बादशाह अकबर बिल्कुल गोरे चिट्टे थे. इसके विपरीत बीरबल काले रंग के थे. अकबर ने चुटकी लेते हुए बीरबल से पूछा ” बीरबल तुम इतने काले क्यों हो गये? ” बीरबल ने ज़बाब दिया ” ज़नाब. ज़ब अल्ला ताला अपनी उम्मत को खैरात बाँट रहे थे. तों उसमें, धन, जन, आबरू, हिक़मत, इल्म और रूप आदि सब शामिल थे. जिसे जो पसंद आया. वह लूटता रहा. परवर दिगार ! मुझसे गलती हो गयी. मैं केवल इल्म, आबरू और हिक़मत लेता रह गया. और आप रूप ही लेते रह गये. इसीलिए मैं काला हो गया.” अर्थात अप्रत्यक्ष रूप से बीरबल ने यह बता दिया कि अकबर को केवल रूप मिला और बुद्धि एवं चतुराई नहीं मिल पायी. इस प्रकार अकबर बेवकूफ ही रह गया. और बीरबल काले होने के बावजूद भी विद्वान हो गये.
संभवतः इसकी सार्थकता नीचे के विवरण से सम्बद्ध हो सकती है. पता नहीं यह आधुनिक विज्ञान क्यों ज्योतिष के पाखण्ड में फंस गया? ज्योतिष को न तों कोई मान्यता मिली है. न ही उसके पक्ष में सरकारी कोई विधान है. न ही इसके विकास एवं अन्वेषण के लिये सरकारी या गैर सरकारी संगठन ही कार्यरत है. सामाजिक कार्यकर्ता भी इसके विरोध में आसमान सिर पर उठाये फिर रहे है. कितनी जनजागृतियां इसके उन्मूलन के लिये कार्यरत है. फिर भी इन आधुनिक चिकित्सको को पता नहीं क्या सूझी है कि ये ज्योतिष के अनुकरण में जी जान से लगे हुए है. और सामाजिक कार्यकर्ता भी पता नहीं क्यों चुप बैठे है. शायद इसमें उन्हें शर्म महसूस हो रही है. क्योकि ये तों इन्ही के पालित है. फिर इनके विरोध में कैसे कसीदा कसें? पाश्चात्य साहित्य, संगीत, कला, विज्ञान एवं परम्परा क़ी विस्मयकारी चकाचौंध में हर्ष एवं आनंद के गोते लगाते हमारे अग्रज उसी का महिमा मंडन करते हुए अपने को अभिजात समझते है. फिर किस मुँह से वे इस ज्योतिषीय चिकित्सालय के खिलाफ ज़हर उगलें. जी हाँ, सूचना के अधिकार के तहत माँगी गयी जानकारी के अनुसार दिल्ली में स्थित भारत के अति प्रतिष्ठा लब्ध चिकित्सालय “अखिल भारतीय चिकित्सा विज्ञान संस्थान (AIIMS – एम्स) में 7 मई 2009 से 17 मार्च 2012 तक कुल 17989 या लगभग अट्ठारह हज़ार आदमी मर चुके है. यह भारत के मात्र एक चिकित्सालय का विवरण है. अभी जसलोक हास्पिटल, अश्विनी हास्पिटल, संजय गांधी मेमोरियल चिकित्सालय, लीलावती हास्पिटल अदि प्रसिद्ध तथा इनके अलावा अनेक और हज़ारो चिकित्सालय है जिनमें मरने वालो क़ी संख्या का कोई विवरण उपलब्ध नहीं हो पाया है. अब यह आप के अनुमान लगाने का विषय है कि कितने आदमी मरते होगें. यह मात्र हमारे भारत देश के आंकड़े है. जहाँ पर सम्पूर्ण बज़ट का बीसवां हिस्सा स्वास्थ्य योजनाओं के क्रियान्वयन पर व्यय किया जाता है. यदि ये चिकित्सक ढोंगी या पाखंडी या ज्योतिष के अनुयायी नहीं है, और नए शरीर के निर्माण से लेकर उसमें प्राण डालने तक का दावा ठोक डाले है, तों फिर प्रतिदिन चिकित्सालयों में हज़ारो क़ी संख्या में हो रही मौतों के विरोध में सामाजिक कार्य कर्ताओं क़ी आवाज़ बुलंद क्यों नहीं होती? भूचाल, भूकंप तथा सुनामी आदि के आने के पहले ही सब व्यवस्था कर के धन जन क़ी हानि का विवरण क्यों नहीं देते है? इन सब के गुज़र जाने के बाद उसके “रेक्टर स्केल” पर तीव्रता मापने का क्या औचित्य है? इनकी अति आधुनिक वैज्ञानिक प्रणाली ऐसे मौको पर कुंठित क्यों हो जाती है? करोडो