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प्रयाग का रहस्य भाग 2

वेद विज्ञान
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मेरे प्रिय श्रद्धालु एवं सरल हृदय पाठक गण
यद्यपि मैंने संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास विरचित कालजयी रचना “श्री रामचरित मानस” से उद्धृत “कलियुग वर्णन” का वृत्तांत प्रस्तुत करना प्रारम्भ किया था. जो आज प्रत्यक्षतः एवं अक्षरशः प्रमाणित है. मुझे ज्ञात है कि इससे बहुतो को कष्ट पहुंचता होगा. किन्तु मै अपना कोई व्यक्तिगत कथन नहीं बल्कि तुलसी दास क़ी वाणी ही आप के सम्मुख प्रस्तुत करता हूँ. मै अति शीघ्र ही उस वर्णन को आप को प्रस्तुत करूंगा. किन्तु यहाँ पर अपने पिछले लेख “प्रयाग रहस्य” के कुछ छूटे अंशो को प्रस्तुत कर रहा हूँ.
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बाल ब्रह्मचारी हनुमान जी को राजा बीरभद्र क़ी कन्या का यह शाप था कि जो कन्या या औरत तुम्हें स्पर्श करेगी उसका वैवाहिक जीवन तहस नहस हो जाएगा. इसी के चलते हनुमान जी सदा औरतो से दूरी बनाए रखते थे. आप ने देखा होगा कि चाहे कोई भी मूर्ती हनुमान जी क़ी हो प्रत्येक मूर्ती में उनके कंधे पर राम लक्ष्मण तों बैठे होते है किन्तु राम एवं सीता कभी उनके कंधे पर बैठे नहीं दिखाई देगें. यही कारण पडा कि हनुमान जी श्री राम क़ी अगवानी करने के लिये प्रयाग में गंगा जी के तट पर प्रतीक्षा करते रहे. गंगा जी को लांघ कर आगे नहीं बढे.
इधर श्रीरामचन्द्र जी पुरुरवा नगर (वर्त्तमान में इस स्थान का नाम झूंसी है) के रास्ते गंगा जी को पार न करके श्रीन्गवेर पुर क़ी तरफ से गंगाजी को पार किये. इसका विवरण मैंने पिछले लेख में दे दिया है. भारद्वाज ऋषि ने उन्हें प्रयाग दर्शन कराते हुए अक्षय वट का दर्शन कराये. वहा पर रात विश्राम किये. उसके बाद चित्र कूट को प्रस्थान किये. किन्तु हनुमान जी गंगा के तट पर ही अपने आराध्य देव भगवान राम क़ी प्रतीक्षा करते करते सो गये. तभी विशुलोमा नामक राक्षशी जो दुर्मुख क़ी पुत्री थी उसने अपने पुत्र विशुलोम को गंगा किनारे तपस्या कर रहे ऋषियों को मार कर लाने को कहा . ताकि वह भोजन कर सके. वह उधर गंगा के किनारे पहुंचा. अभी वह किसी ऋषि मुनि या ब्राह्मण क़ी ह्त्या करता, हनुमान जी क़ी नज़र उधर पड़ गयी उनहोने पहले तों उसे मार डालना चाहा. किन्तु तत्काल उन्हें पता चला कि इधर राक्षसों का संहार भगवान राम को ही करना है. उन्होंमे उसे जान से नहीं मारा. तथा उसे अपने पैरो के नीची दबाये रखा. कि भगवान राम आयेगे तों इसे उनके सुपुर्द