ध्यानाकर्षण– मेरे पहले लेख – “जागरण मंच पर आतंकी खतरा” को आप लोगो ने बड़े हलके से लिया होगा. अब ज़रा इस लेख को अंत तक पढ़ कर तथा जांच परख कर बताईयेगा की आतंकी शब्द की सार्थकता क्या है?
“तों पण्डित जी, सुना हूँ आप एक बहुत बड़े ज्योतिषी है. देश विदेश में आप भ्रमण कर चुके है. हिन्दुओ से ज्यादा आप के गैर हिन्दू अनुयायी है. देशी विदेशी अनेक अखबारों में आप के विविध लेख प्रकाशित होते रहते है. यहाँ के आश्रम में भी आप क़ी आये दिनों चर्चा सुनता रहता हूँ.” अभी यह महाशय पता नहीं कितने कशीदे मेरे सम्मान में कहते मैंने बीच में ही उनकी बात काट कर कहा “आप पूछना क्या चाहते है, कृपया वही बताएं. मै बड़ा ज्योतिषी हूँ या छोटा. जितना जानता हूँ उतना बताउंगा. ” बीच में बात काट देने से उनको बुरा लगा. वह झेंप गये. वह बोले ” नहीं मेरे कहने का यह मतलब है कि मै तों विश्वास करता नहीं. किन्तु इतनी ज्यादा चर्चाएँ सुना कि मुझे भी उत्सुकता हो गयी. वैसे आप क़ी फीस क्या है?” मैंने उनसे पूछा ” जिस व्यक्ति से या जिस जगह पर आप ने मेरे बारे सुना क्या वहां पर किसी ने मेरी फीस के बारे में नहीं बताया? आप को वहीं पूछ लेना चाहिए था.” वह महाशय बोले ” नहीं मैंने इसलिये नहीं पूछा कि आखिर कितनी फीस लेते होगें? हज़ार दो हज़ार या दस हज़ार? और क्या लेते होगें. इसलिये इतनी छोटी रक़म के लिये क्या पूछूं.?” मैंने पूछा “जी क्षमा कीजिएगा, आप क्या काम करते है?” उन्होंने बताया “मैं ब्रिज कारपोरेसन आफ इंडिया का वाईस प्रेसीडेंट हूँ.” उन्हें लगा कि मै उनकी आर्थिक हालातो का जायजा लेना चाहता हूँ. इसलिए उन्होंने आगे भी बताना शुरू कर दिया. ” मेरा बेटा सारा भाई केमिकल्स का पांच प्रतिशत का तथा मेरी बीबी ग्लैक्सो के सात प्रतिशत शेयर के हिस्सेदार है. ब्रिसको कार्बोराटर लिमिटेड मेरे पिताजी के नाम से है” अभी वह महाशय अपने कुल खान दान क़ी सम्पत्ती क़ी घोषणा को और आगे बढाते मैंने बीच में ही टोका “श्रीमान, मैंने आप के कुल खानदान का व्यौरा नहीं माँगा था. मैंने सिर्फ आप के काम के बारे में पूछा था. ” एक बार फिर उन्हें बीच में टोकने से बुरा लगा. वह फिर झेंप गये. और अपनी बात को समझदारी का मुलम्मा चढाते हुए बोले कि ” मै समझा, शायद आप डर रहे होगें कि मै आप को दक्षिणा देने में समर्थ नहीं हो पाउँगा. इसलिये मैंने यह विवरण दिया.” अंत में मैंने उनसे उनका सवाल पूछा. उन्होंने कहा “मै आप से किसी व्यापार से सम्बंधित प्रश्न या पारिवारिक प्रश्न पूछने नहीं आया हूँ. न ही मुझे अपनी नौकरी, व्यवसाय, बेटा, बेटी, बीबी या किसी सगे संबंधी से कोई परेशानी या सवाल है.