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जागरण मंच क़ी खिताबी जंग

वेद विज्ञान
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“तिलकऊ पण्डित” और कहाँ वेद वेदान्त का सार स्वरुप अति पवित्र, प्रातः स्मरणीय “वर्त्तमान भारतीय राजनीति” . मेरी भी बुद्धी सठिया गयी है. किन्तु अभी साठ साल का तों हुआ नहीं. फिर सठियाया कहाँ से? मुझे लग रहा है, रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने व्याज दर नहीं बल्कि उम्र दर घटा दिया है. इसीलिए मेरा “साठा” पहले ही आगया. खैर जो भी हो. मै मुख्य विषय पर ही अपना “ध्यान योग” केन्द्रित करना चाहूंगा. अन्यथा जागरण मंच द्वारा बांटे जा रहे “नोकिया” मोबाईल का पुरस्कार मेरे हाथो से निकल जाएगा.
——-????——–क्या लिखूं जो मेरे लेख पर ढेर सारी प्रतिक्रियाएं (गालियाँ ही सही) मिलें? क्योंकि गालियाँ भी तों प्रतिक्रिया क़ी गिनती में आयेंगीं ही. जागरण मंच ने यह घोषणा नहीं क़ी है कि प्रतिक्रिया में गालियों को सम्मिलित नहीं किया जाएगा. किन्तु ठहरा तों मै भी पुरा पोंगा पण्डित ही. अब देखिये, आज तक किसी के भी लेख पर मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं व्यक्त क़ी थी. पता नहीं मेरे दिमाग का “स्क्रू” रात को कैसे ढीला हो गया और मैंने श्री संतोष कुमार जी द्वारा लिखित “प्रयाग यात्रा संस्मरण” पर अपनी टिप्पणी दे ही दी. अब बताईये भला, बिना मतलब का ही उनकी प्रतिक्रियाओं क़ी संख्या में एक अंक बढ़ गया. अब भला ऐसे लापरवाह आदमी को कभी “जागरण मंच” द्वारा कोई ‘इनाम’ दिया जा सकता है? यहाँ पर बहुत ही चौकन्ना होकर प्रतिक्रिया देनी पड़ेगी. नहीं तों दूसरे के लेख पर क़ी गयी प्रतिक्रियाओं क़ी संख्या निरंतर बढ़ती चली जायेगी.
लेकिन क्या बताऊँ भगवान को? उन्होंने मुझे दो ही कान दिये है. तों मै तों सिर्फ “दोकन्ना” ही हो पाउँगा. चार कान रहते तों “चौकन्ना” हो पाता. अब “दोकन्ना” और “चौकन्ना” में तों अंतर होगा ही. लेकिन चार कान तों जानवरों के भी नहीं होते है. फिर आदमी के कैसे होगें? सुना है रावण के दस सिर थे. तों उसके भी तों बीस कान होगें. फिर वह तों “बीस कन्ना” होगा. लेकिन कही भी यह नहीं बताया गया है कि बीस कन्ना ज्यादा चतुर होता है बनिस्पत चौकन्ना के. ठीक ही बात है. तभी तों वह बेवकूफ सुन्दरी सीता का अपहरण कर के अपने महल में नहीं रखा. ले जा कर अशोक वाटिका में रखा. और परिणाम स्वरुप उसे स्वयं तों काल के गाल में समाना ही पडा. अपने साथ अपने समूची खानदान क़ी लुटिया डुबो दी. उसको कम से कम सोलह कान कटवा देने चाहिए थे. उसे किस बात क़ी कमी थी? उसके पास तों “सुषेन‘ जैसे चिकित्सा विशेषज्ञ (Medical Specialist) एवं शुक्राचार्य जैसे शल्य चिकित्सक (Surgical Specialist) उपलब्ध थे. लेकिन शायद वे दोनों सरकार द्वारा “रजिस्टर्ड” नहीं थे. इसीलिये उसने उन दोनों पर भरोसा नहीं किया. अब देखिये मै फिर कहाँ से कहा भटक गया. “विवाह होवे हल का और गीत गावे जुवाठा का“. बात कहाँ कर रहा था और कहाँ पहुँच गया?
