पर यह सारा दूध देते है?’ वह बोला “हाँ” मै पूछा “थाने में कितने सिपाही है जो इतना लगभग साठ किलो दूध पी जाते है?” वह बोला ‘थाने मतलब पुलिस स्टेशन नहीं बल्कि ठाणे एक स्टेशन है.” अभी हम इतनी बात कर ही रहे है तब तक पांच छः औरतें हो हल्ला करते हंसते खिल खिलाते शोर मचाते पिछले डिब्बे से आपस में धक्का मुक्की एवं चुहल करते हुए उधर आयीं. उनकी सौंदर्य सुषमा के वर्णन एवं नखशिख प्रस्तुति करण में मेरे शब्द कम पड़ेगें. बस इतना ही कह सकता हूँ कि
“सब उपमा कवि रहऊँ जुठारी. केहि पट तरीय विदेह कुमारी.”
उनमें से एक औरत ने उस दूध वाले क़ी तरफ इशारा किया और वह उठ कर खडा हो गया. वह औरत बैठ गयी. फिर उसने मुझसे उठने के लिये कहा मै भी उठ गया. तीन आदमी क़ी सीट थी. जब हम दो खड़े हो गये तों तीसरा अपने आप सीट छोड़ कर खडा हो गया. उस पहली औरत ने तुरत सिगरेट का पैकेट निकाला और चार औरतें खूब धुंआ उड़ाने लगीं. कोई कुछ नहीं बोल रहा था. लोकल ट्रेन में अक्सर भीड़ हुआ करती है. लेकिन कोई प्रतिरोध नहीं कर रहा था. तभी एक टीटी आया. हम लोगो का टिकट चेक करने के बाद उन औरतो ने उसे अपने पास ही बिठा लिया. हम लोगो को उठाकर टीटी को उन लोगो ने अपने पास बिठा लिया. बहुत बुरा लगा. लेकिन हमने कुछ नहीं बोला. आगे मुलुंड स्टेशन पर वे सब उतर गयीं. तब एक सज्जन बुद बुदाते हुए बोले “व्हाट नानसेंस लेडिज?” दूसरा बोला ‘ नीच परिवार क़ी औरतें आखीर दूसरा क्या करेगीं?’ अगला आदमी बोला ” इनका क्या दोष? इन्हें अपने पति का भी तों पेट पालना है. अगर ये सब ऐसा धंधा नहीं करेगीं तों परिवार का खर्च कैसे चालायेगीं?’ एक और बोला “पति भी कोई नपुंसक होगा. इनकी कमाई पर आश्रित होगा” अचानक दूध वाला तमतमाते हुए उस आदमी का गला पकड़ लिया. बोला “आगे कुछ फिर बोला तों गला घोट दूंगा.” एक अपटूडेट दिखने वाला आदमी बोला ” आर यूं ह़र हसबैंड?” दूध वाला बोला ” यस, सी इज माई बेटरहाफ.” उसे अंग्रेजी बोलते देख मै भी दंग रह गया. मेरी समझ में कुछ भी नहीं आ रहा था. आखिर उस बेशर्म औरत के लिये वह झगड़ा कर बैठा. मान लिया वह उसकी बीबी थी. तों वह भी तों इसे पहचानती होगी? फिर अपने पति को सीट से उठाकर उस टीटी को अपने पास बिठा लिया. उस समय इसका स्वाभिमान कहा चला गया था. उस टीटी का गला क्यों नहीं पकड़ा? ना समझ भी नहीं है. अच्छा पढ़ा लिखा लगता है. फर्राटे दार अंग्रेजी भी बोल लेता है. फिर भी कंधे पर लाद कर इस गली उस गली दूध बेचता फिरता है. कही यह सनकी तों नहीं है? कई विचार दिमाग में आ रहे थे. इसी बीच मेरा स्टेशन आ गया. मै सिर झटक कर गाडी से उतरा. और आगे चल दिया.
अगले दिन स्टेशन पर वह फिर मिल गया. मुझे देख कर मुस्कराया. मै भी मुस्कराते हुए उसकी तरफ बढ़ गया. बहुत साहस कर के मैंने उससे पूछा “भाई साहब यदि आप बुरा न माने तों एक बात पूछू?” वह बोला “पूछिए”. मैंने पूछा ” उस दिन आप को उठाकर उस औरत ने मेरा मतलब है आप क़ी बीबी ने टीटी को आप क़ी जगह बिठा लिया. तों आप ने कुछ नहीं बोला. और उस आदमी ने उस औरत को भला बुरा कह दिया तों आप उससे झगड़ा कर दिये. आखीर क्यों?” वह बोला ” उसको भला बुरा कहता मै कुछ नहीं बोलता. लेकिन उसने उस औरत के पति को हिजड़ा कहा. इसलिये मैंने उससे झगड़ा किया.” तब तक गाडी आ गयी. वह दौड़ दौड़ कर अपना डिब्बा खिड़की से लटकाना शुरू कर दिया. मै भी गाडी में चढ़ गया. अगले दिन मै प्लेट फ़ार्म से देखा कि एक झोपड़ पट्टी के सामने वही दूधियारा पतीला धो रहा है. उसने भी मुझे देखा. मुस्कराया. मै प्लेटफ़ार्म से उतरकर धीरे धीरे खिसकता हुआ उस झोपड़ पट्टी क़ी तरफ चल दिया. गाडी आने में अभी देर था. मै झोपड़ पट्टी के पास पहुँच गया. उसने मुझे बैठने के लिये कहा. मै बैठ गया. उसने चाय बनाया. हम दोनों बैठ कर चाय पीने लगे. उसने कहना शुरू किया.