कर देगें. हनुमान जी उसे वही पर दबाये ही वही पर सो गये. इधर भगवान सूर्य को यह पता चला कि राम ने जान बूझ कर हनुमान के साथ छल किया है. तों उन्हें बहुत दुःख हुआ. उन्होंने राम से कहा कि हे राम तुमने यह अच्छा नहीं किया. तुम्हारी प्रतीक्षा मेरा पुत्र से भी प्रिय शिष्य तथा तुम्हारा भक्त हनुमान करता रह गया. और तुम उसकी उपेक्षा जान बूझ कर किये हो. भगवान राम एक रहस्यमयी मुस्कराहट के साथ बोले कि हे मेरे कुल देव ! आप का क्रोध स्वाभाविक ही है. किन्तु आप सोचें कि क्या उचित होता यदि मै गंगा पार करते ही हनुमान से मिलता और हनुमान मुझे लेकर उड़ाते हुए सीधे अपने राजा सुग्रीव के पास पहुँच जाते? भगवान सूर्य देव बोले कि क्या तुम को पता नहीं है कि हनुमान सीता को लेकर नहीं उड़ सकता है? भगवान राम बोले कि यही बात मैं आप के मुख से कहलवाना चाहता था. अब आप ही बताएं कि यदि मै यही पर हनुमान से मिलता तों वह मुझे भी स्पर्श करता तथा सीता के भी चरण छूता. और उसकी जन्म जन्मान्तर क़ी तपस्या भंग हो जाती. यहाँ भगवान राम जो कहना चाहते थे उसे छिपा कर भेद भरी दृष्टि से भगवान सूर्य क़ी तरफ देखने लगे. फिर बोले कि किन्तु मै यह वरदान देता हूँ कि जिस किसी मोह, लालच या स्वार्थ के चलते हनुमान को मेरी प्रतीक्षा में गंगा तट पर सो जाना पडा, उस लेटे हुए हनुमान क़ी छबि जो कोई भी देखेगा उसे संसार क़ी कोई भी माया, भय, जादू, टोना, नज़र-गुज़र, वशीकरण, भूत, वैताल पिशाच, हाकिनी, डाकिनी, प्रेत, मानसिक पीड़ा, मृगी आदि नहीं व्यापेगा. यह मेरा वरदान है. और प्रत्येक वर्ष इसके चरण एक बार गंगा को धोना ही पडेगा. यदि गंगा प्रत्येक वर्ष इसके चरण नहीं धोएगी तों इसका पानी स्नान-पान के योग्य नहीं रहेगा.
भगवान राम यह बताना चाहते थे कि मुझे बहुत सी नारियो का अभी उद्धार करना है. और यदि यही पर हनुमान मेरे साथ हो जाता तों मै एक तरफ औरतो के उद्धार का संकल्प लिया हूँ. और इसके कारण सब औरतो का अनिष्ट होता चला जाता.
मै यह बता दूं कि सम्पूर्ण रामचरित मानस हनुमान जी के इस प्रभाव के उदाहरण से भरा पडा है. तारा (बाली क़ी स्त्री), मंदोदरी (रावण क़ी पत्नी) तथा संज्ञा (भगवान सूर्य क़ी पत्नी) आदि यही नहीं लंका में सीताजी का चरण स्पर्श अंत में उन्हें जीते जी भगवान राम से अलग कर ही दिया. यही बात श्री रामचंद्र जी सूर्यदेव से स्पष्ट नहीं कह पा रहे थे. कारण यह था कि उन्हें लोक लाज एवं मर्यादा का पालन करते हुए अपने कुलदेव के सम्मुख यह कहना कि उन्हें पत्नी से अलग रहना पडेगा, एवं समय बिताना पडेगा, अच्छा एवं उचित नहीं जान पडा.
