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तुलसी दास शराबी क्यों नहीं बने? भाग 3

वेद विज्ञान
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लाल” ही रहती. इतना तों पता सरकार को है ही.
परम ज्योतिषी सन्तशिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास ने अपनी गणना के बल पर इसे जान लिया था. इसीलिये सन 1573 अर्थात लगभग 500 वर्ष पहले ही इसका उल्लेख अपनी परम पावनी रचना “श्री रामचरित मानस” में कर दिया. गलती तों तुलसी दास ने किया ही. उन्हें इस सच्चाई को उजागर नहीं करना चाहिए था. और अच्छा हुआ जो संवत 1680 में ही अर्थात सन 1623 में ही गंगा में डूब कर जान दे दिये. अब चाहे गंगा में डूब कर जान दें या गंगा के किनारे प्राण त्याग करें. उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. कारण यह है कि आज अगर ज़िंदा होते तों उनकी इस रचना को “सेंसर” कर के उन्हें देश निकाला दे दिया जाता. या फिर शर्म के मारे वे खुद ही खुदकशी कर लेते. पर इससे बहुतेरे अनुसंधान कर्ताओं क़ी रोजी रोटी छीन जाती. जो उनकी इस रचना के तवे पर अपने अनेक उलटे सीधे विचार एवं आलोचना क़ी टेढ़ी मढी रोटियों पर दिखावटी ही सही, आदर क़ी चटनी एवं सम्मान के “तड़का” का लेप लगाकर ‘रिसर्च फेलो” के नाम पर कमाई एवं प्रतिष्ठा दोनों प्राप्त कर रहे है. सूकरखेत या शूकरक्षेत्र स्थित विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर नरहरी दास द्वारा दिये गये “शोध विषय’ श्री रामचरित मानस पर संग्रहीत समस्त पापनाशिनी, भवभय हारिणी एवं सकल कलिकलुष नशावनी कथा के कुछ अंश , पिछले अंक से आगे प्रस्तुत है-
“नारि बिबस नर सकल गोसाईं. नाचहि नर मर्कट क़ी नाईं.
शूद्र द्विजन्ह उपदेशहि ग्याना. मेली जनेऊ लेही कुदाना.
सब नर काम लोभ रत क्रोधी. देव विप्र श्रुति संत विरोधी.
English version-
Men are everywhere subject to women and dance to their tune like an acrobat’s monkey. Sudraas instruct the twicw-born in theology and assuming the Brahmanical Cord take their infamous gains. everyone is addicted to sensuality, avarice and violence, and flouted the gods, the Brahmanas, the Scriptures and the saints.
अर्थात हे गुसाईं ! समस्त संसार नारी के माया पास या चंगुल में फंस जाएगा. जैसे मदारी अपने प्रशिक्षित बन्दर को अपने इशारों पर नचाता है, उसी प्रकार सारे पुरुष नारी के संकेत पर नाचते नज़र आयेंगें. शूद्र ज्ञान का उपदेश ब्राह्मणों को देगें. तथा जनेऊ पहन कर दान दक्षिणा लेने लगेगें. प्रत्येक मनुष्य काम, लोभ एवं क्रोध में सदा लगा रहेगा. तथा देवता, ब्राह्मण, श्रुति-उपनिषद् एवं संतो क़ी निंदा करेगा.
अरे तुलसी बाबा, अच्छा हुआ जो पहले ही संसार से स्थायी संन्यास ले लिये. अन्यथा अगर आज कल के ‘क्रिकेटरों” क़ी तरह केवल “टेस्ट क्रिकेट’ से संन्यास लेकर थोड़े दिन के लिये भी “एक दिवसीय क्रिकेट” के लिये रुक गये होते. तों क्या हश्र डालमिया जी ने गांगुली का किया था, आप भी समझ जाते. लेकिन बड़े ताज्जुब क़ी बात है कि आप अपनी ही बात क्यों भूल गये?
“अवगुण आठ सदा उर रहई. नाथ पुराण निगम अस कहई.
साहस, अनृत, चपलता, माया. भय, अविवेक, अशौच, अदाया.”
अर्थात हे नाथ ! औरतो के हृदय में निम्न आठ अवगुण सदा ही विराज मान रहते है- साहस- बिल्कुल सही, वासना क़ी भूख शांत करने के लिये यदि अपने नवजात शिशु का गला भी घोटना पड़े तों इनका हाथ नहीं काँपेगा. जो शिशु कितनी तोतली भाषा में “मा’ के परम दुर्लभ पुकार एवं सारी सत्ता से ऊपर के आदर एवं ममता से सुशोभित करता, उसके गला दबाने में अच्छे अच्छो का दिल डूबने लगेगा. यह सबके वश क़ी बात नहीं है. केवल या तों एक नारी कर सकती है या फिर “निठारी” में नारी (माया-जन, जर और ज़मीन) के वीरेंदर सरीखे दैत्य दलाल ही कर सकते है. यह तों एक पक्ष है दूसरा पक्ष यह भी है कि प्रसव पीड़ा बहुत ही भयंकर होती है. एक बच्चे को जन्म देने में मा के प्राण तक जा सकते है. किन्तु वात्सल्य के अनुपमेय आनंद क़ी काल्पनिक अनुभूति मात्र से ही वह असह्य वेदना हंसते हंसते स्वीकार कर लेती है. किन्तु पुरुष को? राम राम राम राम. केवल यदि बवासीर ही हो जाय तों छट्ठी का दूध याद आ जाता है. बच्चा जनना तों दूर क़ी बात है.