मै इन सब बातो से बिल्कुल खुश एवं संतुष्ट हूँ.” मै एकाएक चकरा गया. न तों धन से सम्बंधित परेशानी है. बेटा बेटी सब सुखी है. सम्बन्धियों एवं रिश्तेदारों से अच्छा सम्बन्ध है. फिर यह व्यक्ति किस परेशानी या कष्ट के बारे में जानने आया है.” वह महाशय बोलते ही जा रहे थे. ” मुझे कोई रोग व्याधि भी नहीं है. न कोई विवाद या कोर्ट कचहरी का मसला है. घर दरवाज़ा, गाडी बंगला सब कुछ है.” वह आदमी बोलता जा रहा था. किन्तु मै सुन नहीं रहा था. मेरा दिमाग कही और ही घूम रहा था. इस आदमी को किसी से किसी प्रकार क़ी कोई परेशानी नहीं है. न गरीब है, न रोगी है, न अविवाहित है, न अपाहिज है. न कोई झगड़ा विवाद है. ह़र तरफ से यह व्यक्ति सुखी संपन्न है. फिर यह क्या पूछने आया है? अभी मेरे मन में इसके लिये ऐसा लग रहा था कि बहुत ही श्रद्धा उत्पन्न हो रही है. ज़रूर यह किसी बहूजन हिताय बहुजन सुखाय से सम्बंधित सवाल पूछने आया है. ऐसे बहुत कम आदमी है जो दूसरो के दुःख से दुखी होते है. तथा उसके निराकरण में सदा लगे रहते है. वैसे भी इस व्यक्ति के पास धन परिवार, ओहदा, प्रतिष्ठा आदि सब कुछ है. शरीर से भी निरोग है. और भगवान ने इसे सदबुद्धि दी है तों इसका मन समाज कल्याण क़ी तरफ संभवतः झुक गया है. और इसी बारे में मुझसे कुछ पूछने एवं राय मशविरा लेने आ गया है. मै यही सब विश्लेषण अपनी बुद्धि विचार एवं तर्क वितर्क के सहारे कर रहा था. किन्तु उस महाशय का कथन पूर्ववत जारी था. “पण्डित जी, मुझे किसी पद प्रतिष्ठा क़ी भी आवश्यकता नहीं है. मुझे जितना चाहिए उतना सब कुछ मिल गया है. सिर्फ मुझे आप से एक विषय में प्रश्न पूछना था. मुझे पता नहीं क्यों इस दिशा में बड़ी निराशा हाथ लगी है.” मै फिर उनको बीच में टोका ” देखिये, भगवान क़ी व्यवस्था बहुत ही ठोस, व्यवस्थित, दृढ आधार पर आधारित एवं सदा ही कल्याण के लिये होती है. आप को निराश या हताश होने क़ी कत्तई आवश्यकता नहीं है. हाँ, यह ज़रूर है कि आदमी को अपना निर्दिष्ट कर्म उचित एवं आदर्श तरीके से करते रहना चाहिए.” “मै वही बात आप से जानने आया हूँ.” बीच में ही बात को रोकते हुए वह महाशय बोल पड़े ” उसी के सम्बन्ध में आप से राय एवं उसका भविष्य जानने आया हूँ. इसके बारे में मैंने अनेक ज्योतिषाचार्यो से पूछा. कई गुनी लोगो से संपर्क किया. बहुत विद्वान पंडितो क़ी सहायता लेनी चाही. किन्तु कोई ठोस परिणाम नहीं निकला.” “ठीक है. कोई बात नहीं है.” मै बोला “आप पूछें. मुझसे जितना बन पडेगा मै सहायता करूंगा. लेकिन मै उतना ही कर सकता हूँ जितना मेरे सामर्थ्य के अन्दर होगा.” वह महाशय बोले ” मै जागरण जंक्सन से अपनी कवितायें प्रकाशित कराता हूँ. मेरी एक कविता एक हज़ार लोगो से ज्यादा पढ़े. क्योकि अपने डैश बोर्ड से पता चल जाता है कि कौन सा लेख कितने आदमियों ने पढ़ा है. लेकिन न तों किसी ने उसका मूल्यांकन किया है. और न ही किसी ने उस कविता के बारे में अपना विचार प्रकट किया है. फिर कौन सी ऐसी खूबी थी जो हज़ारो लोग उसे पढ़ गये. मेरी वह कविता निम्न प्रकार है-
मनुष्य एक सामाजिक
प्राणी है, इसी में रहना
उसे पसंद है. यहीं पर
चाहता है वह सुख भोगना
अपने व्यक्तिगत परिवार
में अनेक ज़टिलताएँ होती है
बच्चो क़ी पढ़ाई से लेकर
भोजन क़ी व्यवस्था होती है.
