कुछ एक श्रद्धालु सज्जन आवास से सम्बंधित शंका एवं समस्या के बारे में जानना चाहते थे. उसका निराकरण एवं विश्लेषण निम्न प्रकार है.
गृहेषु अल्पानिघातव्यम न धावेत जीर्नावाखेटा न वा परिता प्रत्यार्क्ष्या च परिमाणे. सम्मुखे नवानी निर्माणं केचिदप्यावशेषा भर्गो भागो कारयेत तदेव विनाश कारणम.
गृह कल्प में कहा गया है क़ि यदि सम्मुख निर्माण करना शेष है. तथा अन्दर का निर्माण कार्य कर के उसमें रहते एक सूर्य मॉस बीत चुका हो, तो ऐसी अवस्था में तो अन्दर का काम या नया निर्माण किया जा सकता है. किन्तु सम्मुख का काम पूरा हो चुका है, तथा अन्दर रहते एक सूर्य मॉस बीत गया हो तो कदापि अन्दर कोई भी निर्माण कार्य न करें.
किन्तु इसे इस तरह समझा जाना चाहिए.
यदि किसी कारण वश सम्मुख निर्माण शीघ्रता के चलते पूरा कर लिया गया हो. तथा अन्दर कुछ काम शेष रह गया हो और उस आवास में रहते एक सूर्य मॉस बीत गया हो तो ऐसी अवस्था में कुछ शर्तो पर अन्दर का निर्माण कार्य किया जा सकता है.
अर्थात जब ठीक दोपहर हो, शुक्र सूर्य से बीस अंश आगे हो किन्तु मीन में ही हो, चन्द्रमा-गुरु या तो समसप्तक योग बना रहे हो, तब आवास के पूरब या उत्तर बाहर की तरफ कोई नव निर्माण कर के अन्दर तोड़ फोड़ के बाद नया निर्माण या पुनर्निर्माण किया जा सकता है.
तात्पर्य यह क़ि सुविधा के अनुसार एवं स्थान की उपलब्धता के आधार पर मुख्य आवास के उत्तर या पूरब की दीवार से सटे या संभव हो तो दीवार तोड़ कर पहले उसे नए सिरे से बनाएं. तथा फिर अन्दर तोड़ फोड़ करें. किन्तु आकाश में ऊपर बताये अनुसार नक्षत्रो एवं तारो की स्थिति का आंकलन अवश्य कर लें.
यद्यपि यहाँ विज्ञान की कुछ अवधारणा तो मेरी समझ में आ रही है. किन्तु इसका पूरा विश्लेषण आधुनिक विज्ञान की कसौटी के अनुसार दे पाने में मै असमर्थ हूँ. किन्तु जितना भी थोड़ा या ज्यादा विज्ञान इसके पक्ष में तर्क देता है, वह हमारे लिए सदा लाभ कर है.
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