यद्येको अपि पातितः बिन्दुना विषपति शशिभूषण अन्गोपेतः . पपात सुरसरी गरल मदन नीलकंठं सद्यो जातः जीव कलिभाव मुक्तः. विश्वेश्वर संहिता के तृतीय उपसर्ग में यह उल्लेख आया है कि यदि भजंग भूषण भगवान शिव अपने वासुकी भूषण से रहित हो. अर्थात उनके शरीर के किसी अँग में सर्प न लिपटे हो, तों यह आवश्यक नहीं है कि उनका अभिषेक ही किया जाय. या उन्हें दूध आदि से पूजित किया जाय. सीधे पत्र-पुष्प आदि से पूजा क़ी जा सकती है. किन्तु यदि भव भय हारी भगवान भोले नाथ अपने अंगो में सर्प लपेटे हो, तों न पूजा करें, अच्छा, किन्तु बिना जल या दूध के पूजा न करें. अर्थात यदि शिव लिंग के चारो तरफ या शिव लिंग नाग मूर्ति से लिपटा हो तों बिना जल या दूध-दही के पूजा नहीं करना चाहिए. वासुकी अवतरण में तों यहाँ तक लिखा है कि ऐसा शिवलिंग जिसके साथ सर्प लिपटे हो तों बिना जल या दूध-दही के पास भी नहीं जाना चाहिए. नौपदिष्टम, नाप्यतिष्ठम, नैचोपवेषम खलु दर्शनाय. लिंगम ससारंगमावेष्टितम यत नीराज्जलम हीननवनीतं वा. इसलिये घर के पास में यदि शिव लिंग क़ी स्थापना करनी हो तों बहुत सोच समझ कर करनी चाहिए. बहुविध विचार करने के बाद ही उसे सर्पावेष्टित रूप देना चाहिए. वैसे विज्ञान के आधे अधूरे प्रयोग एवं परिणाम के आधार पर यही निष्कर्ष निकाला गया है कि शिवलिंग क़ी पूजा सदा ही जल आदि से करनी चाहिए. चाहे वह सर्प से लिपटा हो या नहीं. इसके पीछे विज्ञान इस शिवलिंग (पत्थर) को क्लोराईड, नाईटरोफ्लोराईड, एवं कार्बन मोनोआक्सायिड आदि उत्सर्जित करने वाला बताया है. अतः इससे बचाव के लिये इस शिवलिंग को पहले विकिरण मुक्त (नान रेडियोएक्टिव) बनाना आवश्यक है. ताकि उग्र गति से रासायनिक क्रिया प्रतिक्रिया के परिणाम स्वरुप इससे उत्सर्जित होने वाली ज़हरीली गैसें शिथिल पड़ सकें. वैसे यदि घर में शिव लिंग रखना हो तों या तों पारद शिवलिंग रखे या फिर मदगंध का. इस पर सर्प नहीं रखा जाता. अन्यथा इससे प्राप्त होने वाला अनिकूल परिणाम समाप्त हो जाता है. अष्टधातु का भी शिवलिंग रखा जा सकता है. किन्तु जिस अष्टगंध के शिवलिंग पर सूर्य क़ी रोशनी न पड़े वह अष्टगंध का शिवलिंग अतृप्त, सुषुप्त या विकृत हो जाता है. अतः शिव लिंग क़ी पूजा में इन बातो का सदा ख़याल रखें.
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