तों मैं बात कर रहा था जागरण मंच द्वारा दिये जा रहे इनाम क़ी. जिसे ज्यादा प्रतिक्रिया प्राप्त होगी तथा जिसके लेख को ज्यादा से ज्यादा लोगो द्वारा पढ़ा जाएगा उसे जागरण मंच द्वारा पुरस्कृत किया जाएगा. अब अगर मै पाठको से प्रार्थना करूँ कि हे परम प्रिय, परम श्रद्धालु, परम श्रद्धेय, प्रातः स्मरणीय, पूज्य पाद, स्वनाम धन्य, विद्वत शिरोमणि पाठक समुदाय !!! मुझ पण्डित पर दया कर के आप प्रत्येक शुभ चिन्तक मेरे लिये इस बार दस दस प्रतिक्रियाएं दें. ताकि इस बार का पुरस्कार झक मार कर जागरण मंच को मुझे ही देना पड़े. अब आप कहेगें कि एक आदमी दस प्रतिक्रिया कैसे दे सकता है? मेरे परम हितैसी पाठक वृन्द ! हिन्दुस्तान में तों एक मतदाता पता नहीं कितने “वोट” डालता है. एक एक “कंडीडेट” दो दो “चुनाव ” क्षेत्र से चुनाव लड़ रहा है. हमारे इस “प्रजातांत्रिक” भारत में तों यह सुविधा नहीं बल्कि अधिकार प्राप्त है. तों यह कोई मुस्किल काम तों नहीं है. थोड़ी सी “चौकसी” दिखानी पड़ेगी. पर मै भी कितना “मूरख” हूँ? सब तों मेरी ही तरह इस पुरस्कार पर “गिद्धदृष्टि” जमाये हुए है. तों कौन चाहेगा कि उससे ज्यादा मुझे प्रतिक्रिया मिले?
लेकिन ऐसी बात नहीं है. मेरे जैसे हो सकता है कि और भी बिना कान आँख के मेरे ही समान या मुझसे भी “श्रेष्ठ” रचनाकार होगें. और बिल्कुल निश्छल एवं निर्विकार भाव से बिना अपने भूत, भविष्य एवं वर्त्तमान क़ी चिंता किये “भारतीय क्रिकेट टीम” क़ी तरह आग्रह के साथ “हे कंगारू वाहन देव ! ‘सब कुछ तुझको अर्पण'” कर के स्वाभिमान से सब कुछ “जुवे’ में हार जाने क़ी तरह सिर ऊंचा किये भारत के पवित्र धरा धाम पर अपना चरण कमल रख इस देश को कृत कृत्य करेगें.
अभी कुछ दिन पहले एक विद्वान रचनाकार का “मेल” मुझे मिला. वह पहले इस “जागरण मंच” पर अपनी रचनाएँ देकर (शायद) अपना बेशकीमती वक़्त जाया करते रहे हैं. और उन्होंने अब शायद कोई बेहतर मंच (अपना मदारी दिखाने के लिए) चुन लिया है. पर मैंने तों बहुत जगह ढूंढा जहां मेरे भवसागर से तारने वाले परम उच्च श्रेणी के साधु प्रशंसित एवं चमत्कारी लेख प्रकाशित हो सके. दो एक जगह मिला भी तों वहां ऐसे मनभावन लुभावन पतित पावन सब (कुछ?) पाप नशावन “इनाम” देने का कोई प्रावधान ही नहीं है. इसलिये मन मारकर या झक मारकर फिर मुझे इस “जागरण मंच” का ही शरण ग्रहण करना पडा. खैर मै इस ‘जागरण मंच” को छोड़ कर इतना ज़ल्दी कही नहीं जाने वाला. मै हाड तोड़ मेहनत करूंगा ताकि यह “इनाम” मुझे मिले.
