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ब्वाय फ्रेंड एवं गर्ल फ्रेंड के कुंडली मिलान

वेद विज्ञान
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चोर जब चोरी करता है तों वह भर सक यही प्रयत्न करता है कि उस चोरी का कोई निशान या सुराग न छूट जाय. इसके लिये वह नाना उपाय एवं प्रयत्न करता है. किन्तु इस प्रकार वह एक के बाद एक उस मकड़ जाल में फंसता चला जाता है. और फिर अंत में भण्डा फूट जाता है. इसमें दुःख क़ी बात यह है कि भांडा फूटने में थोड़ा विलम्ब हो जाता है. तथा वह चोर तब तक के लिये जब तक कि भांडा नहीं फूटता, बादशाह बना रहता है. और जब भांडा फूट जाता है तब तक बहुत विलम्ब हो चुका होता है. और वह चोर अपनी उस चोरी का कोई प्रतिकार भी नहीं कर पाता है.
कुछ ऐसे होते है कि जब देखते है कि भांडा फूटने वाला है तों शीघ्रता पूर्वक दूसरो को भी अपने उस कुकृत्य में लपेटने का प्रयास करते है. कुछ हद तक कुछ एक को लपेट भी लेते है. जैसे कोई चोर जब देखता है कि अब तों मै पकड़ा जाउंगा तों वह कुछ हिस्सा दूसरे को भी दे देता है तीसरे को भी दे देता है. ताकि वह अकेले नहीं बल्कि दो चार और भी साथ में फंस जाएँ. ताकि उसे अकेले कोई चोर न कह पाये.
यही हालत आज अब जगह जगह दिखाई देने लगी है. धर्म कर्म, ज्योतिष एवं पूजा पाठ को पाखण्ड एवं ढोंग बताकर पहले लोकप्रियता हासिल करते है. क्योकि यदि कोई यह कहना शुरू कर दे कि सूरज का प्रकाश काला होता है. तथा चन्द्रमा गर्म किरणें निकालता है. तों इस विषय को लोग बड़े ही रूचि एवं आश्चर्य से लोग पढ़ना शुरू करेगे. तथा लिखने वाला सहज ही अपने नाम का प्रचार प्रसार पा जाता है. क्योकि जब किसी बड़े विषय या व्यक्ति के विरुद्ध कोई बड़ा लांछन लगाया जाता है तो लोग बड़ी उत्सुकता से उसकी तरफ आकर्षित हो जाते है. और जब अपनी करनी का दुष्परिणाम सामाजिक, पारिवारिक, नैतिक एवं चारित्रिक बहिष्कार के रूप में प्राप्त करता है तों अपने क्रिया कलाप को सैद्धांतिक रूप देना शुरू करता है. तथा उसके पक्ष में विविध तर्क कुतर्क एवं निराधार साक्ष्य प्रस्तुत करता है ताकि यह सिद्ध हो सके की उसका कथन ही सत्य है.
आज कुंडली मिलान को धोखा, ढोंग एवं पाखण्ड बताने वाले इस रोग या कुकृत्य के स्वयं शिकार है. या निकट भविष्य में ही शिकार होने वाले है. कहते है कि क्या जिनकी कुंडली मिलाकर शादी क़ी जाती है उन्हें दुःख नहीं होता है? क्या कुंडली मिला कर शादी करने वालो का वैवाहिक जीवन दुखी नहीं होता है? ऐसे अतार्किक प्रश्न करने वाले का जबाब भी उसी भाषा में दिया जा सकता है. किन्तु इससे ज्योतिष महाविज्ञान क़ी मर्यादा को ठेस पहुँच सकती है. उनके लिये यही उत्तर हो सकता है. कि क्या जिनका इलाज़ नहीं होता है वही मरते है? जिनका इलाज़ होता है क्या वे नहीं मरते है? क्या केवल रोगी ही मरते है? जिन्हें कोई बीमारी नहीं होती है क्या वे नहीं मरते है? तों क्या इसके लिये रोग का इलाज़ नहीं करवाना चाहिए? कुंडली मिलान को अनावश्यक बताने वाले के प्रश्न का उत्तर यही छिपा है. बस प्रश्न करने वाला इसका उत्तर दे दे उसका उत्तर स्वतः ही मिल जाएगा.