बीबी के नाज़ नखरे भी
देखने पड़ते है दिन रात
बाधा झगड़ा विवाद के डर से
मै नहीं काटता उसकी बात
रसोई में नित नए मीनू
का आगाज़ होता है
मै बीबी का गुलाम हूँ इस पर
मेरी बीबी को बहुत नाज़ होता है.
मै खुले हाथो दान करता हूँ.
शिक्षण संसथाएँ एवं धार्मिक संगठन
को बहुत सम्मान देता हूँ.
क्योकि इस प्रकार सामूहिक
रूप से समाज के ह़र तबके क़ी
प्रत्यक्ष सेवा हो जाती है.
किन्तु फिर भी मेरे दान
के पैसे का भर पूर दुरुपयोग ही
होता है.मै कुछ नहीं कहता कलंक के डर से
इसे मानता हूँ संयोग.
मै सोचता हूँ इससे तों बढ़िया है
लोगो के बीच जाऊं.
उनकी समस्याएं सुनूँ. अपने विचार
एवं निराकरण से उन्हें अवगत कराऊं.
इसी आशा के साथ मै जागरण मंच
पर आया. खूब मन लगाकर लेख लिखा
सोचा लोग मुझसे मेरी राय मांगेगें
पर यहाँ तों नज़ारा ही कुछ और दिखा.
शुरुआती कुछ रचनाओं पर
प्रेरणा वाक्य खूब मिलते रहे
फिर लोग अपनी रचना पढ़ने के लिये
प्रतिक्रिया में लिखते रहे.
लेकिन मै अपने लिखने क़ी धुन में व्यस्त रहा.
किसी क़ी प्रतिक्रिया का कोई उत्तर नहीं दिया
परिणाम यह निकला कि अब मेरे लेख को पढ़ते बहुत है
लेकिन प्रतिक्रिया वाला हिस्सा किसी चुहिया ने कुतर दिया.”
फिर वह महाशय अपनी यह कविता समाप्त कर मेरी तरफ मुखातिब हुए. और बोले “आप को कैसी लगी मेरी यह कविता?”
मै कुछ कहा नहीं. मैंने सोचा, यदि यह कविता है, तों फिर गद्य क्या है? क्या केवल वाक्यों के विराम स्वरों क़ी वर्तनी या रूप साम्यता ही कविता क़ी संज्ञा प्रदान करती है? या क्या गद्य का अपभ्रंश या अशुद्ध रूप ही पद्य कहलाता है? लेकिन उनको ठेस न पहुंचे, इसलिये मैंने कुछ कहा नहीं. कविता के नाम पर काव्य विधा क़ी हो रही शल्य चिकित्सा के बारे में ही सोचता रहा.
और अब मेरा दिमाग सब कुछ समझ गया था. मुझे पता चल गया था कि यह महाशय चाहते है कि लोग इनकी कविता पढ़ें. तथा इनसे पूछें कि सुन्दर एवं प्रभाव शाली कविता कैसे लिखी जा सकती है. या लोग खूब शाबाशी दें. लेकिन मेरे पास इस समस्या का कोई समाधान नहीं था. कारण यह है कि साहित्य क़ी पद्य विधा का आशीर्वाद एक लम्बी तपश्चर्या के परिणाम के रूप में प्राप्त होती है. मुझे ज्ञात है कि कविता का अंतस्थल भावुकता के गहरे एवं प्रभाव शाली रंग में रंगा हुआ एक अनुशाशित सुव्यवस्थित एवं निर्धारित सीमा एवं काल से प्रतिबंधित होता है – चाहे वह मुक्तक छंद हो सोरठा हो, सवैया हो या सारंग हो. उसमें प्रयुक्त राग दरबारी हो, भैरवी हो, झपताला हो या फिर नारदी. कविता का प्रभाव यह होता है कि जिस तरह से अकबर के नवरत्न दरबारियों में एक तानसेन दीपक राग में गा कर आग लगा दिया तों तुरंत मेघ राग गाकर पानी बरसा दिया. तथा उस आग को बुझा दिया. लेकिन कोई बात नहीं इन महाशय क़ी पद्य रचना भी हास – उपहास क़ी बुभुक्षा शमन के उद्देश्य क़ी पूर्ती तों कर ही रही है.