तुलसी बाबा को यह बात नहीं लिखनी चाहिए थी. क्योकि इससे उनकी ही बेइज्ज़ती होती है. वैसे तों यह सारा संसार ही जानता है कि तुलसी बाबा ने उत्कृष्ट “आशिकी” का नमूना पेश किया है. उन्होंने अपनी पत्नी रत्नावली क़ी क्षण भर भी जुदाई बर्दास्त नहीं क़ी. भारी बरसात के भयंकर थपेड़े खाते हुए घटाघोप भयंकर अंधेरी रात में भी अपनी ससुराल में रत्नावली के यहाँ पहुँच गये. यहाँ तक कि अँधेरे में उनको यह भी पता नहीं चला कि जिस रस्सी पर लटक कर खिड़की में प्रवेश करते हुए वह अपनी बीबी के कक्ष में प्रवेश कर रहे है वह रस्सी नहीं बल्कि एक सर्प है. बाह रे आशिक तुलसी !!! और दूसरो पर व्यंग्य वाण चलाते है. अब यह कोई ज़रूरी है कि सब लोग अपनी माशूका या आशिक से मिलने के लिये इतना लफडा उठायें? तों यदि “बार” तथा पिकनिक, पाठशाला एवं पार्टी आदि में ही यह सब मसला हल हो जाता है तों क्या बुरा है? हाँ यह ज़रूर है कि आज के आशिक एवं माशूका पुलिस के लात घुसे खाते है. जेल जाते है. फिर छूट कर वही काम करते है. किन्तु तुलसी क़ी बीबी रत्नावली ने एक ही वचन का “बोक्सिंग” मारा-
“अस्थि चर्म मय देह मम तामें ऐसी प्रीती.
तैसी जो श्री राम मंह होत न तव भव भीति.”
अर्थात मेरी इस हाड माँस के नश्वर शरीर से इतनी प्रीती रखते हो. यदि इतना ही प्रेम श्री राम से करते तों दुनिया में तुम्हारे कष्ट दूर हो जाते. तुम्हें कोई भय ही नहीं रह जाता.
इतना ही कहना तुलसी दास को राम भक्त, संत शिरोमणि, गोस्वामी एवं परम पूज्य बना दिया. तों क्या हुआ? जवान बीबी के घर में रहते खाना बदोशो क़ी तरह इधर उधर भटकते हुए ज़िंदगी गुजारनी पडी. खैर यह रत्नावली का साहस ही था जो अपने पति क़ी मुक्ति, उद्धार एवं सत्पथ दर्शन के लिये पति वियोग सहना शिरोधार्य कर लिया. अब पता नहीं रत्नावली ने अपना शेष जीवन कैसे गुज़ारा? क्योकि रत्नावली के किसी भी “ब्वाय फ्रेंड’ का कही उल्लेख नहीं हुआ है. तुलसी दास तों खैर अपनी “जटाधारी पार्टी” के साथ भटकते हुए भगवान श्री सीताराम के चरणारविन्द में अपना तन, मन एवं धन लगाए अपना एवं अपनी आगे पीछे क़ी समस्त पीढ़ियों का नाम सदा सदा के लिये अमर करते हुए इस सांसारिक कुचक्र से सदा के लिये मुक्त हो गये. तों इसमें कौन सी बड़ी बात हो गयी? हम कौन सा इस दुनिया में सदा जीवित रहेगें. अंतर इतना ही होगा कि –
“ह़र दिन क़ी रोशनी ड़ाल जाया करेगी तेरी कब्र पर नूर गुल बकावली.
जूतियाँ तों कम से कम मेरी भी कब्र पर कभी फेंक जाया करेगी कोई दिलज़ली.”
