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तुलसी क्यों नहीं शराबी बने? भाग 2 .

वेद विज्ञान
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शुक्र करो नरहरि दास जो आप भारत में किसी विधि स्थापित विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य नहीं किये. नहीं तों पहले तों विद्यार्थी के “गार्जियन” ही आप को सरेआम रास्ते में घेर कर पीटते उसके बाद “हाई प्रोफाइल” विद्यार्थियों के नयी कंपनी के जूते ही सिर पर पड़ते. अच्छे खासे बेचारे ब्राह्मण परिवार के एकलौते कमाऊ पूत तुलसी को बरगला कर “साइंस”, “आर्ट्स”, “कामर्श” तथा “माडलिंग एवं एक्टिंग’ पढ़ाने के बजाय “राम धुन” सब्जेक्ट में रिसर्च करवाए. इस सिरफिरे शिक्षक ने मा बाप के इकलौते सहारा को अयोध्या के भगोड़े “राजपुत्र” श्रीराम क़ी पार्टी में उसके प्रचार प्रसार में लगा दिया. बताईये भला कम से कम कही “सी ग्रेड” ही कर्मचारी होता तों आज देखिये मध्य प्रदेश में एक दफ्तरी क़ी नौकरी करने वाले के पास से सब कुछ छोड़ कर नक़द कैश ही कई करोड़ मिले है. इस नासपिटे नरहरी ने बसा बसाया एक ब्रह्मण का घर उजाड़ दिया. और तुलसी ने जब ग्रह नक्षत्रो के चाल क़ी गणना कर के ज्योतिष के सहारे देखा कि कलियुग में तों सब कुछ अपटूडेट, अल्ट्रामाडर्न, चकाचौंध होने वाला है तों तरसने लगे. उन्हें ईर्ष्या होने लगी. लेकिन शायद तुलसी को यह पता नहीं कि इस समाज में जीने तथा इसका लुत्फ़ उठाने के लिये कितने पापड बेलने पड़ते. “किटी पार्टी” अटेंड करनी पड़ती.अपना एक अलग “ग्रुप’ बनाना पड़ता. हेयर स्टाईल बदलना पड़ता. कार नहीं तों कम से कम एक हीरो होंडा स्प्लेंडर तों खरीदनी ही पड़ती. जींस का पैंट शर्ट खरीदना पड़ता. अंग्रेजी पढ़नी पड़ती. पनामा फ़िल्टर सिगरेट एवं बोदके या “हंड्रेड पाईपर” का स्वाद पता करना पड़ता.
और नरहरी, बड़े प्रोफ़ेसर बने थे, उनको भी “उ ले ले उ ले ले’ के राग में पढ़ाना पड़ता. लेकिन एक बात अवश्य होती. यदि वह भी वेद को बकवास, ऋषि-मुनियों को बेवकूफ, बुजुर्गो को सठियाया हुआ तथा ज्योतिष को ठगी विद्या के रूप में लिखते, पढ़ाते या प्रस्तुत करते तों अवश्य आज भी उनके लेख ख्याति लब्ध “जागरण मंच’ के प्रत्येक सप्ताह के “सर्व श्रेष्ठ” लेख के रूप में प्रकाशित होते. यही नहीं क्योकि उनके पास पढ़ाने क़ी अद्भुत एवं शक्तिशाली बौद्धिक क्षमता थी, इस लिये उन्हें सहज ही किसी उच्च शिक्षण संस्थान में स्थायी नौकरी मिल जाती. लेकिन “अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत”. इसीलिये जलनखोरी एवं ईर्ष्या वश तुलसीदास ने कलिकाल क़ी वास्तविकता का रहस्योद्घाटन अपनी कालजयी रचना “रामचरित मानस’ में कर के अपनी दिल क़ी भड़ास निकालने क़ी कोशिश क़ी. देखिये कैसे————————————————-(पिछले अंक से आगे)———————–
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सोई सयान जो परधन हारी. जो कर दंभ सो बड़ आचारी.
जो कंह झूठ मसखरी जाना. कलियुग सोई गुनवंत बखाना.
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी. कलियुग सोई ज्ञानी सो विरागी.
जाके नख अरु जटा विशाला. सोई तापस प्रसिद्ध कलिकाला.
अशुभ वेष भूषण धरें, भच्छाभच्छ जे खाहि.
तेई जोगी तेई सिद्ध नर पूज्य ते कलियुग माँहि.——————–(उत्तर काण्ड दोहा 98 (क)—————-
जे अपकारी चार, तिन्ह कर गौरव मान्य तेई.
मन क्रम वचन लबार, तेई बकता कलिकाल महूँ. ——————-(उत्तर काण्ड सोरठा 98 (ख)
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English Version-
A wise man is he who plunders his neighbour; every boaster is thought a fine fellow, every liar a wit ans is spoken of as a man of parts in Kaliyug. A reprobate who denies the doctrines of revelation is an enlightened philosopher; and any one with unkempt hair and nails is celebrated in this very debused Kalikaal as a model of mortification.
