कुंडली में सातवाँ भाव पति/पत्नी एवं रोजगार- व्यवसाय को दर्शाता है.
वेद विज्ञान
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कुंडली के बारह भावो में सातवाँ भाव अपना एक अलग विशेष महत्व रखता है. यह एक नए जीवन के विविध पहलुओं का विवरण देता है. यह हमारे शरीर रूपी धरती के सीधे 180 अंशो पर स्थित ग्रहों या राशियों के प्रभाव को बताता है. यदि कुंडली औरत की है तो उसके पति एवं यदि कुंडली पुरुष की है तो पत्नी की स्थिति एवं फल को बताता है. चूंकि इस भाव के दोनों तरफ हमारी भाग्य का बराबर का भाग होता है. अतः यह दोनों प्रारूपो को दर्शाता है. अर्थात पति एवं पत्नी दोनों से सम्बंधित होता है. इस भाव से सम्बंधित सूक्ष्म फलो को जानने के लिए सप्तमांश कुंडली का आश्रय लिया जाता है. कुंडली में यदि सप्तम भाव सशक्त एवं शुभ हो तथा सप्तमांश कुंडली में सप्तम भाव का स्वामी अशुभ, निर्बल या पाप पूर्ण हो गया है. तो ज्यादा परिणाम अशुभ ही होगा. इसी प्रकार यदि कुंडली में सातवाँ भाव अशक्त एवं पाप प्रभाव में हो तथा सप्तमांश कुंडली में सप्तमेश सशक्त एवं शुभ प्रभाव में हो तो प्रायः परिणाम शुभ ही होता है. किन्तु इसके विपरीत यदि दोनों में ही सातवाँ भाव एवं सप्तमेश शुभ हो तो परिणाम शत प्रतिशत शुभ होगा. सातवाँ भाव व्यापार या व्यवसाय की उन्नति एवं विस्तार को दर्शाता है. प्रायः इस भाव से परवशता या नौकरी का आंकलन नहीं किया जा सकता. केवल स्वतंत्र व्यवसाय या रोज़गार-धंधे के बारे में ही पता किया जा सकता है. यदि कुंडली में मकर लग्न में मंगल एवं शुक्र दोनों लग्न में हो तो तथा सप्तमांश कुंडली में सातवाँ भाव किसी पाप प्रभाव में नहीं है तो ऐसा व्यक्ति बहुत ही धनी, यशस्वी एवं सुखी वैवाहिक जीवन वाला होता है. अभी यहाँ पर भ्रम की स्थिति उत्पन्न होगी क़ि लग्न में मंगल के रहने पर तो कुंडली प्रचंड मांगलिक हो जायेगी. फिर वैवाहिक जीवन कैसे सुखी होगा? किन्तु यही बहुत बड़ा भ्रम है-
यह शास्त्र का वचन है. और तार्किक तथा व्यावहारिक रूप से इसे सत्य होते भी देखा गया है. किन्तु इस अवस्था में यदि गुरु लग्न तथा चन्द्रमा ग्यारहवें भाव में शनि के साथ हो तथा सप्तांश कुंडली में सप्तमेश की स्थिति अशुभ हो तो भले गुरु लग्न तथा शुक्र सातवें भाव में हों, दाम्पत्य जीवन बिखर ही जाएगा. जब क़ि सामान्य नियम के अनुसार गुरु लग्न तथा शुभ ग्रह सातवें भाव में हो तो वैवाहिक जीवन सुखमय होता है. इसके विपरीत चाहे भले शनि लग्न में हो किन्तु सूर्य उच्च का होकर मंगल के साथ सातवें तथा गुरु चन्द्रमा के साथ दशवें भाव में हो तो उस व्यक्ति का वैवाहिक जीवन बहुत ही सुखी होता है. तथा वह व्यक्ति शासन या सत्ता में बहुत ही ऊंचा पदवी धारण करता है. यद्यपि इस अवस्था में भी मंगल के सातवें होने पर कुंडली मांगलिक होगी. किन्तु शास्त्र इसका खंडन करता है. तथा यह व्यावहारिक जीवन में भी सत्य होते देखा गया है. पुनः चाहे भले मंगल एवं शनि दोनों ही परम पापी ग्रह लग्न में क्यों न हो, यदि उच्चस्थ शुक्र के साथ गुरु सातवें तथा बुध-चन्द्र दशवें बैठें हो तो दाम्पत्य जीवन परम सुखी होता है. इसमें भी शंका होगी क़ि केवल अकेले मंगल के लग्न में बैठने मात्र से ही कुंडली मांगलिक हो जाती है. फिर दोनों पापी ग्रह यदि लग्न में बैठे हो तो क्या कहा जा सकता है? किन्तु यह न भूलें