थोड़ा मांगलिक के ऊपर संक्षेप में विचार करते है. वैवाहिक जीवन के लिये दुःख देने का कार्य केवल मांगलिक दोष ही नहीं करता है. बल्कि इसके और भी कारक होते है. किन्तु मांगलिक दोष वैवाहिक जीवन को अवश्य ही दुःखमय बना देता है. इसके सम्बन्ध में मैंने विस्तार से अपने पूर्व लेख जो इसी जागरण मंच से “मांगलिक दोष कितना उचित भाग 1 एवं भाग 2” शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है, में दे चुका हूँ.
सन1998 क़ी बात है, मै दिल्ली में नियुक्त था. मेरे साथ एक मेरे अधिकारी भी थे उनकी बेटी MSW कर रही थी. एक दिन उन्होंने उसकी वर्ष गाँठ पर मुझे अपने घर आमंत्रित किया. मै गया तों उन्होंने अपनी बेटी क़ी कुंडली दिखाई. एक लडके क़ी भी कुंडली दिखाई. लड़का मांगलिक था. मैंने बताया कि यह शादी उचित नहीं होगी. मेरे अधिकारी तों दूर, उस लड़की ने ही मुझे अच्छा खासा भाषण पिला दिया. यद्यपि मुझे मालूम था कि इसने जब एक बार निश्चय कर लिया है कि शादी उसी लडके से करेगी जिसके साथ उसने कई तरह से “प्रेम” कर रखा है, तों चाहे कुंडली मिले या न मिले शादी उसी से करेगी. मै भी इस बात को भली भांति जानता था. किन्तु फिर भी मै पता नहीं क्यों यह सब बातें कह गया. मै अपने अधिकारी क़ी इज्ज़त करते हुए उस लड़की का कोई जबाब नहीं दिया. आई गयी. बात ख़तम हो गयी. मै पोस्टिंग जम्मू चला गया. उसके बाद बरोदा गया. बात भूल गयी.
सन 2008 में वह लड़की मुझे माटुंगा (मुम्बई) में मिली. उसके पिताजी भी मिले. मै पुराने परिचय के कारण उनसे मिलने उनके घर गया. कुशल क्षेम के बाद जब एकांत पडा तों वह रो पड़े. मै यहाँ इतना ही कह सकता हूँ कि उस लडके ने जिससे इसने शादी क़ी थी उसने इसे छोड़ दिया. था. उसी क़ी देखा देखी करते हुए छोटी बेटी ने भी हमेशा के लिये शादी से ही इनकार कर दिया था.
आज वे दोनों विशाल हृदय वाली हो चुकी है. उनका हृदय बिल्कुल उदार हो चुका है. किसी से कोई भेद भाव नहीं है. सभी उनकी अपने है. सबसे उनको “प्रेम” है. “ब्वाय फ्रेंडो” क़ी संख्या अनगिनत हो चुकी है.
पुराने ज़माने में अपनी पत्नी के अलावा दूसरी किसी भी औरत के साथ रहना सामाजिक अपराध माना जाता था. दूसरी औरत क़ी तरफ देखना भी पाप समझा जाता था. उस औरत को “रखैल” के नाम से जाना जाता था किन्तु नए अति सभ्य आधुनिक समाज ने उसे सामाजिक मान्यता प्रदान कर दी है. किन्तु रखैल शब्द कहने एवं बोलने में बहुत भोंडा एवं गँवार लगता है. अतः उसे अब “गर्लफ्रेंड” का नाम दे दिया गया है. इससे “रखैल” शब्द का ओहदा एवं गरिमा बढ़ गयी है. इसी प्रकार “भंडवे” को अंग्रेजी में “ब्वायफ्रेंड’ का नाम देकर उसके “स्टेटस” को और ऊंचा कर दिया गया है. अभी गर्ल फ्रेंड एवं ब्वाय फ्रेंड क़ी बहुतायत में उपलब्धता सुनिश्चित हो जाने पर एक ही खूंटे में बंध कर रहना या एक ही जीवन साथी के साथ जीवन यापन क़ी अनिवार्यता समाप्त हो गयी है. फिर कुंडली मिलाने क़ी क्या ज़रुरत?
