कंस को मार रहे नहीं कृष्ण न उद्धव पांडव को कुल सारा.
जौं जग लागि किये विष पान तों शिव भगवान गये कैलाशा.
सौ अपकर्म किये दुष्कर्म तों पञ्च सितारा हमारहि वासा.
नारद लागि रहे दिन रात सिखावत ज्ञान की बात बिशाला.
बीबी न बेटा तबौ तिनके घर बार न द्वार भिखारी कराला.
कौन जो सत्य को पक्ष लियो न मरो न सहयो दुःख भारी से भारी.
मानि कहा पितु मातु गये बन राम सुबाहु मारीच संहारी.
नारि को हारि फिरे वन में लघु भ्रात को शक्ति निशाचर मारी.
अंत समय फल पाइ लियो धरती में घुसी जब जीवित नारी.
खूब बनायो दधीची को मूरख जौं जबरी मुनि को मरवायो.
ताहि को हाड को बज्र बना निज स्वारथ देवन्ह खूब सधायो.
सत्य की खातिर विष्णु विरंचि सदाशिव छोड़ दिये संसारा.
खोह पहाड़ अरण्य गुफा नद नाले बसे सुख चैन बिसारा.
साल बिताये युगादि बितायहु जीवन्ह के सुख सम्पति लागी.
तौ न मिले घर सुन्दर बिस्तर भोजन वस्त्र ये ऐसे अभागी.
देखहु इन्द्र करइ नहि काम न धाम कोऊ बस स्वर्ग विराजे.
नित्य नचावही नारि नवेली करे मदपान सिंहासन साजे.
इन्द्र को जो ललकारे निशाचर भागि चले तजि स्वर्ग पराई.
मूरख देव समूह लड़े देवराज को वापस स्वर्ग बिठाई.
सूर्य को पुत्र भयो यमराजहि भूत औ प्रेत संहाती बनायो.
दूजौ पुत्र भयो शनि राजा तिंहु नहि स्वर्ग में आसन पायो.
बाप फिरे दिन रात अकाशही बेटे हरे नित जीवन्ह प्राना.
दुःख करें ऋषि संत सबै सुख पावहि चोर लबार सयाना.
देख अपने देवी देवताओं क़ी बेढंगी चाल- देख पतित पावनी गंगा को.—–
तारण क़ी तोहे बानि परी तू अघी अनघी नहि जानति है.
पापी सुरापी पे करि के कृपा अमरेश के देश पठावति है.
विष्णु महेश के दूतन्ह से यमदूतन को पिटवावति है.
एक नंगा के सिर बैठी गंगा तू नाहक दंगा मचावति है.
अच्छा अब समझा- अर्थात सत्य नहीं तों असत्य भी नहीं. अधर्म नहीं तों धर्म भी नहीं. राम नहीं तों रावण नहीं. दिन नहीं तों रात भी नहीं. अरे मूरख आँखें खोल. देख तों भला-
माता जानकी के पास होती अगर माचिस एक वाटिका अशोक में सशोक त्राश पाती क्यों?
रावण के पास यदि होता कोई फायर ब्रिगेड कपि के जलाये स्वर्ण लंका जल जाती क्यों?
भीम सेन रखते कोई पिस्टल तमंचा अगर भारी भरकम मुगदर के पीछे पड़ जाते क्यों?
माता शीतला के पास होती बोलेरो एक गदहे बेचारे को सवारी बनाती क्यों?
लक्ष्मी जी के पास यदि होती फरेरो एक उल्लू क़ी पीठ दिन रात सहलाती क्यों/
पण्डित के पास कोई होता प्रसंग ठीक लेखनी बेचारी नहि होली मनाती क्यों?
होली हुल्लड़ हादसा जड़ जड़ता जंजाल.
पण्डित होली यह नहीं जो बिनसे नव साल.
प्रेम ज्ञान सद्भाव सुख शुचिता धर्म धियान
जो बाढ़े होली अहै. पण्डित कहै बखान.
अग्नि जैसे उग्र किन्तु तीव्र ज्ञान क़ी ज्वाला में होलिका जैसी अपवित्रता के विध्वंश के पश्चात आप प्रत्येक को प्रहलाद रूपी खुशी एवं सुख मिले इसी आशा में अपने मूल कर्म से स्खलित
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