अरबो रुपये पानी क़ी तरह बहाने के बाद यदि विज्ञान इसका प्रतिफल इस रूप में दे रहा है, तों फिर बिना किसी सहायता के, सब विरोध सहने के बावजूद भी ज्योतिष यही काम करता है, तों चीख पुकार क्यों मची हुई है? बल्कि ज्योतिष तों जिसे आधुनिक समाज सुधारक पाखण्ड क़ी संज्ञा से विभूषित कर चुके है, कभी भी इतने विशाल स्तर पर धन जन संहार का कोई उदाहरण नहीं प्रस्तुत किया है? जनता के पैसे को इस आधुनिकता के नाम पर बलिदान कर देना इन तथा कथित समाज सुधारको क़ी न तों आँख से दिखाई देता है और न ही संवेदना से अनुभूत हो रहा है. आज निर्मल बाबा के विरोध में ऐसे ही तथा कथित समाज सुधार के ठेकेदारो द्वारा इलेक्ट्रानिक एवं प्रिंट मीडिया आदि के माध्यम से युद्ध स्तर पर विरोध किया जा रहा है. और अपनी कुत्सित स्वार्थ परता या सस्ती लोकप्रियता क़ी ज़हरीली थैली भरने क़ी होड़ सी लगी हुई है. मैं पूछता हूँ कि यदि ज्योतिष को शासकीय तौर पर अनुदानित कर इसके रहस्यों का अन्वेषण एवं विश्लेषण किया जाता. इसके ऊपर इसके विकास के ऊपर इसकी महत्ता के ऊपर शासकीय संरक्षण में शोधन, पोषण एवं अनुवर्धन किया जाता तों निर्मल जैसे बाबा का अभ्युदय ही नहीं हो पाता. निर्मल बाबा आज परम पवित्र वेद-नेत्र ज्योतिष क़ी आड़ में जनता का करोडो रुपया लूट रहा है. और लूटने का “रजिस्ट्रेसन” कराये आधुनिक खगोल शास्त्री एवं चिकित्सा शास्त्री “फीस” के नाम पर डकैती ड़ाल रहे है. निर्मल बाबा के भी कुछ प्रतिशत भक्त (जैसा कि सुनने में आया है) लाभान्वित हो रहे है. इन आधुनिक चिकित्सा शास्त्रियों एवं खगोल शास्त्रियों के कुछ “क्लाएंट” लाभान्वित हो रहे है. अंतर सिर्फ इतना है कि बाबा के यहाँ लोग स्वयं “हिप्नोटायिज्ड” होकर आ रहे है. और इन “रजिस्ट्रेसन” प्राप्त चिकित्सा शास्त्रियों एवं खगोल शास्त्रियों रूपी बाबाओं के यहाँ इन्हें डंडा मार कर बल पूर्वक लाया जा रहा है. अर्थात विविध चिकित्सा एवं भौगोलिक योजनाओं के क्रियान्वयन के नाम पर जनता से पैसा वसूल कर इन्हें भारी भरकम धन राशि प्रदान क़ी जा रही है. और जबरदस्ती मज़बूर किया जा रहा है कि सब पैसा जहाँ पर लगा है वही पर जाओ. और जो कुछ बचा है उसे भी गँवा कर चले आओ. इन बाबाओं के यहाँ प्राण त्यागने वालो का अनुपात यदि देखा जाय तों 26 जनवरी 2009 से 31 मार्च 2012 तक 79 है. किन्तु केवल प्रमुख नामचीन चिकित्सालयों से प्राप्त सूचना के आधार पर इन “सरकारी आश्रमों “ में प्राण त्यागने वालो क़ी संख्या इसी अवधि के दौरान 1400000 (चौदह लाख) से भी ऊपर है. (ये आंकड़े RTI के आधार पर माँगी गयी सूचना के आधार पर आधारित है) जिस तरह से आधे अधूरे ज्ञान वाले चिकित्सको के द्वारा आम जनता का पैसा, स्वास्थ्य एवं जीवन सब कुछ व्यापक स्तर पर शोषित किया जा रहा है. ठीक उसी प्रकार कुछ बाबाओं के द्वारा भी यही कुकृत्य कुछ छोटे स्तर पर किया जा रहा है. किन्तु अंतर इतना ही है कि इन बाबाओं को सरकारी “लाइसेन्स” नहीं मिला है. तथा “सरकारी बाबा” ऐसे वैध “लाइसेन्स” से लैस है. और इधर समर्पित समाज सुधारक समाज सुधार क़ी मज़बूत मोटी लाठी जनता के सिर पर धडाधड पीटते चले जा रहे है. और इन दो पाटो के बीच में पिसती आम जनता दर्द एवं पीड़ा से कराह रही है. पण्डित आर. के राय प्रयाग
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