To be dressed in the loathsome rags and ghastly adornments of a mendicant and feed indiscriminately on any kind of food will be an ascetic, a saint, an object of veneration in kaliyug- an age of iniquity. All kind of evildoers will be held in high honour and respect and the idlest babblers are accepted as preachersin these miserable days.

अर्थात वह आदमी बहुत ही चतुर, बुद्धिमान एवं कुशल कहलायेगा जो बड़े ही आसानी एवं बिना किसी दया के दूसरो के धन का अपहरण कर ले या छीन ले. किन्तु जिसका धन छिना जाय वह चूँ तक न कर सके. जो जितना दिखावा करेगा वह उतना ही बड़ा आचारवान एवं उच्च स्तर का व्यक्ति कहलायेगा. जो जितना ज्यादा झूठ बोलेगा तथा मसखरी करेगा, भंडैती करेगा कलियुग में वही गुनी कहलायेगा. जो आदर्श एवं समाज क़ी मान मर्यादा के विरुद्ध चलते हुए श्रुति, शास्त्र एवं परम्परा क़ी निंदा करेगा कलियुग में वही ज्ञानी एवं दूरद्रष्टा तथा उदार कहलायेगा. जो जितना ही लम्पट एवं धूर्त होगा वह उतना ही बड़ा वैरागी कहलायेगा. जिसके भोंडे एवं गंदे नाखून एवं सिर के बाल रूखे सूखे एवं बड़े जटा के आकार के होंगे वही कलियुग का प्रसिद्ध तपस्वी होगा.
जो अशुभ अर्थात मैला कुचैला वेष भूषा धारण करेगा तथा माँस मछली तथा मदिरा आदि अभक्ष्य चीजो का भोजन करेगा, समाज निन्दित कृत्यों में लगा रहेगा कलियुग में उसी “योगी” एवं “सिद्ध तपस्वी” क़ी पूजा होगी. जो सबसे ज्यादा अत्याचार करेगा समाज में उसी क़ी मान मर्यादा एवं इज्ज़त होगी, और जो मन कर्म एवं वचन से लबार या झूठा होगा वही कलियुग का महान वक्ता होगा.
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अब इसमें तुलसी बाबा को क्यों आपत्ती है कि किसी को बैठे बिठाए धन मिल जाए. क्या बैठे बिठाए धन ऐसे ही आसानी से मिल जाता है? इसके लिये बहुत बिलक्षण बुद्धि क़ी ज़रुरत होती है. इसके लिये सरकार द्वारा स्थापित एवं विधि मान्य किसी उच्च शिक्षण संस्थान से प्राविधिक एवं राजनीति निर्धारित किसी प्रयोग शाला से प्रायोगिक अनुभव क़ी आवश्यकता होती है. अब देखिये, चुनाव में लोगो को घर बैठे ही रुपयों क़ी ढेरी पहुँच रही है. TGT एवं अन्य नौकरियों में स्थान सुनिश्चित करने के लिये रिश्वत के रूप में ही सही लोग घर बैठे ही बोरी में भर कर रुपया पहुंचा दे रहे है. तों अब इस तरह यदि आराम से रुपया मिल जा रहा है तों दिन रात एक कर के तथा खून पसीना बहा कर पैसा इकट्ठा करने क़ी क्या आवश्यकता है? अब तुलसी दास के पास तों न तों इतनी बुद्धि थी और न ही इतना प्रायोगिक कौशल. तों फिर चिढ़ना किस बात का?
ठीक है क़र्ज़ एवं उधार लेकर ही ठाट बाट से लोग रहते है. तों इसमें तुलसी बाबा को क्या करना? भाई जो क़र्ज़ लेता है उसकी उतने बड़े लोगो से पहचान होती है. बड़े धनी लोगो तक पहुँच होती है. क़र्ज़ मिल जाता है. अब तुलसी बाबा के तों परिचित बाबा नरहरि दास थे. जिनके पास खुद ही “टूटी तवा और फूटी कठौती” थी. वह कहाँ से किसी को क़र्ज़ देते? दूसरी बात यह कि भले क़र्ज़ है तों क्या रहते तों ठाट बाट से है? कहा है-
“यावत् जीवेत सुखं जीवेत. ऋणं कृत्वा घृतं पिवेत. भस्मी भूतस्य शरीरस्य पुनरागमनो कुतः कुतः?
अर्थात जब तक जीयो सुख से जीयो. भले क़र्ज़ लेना पड़े लेकिन घी ही पियो. यह शरीर तों नश्वर है. यह शरीर फिर कहाँ इस संसार में आयेगा.
अपने तो खुद जीवन भर जंगल पहाड़ में घूमते रहे. न कही सिर ढकने का ठिकाना न कही पेट भरने का जुगाड़. खुद तों कभी “बिल्डिंग” में रहे नहीं. दूसरे को देख कर ज़लने से क्या फ़ायदा? अगर माहिर एवं कुशल परिंदा होते तों उनका घर द्वार भी सोफा सेट एवं एवं विविध रंग रोगन से सजा रहता. तेल इतर आदि से घर गमकता रहता. तों बेचारे तुलसी भविष्य को देख घुटते ही रह गये.
