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ग्रह एवं संतति सुख : ज्योतिषीय एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण

वेद विज्ञान
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ग्रह एवं संतति सुख : ज्योतिषीय एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण

  • अंतरिक्ष में भ्रमण करने वाले ग्रहों एवं नक्षत्रो के विकिरण से उत्पन्न प्रभाव जीवन के विविध पहलू को नाना विध प्रभावित करते है. शरीर, दिनचर्या, व्यवसाय, रहन-सहन, परिवार एवं भोजन आदि पर ग्रहों के विकिरण का प्रभाव विविध परिणाम प्रदान करता है. हम यहाँ ग्रहों एवं नक्षत्रो के विकिरण का संतति सम्बन्धी प्रभाव का आंकलन करेगें.
  • कुंडली में जीवन के चक्र को 360 अंशो में बाँट कर उसकी व्याख्या करते है. इसके बारह भावो में संतति से सम्बंधित पहलू को पांचवें भाव से गिनाते है. किन्तु यह तों प्रचलित विधि है. इसके अलावा इसकी जानकारी के लिये ग्यारहवें भाव, पांचवे भाव एवं ग्यारहवें भाव में बैठे ग्रह, इन भावो को देखने वाले ग्रह तथा इन भावो के अधिपति ग्रहों क़ी स्थिति तथा इन भावा धि पतियों के सम्बन्ध तथा इन पर अन्य ग्रहों क़ी दृष्टि को भी ध्यान में रखना चाहिए.
  • आधुनिक विज्ञान क़ी दृष्टि में जब गर्भस्थ शिशु के पांच संरचनात्मक रसायन किसी भी प्रकार दूषित, अव्यवस्थित या असंतुलित हो जाते है. तों उस संतान में आगे चल कर विविध विकृतियाँ समय समय से उग्र रूप धारण करती है. (१)- अनुलोम द्रव्य या साईटोंमेटाफोएक्सीन डिक्लो राईड यदि अल्प विकसित या आनुपातिक तौर पर अल्प मात्रा में होगा तों वह संतान आगे चल कर गूंगी बहरी होगी. इसे ज्योतिष में कहा गया है की यदि जन्म के समय पांचवें भाव का स्वामी ग्यारहवें भाव में अपने शत्रु ग्रह से युक्त होकर अष्टमेश से दृष्ट होगा तों बालक गूंगा बहरा होगा.
  • प्रायः देखने में आया होगा की अक्टोबर से लेकर दिसंबर तक, शाम सूर्यास्त से लेकर रात के बारह बजे तक के बीच में जिसका जन्म हुआ होगा तथा यदि वृश्चिक लग्न में सातवें भाव में शुक्र एवं मंगल होगें तों उस व्यक्ति का रक्त वर्ग अर्थात ब्लड ग्रुप बी पाजिटिव होगा. एवं वह जातक अवश्य ही हकालायेगा. यदि मंगल अस्त होगा तों वह जातक निश्चित ही गूंगा होगा.
    • इसी प्रकार (२)- यदि शशिपाकरेधा या ग्लैड़ो रेफ्रालडी मेथोक्सीन प्योफ्रोज़ोन से प्रोटोफेराल युक्त होगा तों वह संतान आगे चल कर लूली लंगडी होगी. ज्योतिष क़ी दृष्टि में पांचवें भाव में एकादशेश एवं पापी द्वादशेश क़ी युति पर किसी भी वक्री ग्रह क़ी दृष्टि पड़े तथा पंचमेश तीसरे, आठवें, छठे या बारहवें भाव में हो तों अस्थि भंग होता है. यदि पचामेश एवं अष्टमेश क़ी युति पर कही से भी उच्चस्थ मंगल क़ी दृष्टि हो तों लकवा का प्रचंड प्रकोप होता है. और उसमें भी यदि अगस्त एवं सितम्बर के महीने में मध्याह्न से सूर्यास्त के बीच सिंह या मेष लग्न में जन्म हो तों बालक का रक्त वर्ग ए पाजिटिव होता है. ऐसी स्थिति में GRMP का असंतुलित होना मेटा सिलिक दकत को अवरुद्ध हो जाती है. तथा लकवा हो जाता है.