ऐसी औरत या पुरुष जिसने अपनी सामाजिक, नैतिक एवं चारित्रिक इज्ज़त खो दी है. जिसने अपनी मान मर्यादा को नीलाम कर दिया है. वह इसका प्रतिकार इस प्रकार करते है कि दूसरो को भी अपनी ज़मात में शामिल कर अपनी “पार्टी” बना लेते है. ताकि एक अकेले को ही लोग कुछ कहने न पायें. वे यह नहीं सोचते कि हमसे तों गलती हो ही गयी है. जिसके कारण मुझे यह सब भुगतना पड़ रहा है. दूसरे तों कम से कम इस गलती का शिकार न होने पायें. और सुख चैन से रहें. बल्कि इसके विपरीत वे सिद्धांत बना लेते है कि “हम तों डूबे ही सनम तुझको भी ले डूबेगें”
यही हालत आज कुकुर मुत्ते क़ी तरह फैले ज्योतिषियों क़ी है. चूहा एक हल्दी क़ी गाँठ पा गया. और बोला कि किराना के दुकानदार के पास भी तों हल्दी होता ही है. मै भी अब किराना का दुकानदार बन गया. मेरे पास भी हल्दी क़ी गाँठ आ गयी.
बात आई है कुंडली क़ी. तों थोड़ा उसी के बारे में बात करेगें. कुंडली मिलान में आठ चीजो का मिलान किया जाता है. वर्ण, वश्य, तारा, योनी, ग्रहमैत्री, गण, भकूट एवं नाडी. इसमें क्रम से वर्ण मिलान को 1, वश्य को 2, तारा को 3, योनी को 4, ग्रह मैत्री को 5, गण को 6, भकूट को 7 एवं नाडी को 8 अंक दिये गये है. यहाँ हम सबसे कम अंक पाने वाले वर्ण एवं वश्य तथा सबसे ज्यादा अंक पाने वाले भकूट एवं नाडी क़ी वैज्ञानिकता पर विचार करते है.

  1. वर्ण चन्द्र नक्षत्र के आधार पर यह तय किया जाता है कि लड़का लड़की दोनों का वर्ण क्या है. अभी हम उदाहरण स्वरुप यहाँ एक चीज बता दें कि केवल मेष, सिंह एवं धनु राशि वाले ही क्षत्रिय वर्ण के होते है. अर्थात चन्द्रमा जब अन्टार्कटिका, के पृष्ठोत्तर या पार्श्वोत्तर भाग में होता है तथा अंतरिक्ष में मंगल तारा या ग्रह (Mars) चन्द्रमा से भाव, दृष्टि, राशि आदि से समानुपाती होता है उस अवस्था में जिनका भी जन्म होगा उसे “मेष” राशि के अंतर्गत या क्षत्रिय वर्ण क़ी श्रेणी में रखा जाता है. यह क्षत्रिय वर्ण आज के क्षत्रिय जाती से किसी भी प्रकार सम्बंधित नहीं है. मंगल को समानुपाती इसलिये कहा गया है कि थोड़ा भी विचलन होने पर चन्द्रमा पृथ्वी के दूसरी तरफ आ जाएगा. यद्यपि राशि मेष ही रहेगी किन्तु वर्ण वैश्य का हो जाएगा. अर्थात चन्द्रमा रहेगा अन्टार्कटिका में ही, किन्तु पृथ्वी के दूसरी तरफ होगा. जिन्होंने भूगोल शास्त्र का अध्ययन किया होगा उन्हें यह भली भांति विदित होगा. तथा इसी आधार पर अर्थात चार वर्णों के आधार पर आज के आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने रक्त के चार “ग्रुप” A , B , O तथा AB . बनाए है. बड़ी विडम्बना है कि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने इसे अंग्रेजी में विविध नाम दे दिया है तों वह सही है. किन्तु यदि ज्योतिष में क्षत्रिय तथा वैश्य आदि नाम दे दिया गया तों भ्रम एवं पाखण्ड है. अभी आप उन बेशर्मो के मुँह पर तमाचा आराम से जड़ सकते है यह कह कर कि चेक करो कि जो भी क्षत्रिय वर्ण के है उनका ब्लड ग्रुप A पाजिटिव है या नहीं? जी हां, आवश्यक रूप से चैत्र, आषाढ़, आश्विन तथा पौष में आधी रात के बाद तथा सूर्योदय के पहले, वैशाख, श्रावण, कार्तिक एवं माघ महीनो में दोपहर के बाद एवं आधी रात के पहले तथा ज्येष्ठ, भाद्रपद, मार्गशीर्ष एवं फाल्गुन महीनो में सूर्योदय के बाद एवं दोपहर के पूर्व मेष राशि में जन्म लेने वाले व्यक्तियों का ब्लड ग्रुप ए पाजिटिव होता ही है. चाहे तों इसे चेक कर ले. यहाँ यह ध्यान रखें, मेष राशि के अंतिम चरण में जन्म नहीं होना चाहिए. यदि कुंडली मिलान में वर्ण नहीं मिलता है तों संतान माता पिता के सिद्धांत, नियम, आचार, विचार एवं सोच का दुश्मन बन जाती है. ब्लड ग्रुप के बारे में सब लोग जानते है कि किसी एक विशेष ब्लड ग्रुप वाले व्यक्ति को भिन्न ग्रुप का ब्लड नहीं दिया जा सकता. यहाँ पर भी ज्योतिष के मत को आधुनिक विज्ञान अनुकरण करते हुए नज़र आया है कि ब्राह्मण वर्ण का लड़का किसी भी वर्ण क़ी लड़की से विवाह कर सकता है. जैसे O ग्रुप वाला खून किसी को भी दिया जा सकता है. इसी A, B, O एवं AB ग्रुप को ज्योतिष क़ी भाषा में ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य आदि नाम से जाना जाता है.
  2. वश्य- यह पांच प्रकार का होता है. जिस राशि का नाम जैसा नाम है उसी विशेषण से उसे नामांकित किया गया है. जैसे मेष अर्थात भेंडा चार पैरो वाला है तों उसे चतुष्पाद कहा गया है. मीन अर्थात मछली पानी में रहती है तों उसे जलचर कहा गया है. ज्योतिष में इसको शरीर रचना क़ी इकाई कोशिका के आधार पर चिन्हित किया गया है. जिस व्यक्ति क़ी शरीर रचना में जिस तत्त्व क़ी मात्रा ज्यादा होती है उसी के अनुसार इसे जाना गया है. जल मात्रा ज्यादा वाले जलचर, जिसमें जल एवं वायु दोनों क़ी मात्रा ज्यादा हो उसे द्विपद, जिसमें जल, वायु एवं अग्नि (या विष- जैसे ज़हरीले कीड़े मकोड़े) तीनो हो उसे कीट, जिसमें जल, वायु, अग्नि एवं ठोस (पत्थर) चारो हो उसे चतुष्पाद तथा जिसमें ये चारो सदा परिवर्तन शील होते रहें उसे वनचर कहा गया है. ये जलचर या चतुष्पाद आज के उन जानवरों बैल, भेद या खरगोश से सम्बन्धित नहीं है. बल्कि इन्हें प्रतीकात्मक नाम केवल संबोधन के लिये दिया गया है. आधुनिक विज्ञान ने इसका अनुकरण करते हुए ही आज के विकसित विज्ञान के मूल भूत आधार स्वरुप तत्वों का वर्गीकरण भी पांच ही वर्गों में किया है (देखें- Periodic Table By Mendaleef). किन्तु वहा पर क्लोरिन, ब्रोमिन तथा आयोडीन आदि नाम दिया गया है. चूंकि ये सारे नाम अंग्रेजी में है अतः ये सही है. और जब इन्हें हिंदी या संस्कृत में कह दिया जाता है तों वह भ्रम एवं आडम्बर हो जाता है. जो भी हो, यदि विज्ञान क़ी ही मानें तों गुण, प्रकृति एवं स्वभाव क़ी भिन्नता के कारण ही समस्थानिक (Isotopes) लिये समस्त 118 तत्वों को पांच वर्गों में बाँट दिया गया है. (मूल तत्त्व मात्र 108 ही है. ये ही 27 नक्षत्रो के चार चार चरण के हिसाब से 108 होते है. इसके बाद इनके प्रतिनिधि 9 ग्रह तथा सबके अधिष्ठाता ब्रह्म 1 मिलाकर 118 होते है. यदि कभी मौक़ा मिला तों मै विस्तार में यह बताने का प्रयत्न करूंगा कि कैसे आधुनिक विज्ञान ने ज्योतिष का नक़ल कर के 108 तत्वों क़ी ही खोज क़ी. 