Menu
blogid : 6000 postid : 1089

कुंडली में दशवाँ भाव- पद, नौकरी एवं विरासत

वेद विज्ञान
वेद विज्ञान
  • 497 Posts
  • 662 Comments

कुंडली में दशवें भाव को परम केंद्र कहा जाता है. इसके द्वारा नौकरी का आंकलन किया जाता है. पूर्व कृत कर्मो के आधार अर्जित परिणाम ही इस भाव के द्वारा प्रकट किया जाता है. पिता क़ी स्थिति या पैतृक संपदा तथा शासकीय सहयोग आदि का भी पता इसी भाव से लगाया जाता है. कुंडली में लग्न के बाद इस केंद्र का ही स्थान आता है.
इस भाव से प्रकट होने वाले इन फलो का ज्ञान सटीक तभी प्राप्त हो सकता है जब लग्न कुंडली के साथ दशमांश का भी अध्ययन किया जाय. यदि दशमेश एवं दशमांश कुंडली का लग्नेश प्रबल एवं शुभ स्थिति में हो तों वह व्यक्ति उच्च पद धारी एवं प्रचुर पैतृक संपदा से पूर्ण होगा इसमें कोई संदेह नहीं. यदि मेष लग्न कि कुंडली में शनि एवं शुक्र सातवें तथा मंगल दशवें भाव में हो तों वह व्यक्ति विरासत में प्राप्त अतुलित धन संपदा से युक्त तों होता ही है. साथ में समाज या संस्थान में उच्च पद भी धारण करता है. यदि दशमेश वर्गोत्तम हुआ तों लाख कुयोग होने के बावजूद भी वह व्यक्ति अति प्रसिद्ध एवं राज्याध्यक्ष होता है.

तुल्यान्शे परमभावेशे अजे कुजे रवि कवि वा.
दशमे मंत्री राजा अत्याखिलो नरो भवेत्.

भले लग्नेश नीच का हो किन्तु कुंडली में दशम भाव एवं दशमेश वर्गोत्तम हो तथा कुंडली में रुचक योग हो तों यदि और भी कुयोग हो तों सब काई क़ी तरह फट जाते है. उदाहरण स्वरुप मीन लग्न में गुरु लाभ भाव में हो. शुक्र लग्न, चन्द्रमा चौथे एवं सूर्य दूसरे भाव में हो तों लाख कुयोग होकर के भी उस जातक का क्या बिगाड़ लेगें. जब कि लग्नेश गुरु अपनी नीच राशि मकर में है.
यदि दशम भाव में कर्क का चन्द्रमा गुरु के साथ हो तथा चन्द्रमा वर्गोत्तम हो तों जातक अध्यापक या शिक्षण कार्य से सम्बंधित नौकरी करता है. यदि दशम भाव में शुक्र एवं शनि हो तथा शनि उच्चस्थ हो तथा दशमेश वर्गोताम हो तों व्यक्ति प्रसिद्ध चिकित्सक होता है. यदि दशम भाव में उच्च सूर्य के साथ मंगल हो तों वह व्यक्ति सेना या पुलिस विभाग का मुखिया होता है. यदि दशम भाव में मिथुन लग्न क़ी कुंडली में बुध एवं शनि हो तों जातक लेखा परीक्षक होता है. यदि दशमेश एवं दशम भाव वर्गोताम हो. यदि दशम भाव में उच्च मंगल के साथ शुक्र हो तों जातक प्रसिद्ध इंजिनियर होता है. यदि दशम भाव एवं दशमेश वर्गोताम हुए तों. इसी प्रकार यदि दशम भाव में शनि शुक्र एवं द्वीतीय भाव में सूर्य-मंगल हो तथा मंगल अस्त न हो तथा दशम भाव एवं दशमेश वर्गोत्तम हो तों वह जातक उच्च प्रशासनिक अधिकारी होता है.
यदि दशम भाव में मकर का केतु चन्द्रमा के साथ में हो तथा आगे पीछे के घरो में कोई ग्रह नहीं हो तों वह व्यक्ति अपनी सारी पैतृक संपदा खोकर भिखारी बन जाता है. यदि दशम भाव में धनु लग्न क़ी कुंडली में शुक्र एवं मंगल हो तथा दूसरे भाव में गुरु एवं सूर्य हो तों वह व्यक्ति पितृ दोष के कारण अनेक दुःख उठाता है.
इस प्रकार दशम भाव से पितृदोष का भी निश्चय होता है.
यदि दशम भाव से उत्पन्न दोषों के कारण किसी को दुःख, परेशानी या हानि हो तों उसे दशमेश के प्रतिनिधि यन्त्र, ग्रह या पूजा का सहारा लेना चाहिए. उदाहरण स्वरुप यदि दशम भाव में कन्या राशि हो. तथा उसमें शुक्र एवं मंगल हो तों व्यक्ति प्रचंड पितृ दोष से पीड़ित होगा. ऐसी अवस्था में उसे लगातार अपर्निका घास के रस से हाथ एवं पाँव ढोना चाहिए. उसके बाद ठीक दोपहर में मोथा को बीच से चीर कर दोनों टुकड़ो को दोनों हाथो क़ी कलाई में बांधना चाहिए. और शाम को खोल देना चाहिए. फिर एक सप्ताह बाद मंगलवार के दिन पांचो अँग-सिर, पेट, पीठ, हाथ एवं पैर को गन्ने के सिरके को तनु (Dilute) कर के अच्छी तरह लगा लेवे. आधे घंटे बाद उसे धो ले. उसके बाद अगले मंगलवार को उभयोत्तल (biconvex) 4 :1 के अनुपात में जो मूंगा (Coral) श्वेत-लाल रंग का हो उसे सोने क़ी अंगूठी में धारण करे.
विशेष– यदि किसी भी दशा में दशमेश अस्त या पाप प्रभाव में हो या दशम भाव पाप-शत्रु युक्त हो तों सिर्फ पूजा पाठ का सहारा ले. कारण यह है कि कोई यंत्र काम नहीं करेगा.
इसके पीछे कारण यह है कि इस तरह के निर्बल दशम भाव वाले व्यक्ति क़ी रक्त रिक्तिका ( Blood Vacuum) अपरिमेय स्थानिक तंतु (इंडीफिनिट लोकल ट्रांस्क्लेस) से घिर जाती है. परिणाम स्वरुप किसी भी अवरोधी रासायनिक पदार्थ (Resisting Chemical Matter) क़ी पहुँच नहीं बन पाती है. इसलिये किसी भी यंत्र को सफलता नहीं मिल पाती है. किन्तु मंत्र एवं यज्ञ के प्रभाव से कुछ भी असंभव नहीं है.

R. K. Rai

khojiduniya@gmail.com

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply