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हे प्रभो! हमारे उद्धार का क्या यही मार्ग आप ने निश्चित किया है?

वेद विज्ञान
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श्रद्धेय गुरुवर पण्डित राय जी के चरणों में सादर समर्पित

जाको प्रभु दारुण दुःख दीन्हा. ताकी मति आगे हरि लीन्हा.

“अर्थात जब भगवान किसी को दारुण दुःख देने का निर्णय लेते है. तों सबसे पहले उसकी बुद्धि का ही हरण कर लेते है. ”
हे प्रभु आप क़ी माया अपरम्पार है. आप क़ी माया से कोई पार नहीं पा सका. इसीलिए आप को माया पति कहा जाता है. चूंकि हम अपने कर्त्तव्य के प्रति ही सशंकित है. हमें यह नहीं पता कि जो हम कर रहे है वह वास्तव में हम से अपेक्षित है या नहीं. कारण यह है कि मनुष्य से पशु डरते है. जंगली जीव से मनुष्य डरते है. तथा उनकी दृष्टि में हम मनुष्य क्रूर एवं हिंसक है. हमारी दृष्टि में जंगली जानवर हिंसक एवं क्रूर है. हम उन्हें दोष देते है. वे हम मनुष्यों को दोष देते है. तथा हमसे दूर भागते रहते है. हम अपनी स्वार्थ साधना के लिये उन्हें पाल कर या उन्हें जोर जबरदस्ती बंधन या नकेल डालकर अपने पास रखते है. तथा उनसे काम करवाते है. जिसे देख कर दूसरे जानवर मनुष्य को एक अति भयंकर, निर्दयी एवं हत्यारे जीव के रूप में देखते है. जन प्रतिनिधि कहता है कि उसका काम सबसे ऊपर है. वह जनता एवम समाज क़ी सेवा करता है. नौकरी करने वाला कहता है कि उसका काम सबसे अच्छा है. वह तन मन एवं धन से देश, समाज एवं परिवार क़ी सेवा करता है. एक पण्डित कहता है कि उसका काम सबसे श्रेष्ठ है. क्योकि वह श्रेष्ठ धर्म का मार्ग सबको बताता है. बढई अपने काम को सबसे उत्तम बताता है. सुनार अपने काम क़ी प्रशंसा करता है. सब अपना काम एक दूसरे से उत्तम, आवश्यक एवं श्रेष्ठ बताते है. हे प्रभो! अब कौन सा काम और किसका काम अच्छा, उचित एवं श्रेष्ठ है इसका निर्धारण आप के अलावा कौन कर सकता है? सब आप क़ी इस विचित्र माया में घूम रहे है. तथा अपने कृत्य में मिथ्या प्रशंसा क़ी ज़हरीली धारा में इतरा या उतरा रहे है.
यदि ऐसा नहीं है तों आप स्वयं देखें, आप क़ी ही कृति- हम मानव, आज आप के अस्तित्व से ही इनकार कर रहे है. ईश्वर नाम क़ी कोई चीज है ही नहीं. यह एक कल्पना, मन बहलाने क़ी चीज एवं खोखले संतोष का साधन है. अब आप स्वयं देखें, या आप देख ही रहे होगें, इसे आप क़ी समर्थ विभूति क़ी विकृत लीला नहीं तों और क्या कह सकते है. हे प्रभो! क्षमा कीजिएगा, मैंने पुनः आप क़ी लीला को “विकृत” कहा. अब मैं अपनी स्वयं क़ी विकृत बुद्धि को दोष न देकर आप क़ी लीला को ही दोष दे रहा हूँ.
हे प्रभो! एक अबोध शिशु जो अपने पैरो पर अभी खडा न हो रहा हो, वह कही पर भी बिना यह सोचे कि यह जगह उचित है या अनुचित , मल मूत्र का त्याग कर देता है. किन्तु इसमें उसका दोष नहीं है. क्योकि उसे बुद्धि नहीं है. वह बुद्धि का दरिद्र, सोच-विचार से अपँग एवं विवेक शून्य होता है. वह तों चाहे मंदिर हो या मस्जिद या कोई अन्य पवित्र स्थल कही पर भी मल मूत्र का त्याग कर देता है. यहाँ तक कि वह मल मूत्र को मुँह में भी लपेट लेता है. क्योकि उसे मल मूत्र या दूध आदि में कोई भेद नहीं मालूम.