109वाँ तत्व क्यों नहीं खोजा?) ठीक इसी प्रकार शरीर रचना के बारे में शास्त्रों में पांच ही तत्वों को प्रधान बताया गया है- क्षिति, जल, पावक, गगन एवं समीर.यदि वैज्ञानिक तरीके से इनका रासायनिक परिक्षण किया जाय तों यह तथ्य स्वतः प्रमाणित हो जाएगा कि जो व्यक्ति जलचर वश्य के अंतर्गत आता है वह जल तत्त्व प्रधान होता है. तथा उसे यदि कभी कोई रोग होगा या हुआ है तों उसमें प्लुइरिसि का प्रभाव ज्यादा होगा. आप स्वयं सोचें कि यदि वर्गों (वश्य) में सामंजस्य नहीं हुआ तों शारीरिक विकार, रोग, व्याधि आदि होना स्वाभाविक ही है.
  3. भकूट- ज्योतिष में राशि मिलान को भकूट कहते है. एक राशि में 30 अंश होते है. 30 अंशो को 7 भाग में बाँट कर भकूट निकाला जाता है. क्योकि ग्रह केवल 7 ही होते है. कारण यह है कि ग्रह मूल रूप में 7 ही होते है. जो सूर्य से लेकर शनि तक होते है. और ये ही बारहों राशियों के अधिपति होते है. राहू एवं केतु ग्रह में गिने जाते है. किन्तु छाया ग्रह के रूप में इनकी गिनती होती है. मूल ग्रह के रूप में नहीं. जैसा कि आप ने देखा होगा कि प्राचीन भारत क़ी आकृति मानचित्र में शेर के रूप में थी. उसी प्रकार समूची पृथ्वी को 12 भागो में (राशियों में) बांटा गया है जैसे equator, Capricorn, cancer आदि. प्रत्येक भाग क़ी जैसी आकृति होती है वैसा ही उसका नाम दिया गया है. जैसे जिस भूभाग क़ी आकृति मछली क़ी तरह होती है उसे मीन राशि कहा गया है. किसी एक विशेष भूखण्ड में जन्म प्राप्त व्यक्ति के रहन सहन, खान पान, आचार विचार आदि में बहुत ही समानता पायी जाती है. एक समान भाषा, आचार विचार तथा रहन सहन वाले लोग एक जगह आसानी से रह जाते है. तथा उनमें मित्रता भी सहज ही हो जाती है. जैसे बर्फीले क्षेत्र में रहने वाले मैदानी इलाके में कठिनाई का अनुभव करते है. ठीक इसी तरह एक शाकाहारी व्यक्ति मांसाहारी व्यक्ति के साथ रहने में बहुत ही कठिनाई का अनुभव करता है. इसके अलावा शारीरिक संरचना में भी बहुत ही अंतर आ जाता है. रूप रंग एवं सोचने का तौर तरीका भी भिन्न होता है. इस प्रकार हम इसे सूक्ष्म तरीके से भकूट मिलान के द्वारा स्पष्ट करते है. बाह्य आचार विचार एवं हाव भाव तों हम देख कर जान जाते है. किन्तु जो अंदरूनी बाते होती है उसे हम राशि या भकूट मिलान के द्वारा जानते है. इसे हम एक उदाहरण से स्पष्ट करते है. जिसका जन्म पूर्वभाद्रपद के अंतिम चरण में होता है. वह स्पष्टवादी एवं कोमल हृदय का होता है. इसके विपरीत धनिष्ठा