अस्तु जो भी हो, तब से आज तक गंगा किनारे हनुमान जी क़ी मूर्ती उसी तरह सोई अवस्था में विराज मान है. जब मुग़ल शासक अकबर, कणव, गौतम, कश्यप आदि ऋषियों के आश्रमो को ध्वस्त कर किला बनवा रहा था तों किले क़ी दीवार के रास्ते में ही हनुमान जी क़ी यह मूर्ती पड़ रही थी. उसने पंडितो से वह मूर्ती वहां से हटाने को कहा. पण्डित जी लोग सोचे कि यदि मूर्ती नहीं हटाई जारेगी तों यह मुसलमान बादशाह इसे तोड़वा देगा. इससे अच्छा है कि इसे अन्यत्र पूजा पाठ कर के स्थापित कर दिया जाय. सबने मिल कर बादशाह से प्रार्थना किया कि इसे किसी उचित स्थान पर स्थापना करवाने में आप का सहयोग चाहिए. बादशाह ने स्वीकृति प्रदान कर दी. उस मूर्ती के आधार के चारो तरफ गड्ढा खोद कर उसे उसी अवस्था में उठा लेने क़ी योजना बनी. आधार के चारो तरफ खोद डाला गया. तथा उसे उठाया जाने लगा. ज्यो ज्यो मूर्ती को ऊपर उठाने क़ी कोशिस क़ी गयी वैसे वैसे वह मूर्ती नीचे दबाती एवं धंसती चली गयी. यहाँ तक कि जब बीस पच्चीस फूट नीचे धंस गयी तों मारे डर के अकबर ने उसे वही पर छोड़ देने के लिये कहा. उसे यह बात पूरी तरह समझ में आ गयी कि यहाँ पर यदि हिन्दू धर्म से विरोध किया गया तों अनिष्ट हो जाएगा. इसी क्रम में उसने हिन्दू राजा मानसिंह क़ी बहन योद्धाबाई से विवाह भी कर लिया. तथा उसे स्वतन्त्रता प्रदान कर दिया कि वह अपनी रीति रिवाज़ से पूजा अर्चना किया करे.
“हनुमत स्तवन” में इस बात का उल्लेख आया है कि उनके पाँव के नीचे दबे हुए राक्षस एवं हनुमान जी के दाहिने हाथ से स्पर्श किये तुलसी पत्ते का, जब शनि अपनी उच्च राशि तुला, या अपनी राशियों मकर एवं कुम्भ या देवगुरु वृहस्पति क़ी राशियाँ धनु या मीन में रहते प्रत्येक शनिवार पान किया जाय तों बड़ी से बड़ी कठिनाई भी दूर हो जाती है. “कपीशरमणम” नामक दक्षिण भारतीय ग्रन्थ में इस बात का उल्लेख आया है कि दक्षिणावर्ती शंख से भरे जल को इस हनुमान जी के पैरो में गिराया जाय तों कठिन एवं असाध्य रोग भी दूर हो जाता है.
आज असावधानी या अज्ञानता के कारण इसकी प्रत्यक्ष वैज्ञानिक महता में कुछ कमिया आती जा रही है. जैसे इस मूर्ती के पाँव क़ी तरफ का हिस्सा जहां पर राक्षस क़ी मूर्ती है, वह क्युप्रोमेथिलेडीन ट्राईहाईड्रोफास्फेट का बना है. इस पर लगातार सैप्रोब्रोमायिड एवं कैल्सिफेरिक एसिड अर्थात सिन्दूर एवं धूम जनित पदार्थो के लेप या उसे चढाने से इसकी परावर्तन शक्ति क्षीण होती चली जा रही है. हो सकता है इससे इसकी आध्यात्मिक या पौराणिक शक्ति बढ़ती हो, किन्तु जो इसकी औषधीय शक्ति है, उसका नाश ही होता है. आध्यात्मिक या पौराणिक शक्ति के बारे में मै कुछ कह सकूं, यह मेरे सामर्थ्य में नहीं है. किन्तु मेरी राय यही है कि इस मूर्ती पर किसी भी पदार्थ का लेप न लगाया जाय. इसे इसकी मूल अवस्था में ही रखा जाय. या बहुत हो तों इसकी साफ़ सफाई के लिये केवल स्वच्छ पानी से हो धोया जाय तों इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका दर्शन मात्र ही अनेक कठिन रोगों के निवारण में सक्षम है.
सहायक ग्रन्थ- प्रोफेस्सर एस. एल. एम् स्टुअर्ट लिखित “Hanumaan at Allahabad”, ह्वेन सांग लिखित चमत्कारी हनुमान का विवरण, कपीश राघव, ब्रह्मा वैवर्त पुराण, श्री मद्बाल्मिकीय रामायण आदि.
सूचना- मुझे चीनी एवं तमिल भाषा का ज्ञान नहीं है. अतः विविध अनुवादको द्वारा किये गये अनुवादों के आधार पर दक्षिण एवं विदेशी ग्रंथो से उद्धरण प्रस्तुत है.
पण्डित आर. के. राय
प्रयाग

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