अनृत- झूठ बोलने में भी नारी ने किसी को बाज़ी नहीं मारने दी है. एक सासारिक नारी क़ी भूमिका अदा करते हुए जब माता सती ने भगवान शिव से पूछा कि हे आशुतोष भगवान शिव शंकर ! आप को तों तीनो लोक चौदहों भुवन भजता एवं पूजा करता है. फिर आप से बड़ा यह राम कौन है जिसकी पूजा आप करते है? भगवान शिव ने बताया कि श्रीराम अयोध्या नरेश महाराजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र है. तथा अपनी माता के आदेश से वनवास में है. अभी उनकी परम प्रिया पत्नी जगज्जननी माता जानकी का राक्षसराज रावण ने अपहरण कर लिया है. उन्हें ही खोजते हुए वह जंगल में घूम रहे है. माता सती ने पूछा कि क्या मै उनके दर्शन कर सकती हूँ? कुछ देर तक सोचने के बाद भगवान शिव ने उन्हें अनुमति दे दी. माता सती उधर ही चल पडी. जिधर भगवान राम दंडकारण्य (वर्त्तमान में विजयवाडा) में अपने अनुज लक्ष्मण के साथ भटक रहे थे. माता सती ने भगवान राम क़ी परीक्षा लेने के उद्देश्य से सीताजी का रूप धारण कर लिया. तथा वही पहुँचीं जहां भगवान राम विश्राम कर रहे थे. भगवान राम ने उन्हें दूर से देखा. तत्काल उठ कर खड़े हुए. पहले प्रणाम किये. फिर चौंकते हुए पूछे कि हे माता ! मेरे आराध्य प्रभु भगवान भोले नाथ कुशल से तों है? क्या कारण पडा कि आप को वेष बदलना पद गया.? कही भोले नाथ से कुछ अनबन तों नहीं हो गयी? अभी तों माता सती चकरा गयीं. श्री राम उन्हें पहचान तों गयी ही ऊपर से प्रणाम भी कर दिये. और सबसे ऊपर अति तीखे वचनों में यह भी पूछ लिये कि कही शिव (पति) से अनबन तों नहीं हो गयी? एक औरत के लिये यह बहुत ही हृदयवेधी शब्द होता है कि उसका पति आचरण हीन है. तभी तों अनबन हो गयी. माता सती का सिर घूम गया. उन्हें अब चारो तरफ राम एवं सीता ही दिखाई देने लगे. उन्होंने घबडा कर आँखें बन्द कर ली. आँख बन्द होने पर भी उन्हें राम और सीता ही दिखाई दे रहे थे. फिर घबडा कर उन्होंने अपनी आँखें खोली. भगवान राम वहां से जा चुके थे. माता सती को बहुत पश्चाताप हुआ. वह बहुत दुखी हुई. सोच, चिंता एवं अनहोनी क़ी आशंका से भरी माता सती भगवान शिव के पास पहुँचीं. शिव जी ने उनके चहरे पर हवाईयां उड़ाते हुए देखा. उन्होंने कुशल क्षेम पूछा. माता सती ने बताया कि कोई बात नहीं है. भगवान शिव को कुछ संदेह हुआ. उन्होंने ध्यान लगाया. सब कुछ मालूम हो गया. उन्होंने कहा कि हे सती ! क्योकि तुमने माता जानकी का रूप धारण किया था. अतः अब तुम्हें इस जन्म में तों मुझसे दूर ही रहना पडेगा.
“शिव संकल्प कीन्ह मन माहीं. यहि तनु सती भेंट अब नाहीं.”
अर्थात शिव ने प्रतिज्ञा कर ली कि अब इस जन्म में तों भेंट नहीं ही होगा. अस्तु जो भी हो, ज्यादा इस सम्बन्ध में लिखने से विषयांतर हो जाएगा. इसी प्रकार शूर्पनखा ने भी झूठ बोल कर खर-दूषण, त्रिशिरा एवं बाली के साथ रावण, कुम्भ कर्ण आदि सबका नाश करवा दिया. प्रतिशोध क़ी आग में धधकती द्रौपदी ने झूठ बोलकर कौरवो का सर्वनाश करवा दिया.
“जाहु भले कुरु राज पै, धारि दूत को वेष. भूलि न जाना पै वहां केशव कृष्णा केश.’
अब ऐसे उकसाऊ, भड़काऊ एवं उत्तेजक वाणी को सुनने के बाद भगवान कौन सी सन्धि करवाते? अपनी गलती को छिपा कर झूठ बोलते हुए भगवान कृष्ण को वचनपाश में बाँध कर द्रौपदी ने महाभारत संग्राम करवा ही दिया.आज मै क्या एक उदाहरण दूं? बहुत दूर का उदाहरण न देकर मै अपने “सदृश कर्मी” का ही उदाहरण देना चाहूंगा कि सैद्धांतिक, लिखित, वैदिक, पौराणिक, वैज्ञानिक एवं व्यावहारिक प्रत्यक्ष अनेक उदाहरण उपलब्ध होने के बावजूद भी यह सफ़ेद झूठ बोलना नहीं तों और क्या है कि कुंडली मिलान अव्यावहारिक एवं अनावश्यक है. बड़े ही पश्चाताप के साथ यह कहना पड़ रहा है कि ऐसे ही लोगो के कुतर्क का आश्रय लेकर हमारे भारत वर्ष क़ी शीर्षस्थ न्याय पालिका “सर्वोच्च न्यायालय” ने यह व्यवस्था प्रदानं कर अनुमति दे दी है कि यदि “प्यार (?)” हो तथा लड़का लड़की दोनों बालिग़ हो तों भाई-बहन आपस में विवाह कर सकते है. शर्त है कि यदि “प्यार हो तों“. अब यदि पूछा जय कि “प्यार” का भूत सवार हो तों सम्बन्ध बना सकते है या विवाह कर सकते है. और जब विवाह के बाद “प्यार” का भूत उतर जाय तब क्या करें? खैर, यह अलग विषय है.
