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प्रत्येक देवता के हाथ में शंख-कारण (Shankh in hand of Every Deity- Reason)

वेद विज्ञान
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शंख क़ी उत्पत्ती के बारे में जो पौराणिक उपाख्यान उपलब्ध है उसका विवरण मैं अपने पूर्ववर्ती लेखो में दे चुका हूँ. इसके उपयोग एवं इसकी महत्ता के बारे में मै यहाँ बताना चाहूँगा. शंख का जो रासायनिक संयोग है वह अर्कट, मेवाड़ी, सुपंखी, प्रवाश्म, लौह, शिलामंडूर, एवं चिपिलिका है. शंख पांच प्रकार के होते है. वामावर्ती, दक्षिणावर्ती, हेममुख, पुन्जिका एवं नारायण. इसमें वामावर्ती पूजा, यज्ञ आदि में, दक्षिणावर्ती अन्तः औषधि के रूप में, हेममुख बाह्य औषधि के रूप में, पुन्जिका विशानुघ्ना एवं नारायण दर्शन के लिये. हेम मुख एवं नारायण शंख में मुँह कटा नहीं होता है. नारायण शंख भी दक्षिणावर्ती ही होता है. किन्तु इसमें पांच या इससे अधिक वक्र चाप होते है. पांच से कम चाप वाले को दक्षिणावर्ती शंख कहते है. इनमें से प्रत्येक शंख बिल्कुल स्वच्छ एवं शुभ्र वर्ण का होता है. नारायण एवं दक्षिणावर्ती शंख बिल्कुल चिकने, बिना किसी चिन्ह एवं आयतन के अनुपात में भार साथ गुणा होता है. जब कि वामावर्ती अपने आयतन के अनुपात में बीस गुणा कम भार का होता है. हेम मुख का काठिन्य या रासायनिक घनत्व इसके परिमाण क़ी तुलना में 1 :2 का अनुपात रखता है.
शंख के घटक तत्व अपने निर्माण में वृद्धि या ह्रास के चलते ज्यादा या अल्प प्रभाव वाले होते है. जैसे पुन्जिका शंख में प्रवाश्म (क्लोरोमेंथाज़िन) साठ प्रतिशत होता है. इसे घर में रखने से खाने पीने क़ी चीजो में सडन नहीं होती है. किन्तु माँस मछली या इस तरह के भोज्य पदार्थ से निकलने वाली सिलिफोनिक टेट्रा मेंडाक्लीन या ट्राईमेंथिलिकेट हाइड्राक्सायिड का रासायनिक समायोजन एसिटिक डिक्लोफेनिक एसिड, कार्बोमेंट्राजिन होजोल, पैराफ्लेक्सी मेट्रोब्रोमायिड, टरमेरिक एसिड, टार्टारिक एसिड आदि के संयोग से पुन्जिका शंख का क्लोरोमेंथाजिन फ्रोक्सोज़ोनिक गुआनायिड या फफूंद में बदल जाता है. और समस्त भोज्य पदार्थ दूषित हो जाता है. चूंकि यह प्रक्रिया बहुत धीमी गति से होती है, अतः इसका अनुमान या आभास नहीं हो पाता है. इसके अलावा घर में सूक्ष्म विषाणु प्रवेश नहीं पाते है. या मोटे शब्दों में फंगस ड़ीजीजेज या संक्रामक बीमारियों का खतरा समाप्त हो जाता है. इस प्रकार प्रत्येक व्यक्ति को घरो में इस शंख को रखना चाहिए. किन्तु किसी भी शंख को यदि घर में रखना हो तों उसे नित्य प्रति धोना पडेगा. तथा उसमें पानी भर कर रखना पडेगा.