लेकिन फिर मै यहाँ पर गलत बोल गया. यदि हाड ही तोड़ दूंगा तों फिर इनाम में मिलने वाले “नोकिया” मोबाईल से बीएसएनएल के नेट वर्क पर गला फाड़ कर चिल्ला चिल्ला कर किस ताक़त से बात करूंगा? वैसे बी एस एन एल वाले बहुत ही दयावान है. जब देखते है कि कोई ग्राहक अब चिल्ला कर बोलेगा बस सिग्नल ही “डाउन’ कर देते है. और ग्राहक चिल्ला कर बोलने से राहत पा जाता है. वैसे इससे सरकार को “रेवेन्यू” का नुकसान तों होता है. किन्तु अब सरकार के नुकसान के लिये बेचारे ग्राहक को क्यों परेशान करना? वैसे लोगो ने बीएसएनएल का फुल फ़ार्म भाई साहब नहीं लगेगा” गलत बताते है. अरे यह तों “भय शोक नाशक लिंक” है. फिर मै कहाँ बहक गया. मैं पुनः आप का ध्यान अपने लोक लुभावन लेख क़ी तरफ आकर्षित करना चाहूंगा.
जी हाँ. मैंने पिछली रात को आनन् फानन में लेखनी को भोथरा करते हुए पहले बाज़ी मारने के चक्कर में एक लेख लिख ही दिया. लेकिन जब विचार करना शुरू किया तों मुझे वास्तविकता का पता चला कि प्रतिक्रिया तों दूर कोई इसे पढ़ने क़ी ही ज़हमत नहीं उठाएगा. और फिर “जैसे उडि ज़हाज़ क़ी पंछी पुनि ज़हाज़ पर आवे” क़ी भांति घूम फिर कर अपने पुराने स्थान पर आ गया. और मौनी अमावस पर लेख लिखा. मुझे एक कथा यहाँ विवश होकर घुसेड़ना पड़ रहा है. क्योंकि मै देख रहा हूँ, मेरा यह लेख बहुत छोटा हो रहा है. फिर मेरी विद्वता क़ी कीमत ही क्या रह जायेगी? लोग कहेगें कि इसे कुछ आता जाता नहीं. बस अब कुछ नहीं लिख सका. बुद्धि इतने में ही ठस्स या फुस्स हो गयी. इसलिये इस लेख को खींच तान कर बड़ा कर रहा हूँ.
एक बार एक ऋषिवर नदी में स्नान कर तर्पण कर रहे थे. उधर आकाश मार्ग से एक कौवा अपनी चोंच में एक चुहिया दबाये उड़ता चला जा रहा था. अचानक वह चुहिया उस कौवे के चोंच से छूट कर उस ऋषिवर क़ी अंजली में गिर गयी. ऋषिवर दया वशात उसे उठाकर अपने आश्रम में लाये. तथा अपने तपो बल से उसे एक सुन्दर युवती बना दिये. कुछ दिनों बाद उन्होंने उसके विवाह क़ी बात सोची. उन्होंने उस सुन्दर बालिका को बुला कर पूछा कि हे वरानने ! मै चाहता हूँ कि तुम्हारी शादी सूर्य के साथ कर दूं.. देखो यह सूर्य देव सारे जगत को अपने अखंड प्रकाश से आलोकित कर रहे है. उस सुन्दरी ने उत्तर दिया कि हे तात ! सूरज से तों बड़ा बादल है. जो क्षण भर में ही उसे ढक कर अन्धेरा कर देता है. ऋषिवर ने कहा कि फिर बादल से ही विवाह कर लो. सुन्दरी ने उत्तर दिया कि हवा का एक झोंका बादल को तितर बितर कर देता है. ऋषिवर ने कहा कि हवा से विवाह कर लो. सुन्दरी ने कहा कि हवा चाहे कितना भी तेज़ क्यों न बहे वह पर्वत को टस से मस नहीं कर पाता है. ऋषिवर ने कहा कि फिर पर्वत से ही विवाह कर लो. सुन्दरी ने उत्तर दिया कि पर्वत से बलवान तों वह चूहा है जो उसके अँग प्रत्यंग में अपना बिल खोद कर सुख चैन से रहता है. ऋषिवर ने कहा कि फिर चूहे से ही विवाह कर लो. सुन्दरी झटपट तैयार हो गयी. ऋषिवर ने उसे पुनः चुहिया के रूप में परिवर्तित कर दिया. और दोनों क़ी शादी कर दी. दोनों हंसी खुसी से एक दूसरे के साथ चले गये.
