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महाशिवरात्रि :- कब और क्यों?

वेद विज्ञान
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“ॐ ईशानो गिरीशो मृडः पशुपतिः शूली शिवः शंकरो. भूतेशो प्रमथाधिपो स्मरहरो मृत्युंजयो धूर्जटिः.
श्रीकन्ठो वृषभध्वजों ह़रभवो गंगाधरस्त्रयम्बकह. श्री रुद्रः सुर वृन्द वन्दित पदः कुर्यात सदा मंगलम.

आशुतोष भगवान शिव के परम प्रियपर्व शिवरात्री के पावन अवसर पर आप सब महानुभावो का स्वागत है. जिस शिवरात्री पर्व के आगमन क़ी प्रतीक्षा मानव ही नहीं बल्कि देव दानव सभी बहुत उत्सुकता से करते है. जिस महापर्व शिवरात्रि के आगमन क़ी आश लगाए धरित्री धैर्य पूर्वक जड़ जंगम एवं स्थावर के प्रत्येक शुभ एवं अशुभ कर्मो क़ी साक्षी बन वर्षपर्यंत उन्हें धारण किये रहती है. जिस महिमामय मुहूर्त के आगमन मात्र से समस्त चराचर में एक नयी स्फूर्ति एवं आशा क़ी उमंग जगती है. जिसके आगमन के पूर्व शीतोष्ण निशामुख समीर के साथ घुलकर आती हुई शिवरात्रि क़ी भीनी भीनी मीठी सुगंध के स्पर्श मात्र से ऋतुराज वसंत उमंग भरी अंगडाई लेने लगता है. जिसके आने के पूर्वाभाष मात्र से खेत में विविध रंगों के पुष्प-परिधान एवं गहने धारण किये जौ, गेहू, मटर, चना, सरसों आदि दलहन तिलहन फसलो के साथ अपनी गदराई मंजरी से समृद्ध होकर फलो के सिरमौर आम उनसे सिर मिलाकर मस्ती से मंजरी से टपकते मद से जीव जगत को मदमस्त करने लगते है. भयंकर जाड़े के हाड तोड़ ठण्ड से सिकुड़े हुए पेड़ पौधे, जीव जंतु आदि समस्त चराचर जगत शिवरात्री के आगमन क़ी पूर्व सूचना से उत्पन्न हर्षातिरेक क़ी वासंतिक उन्माद क़ी ऊष्मा से उनीदी अंगडाई लेते हुए उठ खड़े होते है. तथा भगवान शिव के धरापर आगमन के समय को नजदीक जान भगवान कृष्ण के प्रपौत्र एवं चित्ररेखा के गर्भ से जन्म प्राप्त कामदेव अपनी त्रिलोक सुन्दरी अर्द्धांगिनी रतीदेवी के नेतृत्व में वासंती सेना के साथ अपने पांचो पुष्प-वाण से युक्त होकर भूत भावन भगवान भोले नाथ को रिझाने एवं सम्मोहित कर उन्हें काम पीड़ित करने के लिये कटिबद्ध हो जाते है. ऐसे मंगल विभूति एवं अति विचित्र शक्ति समृद्ध परम पूज्य पर्व महाशिवरात्री आप लोगो के लिये सदा मंगल कारी होवे.
स्वयं नग्न रहकर सबको अति सुन्दर वस्त्र आभूषण देने वाले, स्वयं घर-बार रहित होकर भी सबको महल अट्टालिका से संपन्न करने वाले स्वयं अभक्ष्य भोजन करने वाले किन्तु सबको छप्पन व्यंजन प्रदान करने वाले भगवान शिव क़ी पूजा अर्चना के लिये श्रद्धालु एवं भक्त जन उनके बारे में विविध कथाओं को कह सुन कर उन महामहिमामय भगवान शिव क़ी कृपा एवं दया प्राप्त करते है. उनके इस अतिविचित्र किन्तु पूज्य पर्व के बारे में विविध किंवदंतियाँ प्रचलित है. जो केवल कुछ श्रुतियो, पुराणों एवं दन्त कथाओं पर ही आधारित है. किन्तु प्रामाणिक रूप में इस महाशिवरात्रि का पावन पर्व क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे जो प्रधान एवं एक मात्र कारण है वह निम्न प्रकार है.
कुछ लोग कहते है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था. इसीलिए शिवरात्री मनाई जाती है. कुछ लोग कहते है कि इसी दिन भगवान शिव का अवतार हुआ था इस लिये शिवरात्री मनाई जाती है. विविध कथाओं का उल्लेख मिलता है. किन्तु जो प्रामाणिक कारण है वह निम्न प्रकार है.
यह ठीक है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था. किन्तु पार्वती का अवतार तों सती के देह त्याग के बाद हुआ था. किन्तु शिवरात्री तों उसके बहुत पहले से मनाई जाती रही है. क्योकि शिवरात्री के दिन ही जब मेनका पुत्री पार्वती ने भगवान शिव का अभिषेक कर भगवान शिव से यह आशीर्वाद पाया था कि उनकी शादी भगवान शिव से ही होगी. तों भगवान शिव ने यह आशीर्वाद दिया कि पार्वती क़ी शादी उनके ही साथ होगी. इस प्रकार शिव के विवाह से पहले से ही शिव रात्रि मनाने का विधान है. अस्तु जो भी हो.
एक बार क़ी बात है, एक बहेलिया शिकार करने के लिये घर से निकला. वह दिन भर जंगल में घूमता रहा. किन्तु देव विधान से उसे उस दिन कोई शिकार हाथ नहीं लगा. शाम हो गयी. वह चिंता से छटपटाने लगा. खूब दौड़ धुप करता रहा. फिर भी कोई शिकार हाथ नहीं लगा. रात हो गयी. अब उसे खूंखार आदम खोर जंगली हिंसक जंतुओं से डर लगने लगा. रात में कही कोई खतरनाक जानवर उस पर हमला न कर दे. यही डर उसे सताता रहा. इससे बचने का वह उपाय सोचने लगा. उसके दिमाग में यह विचार आया कि क्यों न किसी ऐसे पेड़ पर चढ़ कर रात बिताई जाय जिस पर कोई जानवर न चढ़ सके. फिर उसे एक बेल का पेड़ दिखाई दिया. उसमें बहुत बड़े बड़े कांटे निकले हुए थे. उसे वह बेल का वृक्ष अति सुरक्षित लगा. बहेलिया उसी बेल के पड़ पर चढ़ गया. एक ड़ाल पर बैठ गया. बैठे बैठे उसके दिमाग में यह आत्महीनता का भाव जागृत हुआ. वह सोचा कि आज तों वह जवान है. उसके बाजुओं में ताक़त है. फिर भी आज वह अपने बीबी बच्चों के लिये भोजन क़ी व्यवस्था नहीं कर पाया. उसके बच्चे आज भूखे सोयेगें. भोख से तड़पते बच्चे किसी तरह रात बितायेगें. इसके अलावा घर सूना पाकर कोई अन्य हिंसक जंतु मेरे बच्चो को मार न डाले. यही सोच सोच कर उसके आँखों में आंसू आ गये. वह रोने लगा. आँखों के अंशू बह बह कर पेड़ के नीचे गिराने लगे. चिंता में पड़ कर नाखून से कभी ड़ाल कुरेदता. कभी पत्ते तोड़ तोड़ कर गिराता. संयोग से उस पेड़ के नीचे एक बहुत पुराना शिव लिंग पडा था. उसके गिराए पत्ते उस शिवलिंग पर ही गिरते गये. तथा उसके अंशु भी उस शिवलिंग पर ही गिरते रहे. आंशुओ से भगवान का अभिषेक होता रहा. तथा उनके ऊपर बेल के पत्ते गिरते रहे. इस अभिषेक पूजन से भगवान शिव प्रसन्न हो गये. वह वहां पर प्रकट हुए. भगवान शिव बोले, “हे बहेलिया ! तुमने संध्या से लेकर अर्द्ध रात्रि उपरांत तक बेल पत्र एवं आंशुओं से मेरा तीन प्रहर का पूजन किया. मै तुमसे प्रसान हूँ. वर मांगो”. बहेलिया बहुत चकित हुआ. उसे कुछ समझ में नहीं आया. वह सोचने लगा कि वह क्या वर मांगे. तभी उसे विचार आया कि आज उसके घर पर भोजन नहीं है. उसके बच्चे भूखे सो रहे है. उसने बोला कि हे भगवान यदि आप वर ही देना चाहते है तों यही वरदान दीजिये कि मेरे बच्चो को भोजन मिल जाय. भगवान शिव बोले कि आज तुम्हारी सारी भूख शांत हो जाय. यह मेरा वरदान है. बहेलिया बोला कि मुझे क्या पता कि मेरे बच्चो को भोजन मिल गया या नहीं? भगवान शिव बोले कि मेरे आशीर्वाद के बाद यद्यपि कुछ भी असंभव नहीं है. फिर भी तुम्हे विश्वास होवे, इसलिए मै तुझे तुम्हारे घर पहुंचा दे रहा हूँ. और यह वरदान दे रहा हूँ कि आज क़ी तिथि को जो भी प्राणी जल से अभिषेक करते हुए मेरे ऊपर बेल पत्र चढ़ाएगा उसे सब कुछ प्राप्त हो जाएगा. उसके सारे दुःख दूर हो जायेगें. उसे कोई भय बंधन, चिंता या शोक नहीं रह जाएगा. हे बहेलिया तुम्हारे कारण मै यह अमोघ वरदान संसार को प्रदान कर रहा हूँ. आज त्रयोदशी तिथि है. यह तिथि आज क़ी बाद सारे प्राणियों के दुःख को हरने वाली हो जायेगी. तब से वह तिथि अर्थात त्रयोदशी तिथि जगत में “शिवरात्री” के नाम से प्रसिद्ध हुई.
सिद्धांत ग्रंथो के अनुसार जो त्रयोदशी तिथि रिक्ता अर्थात चतुर्दशी से विद्धा होगी वही शिव रात्रि कहलायेगी. और तब से शिव रात्रि को महिमामंडन एवं प्रसिद्धि प्राप्त हुई.
पण्डित आर. के. राय
प्रयाग

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