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मा या वासना क़ी मूर्ती

वेद विज्ञान
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माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.
माता ने मुझको जन्म दिया मै जानूं.
यह तों ह़र माता क़ी इक ज़िम्मेदारी ही है.
मैंने कब उससे कहा जन्म देने को
यह तों जग रीती इक दुनिया दारी ही है.
तेरी मृग तृष्णा के कारण मै जग में आया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.——————
मै माना तेरी व्यसन वासना का फल मै हूँ.
तू आज है मेरी पर मै तेरा कल हूँ.
लेकिन मेरा जो तू है लालन पालन करती.
इसका कारण क्या है मै बहुत विकल हूँ.
मेरा दुलार कर के तूने क्या पाया?
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.———————–
हे मा ! मै तुम को क्यों कर ईश्वर मानू?
तू तों इक नारी है जो मेरी मा हो.
अपने प्रमाद के कलि विषाद क़ी काली
छाया, उन्मादी विषय भोग क़ी प्रतिमा हो.
वात्सल्य मन्त्र से तूने मुझे नचाया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.————————–
मुझको जन्म दिया तेरा उपकार नहीं है.
तू लालन पालन करती है यह छल है तेरा.
क्या पता कि तेरी अगली मनसा क्या है?
क्या से क्या कर देगी जो कल है मेरा.
तेरे इस भय ने मुझको खूब सताया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.——————————
चल जाने दे इससे क्या लेना देना?
तूने चाहे जैसे भी मुझको जन्म दिया.
रस किलोल या व्यसन वासना जो कुछ भी हो
जग जीवन विनिमय का जो तू ने धरम दिया.
खुद कर उपवास उजड़ कर मुझे बसाया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.———————————-
खुद रोती रही सही पीड़ा दिन रात
पर मेरे आंसू गिरने नहीं दिया तुमने.
अस्थि पिंजर रही सुखाती दुःख आतप में
क्या पता कौन सी देख रही थी खुद सपने.
वात्सल्य, प्रेम, करुना रस तू ने बरसाया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.————————–
इसमें तेरी इच्छा का क्या पुट भरा पडा था.
सीने से चिप टाये रहती दिन रात मुझे
दिन रात निचोडूं मै छाती को तेरे.
ममता देने को मै कर दूँ लाचार तुझे.
तू ने छाती को चीर यह पाठ पढ़ाया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.—————————-
मै मा कुकृत्य प्रचंड पाप व्यभिचार किया.
अपनी कुत्सित इच्छा में भूली मर्यादा
पर इक तरुवर को सींचा खून पसीने से हूँ.
जो मीठे फल फूलो से भरा रहे ज्यादा.
कीचड ही सही पर कमल तों सुन्दर विकसाया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.—————————–
नित झुकना अरु ठोकर खाना अपराध नहीं.
है व्यसन वासना हिंसा निंदा पाप नहीं.
उद्देश्य अगर आदर्श उच्च अरु सत्य भरा हो.
बद दुआ भले दे कोई पर वह शाप नहीं.
यह भय भ्रम हारी माँ ने पाठ पढ़ाया.
माता महान के भ्रम ने मुझे फंसाया.—————————–
.है मा की यह अनमोल सीख अप्रतिम अमृत मय
भ्रम तों भ्रम है इसका न सच से नाता.
माता महान इक भ्रम है या सच्चाई
पर सुत तों सदा स्नेह इसका है पाता.
वात्सल्य मिला तों समझो सब कुछ पाया.
मत कहना मा के भ्रम ने मुझे फंसाया——————-
पण्डित आर. के राय
प्रयाग

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