नक्षत्र के मध्य में जिसका जन्म हुआ है वह बिल्कुल कपटी, कठोर हृदय एवं ईर्ष्यालु होगा. ऐसे दो व्यक्तियों का जीवन कैसे सुखी रह सकता है? इसे आप चाहे तों स्वयं सत्यापित कर सकते है. उदाहरण के लिये भारत के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बुधवार को बिहार के जीरादेई ग्राम में हुआ था. उनका जन्म नक्षत्र आर्द्रा है. प्रसिद्ध संत स्वामी परमानंद सरस्वती का जन्म 15 जुलाई 1913 को गौहाटी में मंगलवार के दिन प्रातः 8 बजाकर 17 मिनट पर हुआ था. उनका भी जन्म नक्षत्र आर्द्रा ही है. अब इन दोनों का जन्म जान बूझकर तों आर्द्रा नक्षत्र में जबरदस्ती कराया नहीं गया था. ये दोनों चूंकि महान विभूति रहे है. इसलिये इनका उदाहरण यहाँ दिया गया है. कारण यह है कि इनके जन्म के बारे में सारा संसार जानता है. इसके अलावा भी अनेक उदाहरण दिये जा सकते है. आर्द्रा का मतलब होता है नम या गीला. समूचा विश्व इनके हृदय के बारे में जानता है कि ये दोनों किस विचार एवं भावना के रहे है. इस प्रकार राशि या भकूट मिलान से लडके एवं लड़की के विचार व्यवहार, हाव भाव, रहन सहन चाल चलन एवं बुद्धि विचार का मिलान किया जाता है.
  4. नाडी- यह कुंडली मिलान का अंतिम चरण है. नाड़ियाँ विविध भावना, द्रव्य, ऊर्जा एवं चेतना क़ी वाहिकाएं होती है. इन्हें अंग्रेजी में Duct कहा जाता है. इन्ही के माध्यम से तीनो गुणों सत, रज एवं तम का संचरण होता है. शास्त्रों में इन्हें ईंगला, पिंगला एवं सुषुम्ना के नाम से जाना जाता है. ज्योतिष में इन्हें आदि, मध्य एवं अन्त्य नाडी के नाम से जाना जाता है. इन तीनो पर क्रमशः धन, ऋण एवं शून्य आवेश होता है. ये बहुत ही सूक्ष्म वाहिनिया होती है. इन्ही वाहिनियो को आधुनिक विज्ञान में Electron, proton एवं neutron कहा गया है. ये तीनो ही ऊर्जा उत्पन्न करते है. इसी के आधार पर इलेक्ट्रान एवं न्यूट्रान बम आदि बनाए जाते है. इनके द्वारा प्राप्त विविध ऊर्जा से उद्वेलित होकर शुक्राणु (Semen) अंडकोष या गर्भाशय तक पहुंचता है. यदि दोनों नाड़िया एक ही हो जायेगी तों निषेचन क्रिया नहीं हो पायेगी. विज्ञान भी बताता है कि एक जैसे आवेशो में प्रतिकर्षण होता है. अतः यदि एक ही तरह क़ी नाडी होगी तों निषेचन क्रिया में प्रतिकर्षण के चलते अवरोध उत्पन्न होगा. तथा संतान हीनता हो जायेगी. ज्योतिष में इसीलिए इसे निम्न प्रकार व्यवस्थित किया गया है. प्रत्येक तीसरी एवं चौथी नक्षत्र क़ी नाड़ियाँ एक ही होती है. जो परस्पर एक दूसरे से सटी होती है. दोनों का आवेश एक होने से शुक्राणुओ में निषेचन क्रिया नहीं हो पाती है. इस प्रकार पति पत्नी को कोई संतान नहीं हो पाती है.

इसके बाद भी यदि कोई कुंडली मिलान को धोखा, पाखण्ड एवं आडम्बर कहता है तों उसे क्या नाम दिया जा सकता है?
पण्डित आर. के. राय
प्रयाग
9889649352

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