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धन्य जागरण मंच प्रभावा. अशरण शरण जहाँ पर पावा. (FEED BACK)

वेद विज्ञान
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    आश्चर्य तों नहीं किन्तु बड़ा अजीब लगा मेल आईडी पर जागरण मंच क़ी सम्पादकीय समिति क़ी तरफ से लेखको एवं रचनाकारों क़ी सम्मति मांगना. मुझे सम्मति कम सहमति ज्यादा लगा. आश्चर्य इसलिये नहीं हुआ क्योकि इस मंच के व्यावसायिक पक्ष को उपेक्षित करने पर इसका संचालन असंभव है. इसलिए कुछ न कुछ ऐसा होना चाहिए जिससे इसमें चटखारे का स्वाद बढे. तथा विज्ञापन प्रकाशन का दायरा बढे. क्योकि-

    “सर्वे गुणाः कांचनमाश्रयान्ति.”

    अर्थात स्वर्णावेषित के पास ही समस्त गुण आश्रय प्राप्त करते है. या दूसरे शब्दों में पैसे के बिना कुछ भी संभव नहीं है. इसलिए मंच के इस आवाहन से कोई आश्चर्य तों नहीं हुआ. किन्तु अजीब इसलिए लगा कि जागरण मंच को यह सब पता है कि किस तरह क़ी रचना पर कितनी प्रक्रिया प्रकट होती है.? कैसे रचनाकारों को पसंद किया जाता है.? कैसे लेख एवं रचनाएँ ज्यादा पढी जाती है? कैसे लेखो एवं रचनाओं को प्रोत्साहन देना चाहिए.? कैसे लेखो एवं रचनाओं से समाज, देश एवं विश्वहित क़ी कल्पना क़ी जा सकती है.? भाव एवं प्रतिक्रिया अभिव्यक्ति के पीछे क्या मानसिकता भरी पडी है? प्रतिक्रिया किस तरह क़ी होती है? जागरण मंच को यह सब पता है. क्योकि विविध सम्मान एवं पुरस्कार तों मंच द्वारा ही दिये जाते है. तों आखिर किस कसौटी पर? इसके बावजूद भी यह पूछना कि इसके और ज्यादा विकाश के लिये क्या किया जा सकता है, एक अजीब प्रश्न है. सब कुछ देखने जानने एवं महसूस करने के बावजूद भी यह प्रश्न आश्चर्य उत्पन्न करता है. अस्तु-

    “कर्ण भीष्म द्रोण जहाँ बैठे व्रत धारी तहँ कामिनी क़ी और काह़ू नेक न निहारी है”

    जहाँ इतने उद्भट विद्वान बैठे हो वहां मुझे इसके बारे में सोचने या चिंता करने क़ी कोई आवश्यकता नहीं है.

    अभी प्रश्न पूछा गया है अपने व्यक्तिगत अनुभव का. यह एक प्रश्न सार्थक लगता है. जहाँ तक मेरे व्यक्तिगत अनुभव का सवाल है-

    मै राष्ट्रीय व्यावहारिक आर्थिक अनुसंधान परिषद् (NCAER) का अंतर्वीक्षक हूँ. डाटा कलेक्सन करना था. इस तरह मुझे विविध प्रकार क़ी रूचि रखने वाले व्यक्तियों क़ी प्राथमिकताएं जाननी थीं. कितने लोग कैसी रूचि वाले है? कैसे लोग किस तरह के लोगो में रूचि रखते है? किस आयु वर्ग के लोग किस तरह क़ी रूचि रखते है? कितने लोगो क़ी कैसी मानसिकता है? सम्पादकीय मंडल किस तरह के लेख, रचना एवं कला को प्रोत्साहित करना चाहता है? लेख किस तरह के होते है? लेखन विधा क्या है? लेख या रचना के पीछे छिपा उद्देश्य क्या है?

    मेरे सर्वेक्षण का क्या परिणाम है, चूंकि यह एक गोपनीय सूचना है. इसलिए मै इसे यहाँ नहीं दे सकता हूँ. क्योकि इस डाटा को गृह मंत्रालय को देना पड़ता है.

    मै इतना ही कह सकता हूँ कि समय व्यतीत करने का यह मंच एक अच्छा माध्यम है. इसके अलावा एक दूसरे के नज़दीक आने, एक दूसरे को समझने एवं नया परिचय बनाने का एक श्रोत भी है. इसके अतिरिक्त मुझे इसमें और कुछ भी नहीं दिखाई दिया. लेकिन जैसा कि यह नितांत व्यक्तिगत विचार है. ढेर सारे लोग मेरे इस तर्क या विचार से सहमत नहीं हो सकते है. तों इसके लिये मै कुछ नहीं कर सकता.

    जाकी रही भावना जैसी. प्रभु मूरत देखी तिन तैसी.

    देखहि भूप महा रन धीरा. मनहु वीररस धरेहु शरीरा.

    एक बात अवश्य है कि संयोग, वियोग, हास्य, मधुर, वीभत्स, वात्सल्य एवं कटु आदि रसों का भरपूर समागम देखने को मिला है. महान प्रकृति क़ी विचित्र कलाकृति के अनेक स्वरुप अपने सम्पूर्ण परिवेश, भाव एवं उद्देश्य के साथ इस मंच पर नज़र आते है. तुलसीदास के शब्दों में-

    कनक कोट विचित्र मणि कृत सुंदरायत अति घना.

    चौहट्ट हाट सुघट वीथी चारु पुर बहू विधि बना.

    गज बाज़ी खच्चर निकर पद चर रथ बरूथन्ही को गनै.

    बहू रूप निशिचर यूथ अति बल सेन बरनत नहीं बने.

    वन बाग़ उपवन वाटिका सर कूप वापी सोहहीं.

    नर नाग सुर गन्धर्व कन्या रूप मुनि मन मोहहीं.

    कहू मल्ल देह विशाल शैल समान अति बल गर्जही.

    नाना अखारेन्ह भिरही बहू विधि एक एकन्ह तर्जही.———(सुन्दर काण्ड)

    सामान्य तौर पर तों मेरा विहित सर्वेक्षण लगभग पुरा हो चुका है. किन्तु फिर भी-

    “क्षणे क्षणे यन्नवतामुपैती तदेव रूपम रमणीयताया”

    पण्डित आर. के राय

    प्रयाग

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