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तुलसीदास क्यों नहीं शराबी बने?

वेद विज्ञान
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हुलसी एवं आत्माराम दुबे क़ी निकम्मी संतान तुलसी दास ने क्या आफत मचाई कि आधी दुनिया ही उसके पीछे पड़ गयी. ज्योतिष के ढोंग एवं पाखण्ड के चक्कर में फंस कर आत्माराम एवं हुलसी ने मूल में जन्म जान कर तुलसी का जन्म के समय ही परित्याग कर दिया. नतीज़ा यह हुआ कि उस ज़माने का यह लोफर कमाई धमाई छोड़ कर तथा आवारा के समान घूमते हुए ज़बरदस्ती घर से मार कर भगाए राज पुत्र राम का अनुयायी बन गया. और पता नहीं उस तड़ी पार किये दाशरथी राम ने क्या घुट्टी पिलाई कि बस सब काम धंधा भूल कर राम चरित मानस लिखना शुरू कर दिया. राम के ही नाम से खाना, सोना, बैठना, ध्यान लगाना, बात चीत करना आदि सारे काम एक नसेड़ी क़ी तरह करना शुरू कर दिया. कम से कम उस आत्माराम ने यदि ज्योतिष का विश्वास नहीं किया होता तों उसने तुलसी को घर से नहीं निकाला होता. तथा राम से मुलाक़ात नहीं हो पाती. तब आराम से कही नौकरी करता. कुछ ऊपर झापर क़ी कमाई के द्वारा बहुमंजिली इमारत बनाता. किसी पढी लिखी पोस्ट ग्रेजुअट, इंजिनीयर या डाक्टर से शादी हुई होती. हाथ में हाथ या गले में बांह ड़ाल कर किसी पार्क में पिकनिक मनाता. यह बेवकूफी नहीं तों और क्या है? न हनीमून, न लवअफेयर, न कोई गर्लफ्रेंड, न कोई ढंग का पोशाक- बेलबाटम, कैपरी, सफारीसूट, ज़िंदगी भर फटी धोती एवं कुरते में घूमते हुए राम राम करता रहा. न पैरो में रिबोक, रेडचीफ, बाटा या एक्सन का कोई जूता. झूठ मूठ का एक पोथन्ना लिख कर नित नए झगड़े क़ी जड़ ड़ाल गया. अब आप ही बताईये क्या ज़रुरत थी उसे ज्योतिषीय भविष्य वाणी के आधार पर संवत 1631 अर्थात सन 1573 ईस्वी में आज सन 2011 क़ी सच्चाई लिखने क़ी? आप ही देखें रामचरितमानस के उत्तर काण्ड के 97 वें दोहे को और उससे आगे-

कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भये सदग्रंथ. दाम्भिन्ह निज मति कल्पि करि प्रकट किये बहु पंथ. ——— 97(क)

भये लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे शुभ कर्म. सुनु हरिजान ज्ञान निधि कहऊँ कछुक कलि धर्म.————97(ख)

English Version- The sinfulness of Kaliyug stifled religion; the sacred books were all neglected and false teachers published endless heresies, which they had invented out of their own imagination.

The people were all over-mastered by delusion, and greed stifled aal acts of piety. hearken, Harijan (गरुड़) ! while I describe some of the religious practices of this evil kaliyug.

अर्थात हे गरुड़ (हरिजन) ! कलियुग के मल अर्थात विकार ने समस्त धर्मो का भक्षण कर लिया. समस्त सदग्रंथ लुप्त हो गये. दम्भी अर्थात अधकचरे ज्ञान वाले घमंडी अपनी अपनी दुष्ट बुद्धि के अनुरूप विविध कल्पना कर के अनेक पंथ – सम्प्रदाय, मार्ग, धर्म प्रकट कर दिये.

सब लोग मोह अर्थात भ्रम एवं हठ के बस में हो गये. लालच एवं वासना ने समस्त शुभ कर्मो का समूल विनाश कर दिया. हे गरुड़! अब मैं कुछ कलियुग के लक्षण एवं क्रिया कलाप का विवरण प्रस्तुत कर रहा हूँ.

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वरन धरम नहीं आश्रम चारी. श्रुति विरोध रत सब नर नारी.

द्विज श्रुति वेचक भूप प्रजासन. कोऊ नहीं मान निगम अनुशासन.

मार्ग सोई जा कहूँ जोई भावा. पण्डित सोई जो गाल बजावा.

मिथ्या रंभ दंभ रत जोई. ता कहू संत कहै सब कोई.

English version-

No regard will be paid to the rules of caste and the four orders of life; everyone is bent upon attacking the scriptures. Brahmanas will sale the Veda; kings devoured their subjects; no one will regard the injunctions of revelation. The right road is any that must take the fancy; the greatest Pandit is the one who talks the loudest. Any who indulged in false pretences and hypocrisy is universally styled a saint.