लेकिन एक बात ज़रूर है. उनके ज़माने के लोग कम शौक़ीन नहीं थे. आज लोग “हेयर स्टाईल” का नाम “कलाम कट” तथा “फ्रेंच कट” आदि नाम से रख कर बड़े बड़े लटकते हुए बाल रखते है. पुराने ज़माने में तों लोग बाल कटवाते ही नहीं थे. वे लम्बे लम्बे बाल कमर तक लटकते हुए रखते थे. ठीक है आज औरतो का. बाल वगैरह कटवा कर चोटी गूंथने क़ी झंझट से मुक्त है. न कंघी क़ी ज़रुरत और न ही तेल सिन्दूर क़ी आवश्यकता. औरतो पर दया कर के बिचारे पुरुष अब खुशबूदार तेल और स्टायिलिस बाल रख कर उन्हें इस झंझट से मुक्त कर दिये है. इसी लिये तों तुलसी भविष्य को देखकर तरसते ही रह गये.
इतना ही था तों इतना लंबा चौड़ा राम चरित मानस का पोथन्ना लिखने क़ी क्या ज़रुरत थी? अरे भाई लिखना था- “नारी श्रृंगार वर्णन”, नखशिख वर्णन”, नारी उद्धार, नारी उत्थान, नारी संवेदना, नारी आरक्षण, नारी अधिकार, तथा “नारी कब तक भोग्या’ आदि. चमक जाते तुलसी दास. देखिये, कालिदास ने “कुमार संभव” में माता पार्वती का नख शिख वर्णन तथा “मेघदूतम” में नदी का सौंदर्य चित्रण किया तों उन्हें विद्योत्तमा जैसी पढी लिखी कुशल सुन्दर पत्नी मिली. भले ही परिणाम स्वरुप वह कोढी हो गये. तथा “रघुवंशम” महाकाव्य लिखने पर इस कुष्टरोग से उन्हें मुक्ति मिली.
तुलसी के ज़माने में मूरख राज्य था. लोग “चिकन बिरियानी”, मसाल दोसा”, मुर्ग मुसल्लम”, नूडल्स, मग्गी ,, कुलचा जैसे फास्ट फ़ूड का नाम नहीं जानते थे. जिन्दगी गुजर गयी साग पात खाने में.
भूमि शयन बल्कल वसन असन कंद फल मूल. ते कि सदा सब दिन मिलै सबुई समय अनुकूल”.
उनको तों चाट मसाला, चना मसाला, छोला बठूरा नसीब हो नहीं सका. इसीलिये जब उन्होंने ज्योतिष के सहारे उन्नतशील कलियुग के भविष्य को देखा तों बिचारे छटपटा कर रह गये. अब उनको खाने को अंडाकरी, कबाब और चाऊमीन नहीं मिल पाया तों उन्होंने लिख दिया कि कलियुग में लोग भक्ष्याभक्ष्य खाना खायेगें. व्हाट ब्लडी तुलसी !!!
अब उनको एक बात ज़रूर हुई कि उन्हें “किडनी फेल्योर’, बाईल स्टोन”, “बवासीर’, “ब्रेन हैमरेज”, ब्रेन ट्यूमर’, “अल्सर’, कैंसर” तथा “एड्स” आदि नहीं हुआ. तों यह तों सामान्य बात है. यह सब हुआ तों क्या हुआ? कम से कम ज़िंदगी का असली मज़ा तों मिल गया. डर्टी फूल तुलसी !!!
बात लबार क़ी आती है. तों आप खुद सोचें, यदि कालाधन सरकार के खजाने में ज़मा हो जाय तों फिर जिसने रात दन जी मर कर इसे इकट्ठा किया है उसका क्या होगा? क्या सब राम देव के समान भीख मंगा और यहाँ वहा घूम घूम कर मदारियों क़ी तरह “कपाल भारती” और नेती धोती दिखाने वाले हो जाय? आप खुद ही सोचिये यदि नेता लोग झूठ नहीं बोले तों उन्हें कौन वोट देगा? फिर वे कैसे मंत्री बनेगे? समाज में ऊंचा स्थान और मान मर्यादा पानी है तों लबार तों बनना ही पडेगा. अब अगर तुलसी को यह सब पसंद नहीं है तों यह उनकी मज़बूरी है.
जिसके लबों को पीरजादी ने कभी चूमा नहीं
अंगूर क़ी बेटी के साए में कभी झूमा नहीं
तेरी रही बदकिश्मती पण्डित जो ऐसी हूर को
आगोश भर सीने लगा कूचे गली घूमा नहीं.
——————————————क्रमशः———————————————–
पण्डित आर. के. राय
प्रयाग

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