जो भी हो, मैंने उन्हें समझाना चाहा कि जाने दीजिये, कोई कुछ नहीं कहता है या नहीं प्रतिक्रिया देता है तों जाने दीजिये, पढ़कर आप क़ी विद्वता से लोग परिचित तों होगें. उपहास ही सही लोग मनोरंजन तों करेगें ही. लेकिन मै यह बात उनसे कैसे कह सकता था? वह बेचारे बहुत उम्मीद से कुछ पूछने आये थे. भले ही उनकी इच्छा स्वार्थ से परिपूरित एवं दूषित हो. लेकिन उनकी एक बात ने मुझे बहुत ही चौंकाया. इससे मेरा जो मूल उद्देश्य “सर्वेक्षण” बहुत ही प्रभावित होता नज़र आया. और मै इस बात पर सोचने पर विवश हो गया. क्योकि इससे मेरे द्वारा एकत्र किये गये सारे आंकड़े समूल गलत होते दिख रहे थे.
उन्होंने एक महाशय क़ी रचना पर प्राप्त टिप्पड़ियो क़ी संख्या एक हज़ार के आस पास बतायी. और इस प्रकार इस रचना को सर्वाधिक पढी गयी रचना का पुरस्कार भी मिल गया था. तों ठीक ही तों था. इसमें क्या गलत था. जिस लेख को सबसे ज्यादा लोग पढेगे उसे ही तों ज्यादा पठित का पुरस्कार मिलेगा.? तों इसमें हैरान होने क़ी क्या बात है? किन्तु उन्होंने जो आगे के तथ्य बताये, वे बहुत ही चौंकाने वाले थे. उन्होंने बताया कि रचना का विषय अलग है तथा टिप्पड़ी का सम्बन्ध किसी और चीज से है. जैसे लेख किसी धार्मिक विषय का है. तथा प्रतिक्रिया संवैधानिक रूप से प्रतिबंधित दवाइयों को बेचने का है. जैसे इस पते या लिंक पर संपर्क या क्लिक करें आप को वियाग्रा सस्ते दामो पर उपलब्ध करा दी जायेगी. मैंने उनके कहने पर झटपट लैपटाप उठाया तथा उसको देखने के लिये उन महाशय से उस लेखक का नाम पूछा. मैंने उस लेखक महाशय के नाम से सर्च का आप्सन दबा दिया. और आप खुद ही देखें. हाई लाईटेड को अवश्य देखें-
नीचे दिये गये कटु सत्य को आप कितनी आसानी से ग्रहण करते है यह आप क़ी नैतिक, चारित्रिक, सामाजिक, साहित्यिक एवं दार्शनिक स्तर को दर्शायेगा.
मै क्या बताऊँ, मेरा आज तक का सब सर्वेक्षण सिरे से गलत हो गया. मै इस महाशय का बहुत ही आभारी हूँ जो मुझे इस गलत सूचना देने के अपराध से बचा लिया. अब मै फिर दुबारा सर्वेक्षण शुरू किया हूँ.
अस्तु जो भी हो, मैंने उन्हें अनुचित ही सही, राह बता दिया हूँ. आज उनकी भोंडी रचना पर भी कम से कम सौ प्रतिक्रिया और मूल्यांकन तों मिल ही जाते है. और आज वह मेरे बड़े आभारी है.
विशेष- गोपनीयता क़ी नीति के कारण किसी का नामोल्लेख नहीं है.
नानक दुखिया सब संसार ! आज संसार में हर आदमी दुखी है ! चाहे अमीर हो या गरीब, बडा हो या छोटा ! हर इंसान को कोई न कोई परेशानी लगी रहती है ! ज्योतिष में इसके लिए कई उपाय सुझाए गए हैं ! जिनको विधि पूर्वक करके हम लाभ उठा सकते हैं !