क़ि शनि एक तरफ छठे भाव का स्वामी है तो दूसरी तरफ त्रिकोण पांचवें भाव का भी स्वामी है. दूसरी तरफ सातवें भाव का स्वामी गुरु स्वयं स्वक्षेत्री होकर बैठा है. इसके साथ ही पञ्च महापुरुष योग भी बना रहा है. और सबसे ऊपर यह क़ि सातवें भाव का कारक ग्रह शुक्र सातवें भाव में ही उच्च होकर बैठा है. इसके साथ ही लग्नेश परम केंद्र दशवें भाव में बैठा है. और सौंदर्य सुषमा का बोधक ग्रह चन्द्रमा स्वक्षेत्री होकर अपने पुत्र बुध के साथ परम केंद्र या परम त्रिकोण दशवें भाव में बैठा है. ऐसी अवस्था में भला वैवाहिक जीवन को बाधा देने वाला कोई ग्रह कुंडली में कैसे हो सकता है? यहाँ एक बात अवश्य है क़ि समस्त शुभता के साथ ही कुछ ऐसी अवस्थाएं होती है जिससे वैवाहिक जीवन आंशिक रूप से दुखी कहा जा सकता है. जैसे मंगल के लग्न में रहने के बावजूद भी यदि सातवाँ घर वैवाहिक जीवन को दुःख नहीं दे रहा है तो भी यह दाम्पत्य जीवन पूर्ण सुखी नहीं कहा जा सकता है. बल्कि एक तरह से एक समझौते के तहत संपन्न जीवन व्यतीत करना कहा जा सकता है. जैसे एयर इंडिया के उत्तरी परिक्षेत्र के तकनीकी निदेशक श्री एन. एम्. वर्धन एवं उनकी पत्नी डेजी एन. रांगिया. दोनों पति-पत्नी प्रति वर्ष तीस करोड़ के पॅकेज पर कार्यरत है. किन्तु संभवतः दोनों में यह समझौता है क़ि दोनों पति-पत्नी के तो नाम से एक साथ रहेगें. किन्तु शेष अपनी अपनी आवश्यकता एवं नौकरी की प्रकृति पर निर्भर है. इनका बेटा यश वर्धन इसी कारण से इन्हें छोड़ कर सदा के लिए होनोलूलू चला गया. और अपने मा-बाप से सदा के लिए न्यायालयीय आधार पर नाता तोड़ लिया. इस तरह मंगल, शनि तथा राहू आदि के द्वारा बनाने वाली मांगलिक अवस्था यद्यपि हो सकता है दाम्पत्य जीवन को प्रभावित न करे. किन्तु परिस्थिति वश जीवन के अन्य पहलुओं को हो सकता है प्रभावित करे. किन्तु यह आवश्यक नहीं है. जैसे ऊपर एक अवस्था का विवरण दिया गया है क़ि लग्न में शनि एवं मंगल के रहने के बावजूद भी वैवाहिक जीवन सुखी रहता है. यदि उच्चस्थ शुक्र गुरु के साथ सातवें भाव में हो. किन्तु इस अवस्था में भले सूर्य अपने घर का हो, किन्तु राहू यदि मकर राशि का हो तो जीवन में कभी अपनी संतान जन्म नहीं लेती. भले गोद लिया हुआ बच्चा संतोष के लिए ग्रहण कर लिया जाय. किन्तु वैवाहिक जीवन में कोई बाधा नहीं मिलती है. इसी तरह यदि लग्न में मंगल के कारण कुंडली मांगलिक हो किन्तु किन्तु उच्च का सूर्य चौथे एवं पांचवें भाव में शुक्र हो तो व्यक्ति भूमि, भवन एवं वाहन आदि का बहुत बड़ा प्रसिद्ध व्यवसायी होता है. या बहुत बड़ा इंजीनियर होता है. यदि सातवें भाव में मंगल के कारण कुंडली मांगलिक हुई हो किन्तु स्वक्षेत्री चन्द्रमा के साथ गुरु लग्न एवं सूर्य दशम भाव में हो तो व्यक्ति प्रशासन में उच्च पदस्थ होता है. यदि मेष लग्न में मंगल आठवें भाव में होने के कारण कुंडली को मांगलिक बना रहा हो तथा शुक्र एवं शनि दशवें एवं गुरु-चन्द्र चौथे भाव में हो तो व्यक्ति उच्च स्तरीय प्रबंधक होता है. तथा तकनीकी क्षेत्र में बहुत यश प्राप्त करता है. यदि लग्न में चन्द्र-बुध तथा सातवें भाव में उच्चस्थ शुक्र के साथ गुरु हो तो चाहे मंगल कही भी हो वह व्यक्ति अवश्य न्यायाधीश होता है. जैसे जिलाधिकारी, महादंडाधिकारी या उच्चायुक्त आदि.
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