मै उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले का रहने वाला हूँ. मैंने मैथमेटिक्स से एम् एस सी किया. मेरे साथ भदोही जिले क़ी एक लड़की भी पढ़ती थी. उसके पिताजी मिर्जापुर में डिप्टी कलक्टर थे. यद्यपि मै एक साधारण परिवार से था. इसलिये मै सही समय पर मै न तों यूनिवर्सिटी क़ी फीस दे पाता था. और न ही आवश्यक पुस्तकें ही खरीद पाता था. फिर भी मै पुस्तकालय क़ी सहायता से अपना काम अच्छी तरह चला लेता था. पढ़ने में वह बहुत अच्छी नहीं थी. इस लिये वह जभी न तभी मुझे अपना नोट्स तैयार करने के लिये दबाव बनाती थी. मै इज्ज़त एवं डर के कारण उसका भी नोट तैयार कर दिया करता था. उस पर मुझे दया एवं गुस्सा दोनों आता था. इस प्रकार कुछ दिनों बाद यूनिवर्सिटी में इतनी अफवाह फ़ैली कि उससे मुझे शादी करनी पडी. वह मेरी बिरादरी क़ी भी नहीं थी. उसके साथ जब मेरी शादी होने को हुई तों मेरे तथा उसके भी परिवार के लोग खिलाफ थे. अभी समय क़ी नज़ाक़त को देखते हुए मैंने केन्द्रीय सांख्यिकीय विभाग में नौकरी के लिये परीक्षा दिया. मेरा चुनाव हो गया. मैंने एक राज पत्रित अधिकारी के रूप में नौकरी ज्वाईन कर लिया. मान सम्मान एवं वेतन सब बहुत अच्छा था. सरकारी बंगला, गाडी, नौकर आदि सब मिले हुए थे. किन्तु मेरी पत्नी का खर्च इतना ज्यादा था कि तनख्वाह पुरा नहीं हो पाता था. उसे बच्चा भी होने वाला था. मेरी गैर जान कारी में मेरी पत्नी ने एक आदमी से अस्सी हज़ार रुपये ले लिये. तथा मेरे सूट केस से उसकी फाईल गायब कर दिया. मेरी नौकरी छूटी. मै जेल चला गया. उसके बाद यह क्या करती रही, मुझे कुछ पता नहीं चला. पांच साल बाद मै जब जेल से छूटा तों सीधे मै मुंबई चला आया. कोई काम मेरे पास नहीं था. जेल से मिली मज़दूरी से मैंने दूध का धंधा शुरू कर दिया. मै नहीं कह सकता मुझे यह मुम्बई में कैसे और किसके यहाँ मिल गयी. यह हल्ला गुल्ला करने वाली थी. बवाल मचाने वाली थी. अब न तों मेरे पास कोई इज्ज़त थी. न इसके पास. दोनों ने समझौता कर लिया. रहते साथ है. मुझे पता चला कि जो बच्चा इसे पैदा हुआ उसको इसने बेच दिया. तथा अपना खर्च चलाने के लिये पैसे के लालच में इसने नसबंदी भी करवा ली. अभी वह क्या करती है, मुझे पता नहीं है. मुझे इतना ही पता चलता है कि देर रात में कोई गाडी इसे पीछे रोड तक छोड़ जाती है. और मुझे आदत पड़ गयी है कि बिल्कुल सही समय पर गाडी का हार्न सुन कर रोड तक जाता हूँ. तथा उसे सहारा देकर झोपडी में लाकर चुप चाप सुला देता हूँ. जो कुछ रोटी सब्जी होता है, बना कर रख देता हूँ. जब उसे होश आता है, वह उठ कर खा लेती है. बिल्कुल सुबह वह मुझसे पचास रुपये लेती है. तथा अपने काम पर निकल जाती है. एक बार मेरे पास पैसे नहीं थे. उसने पैसे मांगे. मै नहीं दे पाया. उसने पूरी झोपड़ पट्टी में इतना शोर मचाया कि मुझे पड़ोसी से पैसे लेकर देने पड़े. ”
तभी मैंने देखा कि गाडी का सिग्नल हो गया है. मै भाग कर प्लेट फ़ार्म पर आया. गाडी आई. मै भरे मन से गाडी में चढ़ गया. एक आह के साथ——“धन्य हो आधुनिका पत्नी”
पता नहीं किस पिक्चर का यह गाना है जो बिल्कुल सटीक बैठता है-
जब से हुई है शादी आंसू बहा रहा हूँ.
आफत गले पडी है उसको निभा रहा हूँ.
और अंत में प्रभु से यही निवेदन है कि उस व्यक्ति को थोड़ा सा तों सुख दे दो.
अन्यथा यह तों आज क़ी साधारण बात हो गयी है कि-
आधुनिका पत्नी मिली पति को पडी नकेल.
“वाक्” शास्त्र में पास थी “पाक” शास्त्र में फेल.
पाक शास्त्र में फेल रसोई कर दी चालू.
स्वेटर बुनने लगी जल गये सारे आलू.
पुस्तक खोली पति से बोली ज़ल्दी आओ.
फ़ौरन जले आलुओ पर “बर्नोल” लगाओ.
पण्डित आर के राय
प्रयाग

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