अब इसमें तुलसी बाबा का क्या जाता है? ब्रह्मा जी ने तों खुद एक लड़की (शतरूपा) को जन्म (उत्पन्न) किया. तथा उसी के साथ सहवास कर के मैथुनी सृष्टि को आगे बढाया. तों कोई अगर ज़िंदगी का लुत्फ़ लेने के लिये बहन से ही विवाह कर लेता है तों इसमें क्या बुराई है? यह अलग बात है कि आज ब्रह्मा जी के इसी कुकृत्य के कारण सदा सदा के लिये ज़र्ज़र (बुढापा) अवस्था में ही रहने का शाप मिला. और समाज बहिष्कृत हो गये. इसीलिये उनकी कही पूजा नहीं होती. सिर्फ पुष्कर (राजस्थान) में एक मंदिर है. वहा पर भी पिंड दान एवं श्राद्ध आदि का ही कार्य संपन्न किया जाता है. तों क्या हुआ हमेशा के लिये ब्रह्मा जी बूढ़े हो गये? कौन नहीं बुड्ढा होता है? मज़ा तों मिल गया. आनंद तों उठा लिया.
कुछ औरतें आज भी बेवकूफी करने वाली है. अपने पति क़ी रक्षा एवं यश कीर्ति के लिये महा भयंकर झूठ भी बोल जाती है. उनके लिये सुहाग सबसे बड़ा होता है. चाहे इसके लिये उन्हें कितना भी घृणित झूठ क्यों न बोलना पड़े? किन्तु ऐसी जाहिल औरत के बारे में क्या कहे? बस एक खूंटे से जानवरों क़ी तरह बाँधे रहो. अरे यार ह़र स्वाद का मज़ा चटखारे के साथ लो. कभी चटनी का, कभी सलाद का, कभी अंचार का तों कभी सांभर का. वही रोटी, वही चावल तथा वही दाल. स्वाद न बदले तों मन फीका रहता है एक ही खाना बराबर खाते खाते मन ऊब जाता है.
चपलता- अर्थात स्थिर न रहना. “क्षणे रुष्टा क्षणे तुष्टा रुष्टा तुष्टा क्षणे क्षणे”. क्षण भर में ही कब और कहाँ पैर फिसल जाय. इसीलिये कहा गया है कि “त्रिया चरित्रं पुरुषस्य भाग्यम देवो न जानाति कुतो मनुष्याः.” चंचलता इनके स्वभाव में कूट कूट कर भरा होता है. तों इसमें क्या बुरा है? कहा है “क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैती तदेव रूपम रमणीयताया” अर्थात ह़र समय जिसमें नवीनता का समावेश हो वही मनोहारी सौंदर्य होता है.इसीलिए तों आज ऊटी तों कल शिमला, परसों नैनीताल तों चौथे रोज़ मंसूरी. परिवर्तन होना चाहिए. देखिये कि क्या कभी लक्ष्मी (धन दौलत) एक जगह स्थिर रहती है? आज वही पैसा बैंक में, कल व्यापारी के यहाँ, परसों चोर के यहाँ तों चौथे रोज़ मधुशाला में. कहा भी है “पुरुष पुरातन क़ी बहू क्यों न चंचला होय?‘ अर्थात पुरुष पुरातन (भगवान विष्णु) क़ी बहू (पत्नी-लक्ष्मी) क्यों नहीं चंचला होगी? अर्थात अवश्य ही चंचला होगी.
एक बार बादशाह अकबर ने अपने प्रसिद्ध दरबारी बीरबल से पूछा कि दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है? बीरबल ने उत्तर दिया ” हे जहां पनाह ! दो या दो से अधिक औरतें एक स्थान पर हो. और चुप हो. यह कभी संभव ही नहीं है. यह सबसे बड़ा आश्चर्य है.”
माया- अर्थात फरेब इनका प्रधान परिधान है. दीनहीन भाव बनाकर सहज ही आँखों से आंसुओं क़ी झड़ी लगाना इनका श्रृंगार है. भगवान विष्णु ने औरत के इस महान गुण को पहचान कर ही समुद्र मंथन से प्राप्त विष को मनमोहक सुन्दरी का रूप धारण कर के और अपने नारी सुलभ विलक्षण मायावी हाव भाव के प्रपंच का शिकार बनाकर बलवान राक्षसों को पिला दिया. तथा देवताओं को अमृत पिलाया.
भय अर्थात डर- ज़रूर सामने वाला आदमी या औरत मेरे ही बारे में कोई न कोई बात कर रहा है. हमेशा किसी न किसी अनहोनी क़ी आशंका इनके मन में भरी रहती है.