लाल किताब उत्तर भारत में खास कर पंजाब में बहुत प्रसिद्ध है ! अब इसका प्रचार धीरे-धीरे पूरे भारत में हो रहा है ! इसकी लोकप्रियता का मुख्य कारण इसके आसान, सस्ते और सटीक उपाय हैं ! इसमें कई उपाय ग्रहों की बजाय लक्षणों से बताये जाते हैं ! आपके लाभ के लिए कुछ सिद्ध उपाय निम्न प्रकार से हैं – 1. यदि आपको धन की परेशानी है, नौकरी मे दिक्कत आ रही है, प्रमोशन नहीं हो रहा है या आप अच्छे करियर की तलाश में है तो यह उपाय कीजिए : किसी दुकान में जाकर किसी भी शुक्रवार को कोई भी एक स्टील का ताला खरीद लीजिए ! लेकिन ताला खरीदते वक्त न तो उस ताले को आप खुद खोलें और न ही दुकानदार को खोलने दें ताले को जांचने के लिए भी न खोलें ! उसी तरह से डिब्बी में बन्द का बन्द ताला दुकान से खरीद लें ! इस ताले को आप शुक्रवार की रात अपने सोने के कमरे में रख दें ! शनिवार सुबह उठकर नहा-धो कर ताले को बिना खोले किसी मन्दिर, गुरुद्वारे या किसी भी धार्मिक स्थान पर रख दें ! जब भी कोई उस ताले को खोलेगा आपकी किस्मत का ताला खुल जायगा ! 2. यदि आप अपना मकान, दुकान या कोई अन्य प्रापर्टी बेचना चाहते हैं और वो बिक न रही हो तो यह उपाय करें : बाजार से 86 (छियासी) साबुत बादाम (छिलके सहित) ले आईए ! सुबह नहा-धो कर, बिना कुछ खाये, दो बादाम लेकर मन्दिर जाईए ! दोनो बादाम मन्दिर में शिव-लिंग या शिव जी के आगे रख दीजिए ! हाथ जोड कर भगवान से प्रापर्टी को बेचने की प्रार्थना कीजिए और उन दो बादामों में से एक बादाम वापिस ले आईए ! उस बादाम को लाकर घर में कहीं अलग रख दीजिए ! ऐसा आपको 43 दिन तक लगातार करना है ! रोज़ दो बादाम लेजाकर एक वापिस लाना है ! 43 दिन के बाद जो बादाम आपने घर में इकट्ठा किए हैं उन्हें जल-प्रवाह (बहते जल, नदी आदि में) कर दें ! आपका मनोरथ अवश्य पूरा होगा ! यदि 43 दिन से पहले ही आपका सौदा हो जाय तो भी उपाय को अधूरा नही छोडना चाहिए ! पूरा उपाय करके 43 बादाम जल-प्रवाह करने चाहिए ! अन्यथा कार्य में रूकावट आ सकती है ! 3. यदि आप ब्लड प्रेशर या डिप्रेशन से परेशान हैं तो : इतवार की रात को सोते समय अपने सिरहाने की तरफ 325 ग्राम दूध रख कर सोंए ! सोमवार को सुबह उठ कर सबसे पहले इस दूध को किसी कीकर या पीपल के पेड को अर्पित कर दें ! यह उपाय 5 इतवार तक लगातार करें ! लाभ होगा ! 4. माईग्रेन या आधा सीसी का दर्द का उपाय : सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय ! गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए ! गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय ! यह उपाय किसी भी मंगलवार से शुरू करें तथा 5 मंगलवार लगातार करें ! लेकिन….लेकिन ध्यान रहे यह उपाय करते समय आप किसी से भी बात न करें और न ही कोई आपको पुकारे न ही आप से कोई बात करे ! अवश्य लाभ होगा ! 5. फंसा हुआ धन वापिस लेने के लिए : यदि आपकी रकम कहीं फंस गई है और पैसे वापिस नहीं मिल रहे तो आप रोज़ सुबह नहाने के पश्चात सूरज को जल अर्पण करें ! उस जल में 11 बीज लाल मिर्च के डाल दें तथा सूर्य भगवान से पैसे वापिसी की प्रार्थना करें ! इसके साथ ही “ओम आदित्याय नमः “ का जाप करें ! नोट : 1. लाल किताब के सभी उपाय दिन में ही करने चाहिए ! अर्थात सूरज उगने के बाद व सूरज डूबने से पहले ! 2. सच्चाई व शुद्ध भोजन पर विशेष ध्यान देना चाहिए ! 3. किसी भी उपाय के बीच मांस, मदिरा, झूठे वचन, परस्त्री गमन की विशेष मनाही है ! 4. सभी उपाय पूरे विश्वास व श्रद्धा से करें, लाभ अवश्य होगा !