अब आप उसे इस नारकीय यंत्रणा से मुक्ति देने के लिये अनेक विध साधन संसाधन उपलब्ध कराते है, जैसे दूध, हवा, पानी, माता के प्रति लगाव, नित्य साथ रहने वालो से निकटता का भाव देते है. वह धीरे धीरे उसका अनुकरण करता है. वही सीखता है. कभी कभी माता पिता अपने इस अबोध बालक क़ी अनर्गल, अनुचित एवं अवांछनीय हरक़तों को देखकर खिल खिलाते है. क्योकि उन्हें मालूम है कि उस अबोध शिशु को इसका भेद ज्ञात नहीं है.
किन्तु हे प्रभो! मुझे आप से इस सम्बन्ध में शिकायत है. शिशु किसी मोमबत्ती को जलता देख कर उत्सुकता वश उसे छूना चाहता है. किन्तु हम उसे जलने के भय से मोमबत्ती नहीं छूने देते है. इस तरह उस शिशु क़ी वह उत्सुकता उत्कंठा या अति आवश्यक एवं विचित्र जिज्ञाशा का रूप धारण कर लेती है. और हो सकता है कभी ऐसा अवसर आये कि वह बालक अपनी इस जिज्ञासा या लोभ का संवरण न कर सके और लाल रंग देखते हुए कभी किसी धधकती भट्ठी में गिर पड़े. तों बहुत बड़ा हादसा हो सकता है. इससे तों अच्छा है कि उस शिशु को उसी समय उस मोमबत्ती को ही धीरे से छू लेने दिया जाय. ताकि वह जान जाय कि यह चीज जलाने वाली है. तथा उसकी यह उत्कंठा या जीजिविषा शांत हो जाय.
किन्तु वर्त्तमान परिप्रेक्ष्य में जैसा कि आप अपनी माया के विचित्र जाल में हम-अपने अबोध बालको को देख कर क्या मोमबत्ती इसीलिए नहीं छूने दे रहे है कि हम एक दिन अपने अज्ञान एवं मूर्खता क़ी धधकती भट्ठी में कूद जाएँ.
हे प्रभो! यह मेरी प्रार्थना है कि अब आप हमारी अज्ञानता क़ी शिशु सुलभ बाल क्रीडा पर अपने ही मोह पाश में फंस कर खिलखिलाएं नहीं. ठीक है आप अपनी संतान क़ी बाल सुलभ लीलाओं पर खुश हो रहे है. मुस्करा रहे है. किन्तु आदत प्रकृति बन जाती है. और यह प्रकृति का विकराल स्वरुप प्रेरणा का कराल रूप धारण कर विनास के भयंकर गर्त में धकेल देगा . और सब कुछ समाप्त हो जाएगा.
तों आप अब अपनी इस माया के जाल का समापन कुछ इसी प्रकार करने वाले है क्या?
हे प्रभो! हम आप के अस्तित्व को नहीं मानते. इस प्रकार हम आप के नाम से सम्बंधित प्रत्येक शिक्षा, आदेश, निर्देश या प्रतिबन्ध को नहीं मानते. इसे हम पाखण्ड, बकवास एवं प्रलाप मानते है. तों क्या आप इसे हमारी तोतली भाषा मानकर इस पर सिर्फ इठालायेगें ही? और हमारी इस हरक़त पर मुस्काराते ही रहेगें?
तों क्या आप ने यह निर्णय ही ले लिया है कि मोमबत्ती को नहीं छूने देगें तथा भट्ठी क़ी धधकती ज्वाला में धकेल कर सब कुछ स्वाहा कर देगें?
क्या इसमें भी आप ने हमारी कुछ भलाई देख रखी है?
हे मायापति! मै तों अपनी बौद्धिक सामर्थ्य के अनुसार यही प्रार्थना करूंगा कि मोमबत्ती छू लेने दीजिये. आगे आप क़ी जो इच्छा.
हे राम!

गिरिजा शरण

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