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राजनीतिक जातिवाद

वेद विज्ञान
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चुनाव एवं जातिवाद
भारतीय राज नीति में मुद्दे स्थानीय जनता की जाती, उनकी कमजोरी एवं अपनी पहुँच के आधार पर बनाए जाते है. इसमें एक मुदा जो जातिवाद का है वह जातीवाद नहीं बल्कि छल, कपट एवं धोखावाद है. कारण यह है कि जातीवाद जिस रूप में आज परिभाषित किया जा रहा है वह न तों कभी था, और न ही यह कभी समाप्त होगा. और इसे समाप्त करने का कोई औचित्य भी नहीं है.
आप ज़रा बताएं कि एक डाक्टर के बेटे को डाक्टर का बेटा नही तों किसका बेटा कहा जाएगा. आदि काल से ही यह प्रथा चली आ रही है कि किसी कार्य या विशेषता के आधार पर किसी नाम या संज्ञा का चुनाव होता है. जैसे यदि बाप चोर है तों यदि कभी अवसर आतेगा तों उसे चोर का ही बेटा कहा जाएगा. अब यह अलग बात है कि काने को काना कहने से वह गुस्सा हो जाता है. यही कारण है कि ह्त्या एवं अपराध एवं डकैती जैसे जघन्य कुकृत्य करने के बावजूद भी मंत्री जी मंत्री जी ही कहलाते है. तथा उन्हें जेल क़ी सज़ा होने के बावजूद भी जेल में उन्हें वे सारी सुख सुवधाएँ मुहैय्या कराई जाती है जिसकी कल्पना एक आम आदमी सपने में ही किया करता है.
जातिवाद किसी को नीचा या ऊंचा कर उसे प्रतिष्ठित या बेईज्ज़त करने का संकेताक्षर नहीं है. आज वकील के बेटे को वकील का बेटा कहते है. कालान्तर में वकील क़ी खानदान को वकील जाती का नाम प्राप्त हो जाएगा. जब कि हो सकता है कि वह मूलतः किसी हरिजन या दुसाध जाती से सम्बंधित हो. जातिवाद बनता रहेगा. बिगड़ता रहेगा. न ही इससे जनता क़ी कोई भलाई है और न ही कोई बुराई. किन्तु जो ज़हरीली भावना इसको परिभाषित करने के लिये प्रयुक्त क़ी जा रही है वह एक अति भयंकर प्रयास है जिसकी परिणति किसी भयावह परिणाम वाले भविष्य का संकेत दे रही है.
अब आप ही देखें. स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधान मंत्री स्वर्गीय पण्डित जवाहर लाल नेहरु स्वर्गीय श्री बंसी डार के पोते थे. आज भी जम्मू काश्मीर में यह “डार’ जाती प्रचलित है. जैसे अब्दुल मजीद डार आदि. बाद में यह “डार” शब्द “धर” में परिवर्तित हो गया. और श्री बंशी डार का नाम बदल कर बंशीधर हो गया. जब यह “डार” या ‘धर” परिवार कश्मीर से पलायित होकर दिल्ली में पहुंचा तों वहा भी मुग़ल सल्तनत से इन्हें कोई अनुकूलता नहीं मिली. तब ये लोग विविध स्थानों पर बसते उजड़ते अंत में इलाहाबाद पहुंचे. यहाँ पर भी बादशाहत ही चल रही थी. किन्तु एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थली होने के कारण उन्हें यहाँ रहना ज्यादा सुरक्षित लगा. और ये लोग नैनी के पास एक नहर के किनारे बस गये. यह परिवार पढ़ने लिखने में ज्यादा कुशाग्र बुद्धि था. इसलिये जब भी कोई लिखने पढ़ने या खाता बही निर्माण का काम पड़ता था तों बादशाह इनको बुलाता था. इसी तरह जब जब बादशाह को ज़रुरत पडी वह कहता था कि उस नहर वाले पण्डित को बुलाओ. धीरे धीरे यह परिवार “नहर” वाला और बाद में “नेहरु” हो गया. उसके बाद जब पण्डित जवाहर लाल नेहरु क़ी सुपुत्री पण्डित इंदु मति नेहरु एवं उनके पति फ़िरोज़ खान को महात्मा गांधी ने गोद लिया तों “नेहरु” उपनाम बदल कर “गांधी” हो गया. तथा पण्डित इंदु मति नेहरु पण्डित इंदिरा गांधी हो गयीं.