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lomesh rishi के द्वाराFebruary 11, 2012 mera nam lomesh rishi hai.age 58 years ke kareeeb hai.mai ek factory me 19 years se kam kar rha hoon.ab kam chodna chahta hoon.mai chahta hoon ki mera boss mera hisab kar de.or jo mera huk banta hai wo mujhe pyar se de de.koi sakht upaye batayie.jo ki mujhe mera huk mil jaye.yahan kam karta hoon wahan ke boss ka nam balwant singh jandu hai or factory ka nam bond metal industries hai jalandhar in punjab me. thanking you.
puneet के द्वाराFebruary 10, 2012 my date of birth is 08 februrary 1985. time 02:04 pm place of birth jalandhar city in punjab.i loved with a girl near to my resi. her name is priya.please let me know with your lal kitab upaye, so that parents of the girl may be ready for marriage.whether my marriage will be arranged or love marriage.i’m very much harrased. i really thankulful for your kind co-operation. puneet
rashmi के द्वाराJanuary 27, 2012 sir mera nam rashmi h meri dob 4-6-1985, place sitamadhi bihar time 2.30pm h.sir mujhe ye janna h ki kya meri goverment job lagegi aur kb tak aur meri love marriage hogi ya arrenge sir reply soon
Jeet Ram Shah के द्वाराJanuary 2, 2012 Sir, Meri ladaki ki date of birth 17april 1987 hai usne m.a. pass kiya hai uske abhi tak sadi nanhi ho pa rahi hi, aap se niwedan hai ki koi upai batai. thank you
shrikant shukla के द्वाराDecember 23, 2011 pranaam pandit ji…. meri bahut si girl friend hai.. mujhse akele milne aa bhi jati hai mai unhe chodna chahta hu wo bhi taiyar hai par jab bhi wo mere paas aati hai mera khada hi nahi hota
parveen sharma के द्वाराNovember 19, 2011 namste pandit ji, my birth date:16-may-1989 birth place: faridabad, time: 04.45 am pandit ji mai bahut pareshaan hu meri job kab tak lagegi. mai abhi diploma kar raha hu. aur animation. aap koi upaye btaye???
lovy के द्वाराNovember 23, 2011 beta…… Job to diploma complete hone k bad hi lagegi.Mehnat karna tumhara kam h baki sab bhagwan shri karisan k upper chhod do. Radhe Radhe rajesh kumar soni के द्वाराSeptember 30, 2011 pandit ji mare pas abhi tak koi bhi naukri our rozgar nahi hai.hamari ghar ki arthik sthity kuch thik nahi hai.pitaji ka business bhi is samya thik nahi hai. pitaji bhi bahoot bimar rahne lage hai(bat rog se paresan hai).chhoti baihn ki sadi karna baki hai. panditji muchhe naukri kab tak miligi.jo kuch karne jata hu safal nahi ho pata.log mara sath bhi nahi dete.kripa mare liye upaya batae. panditji mare pitaji ki bhi detel de raha hu ,name-moorat lal soni,d/b-22/11/1951 b/t-06.00am b/p-katni (m.p)india. bimario ka bhi upaye btae
vaibhav nahar के द्वाराSeptember 2, 2011 मैने पना रतन धारन किया है मेरी जनम ती. 14-4-1982
poonam के द्वाराNovember 13, 2011 what is your birth place.
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PRADEEP के द्वाराJuly 18, 2011 मेंरा नाम प्रदीप हे मेरी जन्म दिनाक ०१-०४-१९८८ टाइम ०९.५० सुबह मुझे पंडित जी ने गोमेद पहनने को कहा हे क्या मुझे पहनना चाहिय यदि हा तो केसे और कब और कितने रत्ती का धारण करने की विधि भी बताइयेगा और पन्ना भी पहनना हे वह भी केसे, कब, कितने रत्ती का पहनना हे कृपया जानकारी दीजिये धन्यवाद्
Anurag Garg के द्वाराJuly 4, 2011 Pranam Guru Ji, My odb is 28/12/1981, 6:35 PM I will be very thankful to you. Regards Anurag Garg
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