अविवेक- अर्थात तर्क वितर्क से हीन. ये किसी विषय के बारे में उसके सद्गुण या दुर्गुण पर या उसकी आगे पीछे ज्यादा सोचना नहीं चाहतीं. बस एक बार सोच लिया वही अंतिम है. तार्किक रूप से वह सत्य या उचित है या नहीं इससे उन्हें कुछ नहीं लेना देना.
अशौच- अर्थात अशुद्धता. ऊपर से चाहे चमड़ी किताना भी गोरा चिकना क्यों न हो स्वभाव सदा अशुद्ध ही रहेगा.
अदाया- अर्थात निर्दयता. निर्दयता क़ी कहानी से प्राचीन वेद पुराण से लेकर आज तक के अनेक उदाहरण प्राप्त हो सकते है.
तों मिस्टर तुलसीदास यदि नारी सुख भोगना है तों मदारी क़ी तरह तों नाचना ही पडेगा. औरतें भी इस बात को भली भांति जानती है कि बस अपने भोंडे या अशलील या कामुक हाव भाव के एकाध लटके झटके दिखाओ और जिस तरह नचाना हो नचा लो. बाबा जी ! आप क्या जानते है कि यह आप का युग है? जी नहीं, इस युग में तों आप के छक्के छूट जायेगें. अच्छा हुआ जो रत्नावली जैसी सुशीला, पति परायणा, आदर्श एवं मर्यादा के साथ साथ लोक लज्जा का पालन कर अपने कुल एवं वंश क़ी परम्परा को जीवित रखने वाली पत्नी बिना किसी कठिनाई के ही मिल गयी. आज अगर होते तों पहले तों आप का “इंटरव्यू” होता. फिर आप क़ी “हाबी” का आंकड़ा पूछा जाता. आप का “वेट” पता किया जाता. कि कितने भारी आप है. आप बांहों में अपनी पत्नी को उठा सकते है या नहीं. उसके बाद कुछ दिनों तक “बिग बाज़ार” या “माल” में आप को अपनी “ताक़त” क़ी परीक्षा देनी पड़ती. फिर दोनों को कुछ दिन तक एक दूसरे को “समझने” के लिये कही “एकांतवास” में जाना पड़ता. ह़र तरह से “फिटफाट” होने पर ही “रत्नावली” मिलती. अन्यथा फिर यही टेस्ट दूसरी बार, तीसरी बार या कई बार भी देना पड़ता. भले विवाह के बाद “अधरोष्ठरोगन” या “लिप स्टिक” छूट जाने के बाद एक मानसिक रोगी या वैरागी का जीवन व्यतीत करना दुल्हे को अच्छा लगे. या जवानी के प्याले में “प्यार” क़ी मदमस्त मदिरा को पीते पीते सुध बुध खोकर दुल्हन क़ी पीठ पर सप्तम स्वर के अनुरूप उग्र ताल ठोकने से दुल्हे के साथ रहने से ज्यादा अच्छा दुल्हन को किसी मानसिक रोगी के चिकित्सालय में रहना लगे.
आगे-
गुण मंदिर सुन्दर पति त्यागी. भजहि नारि पर पुरुष अभागी.
सौभागिनी विभूषण हीना. विधवन्ह के श्रृंगार नवीना.
गुर सिख बधिर अंध कर लेखा. एक न सुनई एक नहीं देखा.
हरई शिष्य धन शोक न हरई . सो गुर घोर नरक मँह परई.
मातु पिता बालकन्हि बोलावहि. उदर भरे सोई धरम सिखावहि.
ब्रह्म ज्ञान बिनु नारि नर कहही न दूसरि बात.
कौड़ी लागी लोभ वश करहि विप्र गुरु घात.———————(उत्तरकाण्ड दोहा 99 {क}
बादही शूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाटि.
जाने ब्रह्म सो विप्रवर आँखी देखावही डाँटि.—————(उत्तरकाण्ड दोहा 99 (ख)
English Version-
Wives will desert their husbands, however handsome and accomplished, and adored instead any wretched stranger. Married women will appear without any ornaments, widows are bedecked with jewels. Teachers and pupils are of no more account than the deaf and blind; the one will not listen ; the other has never read. A teacher who takes his pupil’s money but does not rid him of his doubts falls into an awful abyss of hell. Father and mother call up their children and teach them the duty of filling their belly.
People who are devoid of spiritual knowledge talk about nothing else. In their greed they will kill a Brahman or their own “GURU” to gain a cowrie. Shudraas dispute with the twice-born, “Are you better than we are? Any one who knows Brahm is as good as the best of Brahmanas.” Thus do they insolently scoff. ————————Uttar Kaand 99 (a) & (B)

हिंदी –
सद्गुणी, आचारवान एवं सुशील (हो सकता है स्वरूपवान न हो) पति को छोड़ कर अभागिनी औरतें दूसरे स्वरूपवान (भले समस्त दुर्गुण क़ी खान हो) पुरुष से समबन्ध बनायेगीं
. सुहागिनी औरतें गहने एवं आभूषण से हीन होगीं. किन्तु विधवाओं (एवं वेश्याओं) के शरीर पर विविध गहने एवं आभूषण लदे रहेगें. तथा वे नित नए श्रृंगार से अपने शरीर को सजाये रखेगीं. गुरु एवं शिष्य दोनों का आचरण बहरे एवं अंधे का होगा. अर्थात गुरु को दिखाई नहीं देगा. तथा शिष्य को सुनायी नहीं देगा. ऐसे गुरु शिष्य का धन तों (दान दक्षिणा) के रूप में ह़र लेगें. किन्तु उनके शोक एवं शंसय का हरण नहीं करेगें. निश्चित रूप से ऐसे गुरु नरक गामी होते है. माता पिता अपने बच्चे को ऐसी शिक्षा ग्रहण करने क़ी प्रेरणा देते है जिससे उदा भरण हो सके. दुःख संताप का भले ही नाश न हो.