अभी इसमें जातीवाद क़ी क्या मानसिकता हो गयी.? कोई भी व्यक्ति अपनी रूचि, सामर्थ्य एवं आवश्यकता के अनुसार कोई व्यवसाय अपनाता है. और उसे इंगित करने या संबोधित करने क़ी सुविधा को ध्यान में रखते हुए उसी से उसका नाम करण कर दिया जाता है. अब यदि नीच स्वार्थ या ज़हरीली भावना क़ी सिद्धि के लिये उसको भ्रामक एवं विषाक्त रूप में जनता के सामने रख कर उन्हें बरगलाया जाय तथा उन्हें परस्पर मार काट करने के लिये उत्प्रेरित किया जाय तों वह तों जातीवाद के अलावा और भी अन्य तरीकों से किया जा सकता है. अब इसमें जातीवाद को क्यों दोष देना?
दूसरी बात यह है कि यदि जातिवाद एक गलत नारा है तों फिर सरकार इसे क्यों बढ़ावा दे रही है? और थोड़ा या ज्यादा हमारा संविधान भी इसके लिये ज़िम्मेदार है. यह क्यों जाती एवं वर्ग के आधार पर आरक्षण एवं सुविधा दे रही है? इसीलिये तों ताकि दूसरी जाती या वर्ग के लोग इनसे दुश्मनी एवं दूरी बनाए रहे? अनुसूचित जाती, अनुसूचित जन जाती, पिछड़ी जाती, अति पिछड़ी जाती, क्रीमी लेयर आदि जो नाम दिये गये है. क्या ये कालान्तर में नयी जातियां नहीं बन जायेगीं? क्या समस्त अनुसूचित जाती के लोग गरीब एवं पिछड़े है? यदि ऐसा है तों उत्तर प्रदेश क़ी मुख्य मंत्री सुश्री मायावती किस गरीब क़ी श्रेणी में आती है? लोक सभा अध्यक्ष मीरा कुमार किस पिछड़ी श्रेणी में आती है? अब तों समूचे धर्म-मुसलमान, को ही आरक्षित कर दिया गया है.आखीर इस प्रकार शासकीय तौर पर नयी जातियों एवं धर्मो का सृजन किस बात का द्योतक है. क्या यह अंग्रेजो क़ी “फूट डालो और राज्य करो” वाली राज नीति नहीं है? एक शान्ति से सुखमय जीवन बिताने वाले परम प्रसन्न गाँव-नगर को जाती एवं धर्म के टुकड़ो में बाँट कर तथा उनका ध्यान हो रहे उनके शोषण से हटाकर उन्हें तबाह करना नहीं तों और क्या है?
तों यदि सरकार एवं संविधान ने इसे मान्यता प्रदान कर रखी है तों आम जनता एवं नेता लोग यदि इसका फ़ायदा उठाते है तों इसमें क्या बुराई है?
यदि भारतीय राजनीति को सुन्दर स्वस्थ एवं शुचिता पूर्ण रूप प्रदान करना है तों जो सरकारी एवं संवैधानिक स्तर पर समाज का जातीय करण किया जा रहा है उसे तत्काल समाप्त करना ही होगा. इसके सिवाय और कोई विकल्प नहीं है. वरन एक दिन ऐसा आयेगा कि लोग इस जातिवाद के विष से मरणासन्न होकर रह जायेगें. तथा इन मरणासन्न लोगो के वोट से मंत्री बन कर नेता लोग इन्ही क़ी संपदा-बौद्धिक एवं रुपया-पैसा, सब नोच खसोट लेगें और आम जनता का यह धन विदेशी बैंको क़ी शोभा बढ़ाएगा. जिसे अपने देश में वापस लाने के लिये इन्ही मंत्रियो के आगे गिड़ गिदाना पडेगा जिन्होंने यह धन वहा पर जमा कर रखा है. आप स्वयं ही सोचें, ऐसा कौन बेवकूफ होगा जो कहेगा कि “आ बैल मुझे मार”? कौन मंत्री या सरकार अपनी जन्म जन्म क़ी गाढ़ी कमाई परस्पर लड़ने भिड़ने वाली मूरख जनता को बांटेगा?
पण्डित आर. के. राय
प्रयाग

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