      (३)- यदि द्रोणक्रेतानिभाव द्रव्य या प्रिपेलिमोफीन सेक्रोफिलामिलिक एसिड ऊर्ध्व गामी या डाईरेक्टिव होगा तथा अप्रेल से जून के मध्य आधी रात्रि से एक घंटा आगे पीछे या मध्याह्न से एक घंटा आगे पीछे जन्म हुआ होगा तों जातक का रक्त वर्ग ए बी होगा और ऐसी स्थिति में आगे चल कर बालक के सोच विचार या निर्णय के क्षमता में ह्रास हो जाएगा. पिपलेक्टिक क्रोमिन परिवर्तित हो जाता है. और बालक के द्वारा अनेक अशोभनीय एवं निन्दित कार्य किये जाते है. ज्योतिष क़ी दृष्टि में यदि इस स्थिति में लग्न मिथुन या कन्या होगी तथा शुक्र एवं वृहस्पति केंद्र के अधिपति होकर अपोक्लिम भाव में बैठे होगे. साथ में पांचवें भाव में राहू एवं कोई भी पाप या क्रूर ग्रह बैठा होगा तों बालक दुष्कर्मी होता है. तथा मा बाप के लिये कलंक का भागी बन जाता है.

      (४)- यदि ब्रह्मआयाम द्रव्य या सरोसिलिक टेड्रामेथालियोकसीन डेरोनायिड जन्म के समय ही नाल दंड या प्लेसेंटा के साथ बाहर आ गया तों बालक नपुंसक या व्यभिचारी होगा. यदि जनवरी से मार्च के बीच मध्याह्न से दो घंटा पूर्व से लेकर दो घंटे बाद के मध्य जन्म हुआ होगा तों ब्लड ग्रुप बी पाजिटिव होगा. तथा ऊपर कथित रसायन यदि अनुपस्थित रहा तों अर्थात ज्योतिष क़ी दृष्टि में ग्यारहवें भाव में राहू के साथ मंगल एवं पांचवे भाव में स्सोर्य शनि क़ी युति हुई तों बालक व्यभिचारी, व्यसनी, गुप्त रोगी एवं विलासिता के दुष्ट प्रभाव से युक्त होगा. वर्त्तमान समय के एड्स रोग का यह प्रधान लक्षण है.

      (५)- यदि जन्म के समय डीराइबो पैराफिलिक डायमेक्सीन या जीवोर्ध्वासमांगी द्रव्य स्खलित या डेवियेटेड हो गया हो तों बालक विद्रूप अर्थात दो सिर या एक पाँव या दो पेट या ऐसे ही विकृत रूप लेकर जन्म लेता है. ऐसी स्थिति किसी भी महीने में कृष्ण या शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से अष्टमी के बीच मध्याह्न या मध्य रात्रि के समय जन्म प्राप्त जातक के साथ होता है. ज्योतिष क़ी दृष्टि में ऐसी स्थिति तभी आती है जब लग्नेश के साथ अष्टमेश, षष्टेश या द्वादशेश इन्ही तीनो में से किसी भाव में बैठा हो तथा पंचमेश किसी भी केंद्र में राहु के साथ किसी एक अन्य पाप ग्रह से युक्त हो.

      निराकरण-

      जब ऐसी कोई भी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तों जिस लग्न में जन्म हुआ हो उसकी अष्टांगिक पूजा करवा कर उसी के अभिषेक द्रव्य में अति रंजक “वर्तिका” द्रव्य को धोकर सोने क़ी अंगूठी, लाकेट या ताबीज़ बनवाकर बालक या व्यक्ति को पहना देवे. यह काम जितना पहले या जल्दी कर दिया जाय, प्रभाव उतना ही जल्दी मिल जाता है.

      सहायक ग्रन्थ- भाव विभक्ति, औषधि रसायन, प्रकृति विभंजिका, द्रव्य प्रकाश, मेडिको लिजेंड्री, ओरिएंटल हार्बोलिक मिथ, वृहत्संहिता तथा भृगु रसायन.

      पण्डित आर. के. राय

      9889649352

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