वायु पुराण (बम्बई प्रेस) में अनेक स्थानों पर इसका विवरण दिया गया है. कहते है कि उत्तरा के गर्भ में परीक्षित क़ी रक्षा करने के लिये भगवान वासुदेव गर्भ में घुस कर अश्वत्थामा के तार्क्ष्य अस्त्र के प्रभाव से बचाने के लिये पुन्जिका शंख को उत्तरा के सिरहाने रख कर उसकी रक्षा करते रहे. जो विषाणु उस अस्त्र से उत्पन्न हो गये थे. उन्हें भगवान अपने चक्र एवं गदा से समाप्त करते रहे. और पुन्जिका शंख के प्रभाव से नए विषाणुओं का उत्पन्न होना रुक गया था. कुंडली में नीलार्धिका या ऐसे ही दुर्योग के होने पर इस शंख का सहयोग विधान है.
हेम मुख शंख में फेनासिलिक लिनियोडायिड अपने अन्य अवयओं के साथ उपस्थित होता है. इसे आयुर्वेद में प्राक्दोलिक क्षार कहते है. यह एक बहुत ही सघन प्रभाव वाला विष एवं अनूर्जता अवरोधी पदार्थ होता है. वात वाहिनियो पर इसका बहुत ही अच्छा प्रभाव होता है. शिरो रोग में भी यह बहुत विकट प्रभाव दिखाता है.कुंडली में परान्जलिका, सायुज्य उल्का, भ्रान्दुप, अन्कालिक आदि दुर्योग या गुरु-शनि कृत दोष के भय के शमन हेतु इसका प्रयोग किया जाता है. इसे स्वच्छ पत्थर पर घिस कर सिर पर नियमित रूप से लगाने पर अर्ध कपारी जैसा दुर्गम रोग भी शांत हो जाता है. कहते है शुक्राचार्य अपने शिष्यों क़ी दुर्वृत्ती से सदा दुखी रहा करते थे. राक्षस माँस-मदिरा का बहुतायत में सेवन करते थे. इनके दुष्प्रभाव को रोक कर उन्हें स्वस्थ रखने के लिये शुक्राचार्य इस शंख के लेप का प्रयोग करते थे.
इसी प्रकार दक्षिणावर्ती शंख कैल्सीफ्लेमाक्सीडीन ग्लिमोक्सिलेट का मिश्रण होता है. शरीर के चार आतंरिक अँग इससे ज्यादा प्रभावित होते है. आलिन्द-हृदय का एक भाग, प्लीहा, पित्ताशय एवं तिल्ली (Spleen) . किन्तु इसको घर में रखने से पहले बहुत एहतियात रखना पड़ता है. यह एक उच्च उत्प्रेरक होता है. अतः यदि कुंडली में किसी भी तरह सूर्य एवं राहू अच्छी स्थिति में हो तों इसे घर में न रखें. अन्य स्थिति में यह सुख शान्ति दायक, मनोवृत्ती को सदा सुव्यवस्थित रखते हुए तंत्रिका तंत्र को सदिश एवं सक्रिय रखता है.
नारायण शंख के रासायनिक तत्वों का सही वर्गीकरण उपलब्ध नहीं है. किन्तु ऐसा लगा है कि इसमें डेकट्राफ्लेविडीन सेंथासीनामायिड जैसा यौगिक उपस्थित होता है. यह एक उच्च स्तरीय परिपोषक है. इसमें इतनी क्षमता है कि आनुवान्सिक अवयवो तक को इच्छानुसार बदल सकता है. जो विज्ञान के लिये अभी अब तक एक पहेली बना हुआ है. कुंडली में घोर विषकन्या, स्थूल मांगलिक, विषघात, एवं देवदोष जो राहू, शनि, मंगल तथा सूर्यकृत दुष्प्रभाव के कारण उत्पन्न होते है, सब दूर हो जाते है.
ताम्र पट्टिका पर गोमुखी विधि से बने श्रीयंत्र के ऊपर नारायण शंख एवं पारद शिवलिंग घर में रखने से कितना क्या मिल सकता है, इसका सीमा निर्धारण कही भी नहीं प्राप्त होता है. अर्थात यह योग एक अक्षुण एवं अमोघ फल देने वाला योग माना गया है.
ध्यान रहे, शंख को भली भांति परख कर ही अपनाएं. क्योकि आज कल अनेक नकली शंख बाज़ार में बिकने लगे है.

पण्डित आर. के राय
प्रयाग
9889649352

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