स्वयं ब्रह्म ज्ञान क़ी बिल्कुल जानकारी न रखते हुए भी कलियुग के नर नारी ऐसी बात करेगें जैसे उनसे बड़ा ब्रह्मज्ञानी कोई दुनिया में है ही नहीं. तथा कौड़ी या तुच्छ धन के लोभ में ब्रह्मण यहाँ तक कि अपने गुरु तक क़ी ह्त्या कर देगें.
शुद्र ब्राह्मणों से झगड़ा करते हुए कहेगें कि हम तुमसे किसी भी तरह कम नहीं है. कहते है कि जो ब्रह्म को जानता है वही श्रेष्ठ ब्राह्मण है और इस प्रकार डांट मारते हैं.
तुलसी बाबा को यह समझना चाहिए था कि भले ही अपने ज्योतिष के बल पर आज के वर्त्तमान समय में होने वाले क्रिया कलाप क़ी जानकारी उन्होंने प्राप्त कर ली थी. किन्तु खिसियानी बिल्ली क़ी तरह खम्भा नोचने से कोई फ़ायदा तों है नहीं. अब पत्नी को पति के आचरण एवं सभ्यता से क्या लेना देना? असभ्य हो, गंवार हो, जाहिल हो, चोर हो, डकैत हो, गुंडा हो या बलात्कारी. उसे तों और ज्यादा फ़ायदा ही होगा. यदि पति “ए वन कटगरी” का गुंडा होगा तों उसके डर से उसे भी कोई कुछ नहीं बोलेगा. चाहे जिस बियर बार में घुस जाय कोई पैसा नहीं मांगेगा. जिस किसी बस या टैक्सी से यात्रा करे कोई किराया नहीं मांगेगा. नहीं तों अपने पति से कह कर उसे मरवा देगी. अब सभ्य एवं आचारवान पति तों शर्म एवं मर्यादा क़ी रक्षा के लिये न तों किसी से झगड़ा करेगा और न ही गाली गलौज. वह पैदल चल लेगा लेकिन किसी से उलझेगा नहीं. तों ऐसे पति से क्या फ़ायदा?
सुहागिनी औरतें अपने सुहाग क़ी रक्षा के लिये गहने एवं आभूषण को प्राथमिकता नहीं देगीं. यदि पति को आवश्यकता पडी तों वह अपना समस्त वस्त्राभूषण बेच देगी. लेकिन उन्हें ह़र कीमत पर अपना सुहाग चाहिए. अब ऐसी बेवकूफ औरतो का क्या कहना? अरे भाई यदि शरीर सुन्दर और सजा धजा होगा तों पता नहीं कितने पति मिल जायेगें. यदि सजी धजी नहीं रहेगी तों कौन उनकी तरफ तरसती निगाह से देखेगा? कौन उसे देख कर आहें भरेगा? कौन “सीटी” मारेगा? अब तुलसी दास तों विवाहित होने के बावजूद भी “रंडुआ” क़ी ज़िंदगी बिताये. उन्हें इन सब के बारे में क्या पता?
फिर तुलसी दास जी कहते है कि कलिकाल में गुरु एवं शिष्य के मध्य बहरे एवं अंधे का सम्बन्ध होगा. पहले ज़माने में लोग दरिद्र एवं काहिल हुआ करते थे. इतनी फैक्टरी एवं “काल सेंटर” तों थे नहीं. लोगो के पास कोई काम नहीं था. लोग निकम्मे, बेकार एवं अनपढ़ हुआ करते थे. अखबार होता नहीं था. लोगो को देश दुनिया का ज्ञान नहीं हो पाता था. इतने अपटूडेट इक्विपमेंट नहीं होते थे. आज अगर गुरु अंधा नहीं होगा तों वह अपने शिष्य क़ी ह़र “प्यारी एवं आदर्श” हरक़त पर नज़र लगाए रखेगा. फिर कक्षा में बैठे शिष्य गुरु के चलते व्याख्यान में अपने सहपाठी से अगले पिकनिक के इंतज़ाम क़ी जानकारी कैसे प्राप्त करेगा? या फिर गुरूजी को दिखाई दे जाएगा कि शिष्य सुगन्धित मसालेदार उम्दा किस्म का पान-बीड़ा मुँह में दबाये हुए है. तों क्या पता कही गुरूजी भी एक बीड़ा मांग न बैठें. या फिर अर्ध नारीश्वर रूप धारी भगवान भोलेनाथ के परिधान क़ी नक़ल करते हुए अतिमनोहारी अर्द्धनग्न नयनाकर्षक वेष परिवेश में “कैट वाक्” करने वाले शिष्य एवं शिष्याओं पर चुभती नज़र गड़ा दें तथा पढ़ाने का विषय ही भूल जाएँ.