तों संभवतः मेरे लिये भी यही उचित होगा कि मै अपने स्थान पर टिका रहू. ज्यादा इधर उधर ताक झाँक करने से जागरण मंच द्वारा फ्री में दिये जाने वाले “नोकिया मोबाईल फोन” के चक्कर में अपना खुद का खरीदा गया फोन भी न गँवा दूं.
अभी मै यह लेख लिख ही रहा हूँ कि एक मेरे अति शुभ चिन्तक प्रशंसक का फोन आया है कि मैं ज्योतिष द्वारा भविष्य गणना कर के बताऊँ कि मुझे स्वयं को यह पुरस्कार राशि मिलेगी या नहीं. अब इस ज़नाब को क्या उत्तर दूं? आप ही सोचिये, यदि गणना में कही यह निकल गया कि यह “इनाम’ मुझे नहीं मिलेगा तों जो थोड़ी बहुत नित्यप्रति अपने लेखो पर लोगो क़ी प्रतिक्रिया देखने क़ी उत्सुकता लगी रहती है, वह चकनाचूर नहीं हो जायेगी? इसलिये मै दांत भींच कर उन्हें उत्तर दिया कि मुझे तों पता नहीं यह पुरस्कार राशि मिलेगी या नहीं लेकिन आप को तों नहीं मिलेगी. शायद मेरी इस भविष्यवाणी से हतोत्साहित होकर यह महानुभाव अपने लेख में वह रोचकता एवं पैनापन नहीं दे पायेगें जिससे उनका लेख प्रशंसा का पात्र बन सके.
जी हाँ, जैसा कि मै पहले ही आप को बता चुका हूँ कि मै वह ह़र प्रयत्न करूंगा जिससे यह इनाम मुझे ही मिले. चाहे इसके लिये मुझे भाषा, भाव, परम्परा, वेद, पुराण, रिश्ते-नाते एवं सदाचार इन सबकी ही मर्यादा क्यों न भंग करनी पड़े? जी हाँ, मै सिर्फ “मर्यादा भंग” क़ी ही बात कर सकता हूँ. इन सबके “शील भंग” क़ी बात मै इसलिये नहीं कर सकता क्योकि इसका स्तर बहुत ऊंचा है. और इस “अचूक वाण” का प्रयोग मंत्रिमंडल में स्थान पाने के लिये अपनी प्राणों से भी प्रिय जनता क़ी सेवा में तन मन धन से समर्पित कमलवत चरण वाले भारत विभूति जन प्रतिनिधियों द्वारा ही किया जाता है. अब चींटी मारने के लिये “बोफोर्स तोप” का तों प्रयोग किया नहीं जाएगा.
अब मै सोचता हूँ कि मेरा यह लेख आवश्यकता भर के लिये बड़ा हो गया है. कोई मुझे कम पढ़ा लिखा नहीं कहेगा. वैसे भारत के प्रजातांत्रिक सरकार में किसी को भी कुछ भी कहने क़ी भरपूर छूट प्राप्त है. तों कोई कुछ भी कहे वह तों उसका संवैधानिक अधिकार है. और दूसरी तरफ मेरा फ़ायदा ही होगा. प्रतिक्रियाएं बढेगीं. और फिर मैं जागरण मंच—————————————-???
पण्डित आर. के. राय
प्रयाग

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