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हम सुधरेगे जग सुधरेगा

वेद विज्ञान
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जीवन शब्द को यदि इसके मूल तत्वों में विभाजित कर इसमें झांकने क़ी कोशिश करें तों इसका अन्तः मर्म अवश्य कुछ स्पष्ट हो सकता है. जीव + न. जीव भी दो बीज के आधार पर सार्थकता से युक्त है. जी–अर्थात जिजीविषा. जिजीविषा का तात्पर्य होता है छट पटाहट. असंतोष, स्वाभाविक रूप से विचित्र, ग्रहण क़ी सामर्थ्य हीनता, किसी अभिप्षित को आत्मसात करने क़ी अक्षमता, काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सर, ईर्ष्या, मद, राग, द्वेष आदि में परात्पर एवं व्युत्क्रमानुपाती विभेद कारक प्रभावी तत्व आदि के सदिश एवं अदिश प्रकार के संचरण से जो छटपटाहट आविर्भूत होती है उसे जिजीविषा कहते है.
व्—–अर्थात वहन करना या ढोना. अर्थात उपर्युक्त छट पटाहट को जो ढोता है या वहन करता है. अपने चतुर्दिक उपर्युक्त विविध कारको से आवृत्त होकर जो संचरण करे वह जीव है. यहाँ यह बताना मैं आवश्यक समझता हूँ कि संचरण दोनों तरह से संभाव्य है. मार्गी एवं वक्रा प्रकार से यह संचार दो तरह से होता है. यह किसी जीव क़ी नैसर्गिक प्राप्त ऊर्जा या शक्ति के अनुपात एवं तत्प्रकृति के अनुरूप होता है.अर्थात संकलित, उपार्जित या प्राकृत ऋणावेश या धनावेश क़ी उत्प्रेरणा क़ी दिशा में मार्गी या वक्रगामी होता है.
न——अर्थात ले चलना. “नयति यः सैव नेता.” इसका शब्द रूप “नयति, नयतः नयन्ति” चलता है. और “सुप्तिगन्तम पदम्” से व्याकरण सिद्ध भी है. अर्थात जो ले चले या किसी व्यक्ति, वस्तु या भाव-विचार आदि को ले चले , नयन करे.
इस प्रकार जीवन शब्द के अस्तित्व क़ी अवधारणा ही यह स्पष्ट कर रही है कि विविध (सुखद एवं दुखद) भाव-स्थिति आदि के सम-विषम (अनुकूल-प्रतिकूल) अवलम्बन भूत गति को जीवन कहते है. “जीवं नयति यत तदेव जीवनं.” जीव को जो लेकर चले वह जीवन है.
तों फिर शव क्या है? यह भी दो मूलभूत बीज तत्व से सृजित है. श—- अर्थात “शान्तमेव मुद्रायाः उद्भिदो श.” जीवन क़ी प्रत्येक गति-विधि से पृथक – शांत. यहाँ मैं यह बता दूँ कि मानसिक विक्षिप्तता ग्रस्त भी शव ही होता है. किन्तु यह तभी संभव है जब वह पूर्ण विक्षिप्त हो. इसी से मिलता जुलता भाव प्रकट करता शब्द अंग्रेजी में “कोमा” कहा जाता है. इसे संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसी दास ने अपनी कालजयी अमरकृति श्री रामचरित मानस के लंका काण्ड के तीसवें दोहा से आगे बहुत ही सरल शब्दों में वर्णित किया है-
“कौल, कामवश, कृपिन विमूढा. अति दरिद्र अजसी अति बूढा.
सदा रोग वश संतत क्रोधी. विष्णु विमुख श्रुति संत विरोधी.
तनु पोषक निंदक अघ खानी. जीवत शव सम चौदह प्रानी.
अर्थात ये चौदहों जीवित ही शव समान होते है. हिंदी अर्थ स्पष्ट है. सुविधा क़ी दृष्टि से इसका अंग्रेजी रूपान्तर निम्नवत है.
” A man mad with lust, a miser, a destitute beggar, a man in disgrace, a man in extreme old age, one who is always ill or always in a passion, a rebel against Vishnu, a hater of religion and the saints, a man who thinks only of his own body, a scandal-monger and a man thoroughly vicious, these twelve even while they live are no better than corpses.
ध्यान रहे जब किसी धातु- तत्व (यूरेनियम, प्लूटोनियम आदि) को पीटते, काटते, छाँटते, तराशते बहुत छोटा कर देते है तों उसके सबसे छोटे कण परमाणु (Atom) का ऊपरी सतह भी छिल कर या आघात से टूट कर अलग हो जाता है. परिणाम स्वरुप उसके नाभिक (nucleus) के अन्दर के अति सूक्ष्म कण बंधन विहीन हो जाते है. उनका बंधन टूट जाता है. और वह बहुत ही विकराल गति से वातावरण में भाग दौड़ करना शुरू कर देते है. क्योकि ये कण सदा ही बाह्य संसार से कटे रहे है. अतः अचानक बाहरी दुनिया के ताप-दाब ( Temperature & Pressure) सह नहीं पाते है. और विखंडित होना शुरू हो जाते है. उनके टूटने से एवं भयंकर गति से होने वाले पर्यावरणीय संघर्षण से बहुत ही उग्र ताप निकलना शुरू हो जाता है. ये कण बहुत ही भयंकर गति से टूटते है. और उतनी ही भयंकर गति से ऊष्मा विकिरण होना शुरू हो जाता है. अतः देखते ही देखते एक बहुत बड़ा परिक्षेत्र इसके प्रभाव में आकर तहस नहस हो जाता है. इस श्रीन्खस्ल्स्स बद्ध प्रतिक्रिया (Chain Reaction) को परमाणु विखंडन या परमाणु बम प्रहार कहते है.
तात्पर्य यह कि हमें भी यदि किसी को कष्ट, अज्ञान, द्विविधा एवं उलझन से मुक्त करना है तों सबसे पहले अपने आप को काटते , छांटते, तराशते अर्थात उपर्युक्त दुष्प्रवृत्तियों से सदा ही पृथक करके जाज्वल्यमान या दीप्तिमान बनाना पडेगा. और तभी हम अपनी उस नियंत्रित ऊष्मा या ऊर्जा से दूसरे को प्रस्फुरित कर उन्हें वास्तविक सुख, खुशी एवं आनंद दे सकते है.
शुभम भवेत्.

पण्डित आर. के. राय
प्रयाग

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