इसी प्रकार यदि शिष्य बहरे न हो तों क्या पता गुरु जी अपने अनेक “बाल सुलभ” भूमिका अदा करने वाले शिष्यों को भला बुरा कहें तथा शिष्य उसे सुन लें. और अति प्रसन्न मुद्रा में अपने अति आधुनिक तथा शिक्षण कक्ष में अनिवार्य “स्वचालित अग्न्यास्त्र” नामक लेखन सामग्री से गुरूजी का राम नाम सत्य कर दें. या फिर अपनी ब्रांडेड चरण पादुका से गुरूजी क़ी सेवा सुश्रुषा कर दें. इसलिये गुरुजी का अंधा एवं शिष्य का बहरा होना आवश्यक ही है.
जहा तक शिष्य के शोक चिंता आदि हरने क़ी बात है, तों क्या सब को निर्वन्शी हो जाना चाहिए? क्या गृहस्थी का जीवन नहीं अपनाना चाहिए? कारण यह है कि शोक एवं चिंता विमुक्त एक व्यक्ति तभी हो सकता है जब उसके आगे पीछे कोई न हो. बीबी होगी, बच्चे होगें तों चिंता तथा शोक तों होगा ही. अब रही बात शिष्य के धन हरने क़ी. तों अति आधुनिक साज़ सज्जा से सुशोभित वातानुकूलित “कोचिंग” में पढ़ाई करने पर भारी भरकम शुल्क तों देना ही पडेगा. हाँ, यह अवश्य है कि इस नए आधुनिक शिक्षण संस्थान “कोचिंग” क़ी दक्षिणा इतनी “हेवी” होती है कि शिष्य इसे दान देते देते दरिद्र हो जाते है. और बहुतो को तों फिर दुबारा पढाई से ही डर लगने लग जाता है. कुछ एक ऐसे ज़रूर होते है जो इस भारी भरकम दक्षिणा के बोझ को उठाते हुए ऐसी नौकरी पा जाते है जिस नौकरी से वेतन तों पाते ही है साथ में “ऊपर झापर” से अपनी दी गयी गुरु दक्षिणा भी मय व्याज के वसूल लेते है. वैसे तुलसी बाबा ने इसका संकेत रामचरित मानस में कर दिया है-
“राम नाम जे सुनहि जे गावहि. सुख सम्पति नाना विधि पावहि.
आप स्वयं देखिये, स्पष्ट रूप से इस चौपाई में कहा गया है कि सुख सम्पति तों पावहि. किन्तु नाना विधि पावहि. अब नाना विधि में एक तों वैधानिक विधि होती है. उसके अलावा और जो विधि है वह कौन सी है? तुलसी बाबा ने इसका संकेत तों कर दिया है. समझने वाले समझते रहे.
आगे तुलसी बाबा को दिखाई दिया कि कलिकाल में माता पिता अपने बच्चो को ऐसी शिक्षा प्राप्त करने के लिये दबाव डालेगे जिसमें ढेर सारा “माल” मिले. भाई, यदि पढाई में ढेर सारा माल खर्च करेगें तों पढाई के बाद उस माल को वापस भी तों लाना है. तों इसमें कौन सी गलती है? गाय, भैंस एवं बैल भेंड आदि को क्यों आदमी खिला कर मोटा ताज़ा बनाता है. इसीलिए तों कि बेचने पर ढेर सारा पैसा मिलेगा? अब लडके को इतना पढ़ाया लिखाया फीस, कापी, कपड़ा, किताब, कार, पेट्रोल, पार्टी आदि का खर्च. वह सब आखीर क्यों “इन्वेस्ट’ किया? इसीलिये तों कि खूब सारा माल मिलेगा?
फिर कहते है कि कलियुग में सभी लोग दर्शन एवं ज्ञान क़ी बात के अलावा और कोई बात ही नहीं करेगें. तों अब आप ही सोचिए. चोर कभी चाहेगा कि लोग उसे चोर कहें.? ट्रक एवं बस के अनपढ़, जाहिल एवं गंवार खलासी भी जो दिन भर यात्रियों के साथ गाली गलुज एवं मारापीटी करते है, शाम को जब “मयखाने” पर पहुँचते है तों उनकी वेष भूषा देख कर कोई नहीं कह सकता कि यह “ए कटगरी” का कर्मचारी नहीं होगा. भाई लोगो पर रुआब एवं बड़प्पन भी तों झाडना है. यहाँ पर तुलसी बाबा क़ी भावना बहुत ही संकीर्ण होकर रश गयी है. उन्हें नहीं पता कि-
सैर कर दुनिया क़ी गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ. ज़िंदगी जो कुछ रही तों नौज़वानी फिर कहाँ.”
