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यौवन क़ी सच्चाई.

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
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Respected Readers

To day as I came to read the following poem I got myself full of an spontaneous profound pessimistic thought-

  • We look before and after and pine for what is not
  • Our sincerest laughter with some pain is fraught
  • Our sweetest songs are those that tail of saddest thought.
    • No doubt that the whole world is full of cares and worries. There is neither rest nor peace of mind. Only in the lap of nature we can get rid of all these. And that’s why I am compelled to consider the seriousness of the teachings of the great teacher “NATURE”

    • मॉस मधुमास को सुबास भरी प्यास आस बात कुछ ख़ास कहे पण्डित सुनि लीजो.

    धरा को उबास अरु श्वास खड़े पास पास सीख नवनीत देत मन में गुनि लीजो.
    प्रकृति क़ी विकृति को समझा न बीज फाड़ धरती का सीना सिर ऐंठ दर्शायो है.
    पाकर शीतलता छोड़ मिट्टी में दबने क़ी गर्मी को मटर मंद मंद मुस्कायो है.
    चना बड़े चाव और गेहूं गरूर लिये धरती से चूस रस सीना फडकायो है.
    गोरा बनाने को चाम भूल घाम छाँव तितली अरु भौरन के काम भड़कायो है.
    लाल पीले नीले फूल झूमते तरुवर समूल भूल के ज़वानी क़ी झूठी तरुनाई को.
    बीता बसंत अंत आयो हेमंत छोड़ व्यसनी छछन्द सब दिगंत असनाई को.
    छोड़ अलसायीपन विमुख बयार यार तोड़ अंगडाई छोड़ मस्ती जवानी को.
    सरसों अरु तीसी चना छोड़ मोह पीले फूल चले खलिहान भूल अपनी परवानी को.
    हुए है ज़रूर धनी सूखे शरीर लिये बिछड़ो के पीर लिये नैन बिना नीर है.
    दियो न धियान छोड़ भावी पयान लागी भटके न दिशा कोऊ नदी बिनु तीर है.
    हाय भूल असली संपत्ति ज्ञान कीर्ति यश मद में मद माते रहे गाते गीत भौरन के.
    मोटे मोटे फलन के कवच तले धन छाप्यो लटक झटक झूमते चिढाते मुँह औरन के.
    आज बाल रूखे, तन ज़र्ज़र मन जार जार संपत्ति हमारी अब दूजे को जात है.
    आयेगा ब्याधा हाथ हंसिया दुधारी लिये काटेगा तिल तिल हाय कछू ना सुहात है.
    कूटेगा तन सिर टुकडे हज़ार लाख मर मर संजोया सहि बिपदा अरु घाम को.
    सूख गये आंसू नहीं बन पड़ता रोना अब हूक होता पण्डित न याद किया राम को.
    अंखियन के आगे है देखा सच्चाई चना मटर गेहूं सरसों को पूर्वी उदयाचल में.
    जन्मे तरुनाई आई शीतल बयार पायी भरयो पराग बहुरंगी फूल आँचल में.
    आज सिर कूंच कूंच तन को मंडाई होत छीनन को धन संपत्ति जो छिपायो है.
    काह कहो पण्डित रमेश राय देखि देखि हाल होय मोर जाके जग में भरमायो है.

    Pundit R. K. Rai
    Allahabad
    9889649352

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