अर्थात समय, अवस्था, कर्म एवं वर्ग विभाग अर्थात चारो आश्रम- ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ एवं संन्यास, को कोई नहीं मानेगा. ब्रह्मचारी क़ी अवस्था में वैलेन्टाईन डे मनाते हुए अपने गर्ल/ब्वाय फ्रेंड के साथ विविध वन बाग़ उपवन वाटिका सरोवर आदि क़ी साक्षी में अपने प्रेम के विविध मनोहारी स्वरुप के प्रकल्प विकल्प क़ी बहूआयामी छटा बिखेरेगा. समस्त रिस्तो – भाई बहन, मा बाप, बेटा बेटी तथा पत्नी आदि से ऊपर वासनामयी प्रेम के रिश्ते को स्थापित करेगा. और वासना क़ी हबस कुछ शांत होने पर पुनः अलग विधि विधान से नए प्रेम का इज़हार प्रारम्भ करेगा.

वेद पुराण, श्रुति, उपनिषद्, दर्शन, आदि को कोई भी नर नारी नहीं मानेगें. बहुत देखने भालने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुँचने के बाद संग्रहीत नियम कानून जो पुराने बुजुर्गो एवं संत मुनियों ने निर्धारित किये उनका कोई मायने नहीं है. नयी नयी रचनाओं का अभ्युदय होगा. हास-परिहास, भोंडे एवं अश्लील हाव भाव से युक्त तथा आर्ष वचनों के विरुद्ध किये गये टीका टिप्पड़ी से भरे लेख प्रशंसित होगें. विदेशी आचार संहिता को सम्मान एवं आदर क़ी दृष्टि से देखते हुए उसे अपनी आचार संहिता से श्रेष्ठ स्थान प्रदान किया जाएगा.

द्विज अर्थात पण्डित लोग शिक्षा बेचने का कार्य करेगें. अर्थात भारी भरकम शुल्क लेकर विद्या प्रदान क़ी जायेगी. जिसके पास खूब रुपया पैसा होगा उसे उतनी ही अच्छी एवं उत्कृष्ट शिक्षा मिलेगी. मंहगे कोचिंग इंस्टीच्युट खुलेगें. अच्छे विद्यालयों का शुल्क देना आम आदमी के बूते के बाहर क़ी चीज हो जायेगी. राजा अर्थात सरकार प्रजा क़ी भलाई के नाम पर जनता से भारी भरकम टैक्स वसूलेगी. कोई भी अनुशासन नहीं मानेगा. न्याय पालिका चिल्लाती रहेगी. उसका पालन नहीं होगा. विधि विधान एवं नियम कानून क़ी धज्जियां उडाई जायेगी.

जिसको जो अच्छा या सरल या लोक लुभावन लगा वैसा ही एक नया सम्प्रदाय या धर्म बना लिया- राधास्वामी, वाममार्ग, रामकृष्ण, गायत्री परिवार, आनंद मार्ग, ओशो, जय गुरुदेव आदि नित नए सम्प्रदाय बनेगें. जो ज्यादा अनाप शनाप बोलेगा, शास्त्रों क़ी आलोचना करेगा, आर्ष वचनों का विपरीत अर्थ लगाएगा तथा उनके नित नए अर्थ लगाएगा कुतर्क एवं गलत व्याख्या के द्वारा लोगो से ज़बरदस्ती अपनी बात मनवाएगा, जिसे शास्त्रों का कुछ भी ज्ञान नहीं होगा वही कलिकाल का सबसे बड़ा पण्डित कहलायेगा.

मिथ्या भाषण करने वाला, घमंडी, हठी, एवं अति अल्प जान कारी रखने वाला होगा वही कलिकाल का सबसे बड़ा संत कहलायेगा.

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तों अब इसमें कौनसी बड़ी बात हो गयी. तुलसी को इससे क्यों जलन थी? उन्होंने क्यों नहीं एक नया धर्म बना लिया? कौन उनको रोक रखा था.? क्यों नहीं उन्होंने किसी आपटूडेट, अल्ट्रामाडर्न स्टायिलिस लड़की से विवाह कर लिया? उनको बियरबार में जाने से किसने रोक रखा था? उनको भी एक कोचिंग स्कूल खोल लेना था. क्यों नहीं उन्होंने अंग्रेजी पढी? उनको कौन कहा था कि राम चरित मानस लिखे? उन्हें फ़िल्मी दुनिया क़ी पटकथाएं लिखनी चाहिए थी. उन्होंने दोहा चौपाई में क्यों लिखा? उनको भी “कोला बेरी कोला बेरी डी” क़ी धुन में राम चरित मानस लिखना चाहिए था. तों उन्होंने तों सब कुछ गँवा दिया. भीखमंगो क़ी तरह जीवन बिताये. जंगल जंगल भटकते रहे. कभी एयरकंडीसन में रहने का तों मौक़ा मिला नहीं. तों फिर ईर्ष्या करने से क्या फ़ायदा? क्यों आज से चार पांच सौ साल पहले आज क़ी सच्चाई लिखे? केवल गंगाजल ही जीवन भर पीते रहे. कौन उन्हें व्हिस्की या ब्रांडी पीने से मना किया था? उन्हें यदि इसके स्वाद का पता होता तों फिर कभी ऐसा नहीं लिखते.

(क्रमशः)

पण्डित आर. के. राय

प्रयाग

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