तुलसी बाबा क़ी एक बात में थोड़ा भ्रम हो रहा है. उन्होंने ऊपर अपनी चौपाई में कहा है कि “हरई शिष्य धन शोक न हरई” यहाँ संदेह यह हो रहा है कि इसका अर्थ पता नहीं तुलसी बाबा के शब्दों में यह था कि “शिष्य के धन को ह़र लेते है किन्तु उसके शोक को नहीं हरते है’ या यह हुआ कि ” शिष्य के धन रूपी शोक को नहीं ह़र लेते है”. धन तों शोक का कारण है ही. इससे विविध उपद्रव उत्पन्न होते है. नित्य नयी झंझट, कभी “इनकम टैक्स”, कभी “रंगदारी टैक्स’, तों कभी “फिरौती टैक्स” आदि अनेक चक्कर जगा रहता है. तों शायद तुलसी बाबा ने यही सोच कर कहा है कि “जो गुरु शिष्य के धन रूपी शोक का हरण न कर ले वह घोर नरक में गिर पड़ता है.” तों ठीक ही तों है. पहले पढाई के समय “ट्यूशन” का शुल्क, पढाई के बाद परीक्षा में नक़ल कराई शुल्क, उसकी बाद “पास कराई” शुल्क, उसकी बाद “मैरिट” में ” परसेंटेज” बढाई शुल्क, उसके बाद “नौकरी लगाई’ शुल्क. इस प्रकार गुरु जी लोग बड़ी ही विनम्रता पूर्वक “स्लो प्वायिजन’ क़ी तरह धीरे धीरे शिष्य क़ी समस्त ज़मा पूँजी को समेट कर उसे धन बटोरने क़ी झंझट से मुक्त कर देते है. और इस प्रकार अपने शिष्य का भार उतार देने के कारण वे नरक जाने से भी बच जाते है, जैसा क़ी तुलसी बाबा ने भी कह दिया है.
अंत में कहते है कि शुद्र लोग पंडितो से झगड़ा करते हुए उन्हें डांट कर कहेगें कि “हम तुमसे किसी भी तरह कम नहीं है. कारण यह है कि जो ब्रह्म को जानेगा वही ब्राह्मण होगा.” यहाँ तुलसी बाबा गलत कह गये है. शायद भविष्य गणना में उनसे थोड़ी बहुत चूक हो गयी. या ऐसा लगता है कि लिखते समय लिखना कुछ और था और लिख कुछ और गये. असल में तुलसी बाबा यह जान गये थे कि कलियुग में लोग नकलची होगें. दूसरे क़ी बीबी सुन्दर और अच्छी लगेगी. दूसरे का काम सरल लगेगा. दूसरे क़ी नौकरी अच्छी कमाई वाली नज़र आयेगी. इस लिये ब्राह्मण लोग शुद्रो का काम करना शुरू कर देगें. तथा वे लोग खुद ही शुद्रो को यह मौक़ा देगें कि जो भी शुद्ध एवं पवित्र काम हो वह करें और जितना भी घृणित एवं पतित काम हो वह ब्राह्मण लोग खुद करें. आगे मैं तुलसी बाबा के इस कथन को भी उन्ही के शब्दों में अर्थात चौपाई के रूप में आप के सामने रखूंगा. या अगर समय हो तों आप स्वयं उत्तर काण्ड के दोहा संख्या 99 (ख) के आगे वाली आठवीं चौपाई पढ़ लें. तों अब इसमें शुद्रो का क्या दोष?
हाय रे तुलसी बाबा !! क्या पडी थी आप को इस कलियुग क़ी ऐसी सच्चाई के पर्दाफास क़ी? अब आप ही बताईये, आप तों बच जायेगें गाली सुनने एवं मार खाने से. कारण यह है कि कोई कितना भी बड़ा अपराधी या घोटाले बाज़ क्यों न हो , यदि मर गया तों वह मुक़द्दमा बन्द हो जाता है. जैसे हर्षद मेहता मर गये, शेयर घोटाला केश बन्द हो गयी. राजीव गांधी मर गये, बोफोर्ष तोप घोटाला केश बन्द हो गयी. कल्प नाथ राय मर गये चीनी घोटाला केश बन्द हो गया. तों आप तों हे तुलसी बाबा मर गये. किन्तु मै आप ही के कथन को सबके सामने रख रहा हूँ. तों मै तों अभी ज़िंदा हूँ. मेरा क्या होगा?
“आप क़ी दुनिया का मै दीदार क्या किया.
आप क़ी सारी खुशियों का इज़हार क्या किया.
दुनिया ही दांव पर लगी पण्डित है तुम्हारी
हैवानियत से लड़ने का इक़रार क्या किया?
——————————————————–क्रमशः————————————————–
पण्डित आर. के. राय
प्रयाग

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