स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा भाषा निबद्ध मति मंजुल मातनोति
संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास ने जब श्री रामचरित मानस लिखा तों उन्होंने पहले ही कह दिया कि उन्होंने भगवान श्री राम क़ी कथा अपने अन्तः करण के सुख के लिये लिखी है. क्योकि-
कवि विवेक नहीं एकउ मोरे. सत्य कहौ लिखी कागज़ कोरे.
अर्थात मुझे कवि से सम्बंधित कोई ज्ञान नहीं है. मै यह बात बिल्कुल सत्य कह रहा हूँ. इसके बाद वह लिखते है कि –
एहि पर जे नर करिहे शंका. ते नर मो ते अति जड़ रंका.
अर्थात इस पर जो कोई भी शंका करेगा. वह मुझसे भी ज्यादा बेवकूफ एवं दरिद्र है.
ठीक इसी प्रकार इस जागरण मंच पर हम जो कुछ भी लिखते है. वह इस ध्येय से नहीं लिखते है कि हमारा ब्लॉग फीचर्ड होगा, या ज्यादा प्रतिक्रिया मिलेगी या ज्यादा लोग क्यों नहीं पढ़ते. हमारा काम है अपने विचार अपने ज्ञान को लोगो के सामने प्रस्तुत कर देना. यदि सम्पादक ने इसे फीचर्ड कर दिया तों ठीक है. अन्यथा इससे लेखक का कुछ नहीं बिगड़ता है. यदि किसी सर्वथा योग्य पोस्ट को सम्पादक फीचर्ड नहीं करता है तों निश्चित ही वह अपने मंच के पाठको एवं लेखको क़ी संख्या में कमी करता चला जाएगा. या अपने इस मंच को दागदार बनाता है. इसलिये किसी भी लेखक को इससे निराश नहीं होना चाहिए.
दूसरी बात यह कि हम अर्थात लेखक अपनी रोजी रोटी इस मंच से नहीं चलाते है. किन्तु सम्पादक तों अपनी रोजी रोटी इसी मंच से चलाता है. तों सबसे पहले वह अपने व्यवसाय के लाभ क़ी ही बात सोचेगा. जिस तरह से वह अपने मंच के लिये ज्यादा से ज्यादा धन जुटा सके. यदि वह भी आदर्श, न्यायोचित, पूज्य, आदरणीय एवं देश, राष्ट्र एवं मानवता के लिये काम करने लगे तों वह भी तुलसी दास क़ी तरह “टूटी तवा अरु फूटी कठौती” वाले घर में स्वयं भी फांका मारेगा एवं बाल बच्चे भी नामचीन ख्यातिलब्ध ठीकेदार के मातहत में निश्चित मज़दूरी पर किसी निश्चित तीर्थस्थल या भीड़भाड़ वाले जगह पर कमिसन पर भीख माँगते नज़र आयेगें. तों जिसके हाथ में अपने देश क़ी पूरी बागडोर थमाकर मंत्री, प्रधान मंत्री एवं मुख्य मंत्री बनाते है, तथा वे लोग भी लूट खसोट कर अपना “रेवेन्यू” बनाने पर लगे है, तों बेचारे सम्पादक क़ी क्या विसात?
अस्तु, जो भी हो, सूरज को किसी को दीपक दिखाने क़ी ज़रुरत नहीं है. यदि हमारी लेखनी में दम है, हमारे विचार में सार्थकता है, हमारे लक्ष्य में दृढ़ता है एवं हमारे भाव में उपयोगिता का पुट है तों चाहे जागरण मंच हमारे विचार को पब्लिश करे या फीचर्ड करे या न करे, उससे कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. केवल जागरण मंच ही नहीं है जहां हमारे विचारो को न समझा जा न सके. बहुत सारे और भी माध्यम है. मेरे लेख राची एक्सप्रेस, राजस्थान पत्रिका, लोकमत तथा नेसनल हेराल्ड के अलावा उर्दू के कौमी आवाज़ में भी प्रकाशित होते है. वेबदुनिया के पोर्टल पर भी प्रकाशित होते है. मत फीचर्ड करे जागरण मंच. आप ने देखा होगा, मै तों कभी इंतज़ार ही नहीं करता कि मेरा लेख फीचर्ड होगा या नहीं. अभी एक लेख प्रकाशित या फीचर्ड हुआ नहीं तब तक दूसरा पोर्टल पर आ जाता है.
मै देखता हूँ कि मेरे कुछ लेख तों केवल पचास लोग ही पढ़ते है. पाठको क़ी संख्या किसी किसी लेख में इससे आगे बढ़ती ही नहीं है. तों यदि पाठको क़ी ही रूचि नहीं है. तों इसमें जागरण मंच का क्या दोष?
खुदी को कर बुलंद इतना कि ह़र तक़दीर से पहले खुदा बन्दे से खुद पूछे बता तेरी रजा क्या है?
यद्यपि मै पाठको को दोष नहीं देना चाहता. किन्तु एक बात तों ज़ाहिर हो ही चुकी है कि पाठक किस तरह के लेख पढ़ना पसंद करते है. इससे उनकी नैतिकता, चरित्र, विचार एवं भाव का पता लग ही जाता है.
किन्तु मै एक बात सम्पादक मंडल से अवश्य कहना चाहूँगा कि इस मंच को केवल कमाई का ही एक माध्यम न बनावें. पेट तों अपना सूअर भी भर लेती है. लेकिन उसके पेट भरने एवं एक इज्ज़त दार के पेट भरने क़ी प्रक्रिया में अंतर है. पैसा तों चोर एवं एक वैश्या भी कमा लेते है. किन्तु उनके पैसा कमाने एवं एक इज्ज़त दार के पैसा कमाने में अंतर है. कम से कम इस तरह जागरण मंच क़ी इच्छा एवं नैतिकता तों प्रकट हो ही जाती है. पण्डित आर. के. राय प्रयाग
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