संवत्सर के अंत में जलने वाली यह होली पिछली सारी कठिनाइयों, कष्टों, दुःख एवं व्याधियों के साथ ही जल कर भष्म हो जाय. तथा नए संवत्सर में विविध रंग के रूप में नित नयी खुशियाँ मिले, इसी आकांक्षा के साथ-
AT THE END OF THIS HINDI YEAR LET ALL THE HARASSMENT, LOSS, MISERIES, CALAMITIES AND DISADVANTAGES GO TO THE TERRIBLE “HOLIKA” FIRE FLAME TO BE TURNED INTO THE HOLY ASHES OF DIFFERENT COLORS OF VARIOUS PLEASURES & HAPPINESS IN THE NEW YEAR.
होली की कथा से सब लोग भली भाँती परिचित है. इसकी कथा दुहराने से कोई विशेष फ़ायदा नहीं देख रहा हूँ. इस दिन क्या करें क्या न करें मैं इस पर अपनी बुद्धि एवं ज्ञान के अनुसार कुछ तथ्य प्रस्तुत करने का प्रयत्न कर रहा हूँ.
होलिका जलाने क़ी क्रिया एक अति पवित्र एवं आवश्यक कर्त्तव्य है. अब यह अपनी क्षमता एवं सामर्थ्य के ऊपर निर्भर है कि इसका आयोजन कैसे करें. इसका आयोजन सदा ही घर से या गाँव से दक्षिण दिशा में ही करें. आप स्वयं इस वर्ष होलिका दहन के समय देखिएगा, और ध्यान दीजिएगा उस समय उस क्षेत्र या स्थान पर जो वायु प्रवहण होगा वह दक्षिण दिशामुखी होगा. अर्थात वायु उत्तर से आयेगी एवं दक्षिण दिशा में जायेगी. मै आशा करता हूँ कि इस वर्ष आप ज़रूर इसे जानने की कोशिश करेगें. इसलिये इस होलिका में भर सक पवित्र लकड़ियों का इस्तेमाल होना चाहिए. चन्दन, उदुम्बर, प्लक्ष, आम्र, पलाश या जामुन क़ी खूब सूखी लकड़ी का प्रयोग होना चाहिए. कंटीले, दीमक या चींटी लगे या सड़े गले लकड़ी का प्रयोग नहीं होना चाहिए. ताकि इसमें धुवां कम से कम निकले. तथा उस स्थान, गाँव या क्षेत्र क़ी वायु अति शीघ्र तीव्र ऊष्मित होकर अंतरिक्ष क़ी तरफ ऊर्ध्व गामिनी हो जाय. इसमें धुप, अगर, तगर, गूगल, लोबान, चीड, देवदार आदि क़ी लकड़ी का चूर्ण डालें. और निश्चित मुहूर्त में इसमें आग लगायें.
यदि ज्ञान हो, या कोई ब्रह्मण हो या संस्कृत के श्लोक का सस्वर पाठ करने वाला कोई हो तों आवाहित पवित्र अग्नी क़ी स्थापना लकडियो में करे. जब आग जलानी शुरू हो तों सम्पूर्ण पुरुष सूक्त का पूर्वाभिमुख हो पाठ करे. जब सम्पूर्ण लकडियाँ जल कर शांत हो जाय तों उसके भष्म से टीका लगायें. अक्सर तांत्रिक एवं कापालिक लोग इस राख को विविध प्रयोग के लिये सुरक्षित रखते है. यह जो मैंने प्रक्रिया बतायी है वह एक सामूहिक कार्य है.
यदि किसी को व्यक्तिगत रूप से यह कार्य करना है तों दिन में ही घर के प्रत्येक कोने में जहां तक संभव हो सके कुश एवं पलाश क़ी दो छोटी छोटी लकड़ी रख दें. ये लकडियाँ गीली होनी चाहियें. सूर्यास्त के बाद जब होलिका दहन का मुहूर्त हो तों सारी लकडियाँ इकट्ठा कर लें. और कुछ और आम या चन्दन क़ी लकड़ी एकत्र कर उसी में ये सारी लकडियाँ ड़ाल कर घर के आँगन में या टेरेस पर कपूर एवं घी के सहारे जला दें. और उसके भष्म का टीका लगायें. शेष राख को पानी में बहा दें.
बहुत जगह मैंने देखा है कि घर क़ी महिलाएं इसमें शरीर का मैल भी ड़ाल कर जला देती है. जैसे महिलाएं परिवार के प्रत्येक सदस्य को बेसन एवं सरसों के चूर्ण से बने उबटन लगाती है. तथा उबटन के उतरन को इस होलिका के आग में जला देती है. यह एक अति अपवित्र एवं दुष्ट कार्य है. ऐसा कदापि न करें.
ये दो दिन अर्थात होलिका दहन के दिन एवं दूसरे दिन भर सक यह प्रयत्न करे कि जितने लोग आप से खुस हो सकें. आप के व्यवहार, आचरण एवं बोली चाली से जितने लोग इन दो दिनों संतुष्ट होगें यह निश्चित है कि आप अगले एक वर्ष तक प्रसन्न रह सकेगें.
यदि किसी को चर्म रोग हो तों इस राख को पूरे शरीर पर आराम से लगा ले तथा ढाई घंटे बाद हलके गर्म पानी से धो डाले. किसी साबुन या सुगंध का प्रयोग न करे. यह एक अनुभूत एवं वैज्ञानिक प्रयोग है.
प्रयाण वैतालिक के अनुसार यदि होलिका क़ी छानी हुई राख में शुद्ध एवं शोधित गंधक, रस कपूर एवं त्रिपत्रिका के सूखे पत्तो का चूर्ण मिलाकर भक्षण किया जाय तों भयंकर चर्म रोग यहाँ तक कि गलित कुष्ठ भी ठीक हो जाता है. सुनने में आया है कि बहुत लोगो को इससे फ़ायदा हुआ है. किन्तु मुझे इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिल पाया है. इसलिये मै यह प्रयोग करने के लिये किसी को आश्वस्त नहीं कर रहा हूँ. क्योकि इसमें कही सल्फोपेराफिनिक हाईड्रोफास्फायिड का योग मुझे नहीं मिल पाया है. हो सकता है कि मेरे आधे अधूरे प्रयोग में त्रुटि हो. मै इसे चुनौती नहीं दे सकता.
और अंत में त्रिलोकी नाथ भगवान विष्णु एवं जगत माता शक्ति पुन्जभूता जगदम्बा दुर्गा से प्रार्थना करूंगा कि नया संवत्सर आप के लिये वह ह़र नयी खुसी एवं सुख सम्पन्नता लेकर आये जिससे आप का सर्वांगीण विकाश एवं बहुमुखी उन्नति सुनिश्चित हो सके.
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